Tuesday, March 15, 2016

दोस्ती साईकिल से २०: इंज्युरी के बाद की राईडस

दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक
दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक
दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर
दोस्ती साईकिल से ४: दूरियाँ नज़दिकीयाँ बन गईं. . . 
दोस्ती साईकिल से ५: सिंहगढ़ राउंड १. . . 
दोस्ती साईकिल से ६: ऊँचे नीचे रास्ते और मन्ज़िल तेरी दूर. . . 
दोस्ती साईकिल से ७: शहर में साईकिलिंग. . . 
दोस्ती साईकिल से ८: सिंहगढ़ राउंड २! 
दोस्ती साईकिल से ९: दूसरा शतक. . . 
दोस्ती साईकिल से १०: एक चमत्कारिक राईड- नर्वस नाइंटी!  
दोस्ती साईकिल से ११: नई सड़कों पर साईकिल यात्रा!  
दोस्ती साईकिल से १२: तिसरा शतक- जीएमआरटी राईड 
दोस्ती साईकिल से १३: ग्रामीण सड़कों पर साईकिल राईड
दोस्ती साईकिल से: १४ "नई साईकिल" से नई शुरुआत
दोस्ती साईकिल से: १५: औंढा नागनाथ के साथ चौथा शतक
दोस्ती साईकिल से: १६: पाँचवा शतक- लोअर दुधना डैम
दोस्ती साईकिल से: १७: एक ड्रीम माउंटेन राईड- साक्री से नन्दुरबार
दोस्ती साईकिल से: १८: तोरणमाळ हिल स्टेशन पर साईकिल ट्रेक!
दोस्ती साईकिल से: १९: हौसला बढ़ानेवाली राईडस!



इंज्युरी के बाद की राईडस

सितम्बर २०१४ में काफी साईकिल चलाने के बाद कुछ दिन गैप आयी| जब भी‌ ऐसा होता है, तो फिर से नयी शुरुआत करनी होती है| धीमे धीमे लय प्राप्त करनी होती है| अक्तूबर में फिर राईडस शुरू की| छोटी राईडस का मज़ा लिया| परभणी के पास की सड़कों पर साईकिल चलाने का मज़ा लिया| अब फिर थोड़ी दूर की राईड करने के लिए निकला| अब ये रास्ते बिल्कुल पक्के पता हो गए हैं| कौनसी सड़क पर कितनी दूर गड़्ढा है, कहाँ हल्की चढाई है, यह सब पक्का याद हुआ है| परभणी से तीस किलोमीटर तक की राईडस तो लोकल राईड हो गई हैं| यह फर्क होता है विश्वास का|

३० अक्तूबर की सुबह निकला| कुछ दिनों तक गैप होने के बावजूद अच्छी गति मिली| इस राईड में कुल ६० किलोमीटर करने का लक्ष्य है| परभणी से मानवत रोड़ नाम के गाँव तक जा रहा हूँ| वहाँ एक स्थान पर मेरे पसंदीदा पोहे मिलते हैं| पहले एक घण्टे में करीब बीस किलोमीटर दूरी पार कर ली| अधिक रूका भी नही| अगले घण्टे बाद दाए पैर के घुटने में थोड़ा दर्द होने लगा| पैर सीधा किया; पैर को थोड़ा विश्राम दिया, फिर भी कुछ फर्क नही हुआ| पोहे खाने के लिए रूका तब पैर को थोड़ा आराम मिल गया| लेकिन जैसे ही वापसी की यात्रा शुरू की, फिर दर्द शुरू हुआ और धीरे धीरे बढ़ने लगा| पैर को अलग अलग कोण से पेडल पर रख कर चलाने की कोशिश की| लेकिन दर्द बढ़ता ही जा रहा है| हालाकि साईकिल चला पा रहा हूँ| परभणी पास आता गया| इसलिए लिफ्ट लेने का विचार नही किया| बाद में साईकिल से उतरने में और फिर बैठने में भी तकलीफ होने लगी| परभणी में पहुँचते पहुँचते ऐसी स्थिति आयी कि आखरी दो किलोमीटर- बस स्टैंड से घर तक- आटो से जाना पड़ा| बड़ी कठिन स्थिति बनी| दाए घुटने को हिला भी नही पा रहा हूँ| बेतहाशा दर्द हो रहा है| अब क्या करें?






उस दिन दाए पैर को पूरा विश्राम दिया| धीरे धीरे पैर ठीक होता गया| शाम होते होते घुटना हिला पा रहा हूँ| लेकिन ऐसा हुआ कैसे? साईकिल चलाने में तो कोई बदलाव नही किया था| फिर याद आया की इसी महिने में श्रीनगर में ट्रेकिंग करते समय पैर में दर्द आया था और बाद में जम्मू में घूमते समय भी मै लंगड़ा रहा था| शायद वही चोट होगी| हाँ, वही है! उस समय तेज़ी से नीचे उतरते समय घुटने के लिगामेंट को कुछ डैमेज हो गया| जो शायद अब भी रिकवर नही हुआ है| या थोड़ा ही रिकवर हुआ है| क्यों कि दो दिन पहले ही मैने छोटी ३० किलोमीटर की‌ राईड की थी, उस समय कुछ भी दर्द नही हुआ था| बड़े राईड में २५ किलोमीटर के बाद यह दर्द धीरे धीरे शुरू हुआ| घुटने को नी कैप लगा कर थोड़ा ठीक लगा| पिताजी डाक्टर हैं- उन्होने सलाह दी कि दो हप्तों‌ तक साईकिलिंग बन्द! अच्छी बात तो यह है कि यह इंज्युरी कोई बड़ी इंज्युरी नही है; अपने आप विश्राम से ठीक होगी| इसलिए फिर पन्द्रह दिन साईकिलिंग बन्द हुआ| हालाकि रूटिन की गतिविधि में कोई तकलीफ नही है|

बीस दिनों बाद एक छोटी ग्यारह किलोमीटर की राईड की| कोई परेशानी नही आयी| हौसला बढ़ गया, फिर भी जल्दबाज़ी नही की| एक हप्ता और जाने दिया| अब बड़ी राईड कर के देखते हैं| परभणी से ४८ किलोमीटर दूरी पर स्थित पाथरी गाँव साईंबाबा का जन्मस्थान है| वहाँ जाने का सोचा| हमेशा की तरह राईड शुरू की| फर्क सिर्फ यह है कि पहली बार नी कैप लगा कर साईकिल चला रहा हूँ| मन में छोटे छोटे टारगेट ले कर बढ़ता गया- पहले बारह किलोमीटर नान स्टाप, फिर पानी का ब्रेक, उसके बाद दस किलोमीटर के बाद चाय ऐसे| कुछ भी तकलीफ नही हो रही है| अभी होगी भी नही| तीस- चालिस किलोमीटर चलाने के बाद पता चलेगा| और वही हुआ| जैसे ही तीस किलोमीटर पूरे हुए, धीरे धीरे वही दर्द उभरने लगा| कुछ देर सहने जैसा था, लेकिन अब बढ़ रहा है| पाथरी पहुँचा| साईबाबा के मन्दीर का दर्शन किया| वापस मूड़ा| दर्द बढ़ रहा है, लेकिन साईकिल चला पा रहा हूँ| थोड़ी ही देर में साईकिल रूकायी और मानवत रोड़ से लिफ्ट ले ली| क्यों कि आगे जाऊँगा तो दर्द बढ़ता ही जाएगा| समय रहते साईकिल रोकने से बाद में दर्द नही बढ़ा| नी कैप का इस्तेमाल जारी रखा|





पाथरी- साईंबाबा का जन्मस्थान



फिर चार दिनों तक साईकिल नही चलायी| एक छोटी तीस किलोमीटर की राईड की| इसमें पहले जैसी गति मिली और दर्द भी नही हुआ| हालाकि अब मै साईकिल दूसरे गेअर पर ही चला रहा हूँ- २-५, २-६ जैसे| पहले जब ३-४ या ३-५ पर साईकिल चलायी थी, तब भी घुटने में दर्द हुआ था| क्यों कि उस स्थिति में घुटनों पर अधिक प्रेशर आता है| क्रैंप्स भी आ सकते हैं| इसलिए २-५ या २-६ का गेअर विकल्प अधिक ठीक लग रहा है| अगले ही दिन फिर साईकिल चलायी और ४० किलोमीटर की राईड की| आते समय बहुत दर्द हुआ, लेकिन मज़े की बात यह रही कि पैर तिरछा कर चलाने में उतनी कठिनाई नही हुई| हालाकि बहुत धिमी गति से और बिल्कुल लोअर गेअर्स पर जैसे २-३; २-२ पर आना पड़ा और रूक रूक के पेडल चलाना पड़ा| लेकिन दर्द होते हुए भी साईकिल चला सकता हूँ, इसका अहसास हुआ| थोड़ा जोखम भी लिया, क्यों कि बाद में जब कभी किसी बड़ी एक्सपिडिशन में जाऊँगा, वहाँ तो ऐसी थकी हालत में भी साईकिल चलानी‌ होगी| क्रैंप्स आते होंगे, एक एक पेडल चलाने में दर्द होगा| इसलिए ऐसी स्थिति में चलाता हूँ, तो उस स्थिति की तैयारी भी हो जाएगी| खैर|

उसके बाद जो राईडस शुरू की, वह लगातार जारी रही| इस चोट से पूरी तरह उभरने के पहले ही नी कैप लगा कर लगातार कई अर्धशतक किए| ४० के बाद रोज ५०- ६० किलोमीटर चलाने लगा| चार सड़कें तय की और उन पर बारी बारी से चलाने लगा| पहली बार एक हप्ते में सात बार अर्धशतक किए| नौ दिनों में ५०० से भी अधिक किलोमीटर हुए| और कुछ भी दिक्कत नही हुई| थकान भी धीरे धीरे कम होती‌ गई| हम जितना शरीर को थकाते जाते हैं, उतना ही धीरे धीरे वह कम थकने लगता है! हररोज ६० किलोमीटर तो बिना सोचे चला सकता हूँ, यह हौसला आया| २०१४ वर्ष समाप्त होते होते साईकिल चलाने का मज़ा और बढ़ गया!







अगला भाग २०: चढाई पर साईकिल चलाने का आनन्द

1 comment:

  1. bahut sunder prastuti...
    Mere blog ki new post par aapke vichro ka intzaar hai.

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