Monday, March 28, 2016

दोस्ती साईकिल से २४: अप्रैल की गरमी में १४८ किलोमीटर


दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक
दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक
दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर
दोस्ती साईकिल से ४: दूरियाँ नज़दिकीयाँ बन गईं. . . 
दोस्ती साईकिल से ५: सिंहगढ़ राउंड १. . . 
दोस्ती साईकिल से ६: ऊँचे नीचे रास्ते और मन्ज़िल तेरी दूर. . . 
दोस्ती साईकिल से ७: शहर में साईकिलिंग. . . 
दोस्ती साईकिल से ८: सिंहगढ़ राउंड २! 
दोस्ती साईकिल से ९: दूसरा शतक. . . 
दोस्ती साईकिल से १०: एक चमत्कारिक राईड- नर्वस नाइंटी!  
दोस्ती साईकिल से ११: नई सड़कों पर साईकिल यात्रा!  
दोस्ती साईकिल से १२: तिसरा शतक- जीएमआरटी राईड 
दोस्ती साईकिल से १३: ग्रामीण सड़कों पर साईकिल राईड
दोस्ती साईकिल से: १४ "नई साईकिल" से नई शुरुआत
दोस्ती साईकिल से: १५: औंढा नागनाथ के साथ चौथा शतक
दोस्ती साईकिल से: १६: पाँचवा शतक- लोअर दुधना डैम
दोस्ती साईकिल से: १७: एक ड्रीम माउंटेन राईड- साक्री से नन्दुरबार
दोस्ती साईकिल से: १८: तोरणमाळ हिल स्टेशन पर साईकिल ट्रेक!
दोस्ती साईकिल से: १९: हौसला बढ़ानेवाली राईडस!
दोस्ती साईकिल से: २०: इंज्युरी के बाद की राईडस
दोस्ती साईकिल से: २१: चढाई पर साईकिल चलाने का आनन्द
दोस्ती साईकिल से: २२: सिंहगढ़ राउंड ३ सिंहगढ़ पर फतह!
दोस्ती साईकिल से: २३: नई हैं मन्जिलें. . नए है रास्ते नया नया सफर है तेरे वास्ते. . . 


अप्रैल की गरमी में १४८ किलोमीटर

मार्च में अच्छी साईकिलिंग हुई| अब लदाख़ यात्रा का ट्रेन का बूकिंग भी कर लिया है| अभी भी दो महिने है तैयारी के लिए| राईडस जारी रही| एक बड़ी राईड के उद्देश्य से ११ एप्रिल २०१५ को सुबह निकला| आज २०० किलोमीटर करने का लक्ष्य है| परभणी से जिंतूर- जालना- औरंगाबाद ऐसे जाऊँगा|साईकिल चलाते समय भी एक ही ख्याल मन में है- तैयारी कैसे आगे बढ़ायी जाए? लदाख़ यात्रा की तैयारी के कई पहलू है| पहली बात साईकिलिंग का अभ्यास और फिटनेस- स्टैमिना| उसके लिए भी कई बाते हैं जैसे साईकिलिंग के साथ जंपिंग, पूरक योगा, प्राणा
याम और स्ट्रेचिंग| मै साईकिलिंग और योगा तो रेग्युलर कर रहा हूँ, लेकिन स्ट्रेचिंग और वार्म अप जैसे एक्सरसाईज अभी किए नही हैं| और कुछ चीजें अनुभव से पता चली वो करता हूँ- जैसे शाम को राईड होने के बाद पैर दीवार पर रख कर लेटना, पैरों को साईकिलिंग के विपरित मूवमेंट होने के लिए पादसंचालनासन जैसे कुछ योगासन और मुख्य रूप से प्राणायाम अर्थात् साँस का अभ्यास| लेकिन इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जा सकता है| दूसरी बात साईकिल का रिपेअरिंग सीखना| वहाँ भी अभी बहुत कुछ करना है| हालाकि मन में जो बात सबसे कठिन लगती थी, वह चढ़ाई पर साईकिलिंग है और उसमें मै एक स्तर तक पहूँच गया हूँ| खैर|





धीरे धीरे सूरज उपर आने लगा| गर्मी बढ़ रही है, लेकिन सूर्य उगने के बाद से धूप में ही रहने से शरीर को उतनी लग नही रही है| कोई अचानक एसी में से ४४ डिग्री में जाएगा, तो उसे तो आग ही मालुम होगी| सुनसान सड़क और साईकिल के टायर की आवाज! इस राईड के पहले साढ़े पाँच घण्टे बेहद सुखद रहे| साढ़े पाँच घण्टों में लगभग ८० किलोमीटर पार हो गए| अब सुबह के साड़ेदस बज रहे हैं| थोड़ी ही देर बाद हायवे अर्थात् दो लेन का रोड़ शुरू होगा| लेकिन एक परेशानी है कि यहाँ नाश्ता ढंग का नही मिल रहा है| ओआरएस और ज्युस तो लिया, लेकिन अच्छा खाना कही मिला नही| इस विषय पर भी ध्यान देना होगा|

छह घण्टे पूरे होने के बाद धीरे धीरे पैर बोलने लगे| बार बार रुकने का मन हो रहा है| गति भी कम हो गई है| यह सड़क बड़ी अच्छी है| टू बाय टू लेन होने के कारण बिल्कुल भी डर नही| उपर से ट्रैफिक भी कम| ऐसी सड़क पर वाहन चलाने का मज़ा और अलग! धीरे धीरे जालना शहर पास आ रहा है| लेकिन अब गति बिल्कुल कम हुई है|‌ टायर की हवा चेक की तो पता चला- पंक्चर! और मै इसी की प्रतीक्षा भी कर रहा था| क्यों कि मुझे वास्तविक स्थिति में पंक्चर निकालने का अनुभव लेना है| साथ में सामान पूरा है- पंक्चर किट, पंप और एक दो इंच ऊँचाई का चौडा मग्गा! पानी की अतिरिक्त बोतल भी है| पहली बार पंक्चर निकाल रहा हूँ| एक गलती तुरन्त पता चली| पंक्चर निकालने के लिए पहले ट्युब बाहर निकालनी होती है और उसके लिए दो स्क्रू‌ ड्राईवर लगते हैं| एक स्क्रू ड्राईवर में टायर का सिरा फंसा कर दूसरे से टायर खोला जाता है| लेकिन वजन कम रखने की चक्कर में मै दो के बजाय एक ही ले आया! अब समझा! जैसे तैसे टायर से ट्युब निकाली| फिर ऐसी ही क्रूड तरिके से पंक्चर बनाया| पहली बार में नही बना| फिर बनाया| और बड़ी मुश्किल से ट्युब भी टायर में फिट कर दी| अब देखना है क्या होता है!





कुछ देर साईकिल ठीक चली| हालाकि अब पैरों में बहुत दर्द हो रहा है| गर्मी का अहसास अब जा कर हो रहा है| ऐसी स्थिति में‌ साईकिल चलाते समय गाने बड़े काम आते हैं| गाने सुनने की भी आवश्यकता नही, मन में भी याद किए तो भी ऊर्जा मिलती है| जैसे "हाल कैसा है जनाब का?" हाल तो ठीक था ही नही| उतने में थोड़ी ही देर में फिर पंक्चर! कहीं ऐसा तो नही कि मैने पंक्चर तो ठीक निकाला हो, लेकिन जब ट्युब टायर में फिट करते हैं, तब स्क्रू ड्राईवर से ही नया पंक्चर ना हुआ हो! फिर एक बार पंक्चर किया| फिर ट्युब अन्दर बिठायी| पहली बार होने के कारण पौन घण्टा एक पंक्चर के लिए लग रहा है! थोड़ा आगे बढ़ा| एक तो भीषण गर्मी और ९० किलोमीटर पार करने के बाद आनेवाली थकान| शतक पूरा हो गया, लेकिन उस बात की तरफ ध्यान ही नही गया| और मन में आ रहा है कि अब पागलपन बहुत हुआ| लदाख़ यहीं पर खतम हुआ! अब यह पागलपन छोड ही दो! लेकिन मन ही मन हंसी भी आ रही थी कि अब आ रहा है असली मज़ा!

यह पंक्चर भी अधिक समय नही होल्ड हुआ और फिर और पंक्चर हुआ| अब मै तंग आ गया हूँ| पंक्चर निकालने के बजाय हवा भरी और थोड़ा आगे बढ़ा| एक जगह पर मैकेनिक मिल गया| उसने दस मिनट में पंक्चर निकाल दिए! और एक पंक्चर स्क्रू ड्राईवर से भी हुआ था! मेरी हालत बिगड़ रही है| आगे बढ़ना कठिन हुआ जा रहा है| पंक्चर तो ठीक हुआ, लेकिन मेरे पैर? अब जालना मुश्किल से पच्चीस किलोमीटर है| लेकिन उसके पहले ही एक जगह बस की लिफ्ट लेनी की सोची| वहाँ बस स्टाप नही था, सिर्फ इसी कारण से आगे बढ़ा! धीरे धीरे जालना पास आता गया| अभी समय तो बहुत है, लेकिन ऊर्जा बिल्कुल कम| दोपहर के तीन बजते बजते जालना शहर के पास पहूँचा| लगभग १३७ किलोमीटर हुए होंगे| यहाँ से अब औरंगाबाद के लिए लिफ्ट लूँगा| लिफ्ट मिल भी गई| एक टेंपोवाला मिला| पर वह मुझे औरंगाबाद में ऐसे स्थान पर छोडेगा जहाँ से फिर मुझे मेरे मामा के घर पहूँचने के लिए दस किलोमीटर साईकिल चलानी होगी! खैर!


आज का १३७ किमी का मैप (११ किमी औरंगाबाद में)| आज अधिक फोटो खींचने का मन नही हुआ|

पचास किलोमीटर टेंपो से गया| शाम होते होते औरंगाबाद के चिकलठाणा में फिर साईकिल शुरू की| आखरी दस किलोमीटर! इस समय शहर के बीच आने से मानसिक राहत थी, इसलिए उतनी कठिनाई नही हुई| पैरों में दर्द तो है, लेकिन चलते गए| शाम को साईकिल रोकी तब तक कुल १४८ किलोमीटर हुए हैं और शरीर बहुत थक गया है| आँखें और चेहरा भी लाल हो गया है! ऐसी स्थिति में जल्द विश्राम भी नही होता है| शरीर समय लेता है| इसलिए देर रात के पहले सो भी नही सका| बाद में महसूस हुआ कि चलो २०० किलोमीटर ना सही, लेकिन १४८ किलोमीटर भी कम थोड़े हैं? :) पंक्चर सीखने की शुरुआत हुई और लैपटाप आदि सामान ले कर यह राईड की| अच्छा अभ्यास रहा|

अगला भाग २५: आँठवा शतक

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-03-2016) को "ईर्ष्या और लालसा शांत नहीं होती है" (चर्चा अंक - 2297) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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