दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक
दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक
दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर
दोस्ती साईकिल से ४: दूरियाँ नज़दिकीयाँ बन गईं. . .
दोस्ती साईकिल से ५: सिंहगढ़ राउंड १. . .
दोस्ती साईकिल से ६: ऊँचे नीचे रास्ते और मन्ज़िल तेरी दूर. . .
दोस्ती साईकिल से ७: शहर में साईकिलिंग. . .
दोस्ती साईकिल से ८: सिंहगढ़ राउंड २!
दोस्ती साईकिल से ९: दूसरा शतक. . .
दोस्ती साईकिल से १०: एक चमत्कारिक राईड- नर्वस नाइंटी!
दोस्ती साईकिल से ११: नई सड़कों पर साईकिल यात्रा!
दोस्ती साईकिल से १२: तिसरा शतक- जीएमआरटी राईड
दोस्ती साईकिल से १३: ग्रामीण सड़कों पर साईकिल राईड
दोस्ती साईकिल से: १४ "नई साईकिल" से नई शुरुआत
दोस्ती साईकिल से: १५: औंढा नागनाथ के साथ चौथा शतक
दोस्ती साईकिल से: १६: पाँचवा शतक- लोअर दुधना डैम
दोस्ती साईकिल से: १७: एक ड्रीम माउंटेन राईड- साक्री से नन्दुरबार
तोरणमाळ हिलस्टेशन पर साईकिल ट्रेक!
सातपुडा के पास साईकिल चलाने की बहुत इच्छा है| जल्द ही तोरणमाळ ट्रेक करना है| इसे ले कर बहुत उत्सुकता मन में होगा| यह मेरा आज तक का सबसे बड़ा माउंटेन ट्रेक होगा| पहले दो बार सिंहगढ़ किया है, पर यह उससे भी बड़ा होगा| ५० किलोमीटर तक चढाई और ७-८ किलोमीटर का बड़ा घाट| मज़ा आएगा और एक तरह से मै कहाँ खड़ा हूँ, यह भी पता चलेगा| तोरणमाळ जाने के पहले नंदुरबार के पास और एक छोटी राईड की| यहाँ से गुजरात बार्डर पास ही है, इसलिए गुजरात जा के आया साईकिल पर! जहाँ मै ठहरा हूँ, वहाँ से तोरणमाळ हिल स्टेशन करीब ७६ किलोमीटर दूरी पर है| इसलिए सीधा नही जाऊँगा| पहले इस हिल स्टेशन के बेस तक पहुँचूँगा, वहाँ एक हाल्ट करूँगा और अगले दिन तोरणमाळ जाऊँगा| यह निर्णय बाद में बड़ा सही साबित हुआ|
२४ अगस्त को प्रोजेक्ट का काम पूरा होने के बाद साईकिल ले कर निकला| यहाँ से तीस किलोमीटर दूर शहादा नाम की जगह है जहाँ मै लॉज पर रूकूँगा| यह राईड अच्छी रही| मात्र डेढ घण्टे में शहादा पहुँच गया| रास्ते में तापी नदी क्रास की| पहली बार किसी राईड के लिए होटल में हाल्ट करूँगा| लैपटॉप और सारा सामान भी साईकिल पर साथ ले गया| शाम होते होते लॉज मिल गया| अब अच्छे से विश्राम करना है ताकि सुबह जब निकलूँ, तब शरीर बिल्कुल ताज़ा हो| लेकिन अच्छा विश्राम कर पाना भी एक कुशलता है और यह इतनी सरल नही होती है| इसलिए देर रात तक अच्छी नीन्द नही लगी| उपर से नई जगह- नया गाँव| और सुबह जल्द उठने का तनाव| इसलिए नीन्द बेहद कम हुई| सुबह ५ बजे उठा| एक दुविधा यह है कि क्या सामान यहीं छोड जाऊँ या साथ ले जाऊँ? सामान छोडने में दिक्कत यह है कि लॉज पर इतना सेफ नही रहेगा| और अगर ले जाता हूँ तो घाट चढते समय दिक्कतें बढेगी| क्यों कि लैपटाप और सब सामान का वजन तो सात- आठ किलो होगाही| बड़ी दुविधा रही| लेकिन बाद में सुरक्षित विकल्प चुना और सामान साथ ही लिया और साढ़ेपाँच बजे बाहर निकला| यह भी निर्णय बाद में सही साबित हुआ| सुबह के साढ़ेपाँच और एक अन्जान राह पर राईड का आग़ाज़!
मार्निंग वाक करनेवाले लोगों से सड़क पूछी और निकला| धीरे धीरे रोशनी फूटती गई, दूर पहाड़ दिखने शुरू हो गए और धीरे धीरे सड़क भी बहने लगी| लोग मिलने लगे| पहले तीस किलोमीटर तक तो कुछ परेशानी नही आएगी| हालाकि बहुत मन्द चढाई शुरू हुई है| असली मज़ा आखरी दस किलोमीटर में आएगा| और दूसरी बात यह कि एक बार मुख्य सड़क छोड कर दुसरी सड़क लेने के बाद होटल या गाँव भी न के बराबर मिलेंगे| म्हसावद नाम के गाँव में नाश्ता किया| इसके बाद शायद तोरणमाळ में ही सही नाश्ता मिल सकेगा| यह सब ट्रायबल बेल्ट है| महाराष्ट्र का एक दुर्लक्षित जिला- नन्दुरबार| यहाँ से मध्य प्रदेश और गुजरात की सीमाएँ पास है| जैसे आगे बढ़ रहा हूँ, चोटियाँ और करीब आ रही है| यह सातपुड़ा है! एक के बाद एक सात स्तर! अभी जो दिखाई पड़ रही है, वह पहला स्तर है पहाड़ का| धीरे धीरे वे दिखते जाएँगे| सड़क अच्छी है| बीच बीच में होटल नही, पर छोटे गाँव लग रहे हैं| एक जगह पानी के हैंड पंप से पानी ले लिया| नागझिरी नाम की जगह पर अच्छा तालाब दिखा| अब बस्ती कम हो रही है| पहले दो घण्टों में २४ किलोमीटर और तीन घण्टों के बाद ३२ किलोमीटर पूरे किए|
तापी नदी और दूर सातपुड़ा के पहाड़
अब धीरे धीरे थकान होने लगी है और अब गति वाकई कम होने लगी है| चढाई बहुत तेज़ तो नही है, लेकिन निरंतर चढाई चलने से अधिक ऊर्जा खर्च हो रही है| बीच बीच में तेज़ चढाई आने लगी| अब बिल्कुल नीचले गेअर्स पर चला रहा हूँ| चलते हुए लगभग साढ़ेतीन घण्टे हुए हैं और मुश्किल से ३५ किलोमीटर तक पहूँचा हूँ| बड़ी धिमी रफ्तार है| और जल्द ही साईकिल चलाना कठिन हुआ| चढाई बढ़ गई और अब पैदल जाने का समय आया| करीब चार घण्टे ही साईकिल चला पाया और अब भी तोरणमाळ करीब १५ किलोमीटर दूर है| अब पैदल ही चलना होगा| समय तो बहुत लगेगा, लेकिन अभी सुबह के साढ़े नौ ही हुए है| लेकिन एक बात तो तय हुई की लगातार इतनी चढाई मै नही चढ सकता हूँ| शायद सामान नही होता तो चल पाता| कोई बात नही, ऐसी सड़क में पैदल जाने में भी उतना ही मज़ा है|
जैसे सातपुड़ा की एक एक रेंज दिखने लगी, तब उसका विराट रूप उजागर होने लगा| पहाड़ी क्षेत्र में आने के संकेत मिलने लगे- नीचे से बहता झरना और चढाईभरी सड़क और बादलों में घिरी चोटियाँ! कालापानी तक आते आते बहुत थक गया| यहाँ पता चला कि असली घाट तो अब शुरू होगा! आखरी आठ किलोमीटर बचे हैं| यहाँ से सांत चरणों का घाट शुरू होता है| इसी कारण इसे सातपुड़ा कहते हैं| यहाँ से तोरणमाळ सेंक्चरी भी शुरू हो गई| घाट शुरू हुआ| लेकिन पैदल चलने में अधिक कठिनाई नही आयी| बार बार रूकना जरूर पड़ा| लेकिन चलता गया और जैसे बादल नीचे आने लगे| थोड़ी हे देर में रास्ता बादलों से गुजरने लगा! एकदम से अन्धेरा हो गया और बून्दाबान्दी भी होने लगी! अद्भुत नजारा!
मुझे अकेले चलते देखते हुए एक सज्जन रूके| वे तोरणमाळ में काम करनेवाले है और वैसे तो शार्ट कट से उपर जाते हैं| लेकिन कुछ समय तक उन्होने मेरा साथ दिया और बताया भी कि अब बस दो- तीन किलोमीटर बाद चढाई खतम होगी| अब इतना अधिक थक चुका हूँ कि ठीक से पता भी नही लग रहा है कि कितनी दूरी बची है| बस खुद को घसीट रहा हूँ| एक पट्ट दिखा- महाराष्ट्र का क्रमांक दो का हिलस्टेशन बस पास ही मेंं| लेकिन इतना थक गया हूँ, कि इस हिल स्टेशन का नाम तक याद नही रहा| बस चल रहने का ख्याल रहा| कहते हैं कि, होश या सजगता भी ऊर्जा का ही रूप है| मेरी ऊर्जा इतनी क्षीण हो गई है कि यह होश भी नही रहा कि इस हिल स्टेशन का नाम क्या है! धीरे धीरे दूर समतल जमीन दिखने लगी| नागार्जुन गुफा लगी और अब घाट समाप्त हो गया! अब नीचे देखने पर पता चल रहा है कि कहाँ तक आ गया हूँ!
नीचे सड़क
सुबह साढ़ेपाँच बजे निकला और नौ घण्टों के बाद तोरणमाळ पहुँचा! आगे तोरणमाळ गाँव तक थोड़ी उतराई मिली और चार घण्टों के बाद साईकिल चलायी| वैसे यहाँ देखने के लिए है तो बहुत, लेकिन मेरा उद्देश्य साईकिल चलाना ही था, इसलिए अधिक देखा नही| तोरणमाळ की एक छोटी झील देखी और आसपास के नजारे का आनन्द लिया| अब तो वापसी में लिफ्ट ही लूँगा| यहाँ तक बस आती है और अन्य जीप भी होगी| लेकिन बजार खाना खाते समय पता किया तो हताशा लगी| यहाँ अभी घाट में एक जगह सड़क थोड़ी नाज़ुक हुई है, इसलिए बड़ी बस नही आ रही है| और अब शायद जीप भी वापस नही जाएगी| दोपहर के दो बजे हैं| कुछ देर तक तो जीप- टेंपो की प्रतीक्षा की| क्यों कि अब वापस साईकिल चलाने का बिल्कुल भी हौसला नही है| शरीर की बैटरी पूरी डिस्चार्ज हुई है| लेकिन काफी देर रूकने के बाद भी जीप नही मिली| एक जीप जा रही थी, पर साईकिल लेने तैयार नही हुई| मन एकदम से बिगड़ गया| एक बार लगा कि यहाँ रूक जाऊँ| लेकिन वहाँ रूकना बड़ा महंगा होगा| फिर काफी सोच विचार के बाद साईकिल चलाने का निर्णय लिया| घाट उतरने के बाद सड़क पर कहीं लिफ्ट मिलेगी यह उम्मीद है|
कुल ११६४ मीटर क्लाइंब
घाट समाप्त होने तक की चढाई| लगभग ४ घण्टे- ३६ किमी साईकिल पर और बाकी ४ घण्टे-१४ किमी पैदल!
बरसात में गिली सड़क पर ऐसी उतराई उतरने का बहुत डर है| लेकिन पहले दो बार ऐसी ही तेज उतराई- सिंहगढ़ की उतराई उतर चुका हूँ| अच्छी बात यह है कि बारीश रूक गई है और सड़क पर भी बादल कम हुए हैं| अब बहुत बड़ा प्रदेश दिखाई दे रहा है| यहाँ से मध्य प्रदेश भी करीब है| अब मै कह सकता हूँ कि मेरी साईकिल ने गुजरात के बाद मध्य प्रदेश भी देखा है| एकदम धिमी गति से वह घाट उतर गया| बीच बीच में रूकता गया| जैसे ही मुख्य घाट समाप्त हुआ, राहत मिली कि चलो अब फिसलने का ड़र नही है| संयोग से घाट उतरने के बाद लिफ्ट एक आटो रिक्षा भी मिल गई | ड्रायवर शहादा तक साईकिल ले जाने के लिए भी राज़ी हुआ! फिर क्या था! उसके साथ ग्रेड १ के बडे क्लाइंब को भी पार करने का हौसला मिला|
शहादा बस स्टैंड पर उतरने के बाद वापसी की बस की जानकारी ली| यहाँ से सीधा परभणी तक तो बस नही मिलेगी| औरंगाबाद तक ही जाना होगा| वहाँ रूक कर अगले दिन आगे जाऊँगा| औरंगाबाद की बस मिली| अगर सामान लॉज पर रखता, तो और समय लगता और बस नही मिलती| साईकिल उपर रखने का काम भी आसानी से हुआ और फिर देर रात औरंगाबाद में साईकिल आराम से उतर भी गई| देर रात वहाँ मामा के घर गया| रात के डेढ बजे साईकिल चलाने का भी मज़ा लिया| अब थोड़ा विश्राम कर सुबह परभणी के लिए रवाना होऊँगा| लेकिन साक्री से ले कर यह क्या अद्भुत राईड रही! क्या रमणीय नजारे मिले!
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अगला भाग १९: हौसला बढानेवाली राईडस
Bahut khuub Niranjan .Keep travelling, keep writing
ReplyDeleteबढ़िया निरंजन आपका ब्लॉग पढ़ने के बाद साईकिल टूर की सोच दिल में आ रही है
ReplyDeleteMasta! Keep it up!
ReplyDeleteNeha Vaze.
बहुत सुन्दर संस्मरण उतने ही खूबसूरत चित्र भी !
ReplyDeleteबढ़िया ।
ReplyDeleteAdbhut....Behetreen....Kuch din to Gujaro Rajasthan me bhi....!!
ReplyDeleteNice Niranjan. Great.
ReplyDeleteKeeptitup Neeru...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ....
ReplyDeleteपढने के लिए और कमेंट के लिए सभी को बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteRead your blog after a big gap. Congrats. Keep it up.
ReplyDeleteकल ही शाहदा से बेरंग लौटा हूँ। तोरणमाल के लिए कोई साधन नहीं मिला। काश मेरे पास भी साइकिल होती।
ReplyDeleteओह् सुमित जी! क्या करें! वहाँ लगता है अब भी जाने की ठीक सुविधाएँ नही हैं| या बारीश के कारण सड़क को क्षति होने से बस रोकी होगी| क्यों कि छोटी बस तो ज़रूर चलती हैं| टिप्पणि के लिए धन्यवाद!
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