Sunday, December 3, 2023

आनन्द कुन्ज में ओशो ध्यान शिविर का अनुभव

आनन्द कुन्ज में ओशो ध्यान शिविर का अनुभव
 

ओशो के प्रेमी आए, गाना तो होगा
 

हसना हंसाना होगा रोना भी होगा
 

✪ तीन दिवसीय ध्यान और सत्संग शिविर
✪ प्रकृति के बीच खुद के भीतर डुबकी का अवसर
✪ ओशो के ध्यान और प्रेम की वर्षा!
✪ डायनॅमिक ध्यान के साथ खुद की खुदाई
✪ गहराई देनेवाला संगीत और उत्सव का माहौल
✪ जीवन रहस्य की खोज पर ले जानेवाले गुमराहों के हमराही


सभी को प्रणाम| २५ नवम्बर से २७ नवम्बर तक हुए इस जीवन रहस्य शिविर का जैसे हँगओवर अब भी महसूस हो रहा है| इस शिविर में हम सबने अपार आनन्द के खजाने की लूट की| आनन्द कुन्ज आश्रम में जैसे आनन्द की कुँजी (key of joy) हमारे हाथ लग गई! सभी ओशोप्रेमी तथा अन्य ध्यान में रुचि रखनेवालों के साथ इस आनन्द को शेअर करना चाहता हूँ| इसलिए इस शिविर की यादों को शब्दबद्ध करने का प्रयास कर रहा हूँ|

२५ नवम्बर की दोपहर! साईकिल या ट्रेन से आने को स्वामी उमंग जी ने प्रेम से मना किया और उनके साथ ही चलने के लिए कहा| उनसे मिलना हुआ| मै और मेरे जैसे कई लोग इस शिविर में आ सके, इसका कारण निश्चित स्वामी उमंग जी (गोरख मुसळे जी) है| कई वर्षों बाद उनसे मिलना हुआ| पुणे से हम निकले तो साथ में मा ईशू जी और स्वामीजी की बेटी ऋद्धी भी हैं| ईशू मा जी उनके विपश्यना सहित कई तरह के ध्यान के अनुभव शेअर किए! मा जी और स्वामीजी के मिलते ही जैसे सत्संग शुरू हुआ| मा जी ने बताया की १४- १५ वर्ष के बच्चे भी विपश्यना शिविर में सहभागी होते हैं| और वे बड़े ही गहरे भी चले जाते हैं| स्वामीजी के साथ हमारे मित्रों को याद किया| रह रह कर स्वामी धर्मेश जी की याद आ रही है| मानों कैसे जीना और कैसे मरना, इसकी मिसाल बना कर वे गए हैं|

शिविर लोणावळा पास मळवली में होने जा रहा है| वहाँ पहुँचने में कुछ समय था तो स्वामीजी ने ओशो जी का प्रवचन लगाया! सन्त चरणदास जी पर ओशो जी की वाणि! "मनुष्य एक वीणा है!" अहा हा| ओशो जी वैसे बहुत बुरे व्यक्ति है| क्यों कि वे तुरन्त आँखों में आंसूओं का कारण बन जाते है| ओशो जी को सुनते सुनते मळवली में पहुँच गए| जैसे जैसे आगे बढ़ते गए, सड़क संकरी होती गई, रास्ता पथरिला होता गया| जैसे ठीक भीतर जाने का रास्ता हो| आनन्द कुन्ज में पहुँचने सादगी और अपनेपन के साथ स्वागत किया गया| बाद में पता चला कि स्वागत करनेवाले तो यहाँ के मालिक हैं| आश्रम में जाने पर कई चिर परिचित नाम मिले- लाओ त्सु पथ, ओशो ध्यान मन्दिर, बुद्धा गार्डन, "Things that are great are given and received in silence" इंगित करनेवाले अवतार मेहेरबाबा और कबीर कुटिया! कबीर कुटिया में रहने का अवसर मिला! और इस परिसर के बारे में क्या कहूँ? हरियाली ही हरियाली, घने पेड़, हरी घास, शान्ति और पास से बहनेवाली इन्द्रायणी! वाह!

धीरे धीरे सभी साधक- साधिकाएँ आते गए| परिचय हुआ और पकौडे के साथ चायपान हुआ| यहाँ की ऊर्जा स्पष्ट रूप से महसूस हो रही है| एक माहौल जैसे बन रहा है| पीछले शिविर में मिले सचिन चव्हाण जी (स्वामी हरिहर जी) भी मिले| अन्य मित्र भी मिले| Be comfortable, स्वामी दर्पणजी ने सबको कहा| मौन शुरू होने के पहले कुछ मित्रों से परिचय हुआ| पहचान न होने पर भी ओशोप्रेमी यह पहचान है ही| एक ही महासागर की धाराएँ! इसी वातावरण को और गहराई देनेवाला संगीत!

दिल तो है एक आईना
इस आईने में तू ही तू
क्या करिश्मा क्या अजूबा
तुझमें मै और मुझमें तू
जो मै वो तू और जो तू वो मै हूँ
फिर भी है मुझे तेरी जुस्तजू
अल्ला हू....

ऐसे गीतों से यहाँ की शान्ति को और गहराई मिलने लगी| एक तरह से "हू" की सूक्ष्म चोट पड़नी शुरू हुई! ओशो ध्यान मन्दिर! ओशो जी की बड़ी प्रतिमा| जैसे लगता है वो ठीक मेरे भीतर ही देख रहे हैं| एक प्रवचन में उन्होने कहा भी है कि मै बिल्कुल आपसे ही बोल रहा हूँ! साथ ही उनके प्रसिद्ध हस्ताक्षर "रजनीश के प्रणाम" के साथ उनके कुछ चित्र! बिल्कुल ही बेबुझ! चारों तरफ उनके चित्र और ध्यान के लिए पूरा इन्तजाम- मॅटस और पीठ के लिए भी आधार| हम कितने सौभाग्यशाली है जो हमें यह सब मिला! बन्द आँखों से ओशो जी को देखता रहा| आँसू बह पड़े|




धीरे धीरे सभी ओशोप्रेमी इकठ्ठा हुए| स्वामी धर्मेश जी की स्मृति को नमन किया| शिविर के मुख्य संयोजक स्वामी कुन्दकुन्द जी का सबने झूमते हुए स्वागत किया| इस तरह से संगीत, ध्यान, हंसी और भाव की यह मैफील शुरू हुई... स्वामी कुन्दकुन्द जी ने सभी से संवाद किया| कुछ वर्षों के पश्चात् यह शिविर हो रहा है| अत: कई पुराने साथी इसमें मिल रहे हैं| हम ध्यान तो करते हैं, ओशो जी को सुनते भी हैं, लेकीन फिर भी जीवन की आपाधापी में ध्यान की धारा टूट जाती है, इसलिए ऐसे शिविर आवश्यक होते हैं, स्वामीजी ने कहा| हम तनाव से भर जाते हैं और उसे निकालना आवश्यक होता है| इसी लिए इस शिविर में सक्रिय ध्यान अर्थात् डायनॅमिक मेडीटेशन पर भी बल दिया जा रहा है| स्वामीजी ने स्वामी धर्मेश जी का भी उल्लेख किया और कहा कि कैसे जिन्दादिल वे इन्सान रहे, कैसे ७५ की उम्र में भी युवा रहे, जीवन को जोषपूर्ण ढंग से उन्होने जिया और वैसे ही होश में रहते हुए मौत से मिले| जीवन के अवसर का हमें लाभ लेना चाहिए और इस शिविर में हमें समाज की दृष्टि से हट कर ओशो जी ने बताई हुई दृष्टि से चलने का अवसर है| हमें सामाजिक उलझनों से निकल कर प्रकृति के साथ डूबना है| स्वामीजी ने यह भी कहा कि यहाँ सहजता से रहना है और प्रकृति का आनन्द लेना है| अन्य किसी से मत जुड़ीए, बात मत कीजिए| बल्की खुद में डूबिए, प्रकृति के साथ खुद से जुड़ जाईए, उन्होने कहा| इस सत्र में संगीत के साथ सभी झूमते रहे और डूबते रहे| इस सत्र का समापन हर्षोल्हास और गीत के साथ हुआ| इस गीत के साथ सभी ओशोप्रेमी झूम उठे, मुस्कुराए और आनन्द से भर गए-

मौत आती है आएगी एक दिन
जान जाती है जाएगी एक दिन
ऐसी बातों से क्या घबराना
यहाँ कल क्या हो किसने जाना

अब तक बाहर अन्धेरा हुआ है| लेकीन क्या मौसम है! सुहावना हल्का करनेवाला माहौल! प्रकृति के साथ जुड़ते हुए इसका आनन्द लिया| भोजन के पूर्व भी कुछ अनुठे गीत बजे जो इस ध्यान और उल्हास को और भीतर ले गए| एक बार एक मित्र ने ओशो जी को यह प्रश्न जैसा भी पूछा था- आप अबसे पहले सितारों में बस रहे थे कहीं, आपको ज़मीं पे बुलाया गया है मेरे लिए! इसका उत्तर देते हुए ओशो जी कहते हैं, कि उनके भीतर कुछ है जो सितारों का है| लेकीन यह सभी के भीतर भी उतर सकता है| यह गाना उसी की याद दे रहा है|

आओ हुजूर तुमको सितारों में ले चलूँ
दिल झूम जाए ऐसी बहारों में ले चलूँ

इसके आगे भी अनुठे गीत बजते रहे|

अजीब दास्तां है ये कहाँ शुरू कहाँ खतम
ये मंज़िले हैं कौनसी, न वो समझ सके न हम

जीवन की ही तो यह बात है! और जब हमें कोई ऐसा संगी साथी मिलता है जो प्रकाश से भरा हो तब-

चलते चलते युंही कोई मिल गया था
सरे राह चलते चलते

ऐसे माहौल का आनन्द लेता रहा| इसी में अधिक से अधिक डूब सकूँ, इसलिए मौन का अंगीकार किया| आत्मीयता और स्नेह के साथ दिए गए भोजन का आनन्द लिया| भोजन के बाद कुछ समय तक बुद्धा गार्डन में बैठ कर ध्यान किया| बादलों में घिरा करीब करीब पूनम का चाँद और उसके पास ही चमकनेवाला बृहस्पति ग्रह- गुरू! चाहें विचारों के बादल बहुत घिरे हो, कुछ सन्नाटा और कुछ खालीपन भी पनप रहा हैं|

कुछ देर बाद कँपफायर और गाने शुरू हुए| वो भी मुझे सुनाई दे रहा है और उससे मेरे मन में प्रतिक्रियाएँ भी उठ रही हैं जिनको मै देखता रहा| बाद में सोने हेतु कुटिया में गया और तब भी वे गाने सुनाई देते रहे| प्रसिद्ध गीत तो उसमें थे ही, साथ ही विठ्ठल भक्ति के भावपूर्ण गीत भी थे| कुछ ओशोप्रेमी कॅराओके के साथ गाने प्रस्तुत करते सुनाई दिए| गज़लें भी हुईं| देर रात तक नीन्द नही लगी| नया वातावरण और नया माहौल!


शिविर का दूसरा दिन- २६ नवम्बर

सुबह जल्दी उठ कर सुबह की प्रसन्नता का आनन्द लिया| अच्छी बारीश हो रही है| कुछ समय तक कुटिया के सामने ही बैठ कर इस ताज़गी का अनुभव लिया| बारीश के साथ ही चाय का आनन्द लिया| पास से बहनेवाली नदी में कुछ ही घण्टों में पानी का स्तर बढ़ा हुआ दिखा| बहाव और भाव दर्शानेवाली, मन्ज़िल इंगित करनेवाली यह नदी! बारीश के पानी की बूँदे पेड़ पर ओस जैसी लटकी हुईं हैं! अब गिरी की तब गिरी! सौंदर्य के साथ क्षणभंगुरता और अनित्य का कितना सुन्दर प्रतिक!

आज पहला सत्र सक्रिय ध्यान का है| सामान्यत: मै सौम्य या पॅसिव्ह ढंग का ध्यान करता हूँ| सक्रिय ध्यान यदा कदा ही किया है| इसलिए ये मेरे लिए बहुत नया होगा| इसके लिए मरून रोब भी आवश्यक है ऐसा बताया गया है| हालांकी, इसकी अनिवार्यता नही है और उस रंग के कपड़े भी पहन सकते हैं| ध्यान के लिए रोब उपयोगी होते हैं, क्यों कि ध्यान के समय की ऊर्जा उस वस्त्र से जुड़ जाती है, ऐसा ईशू मा जी ने कहा था| सक्रिय ध्यान के अलग ढंग के कारण और इस रोब की आवश्यकता के कारण मन में कुछ अस्वस्थता है और इस विचार को भी मै देख रहा हूँ| ऐसे में ओशो ध्यान मन्दिर में बजनेवाले इस गीत ने मन को हल्का किया-

ओशो के प्रेमी आए गाना तो होगा
हंसना, हंसाना होगा रोना भी होगा

सत्र के समय हॉल में बैठ कर ओशो जी का दर्शन किया| नृत्य और उमंग के साथ सभी ने स्वामी कुन्दकुन्दजी का स्वागत किया गया| कुछ देर तो स्वामीजी भी इस जश्न में शामील हुए और सबके साथ झूमें! इस समय "सादगी तो हमारी जरा देखिए" कव्वाली बज रही है! बहुत तेज़ आवाज होने के कारण उसकी पंक्तियाँ नही समझ पाया| मेरे मन के एक हिस्से को यह गाना बहुत लाउड भी लगा, लेकीन इसे भी मै देखता रहा| शायद इतने ऊँचे गाने का कारण यह हो कि डायनॅमिक ध्यान में जो रेचन होना है, जो अचेतन मन में खुदाई करनी है, उसके लिए यह उपयोगी होता हो| और इसी गाने के साथ सभी लोग नाचने लगे और पूरे हॉल में एक फ्लो जैसे बन गया| कई बार लगता है कि अब यह गाना रूकेगा! लेकीन नही! जैसे हिमालय में एक पहाड़ी चढ़ने पर दूसरी शुरू होती है, वैसे ही यह गीत और आगे बढ़ रहा है! इसका क्लाएमैक्स अब आएगा अब आएगा लगता रहा लेकीन गाना चलता ही रहा! लेकीन साथ ही पूरे हॉल के ऊर्जा स्तर को उपर लेता गया! और फिर एकदम से सन्नाटा छा गया! धीरे धीरे स्वामीजी का निवेदन शुरू हुआ!

स्वामीजी ने सक्रिय ध्यान की रूपरेखा बताई, क्या क्या करना है, कैसे करना है यह बताया| उन्होने कहा कि खुद ओशो हमें इस ध्यान में ले जाएंगे| उनके निर्देश के अनुसार हमें करते जाना है| और स्वामीजी इसमें सहयोगी बने रहेंगे| संगीत भी इसमें सहयोग देता रहेगा| पहले चरण में दस मिनट तक बहुत तेज़ गति से साँस लेनी और छोड़नी है| दूसरे चरण में शरीर को उछलने- कून्दने के लिए खुला छोड़ कर चीखना- चिल्लाना है| साँस की चोट से अवचेतन में होनेवाले अवरोध बाहर निकलेंगे तो उन्हे व्यक्त होने देना है| तीसरे चरण में "हू" अक्षर की चोट नाभी के नीचे करनी है| इसे हू कह कर, मन में हू कह कर और हाथ से नाभी के पास स्पर्श कर किया जाएगा| इससे वहाँ दबी ऊर्जा बहने में आसानी होगी| चौथे चरण में खुद को सिर्फ छोड़ देना है| शरीर नीचे गिरे तो गिरने देना है, खड़ा रहे तो खड़ा रह देना है| और अन्तिम पाँचवे चरण में ध्यान के खुले आकाश की जो वर्षा हम पर हुई, उसके लिए धन्यवाद देना है, ऐसा स्वामीजी ने समझाया|   

बड़ी उत्सुकता के साथ इसे शुरू किया| अपने तरीके से तेज़ साँसे लेने लगा| पूरे हॉल के सभी साधकों की ऊर्जा तथा संगीत और बीच बीच में ओशो जी की वाणि! बहुत मज़ा आने लगा| आदत न होने के कारण धीरे धीरे असहजता भी होने लगी| लेकीन करता गया| ओशो जी बार बार याद दे  रहे हैं कि और तेज़, और तेज़! आखरी आधा मिनट! करता रहा और दस मिनट पूरे हुए! अचानक जैसे यह हॉल किसी जंगल में रुपान्तरित हो गया! कई तरह की चीख- पुकार- गर्जनाएँ शुरू हुईं! इस पूरे सामुहिक ध्यान में मै भी कून्द पड़ा और मुझसे भी धीरे धीरे आवाजें निकलने लगी| कुछ देर तो मैने निकाली और अचानक से दिखाई दिया कि कुछ ऐसी आवाजें भी निकल रही हैं जो मैने नही निकाली हैं| जरूर ये अवचेतन से उठ रही हैं| दस मिनट तक यह शोर शराबा जारी रहा| मानो जंगल के सभी पशु इकठ्ठा आ कर झगड़ने लगे हैं| और इस ध्यान में वैसे हमारे भीतर के पशुओं को और तनाव को ही रिलीज करना होता है| दस मिनट बाद "हू" का उच्चारण शुरू हुआ| हर कोई अपने ढंग से कर रहा है| मै भी अपने तरीके से करता रहा| धीरे धीरे भीतर से शान्ति महसूस होने लगी| जैसे ही "स्टॉप!" कहा गया, शरीर को छोड़ दिया| कुछ देर तक हाथ हिलते रहे, फिर शान्त हुए| आल्हाद! एक अजीब सा सन्नाटा और खालीपन महसूस हुआ! दस मिनट बाद फिर संगीत के साथ कृतज्ञता का भाव सभी अनुभव करने लगे| झूमने लगे!

कभी कभी अवचेतन की झलक हमें मिलती है| एक बार मै नीन्द लगने के लिए सपने की कल्पना कर रहा था| एक कहानी रची और उसका सपना देखने लगा| अचानक से मेरी कल्पना के अतिरिक्त सपना उभरा और अवचेतन सामने आया और फिर नीन्द लगी| स्वामीजी ने कहा भी कि कई लोगों को नीन्द नही लगी हुईं| क्यों कि कल शाम को भी जो हल्का फुल्का ध्यान किया था, जो नाचे- झूमे थे, उसके बाद अवचेतन पर चोट हुई है और वह सोने नही देगा! धीरे धीरे सक्रिय ध्यान प्रक्रिया से हम बाहर आए| एक तरह का स्नान हुआ है ऐसे लग रहा है| कमरे में धुल जरूर उठी है, लेकीन कमरा साफ भी हुआ है! इसी भाव और गहराई को और बढ़ाने के लिए यह गाना बज उठा-

ना जाने कौन सा पल मौत की अमानत हो
हर एक पल की खुशी को गले लगा के जियो
न मुँह छुपा के जियो ना सर झुका के जियो

कुछ देर के विश्राम के बाद अगले सत्र में नादब्रह्म ध्यान किया गया| इसमें बैठ कर भंवरे जैसे "हम्" ध्वनि को लगातार तीस मिनट तक करना होता है| मुँह बन्द रख कर यह ध्वनि की जाती है लेकीन सभी को सुनाई देती है| और यह करते समय पेट और कमर पर वायब्रेशन भी महसूस हुआ| पूरा हॉल जैसे मधुमक्खियों से भर गया| समूह में साथ करने के कारण डूबने में आसानी हुई| इस ध्यान के अगले साढ़े सांत मिनट के चरण में हथेलियों को नाभी से दूर ले जा कर अपनी ऊर्जा अस्तित्व के साथ शेअर करने का भाव करना होता है| इसके बाद अगले साढ़ेसांत मिनट के चरण में हथेलियों को नीचे करते हुए यह ऊर्जा वापस हमारी तरफ आने का भाव करना होता है| अन्तिम पन्द्रह मिनट में सिर्फ सुनना और साक्षी होना होता है| यह ध्यान सक्रिय है और घर में भी कर सकते हैं, कुन्दकुन्द स्वामीजी ने बताया| इस ध्यान में भी ओशो जी अपनी वाणि के द्वारा उपस्थित रहे| दो ध्यान सत्रों के बाद जैसे ध्यान का एक मूमेंटम बन गया| और अगले दिन तक इसमें और गहराई अनुभव में आयी|

दोपहर के सत्र में स्वामीजी ने इन ध्यान प्रक्रियाओं पर मार्गदर्शन किया| सभी सहभागियों को बारी बारी से अपने विचार रखने का अवसर दिया| सभी इस शिविर से क्या चाहते हैं यह पूछा| खास कर नए मित्रों से बात की| इसमें जब मुझे बोलने के लिए कहा गया, तो मै सिर्फ यह बोल पाया- ध्यान, मौन, मस्ती! इतना भीतर से शान्त लग रहा है कि बोलने के लिए शब्द ढूँढने कठिन है| ऐसा भी लगा कि कई बार ध्यान में डुबकी लग रही है और एकदम से सत्र समाप्त होता है या संगीत के द्वारा बाहर की ओर ध्यान को ले जाया जाता है| स्वामीजी ने आगे कहा, हम बड़े सौभाग्यशाली है, हमें स्वस्थ शरीर और ठीक जीवन मिला है जो हम यहाँ आ सके हैं| हमारी सभी परेशानियाँ या तो पास्ट में होती हैं या फ्युचर में होती है और ठीक आज के दिन और अभी के क्षण में नही होती हैं| इसी herenow में डूबने के लिए उन्होने कहा|

डायनॅमिक ध्यान से कुछ थकान भी होती है| और उतना ही फ्रेश भी लगता है| इससे अच्छी भूख लगी और भोजन का भी खूब आनन्द लिया| आनन्द कुन्ज के मित्र बहुत शान्ति से सबकी व्यवस्था कर रहे हैं| इसके साथ शान्ति से भरी प्रकृति और रिझानेवाली बारीश! ओशो जी तो कहते ही हैं कि हर क्षण और हर सिच्युएशन का आनन्द लिया जा सकता है| बस हमें कैसे लेना है, यह पता हो! बरबादीयों का भी जश्न मनाया जा सकता है! इसी दिशा में अगले सत्र में स्वामीजी ने बात की| जीवन की कोई बड़ी दु:ख की घटना या उसके विपरित जीवन की ऐसी कोई घटना जिससे लगे कि हाँ मैने यह अच्छा काम किया इस पर उन्होने बोलने के लिए कहा| साथ ही जीवन में आगे क्या उद्देश्य है यह भी पूछा| इस सत्र में कई मित्रों ने अपने दुखों के केवाड़ खोल दिए| इतनी मित्रता और अपनेपन के साथ सबके सामने खुद को रिलीज किया वह देखने जैसा था| ग्रूप के ध्यान का माहौल, ऊर्जा और मूमेंटम से कई मित्र ये साहस कर पाए| अपने पिता से ठीक से बात न करने का दु:ख एक मित्र ने शेअर किया| अपने आप को वे इस कारण माफ नही कर पा रहे हैं| सबने शान्ति से उनके दर्द को सुना और समझा| स्वामीजी ने भी उन्हे मार्गदर्शन किया| एक अन्य मित्र ने उनकी माँ के देहान्त का दु:ख शेअर किया तथा उनके बेटे को हुई पीड़ा से उन्हे हुई तकलीफ के बारे में बताया| आज के ज़माने में जहाँ हम हृदय से नाता तोड़ कर बुद्धी से जोड़ कर लेते हैं, उस समय ऐसे भावपूर्ण मित्र और रो सकनेवाले हृदय देख कर बहुत अच्छा लगा| स्वामीजी ने और मित्रों को भी बोलने के लिए अवसर दिया| एक मित्र ने कई साल पहले के प्रेम के रिश्ते के बाहर न निकल पाने के बारे में बात की| स्वामीजी ने उन्हे इतना ही कहा, कि अब उस व्यक्ति को ध्यान की ओर लाने के लिए माध्यम बनिए|

स्वामी सचिन चव्हाण (हरिहर स्वामी) ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि वे तायक्वान्दो में राष्ट्रीय खिलाड़ी थे, गोल्ड मेडलिस्ट थे| लेकीन लिगामेंट इन्ज्युरी के कारण उन्हे वह छोड़ना पड़ा| वे डिप्रेशन में भी जाने की स्थिति में आ गए थे| जिन्दगी का उद्देश्य जैसे ध्वस्त हुआ था| लेकीन अब ध्यान के मार्ग पर वे आगे बढ़ रहे हैं| कई मित्रों ने ऐसे ही दु:ख- दर्द बाँटे और अपने जीवन की आगामी यात्रा के बारे में भी बात की| जब मुझे पूछा गया कि तुम्हारे उद्देश्य क्या हैं, तो मै बस यह बोल पाया- जीवन ने अपरंपार रूप से बहुत कुछ दिया है, बहुत कुछ मुझ पर लुटाया है| मेरे मन में कोई प्रायवेट इच्छा मुझे नजर नही आती है| जीवन ने अब तक बहुत दिया, आगे भी देता रहेगा| और मुझ से जो काम कराने हो, कराता रहेगा|   

चायपान के बाद के सत्रों में भी स्वामीजी ने मार्गदर्शन किया| हमें जिम्मेदारियाँ तो पूरी करनी है, कारोबार करना है, लेकीन सिर्फ वही करते नही रहना है| अन्यथा हम तो जी ही नही पाएंगे और यह मौका हाथ से जाएगा| हमें बहुत अनुठा मौका मिला है| हम ध्यान के पथ पर किसी बुद्ध पुरुष से जुड़े है| अगर यह अवसर गया तो अगले जनम में ऐसे किसी बुद्ध के पास आएंगे, ओशो जैसी किसी की वाणि सुनेंगे या नही, यह संदिग्ध रहेगा| इसलिए कुछ समय खुद के लिए निकालिए, उन्होने कहा| इसी सन्देश को और गहरे जाने के लिए उनके द्वारा शायरी और पंक्तियों का भी बखूबी उपयोग किया जा रहा हैं| संगीत के साथ ध्यान और उत्सव का क्रम जारी रहा| तरह तरह के संगीत- शास्त्रीय संगीत से ले कर पंजाबी और वेस्टर्न संगीत का मिश्रण भी सुनने का अवसर मिला| कभी लगा कि यह तो भारतीय संगीत नही होगा| लेकीन शान्ति से सुनने पर पता चला कि पिच जरूर ऊँचा है, लेकीन है तो यह सितार- तबला और बांसुरी ही! अद्भुत संगीत! ध्यान को और गहरे लेने में यह संगीत भी उतनी ही सहायता कर रहा है| यह गीत सुनाई दिया तो पीछले शिविर की याद ताज़ा हो गई-

ये मत कहो खुदा से मेरी मुश्क़िलें बड़ी हैं
इन मुश्क़िलों से कह दो मेरा खुदा बड़ा है

 
हर सत्र का आरम्भ और समापन नाचने- झूमने से हो रहा है| अब धीरे धीरे सब पर मस्ती सी छायी है| सुबह मेरे भी पैर इतने‌ चल नही रहे थे| अब ग्रूप के फ्लो के साथ मै भी झूम रहा हूँ| मै despite of me ऐसा झूम पा रहा हूँ! शाम के सत्र में स्वामीजी ने साधकों को अपनी जिम्मेदारी बतायी| ध्यान को करते रहना है और अपने मित्रों के साथ शेअर भी करना है| साधना के बारे में भी बातें हुईं और स्वामीजी ने मार्गदर्शन किया| इस सत्र के अन्त में भी उन्होने सभी सद्गुरूओं के प्रति धन्यवाद व्यक्त किए जिनकी असीमित कृपा के कारण हम यह सब ध्यान कर पा रहे हैं| शाम को बारीश ने भी रफ्तार पकड़ी और मौसम भी जैसे झूम उठा है| बीच बीच में व्यक्तिगत रूप से शान्त बैठने के लिए भी अवसर मिल रहे हैं| इस परिसर का भी आनन्द लेता रहा| कितने प्रेम से यह पूरा ओशो आश्रम खड़ा किया गया होगा! और हम कितने सौभाग्यशाली हैं कि इसका आनन्द ले पा रहे हैं! जीवन के प्रति अपरंपार कृतज्ञता! और क्या कहें!

भोजन पश्चात् अपने कमरे में जा कर रैदास जी पर ओशो जी के प्रवचन को सुनते हुए विश्राम में डूब गया| कुछ देर बाहर के कँप फायर की आवाजें आती रहीं, फिर नीन्द लग गई| रात बीच बीच में बिजली कड़कने से और बारीश की आवाज से नीन्द खुलती रही| लेकीन अच्छा विश्राम हुआ|


शिविर का तीसरा दिन- २७ नवम्बर

२७ नवम्बर की सुबह! सुबह वाकई अनुठी घटना है| आदत के कारण अक्सर हम उसे देख नही पाते हैं| घने अन्धेरे से एक एक किरण का आना, पूरब में लाली छाना और धीरे धीरे रोशनी होना! कितनी अनुठी बात है! अगर हम देख सके तो! थोड़ा टहलने के साथ सुबह का आनन्द लिया| वर्षा रूक गई है| सुबह की ताज़गी में चाय का आनन्द लिया| पहले कप का स्पर्श अनुभव किया, फिर उसकी भाँप और गर्मी और फिर उसका स्वाद| कुछ लोग चाय तो ले लेते हैं, लेकीन उसका आनन्द शायद नही लेते हैं| अब धीरे धीरे कई मित्रों को पहचानने लगा हूँ| कभी बात करने का भी मन होता है, लेकीन मौन में ही डूबना चाहता हूँ| शिविर समाप्त होने पर सभी से बात कर सकूँगा!

इस शिविर में श्रीमान मुल्ला नसरुद्दीन जी को भी बहुत मिस कर रहा हूँ! वैसे वे भी हर एक के भीतर होते ही हैं| मौन करते समय ओशो जी ने कही वह मुल्ला नसरुद्दीन की कहानी याद आती है! ओशो जी ने कहा कि एक दिन मुल्ला जी‌ और उनके तीन मित्र बैठे मौन के लिए| कुछ ही मिनटों में पहला मित्र बोला कि अरे शायद मै घर को ताला लगा के नही आया हूँ! तुरन्त दुसरा बोला कि तुम्हारा मौन तो टूट गया! तीसरे ने कहा, तुम्हारा भी मौन कहाँ बचा! और फिर मुल्ला ने कहा कि बचा तो सिर्फ मै! यह कहानी याद दिलाती है कि मौन इतना आसान नही!

स्वामी उमंग जी ने टेरेस पर सभी को बुलाया| यहाँ पहले सत्र के वॉर्म अप के निर्देश स्वामी कुन्द कुन्द जी ने दिए| दो मिनट जॉगिंग, दो मिनट जिबरीश अर्थात् अनर्गल बकवास, दो मिनट "ही हा हा" जैसा हंसना और दो मिनट मुखर ॐ कहना आदि पहलू उन्होने समझाए| सक्रिय ध्यान के पहले ये उपयोगी हैं| सुबह की ताज़गी और खुले आकाश के नीचे ये करते हुए मज़ा आया| और मज़े की बात तो यह कि जिबरीश में भी अलग ही आवाजें निकली जो अक्षरों में भी लिखी ना जा सके! यहीं फिर एक फोटो सेशन हुआ! सब जब मुस्कुरा रहे थे, तो एक मित्र ने फोटो लेनेवाले मित्र से कहा कि आप भी मुस्कुराईए! और सभी हंस पड़े!

सक्रिय ध्यान बहुत अच्छा रहा| लगातार दो दिनों से ग्रूप में मिल कर ध्यान करने से मिला मूमेंटम अब स्पष्ट अनुभव में आ रहा है| कल की तुलना में शरीर ज्यादा ओपन अप हुआ है| फ्लो में बह पा रहा हूँ| स्वामी कुन्दकुन्दजी का मार्गदर्शन और ओशो जी की वाणि! इस बार बिल्कुल भी अस्वस्थता नही लगी, पूरे ध्यान का आनन्द ले सका| पहले दस मिनट तेज़ साँसें, सासों की जैसे धोंकनी! उसके बाद दस मिनट शरीर को छोड़ कर चीखना- चिल्लाना- शोरगुल! इसका भी खूब आनन्द लिया! ग्रूप का साथ और संगीत और टेप के द्वारा ओशो जी के साधकों का साथ मिलने के कारण आसानी हुई! फिर हू की चोट! उसके बाद साक्षीभाव और सेलिब्रेशन| बहुत मज़ा आया| यह ध्यान हम घर में अकेले में ऐसा शायद ही कर सकते हैं| ग्रूप से बड़ी सहायता होती है|

कहते हैं ना कि कोई भी काम अकेले करना और ग्रूप में करना इसमें बड़ा फर्क होता है| जैसे आप अकेले स्विमिंग कर रहे हैं, तो पूरा पानी आपको प्रतिरोध करेगा| लेकीन पाँच मित्र मिल कर स्विमिंग कर रहे हो, तो पानी का प्रतिरोध कम हो जाएगा| साथ ही एक धारा बनेगी, एक मूमेंटम बनेगा और बहुत आसानी होगी! एक दूसरे से सहायता मिलेगी, ऊर्जा और जोश भी मिलेगा! ठीक यहीं यहाँ अनुभव कर रहा हूँ| साथ ही ध्यान के कारण लग रहा है मानो आकाश से बादल हट गए| विचारों की भीड जो बड़ी थी, वो अब कम हो गई| जैसे कोई हायवे से ट्रैफिक कम हो कर वह एक सुनसान सड़क बन जाए और वहाँ से तीन- चार लोग ही डरे डरे निकल रहे हैं| वैसे विचार ठण्डे पड़ गए| चल तो रहे हैं, लेकिन खुला आकाश भी महसूस हो रहा है|

सुबह सवेरे लेकर तेरा नाम प्रभू
करते हैं हम शुरु आज का काम प्रभू

ध्यान सत्र के तुरन्त बाद यह अनुठी प्रार्थना सुनाई दी और दिखाई भी दी! आनन्द कुन्ज के सभी सदस्य शान्ति से इकठ्ठा हो कर यह प्रार्थना कह रहे हैं! अद्भुत दृश्य! इतनी शान्ति, इतनी विनम्रता और इतना भाव! अहा हा! गीत भी उतना ही गहरा और अर्थपूर्ण लगा! ये सभी सदस्य उतने ही लगाव से सभी कार्य करते भी नज़र आए| हॉल में माईक की व्यवस्था देखनेवाले मित्र भी ध्यानी हैं, ऐसा बाद में पता चला! और उनका दायित्व ऐसा है कि उन्हे हर सत्र का लाभ मिलता है|

दूसरा ध्यान नाभी ध्यान का लिया गया| यह ओशो जी द्वारा बताए गए पॅसिव ध्यान प्रक्रियाओं में से एक है| यह मेरे स्वभाव के अनुकूल लगा| ध्यान की शुरूआत में ओशो जी का कुछ सम्भाषण है- लोगों को वे समझा रहे हैं कि कैसे करना है| इस सम्भाषण में उनका लोगों से प्रेम और हृदय का सम्बन्ध हृदय को छू गया| कितना अपनापन, कितना दूसरे के प्रति प्रेम! इस ध्यान में पहले मस्तिष्क और शरीर को ढिला छोड़ कर नाभी की तरफ ध्यान दिया जाता है| नाभी ध्यान में साँस पर ध्यान दे कर साँस लेने के कारण जरा सा उपर आनेवाला और छोड़ने के बाद नीचे चला जानेवाला नाभी का क्षेत्र देखना होता है| उसे देखते देखते धिमी होनेवाली साँस देखनी है| यह करते करते मन भी शान्त हो जाता है| ओशो जी के कई प्रवचन सुने हैं, लेकीन यह ध्यान विधि कभी पता नही हुई थी| इसका अभ्यास करना चाहूँगा|

इस सत्र का समापन भी संगीत और नृत्य के साथ हुआ|

हर युग में तुम जैसों को आना पड़ेगा
गुमराहों के हमराही होना पड़ेगा

कितना मिठा गीत है यह! कितनी अनुठी प्रार्थना! सभी गुरूओं के प्रति पुकार! ओशो जैसे सभी गुरूओं के प्रति गुहार! यह प्रार्थना बहुत हृदय के करीब लगी| अगला सत्र भी इसी क्रम में भावपूर्ण रहा जब कुछ मित्रों ने माला प्राप्त की और संन्यास का नया नाम भी उन्हे मिला| उनका भाव और उनकी आस्था और स्वामी कुन्दकुन्द जी के उनके प्रति होनेवाले भाव भी का देखने जैसे हैं| धीरे धीरे यह शिविर अपने समापन के पास आ रहा है... भोजन के पहले सभी सहभागियों से फीडबॅक भी पूछा गया| कुछ मित्र आज ही आए हैं, फिर भी उन्हे अच्छा लगा| कई मित्रों ने अपने आनन्द और शान्ति के बारे में बताया|

जब मुझे मेरा फीडबॅक पूछा गया, तब मैने मेरा आनन्द और अनुभव संक्षेप में बताया| हम यहाँ इतने ग्रूप में घुल- मिल गए हैं कि नाम बताना भी याद न रहा था| फिडबॅक में यह भी शेअर किया कुछ समय गीत थोड़े लाउड थे और इससे भीतर जाने में बाधा भी महसूस हुई| कई बार तुरन्त सत्र समाप्त होने से या संगीत के बजने से ध्यान की धारा टूटती नजर आई| साथ ही ओशो जी के प्रवचन भी होने चाहिए थे| सभी मित्र और स्वामी कुन्दकुन्दजी ने शान्ति से इसे सुना और इस पर अपने विचार व्यक्त किए| उन्होने कहा कि गहरे ध्यान के लिए छह दिनों के शिविर आयोजित किए जाते हैं और उसमें पूर्ण मौन और अधिक ध्यान होता है| और इस बार लम्बे अन्तराल से शिविर होने के कारण कँप फायर जैसा पहलू भी इसमें रखा गया था|

सभी स्वामीजी- माजी ने भी फीडबॅक दिया| शिविर में सभी प्रफुल्लित और ऊर्जावान महसूस कर रहे हैं| अब यही ऊर्जा और ध्यान को आगे भी जारी रखेंगे, ऐसा मित्रों ने कहा| अन्त में स्वामी उमंगजी ने अपने विचार रखे| इस शिविर के आयोजन में उनकी, स्वामी एकांत जी और स्वामी दर्पण जी की अहम भुमिका रही| उन्होने स्वामी कुन्दकुन्दजी के बारे में अपनी श्रद्धा व्यक्त की| तथा उनकी पत्नि और ध्यान संगिनी मा प्रेम सम्पत्ति द्वारा साथ दिए जाने का भी भावपूर्ण शब्दों में उल्लेख किया| स्वामी एकान्तजी ने अपने फीडबॅक के साथ गीत भी सुनाया| जीवन कैसे कृतार्थ और पूर्ण होता है, ऐसी भावदशा को कहनेवाला गीत! उन्होने उनका ध्यान और उनके भीतर से फूटनेवाली शायरी के बारे में भी बात की| सभी को "प्रभू", "भगवान" कहनेवाले स्वामी एकान्तजी से मिल कर ध्यान ऊर्जा मिली| मेरे बारे में भी उन्होने उल्लेख किया जिसे मैने तटस्थता से देखा|

अन्तिम सत्र में स्वामी कुन्दकुन्द जी ने सभी को जिम्मेदारी का एहसास दिलाया| ध्यान और ओशो के मार्गदर्शन को समाज में सही ढंग से पहुँचाना हमारा काम है| सत्संगियों का समूह बनना चाहिए और ध्यान में आगे बढ़ना चाहिए| उन्होने यह भी बताया कि पहले इसी स्थान पर कई सालों तक ओशो जी के नाम से ही शिविर होते थे| लेकीन उन शिविरों को देख कर ही उस समय के मालिक ने तय किया कि अब यहाँ ओशोवालों को शिविर नही लेने देने हैं| इसलिए ओशोप्रेमियों का दायित्व है कि वे सही ध्यान विधियों का ही प्रसार करें| मीडीया वैसे ही ओशो जी के बारे में नकारात्मक बातें फैलाता है| उन्होने यह भी कहा कि हमें विवादों से दूर रह कर सिर्फ ध्यान पर ही ध्यान देना है| समाज में रहते हुए जिम्मेदारियों को पूरा करना है और ध्यान की राह पर आगे बढ़ते रहना है| अन्त में बहुत भावपूर्ण ढंग से सभी मित्र और स्वामीजी- माजी विदा हुए| उनका प्रेमपूर्ण विदा होना भी देखने जिसा था| संगीत और नृत्य के साथ ही अन्तिम सत्र का समापन हुआ| इस शिविर में स्वामी उमंग जी की बेटी रिद्धी जी का भी सहभाग रहा| चेतना का जैसे उम्र से सम्बन्ध नही होता है, यही वे बता रही थी|

भोजन पश्चात् आनन्द कुन्ज से निकलना पड़ा| लेकीन बिना आनन्द की कुँजी लिए नही! अब मौन से बाहर आ कर सभी से बातचीत शुरू की| एक स्वामीजी- गोपी मुंढे मेरे गाँव के ही मिले| मेरी कुटिया में रहनेवाले शंकर पाटील जी से भी बात हुई| अब यह स्नेह और ध्यान का धागा आगे भी बनाए रखना है| स्वामी एकांतजी की अगुवाई में पास की भाजे गुंफा देखने का अवसर मिला|  साथ ही उनसे और अन्य स्वामीजी- माजी से भी बातें हुईं| स्वामी एकांतजी ने उनके ध्यान के अनुभव, उनको मिले कई ध्यानी और योगियों का सत्संग, उनकी भीतर से फूटनेवाली शायरी आदि पर बात की| ध्यान में इतने डूबे हुए स्वामीजी मेरे साथ इतनी मित्रता से बात कर रहे हैं! हम सब कितने सौभाग्यशाली है! गुंफा में २५०० वर्ष पुरानी भिक्षुओं की ध्यान स्थली देखी| स्वामी कुन्दकुन्दजी के साथ कुछ क्षण बिताने का अवसर मिला| ये स्वामीजी और सभी संन्यासी कितनी मित्रता और सादगी से बात करते हैं, यह भी महसूस हुआ|

अन्तत: आया विदाई का पल! धीरे धीरे एक एक मित्र से, स्वामीजी और माजी से विदा लिया| पुणे तक की यात्रा स्वामी उमंग जी के साथ की| वैसे उनको सभी लोग उनके मूल नाम- गोरख नाम से ही पहचानते हैं| नाम में भी कुछ अर्थ तो होता ही है| उनके और मा प्रेम सम्पत्ति जी तथा ऋद्धी के साथ पुणे तक यात्रा हुई| इस तरह यह ध्यान शिविर बहुत कुछ दे गया| डायनॅमिक ध्यान तथा ओशो जी की अन्य टेक्निक्स समझने का और सबसे जुड़ने का अवसर मिला| जैसे ध्यान की धारा- ध्यान के प्रवाह में डुबकी लग गई| और सबको विदा करने के बाद सामने दिखाई दिया नानक पूर्णिमा का पूरा चाँद| पूर्णिमा का चाँद जो हम सबको अपनी पूर्णता का स्मरण दिलाता है| गुरू नानक जी को और सभी सद्गुरूओं को वन्दन कर मेरी लेखणि को विराम देता हूँ| सभी को प्रणाम और सभी के प्रति कृतज्ञता|

- निरंजन वेलणकर,
पुणे. मोबाईल- 09422108376
28 नवम्बर 2023

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