हिमालय की गोद में . . .
“अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराज: पर्वतोs हिमालय:” अर्थात् महाकवि कालीदास ने कहाँ है कि उत्तर की दिशा में एक पर्वतों का महाराजा है जो हिमालय नाम से जाना जाता है। हिमालय की ओर जानेवाली यह यात्रा शुरू हुई सम्पर्क क्रान्ति एक्स्प्रेस से। वाकई में यह एक्स्प्रेस सम्पर्क की क्रान्ति ही लगी। मात्र दो- तीन स्टेशनों में और आरामदायक यात्रा के साथ उसने रास्ता युंहि पार करते हुए दिल्ली तक पहुंचा दिया। रास्ते में राजस्थान में प्रात:काल की चहचहाट के पूर्व लगभग अमावस के पहले का चन्द्रमा और उसके पास शुक्र ग्रह का अद्भुत दर्शन हुआ। दर्शन इतना अपूर्व था कि नदी के पानी में भी दोनों के प्रतिबिम्ब चमक रहे थे और उसे रोशन कर रहे थे। उगते हुए सूरज ने भी उपर के सीरे से दर्शन दिया।
दिल्ली पहुंचने पर शुरू हुई हिमालय की ओर की यात्रा। दिल्ली आनंद विहार आयएसबीटी से पिथौरागढ की बस से आगे बढना शुरू किया। उत्तराखंड परिवहन निगम की बस थी और पहाडी रास्ते के अनुसार छोटी भी थी। दिल्ली से गाजियाबाद होते हुए मुरादाबाद, उधम सिंह नगर, रुद्रपूर के रास्ते सुबह जल्दी टनकपूर तक आ गए। टनकपूर नेपाल सीमा पर स्थित एक गाँव है। यहाँ से सीधा पहाड शुरू होता है। टनकपूर- चम्पावत- पिथौरागढ रास्ता नेपाल सीमा के करीब से जाता है। यही आगे जा कर कैलास मानससरोवर यात्रा का एक मार्ग बनता है।
हिमालय की पहाडियों में जाना था, अत: ठण्ड को अभ्यस्त होना आवश्यक था। उसका प्रयास करते हुए प्रात:काल के अपूर्व नजारे का लुफ्त उठाना शुरू किया। नींद से संघर्ष भी जारी था। लेकिन रास्ता जब इतना अपूर्व हो, इतना अद्भुत हो, तो भला नींद किसे आएगी। यहाँ से बीआरओ अर्थात् सीमा सडक संगठन का कार्यक्षेत्र भी आरम्भ होता है। पहाड में ऊँचाई के हर क्षेत्र में बीआरओ सेना के साथ हमारी रक्षा के लिए हमारे साए जैसा साथ देती है। देखा जाए तो टनकपूर से पिथौरागढ का रास्ता है १५० किलोमीटर का ही है और उसमें है मात्र पाँच- छह पहाड। पर एक पहाड चढना, सरसराती और निरंतर लहराती हुई सडक से आगे बढ कर वह पहाड उतर कर वापस सतह पर आना। फिर दुसरा पहाड तैयार ही है। इसी के बीच में चढाई पर बने खेत, खलियान, गाँव और पहाड के कोने कोने में फैले हुए घर! वाकई यहाँ से इन्सान भी बदल जाता है। जाएगा ही।
आईए, पहाड में आपका स्वागत है. . . |
ध्यानपूर्वक देखने पर सुदूर अन्तर पर बर्फ के शिखरों की एक रेखा नजर आती है . . . |
अनुठी प्राकृतिक विविधता. . . |
चम्पावत के आगे आने पर लोहाघाट के पास से एक रास्ता अल्मोडा जनपद में स्थित मायावती आश्रम की ओर जाता है। यहाँ पर हम ऐसी ऊँचाई पर पहुँचते है कि दूर नजारा शुरू हो जाता है। यहाँ से हिमालय के शिखरों की एक पंक्ति दृग्गोचर हो उठती है। इसमें त्रिशुल तथा ॐ पर्वत आदि पर्वत दिखाई देते है। वाकई २५० किलोमीटर से भी अधिक दूरी से यह दिखाई पडते है। परन्तु जैसे ही हम एक पहाड छोडते हुए नीचे जाते है, वह गायब हो जाते है। फिर चोटी के स्थान से वह दिखते है।
पिथौरागढ पास आने पर घाट नाम की एक जगह है। यहाँ बेहद अनोखा नजारा है। वैसे तो उत्तराखण्ड में हर स्थान एक पर्यटक और एक रम्य स्थल है। फिर भी ऊँचाईवाले स्थान बेहद अनुठे है। यहाँ ऊँची ऊँची चोटियाँ और पास ही में खाई है और दोनों के बीच में से रामगंगा बलखाती हुई बहती है. . . . वास्तव में इतनी ऊँचाई पर शब्द काम ही नही करते है।
गुरना नाम का एक छोटा सा मन्दीर है, जहाँ गाडी को ईश्वर का प्रसाद और आशीर्वाद मिलता है। रास्ते में यात्रियों की थकान दूर कर सुरक्षा की किरण फिर प्रज्वलित करना इसका कार्य है। ऐसे मन्दीर ऊँचाईवाले सभी क्षेत्रों में देखें जा सकते है। प्रकृति इतनी विराट तथा इतनी असाधारण है, कि इन्सान को खुद की शांति बनाए रखने के लिए ऐसा करना ही होगा। यही काम प्रकृति खुद भी निरंतर करती है- पहाड में से निकलने वाले शुद्ध पानी के झरनों द्वारा! पहाड में अधिकतर प्राकृतिक स्रोत का ही पानी पिया जाता है। यह कुदरत की देन है और कुदरत के पास जाने का एक पुरस्कार भी।
वास्तव में हिमालय ऐसा ब्रह्मांड है जहाँ फोटो, शब्द, विडियो आदि कृत्रिम चीजें काम ही नही कर सकती। शब्दों में ऐसे दृश्य का बयाँ भला कैसे किया जा सकता है, जिसमें अनन्त पहलू हो, जिसकी अगणित खूबियाँ हो। फोटो, शब्द तथा विडियो कुछ ही बातों को बता सकते है। पर हिमालय तो ऐसा ब्रह्माण्ड है, जिसमें अनन्त तथा अथांग ऊँचाईयाँ और गहराईयाँ भी है। फोटो या शब्दों में उसे बयाँ करने का मतलब सूरज को पानी के प्रतिबिम्ब द्वारा नापना है। फिर भी, हिमालय ना सही, उसके एक छोटे से प्रतिक के तौर पर ये कुछ फोटो . . .
ऊँचें ऊँचे पहाड और बहती बिलखाती रामगंगा नदी. . . |
पहाड वीरों की ही भूमि है। |
नजारा देखते देखते दोपहर में पिथौरागढ पहुँच गए। मानससरोवर यात्रा के एक मार्ग पर स्थित यह उत्तराखण्ड का पूर्व- उत्तर सीमा पर स्थित जनपद है। गाँव छोटा ही है और पहाड में ही बंसा है। यहाँ आयटीबीपी अर्थात् इंडो तिबेटन बॉर्डर पोलिस का एक केन्द्र भी है। बस स्टँड पर पहले कर्णप्रयाग या बागेश्वर तक जानेवाली बस की पूछताछ की और अच्छी जानकारी भी मिली। यहाँ बागेश्वर तक बस सीधा बस जाती है और वह सुबह पाँच बजे निकलती है। अगले दिन के प्रतीक्षा में बाकी बचे दिन में विश्राम कर लिया। ठण्ड वाकई जोरों पर थी। रात को थोडी वर्षा भी हुई। यह एक अच्छा संकेत था। यदि जाडों के आरम्भ में पहाडों के नीचले इलाकों में वर्षा होती है तो इसका अर्थ है निश्चित रूप से चोटी के स्थानों पर बर्फबारी होगी।
अगला भाग: . अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: २ नदियाँ पहाड झील और झरने जंगल और वादी
हिमालय... याद दिला दी भाई आपने। नगाधिराज की पदवी इसे ऐसे ही नहीं मिल गई। पहाड और पर्वत-श्रंखलाएं तो और भी हैं, लेकिन हिमालय में जो चमत्कार दिखाई देते हैं, उन्हीं से यह नगाधिराज और पर्वत-सम्राट बना है।
ReplyDeleteएक बात समझ नहीं आई कि आपने पिथौरागढ पहुंचते ही बागेश्वर या कर्णप्रयाग की बस ढूंढनी शुरू कर दी तो आप पिथौरागढ क्यों गये? यह काम हल्द्वानी में बेहतर हो सकता था। या कोई विशेष प्रयोजन था?
दूसरी बात कि एक फोटो के नीचे लिखा है- रामगंगा नदी। टनकपुर से पिथौरागढ तक सम्पूर्ण पहाडी मार्ग में रामगंगा नदी नहीं आती है। रामगंगा को आप मुरादाबाद में पार कर चुके थे। यह भारत-नेपाल की सीमा बनाती काली नदी हो सकती है।
भाईसाहाब! पढने और कमेंट के लिए बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteपिथौरागढ का विशेष प्रयोजन था, वहाँ रिश्तेदार रहते है, इसीलिए एक दिन वहाँ गया।
रामगंगा नदी पिथौरागढ के थोडा पहले आनेवाले घाट इस स्थान से इस रास्ते के पास से गुजरती है। नेपाल सीमा इस रास्ते से थोडी दूर है।
चांगला झालाय ब्लॉग. इतक्या थंडीत हिमालयाकडे जाण्याचे धाडस ध्यास असल्याशिवाय होत नाही.हिंदीमध्ये ब्लॉग लिहल्याने हिंदी वाचण्याचे भाग्यही अस्मादिकांना मिळाले, त्याबद्दल धन्यवाद.
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