नमस्ते!
मेरी पसन्द के दो हिन्दी फिल्मी गाने जिनमें गहरा आध्यात्मिक अर्थ हैं| या यूँ कहे तो उनमें धर्म का सार हैं-
मै पल दो पल का शायर हूँ
पल दो पल मेरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है
पल दो पल मेरी जवानी है ...
मुझसे पहले कितने शायर
आए और आकर चले गए...
कुछ आहें भर कर लौट गए
कुछ नग़मे गाकर चले गए...
वो भी एक पल का किस्सा थे
मैं भी एक पल का किस्सा हूँ
कल तुमसे जुदा हो जाऊँगा
जो आज तुम्हारा हिस्सा हूँ
मैं पल दो पल का शायर हूँ ...
कल और आएंगे नगमों की
खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझसे बेहतर कहने वाले
तुमसे बेहतर सुनने वाले
कल कोई मुझको याद करे
क्यूँ कोई मुझको याद करे
मसरूफ़ ज़माना मेरे लिये
क्यूँ वक़्त अपना बरबाद करे
मैं पल दो पल का शायर हूँ …
(चित्रपट कभी कभी)
और यह दूसरा गीत-
मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुवें में उडाता चला गया
बरबादियों का शौक मनाना फिजुल था, मनाना फिजुल था, मनाना फिजुल था,
बरबादियों का जश्न मनाता चला गया
मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया....
जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया, मुक़द्दर समझ लिया, मुक़द्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया
मैं जिंदगी का साथ निभाता चलाता गया...
गम और ख़ुशी में फर्क ना महसूस हो जहाँ, ना महसूस हो जहाँ, ना महसूस हो जहाँ
मैं दिल हो उस मुक़ाम में लाता चला गया...
मैं जिंदगी का साथ निभाता चलाता गया…
मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुवें में उडाता चला गया...
(चित्रपट हम दोनों)
इन दो गीतों में धर्म का सार है; विपश्यना का सार हैं. . .
मेरी पसन्द के दो हिन्दी फिल्मी गाने जिनमें गहरा आध्यात्मिक अर्थ हैं| या यूँ कहे तो उनमें धर्म का सार हैं-
मै पल दो पल का शायर हूँ
पल दो पल मेरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है
पल दो पल मेरी जवानी है ...
मुझसे पहले कितने शायर
आए और आकर चले गए...
कुछ आहें भर कर लौट गए
कुछ नग़मे गाकर चले गए...
वो भी एक पल का किस्सा थे
मैं भी एक पल का किस्सा हूँ
कल तुमसे जुदा हो जाऊँगा
जो आज तुम्हारा हिस्सा हूँ
मैं पल दो पल का शायर हूँ ...
कल और आएंगे नगमों की
खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझसे बेहतर कहने वाले
तुमसे बेहतर सुनने वाले
कल कोई मुझको याद करे
क्यूँ कोई मुझको याद करे
मसरूफ़ ज़माना मेरे लिये
क्यूँ वक़्त अपना बरबाद करे
मैं पल दो पल का शायर हूँ …
(चित्रपट कभी कभी)
और यह दूसरा गीत-
मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुवें में उडाता चला गया
बरबादियों का शौक मनाना फिजुल था, मनाना फिजुल था, मनाना फिजुल था,
बरबादियों का जश्न मनाता चला गया
मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया....
जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया, मुक़द्दर समझ लिया, मुक़द्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया
मैं जिंदगी का साथ निभाता चलाता गया...
गम और ख़ुशी में फर्क ना महसूस हो जहाँ, ना महसूस हो जहाँ, ना महसूस हो जहाँ
मैं दिल हो उस मुक़ाम में लाता चला गया...
मैं जिंदगी का साथ निभाता चलाता गया…
मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुवें में उडाता चला गया...
(चित्रपट हम दोनों)
इन दो गीतों में धर्म का सार है; विपश्यना का सार हैं. . .
संसार से भागे फिरते हो..... भगवान को तुम क्या पाओ गे हे गाणं आणि ह्यातली एक ओळ... यह भोग भी एक तपस्या है...
ReplyDeleteधन्यवाद! :)
ReplyDeleteदोनों गाने साहिर लुधियानवी ने लिखे है यह केवल योगायोग नहीं।
ReplyDeleteमन रे तू काहे न धीर धरे
ओ निर्मोही मोह न जाने जिनका मोह करे।