Friday, November 27, 2015

दोस्ती साईकिल से ६: ऊँचे नीचे रास्ते और मन्ज़िल तेरी दूर. . .

दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक
दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक
दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर
दोस्ती साईकिल से ४: दूरियाँ नज़दिकीयाँ बन गईं. . . 
दोस्ती साईकिल से ५: सिंहगढ़ राउंड १. . .
 
ऊँचे नीचे रास्ते और मन्ज़िल तेरी दूर. . .

सिंहगढ़ से आने के बाद एक दिन तक ऊर्जा बहुत क्षीण हुई| साईकिल को शरीर अभी पूर्ण रूपेण अभ्यस्त न होने के कारण थोड़ा बुखार जैसा भी लगा| उस दिन तो और किसी बड़ी राईड की इच्छा ही मिट गई| पर जल्द ही दूसरी बड़ी राईड की योजना बनायी| सिंहगढ़ पर जाने के चार दिन बाद १९ अक्तूबर २०१३ को अगली राईड के लिए निकला| इस बार भी एक बड़े घाट की योजना बनायी| पुणे से लदाख़ में साईकिलिंग के लिए जानेवाले लोग सिंहगढ़ के साथ पाबे घाट नाम के स्थान पर भी जाते हैं| इसलिए यहाँ जाना तय किया| साथ ही एक किला- तोरणा- देखने का भी विचार है|








पाबे घाट का रास्ता सिंहगढ़ के बेस के पास से ही जाता है| आज की योजना ७८ किलोमीटर साईकिल चलाने की और थोड़ा ट्रेकिंग करने की भी है| सुबह जल्द निकला| सुबह जितना जल्द निकलते हैं, उस पर भी यात्रा थोड़ा निर्भर करती है| जितना चाहा था, उतना अर्ली नही निकलने के कारण मन में थोड़ी नाराज़गी भी है| लेकिन दिन बड़ा है| अभी बहुत समय है| खानापूर गाँव तक आसानी से पहूँच गया| यहाँ तक साईकिल पर कई बार आया हूँ| अब इसके बाद नया रास्ता शुरू होगा| सुबह की ताज़गी और सुनसान सड़क!









पाबे घाट का क्लाइंब| पहला छोटा क्लाइंब और बाद में घाट

यहाँ से पाबे घाट मुश्किल से दस- बारह किलोमीटर दूर होगा| लेकिन पूरा रास्ता चढ़ाईभरा है| सड़क अब बिल्कुल विरान इलाके से जा रही है| बड़े शहर इस सड़क पर नही लगते हैं| यदा- कदा कोई वाहन क्रॉस हो रहा है जिनमें ज्यादातर गाँव के लोग है जो सुबह शहर जाते हैं| यह सड़क एक तरह से सिंहगढ़ को दूर से अर्ध- परिक्रमा करती है; इसलिए सिंहगढ़ निरंतर दिखाई‌ दे रहा है| अब आया पहला छोटा सा क्लाइंब| इसे मै आसानी से चढ़ पाया| थोड़ा स्प्रिंटिंग करना पड़ा और थोड़ी देर तक ज्यादा ताकत लगानी पड़ी| लेकिन बिना पैदल चले यह क्लाइंब पार हो गया| हौसला और बढ़ गया|

जब साईकिल के बारे में डे- ड्रिम करता थ, तो सोचता था कि यदि साईकिल बीस किलोमीटर प्रति घण्टा चलेगी, तो मै दिन में दो सौ किलोमीटर कर लूँगा| कभी ऐसा भी लगता था कि यदि स्प्रिंटिंग करने से और गति मिलती हो, तो और चलाऊँगा| लेकिन स्प्रिंटिंग करना हानिकारक है| पैरों को बड़ी तकलीफ होती है| और गम्भिर क्षति भी हो सकती है| चढाई पर स्प्रिंटिंग कोई काम नही आती है| क्योंकि ऊर्जा की इतनी अधिक खपत शरीर सह ही नही सकता है| और यह एक अर्थ में हिंसा या प्रोटेस्ट जैसा है| जब हम देखते है कि संवाद का कोई उपाय नही है, तभी हम हिंसा या प्रोटेस्ट पर उतारू हो सकते हैं| सबसे सरल और स्वस्थ तरिका तो यही है कि धीरे धीरे स्टॅमिना और फिटनेस इतना बढ़ाना, शरीर को साईकिलिंग के लिए इतना अच्छा तैयार कराना कि चढाई पर भी साईकिल सहजता से चलायी जा सके| और यह हो सकता है| आगामी राईडस में मैने इसका अनुभव किया| और जितनी सरलता से- सहजता से आगे बढ़ते हैं; उतना ही लम्बा सफर कर सकते हैं| ऊर्जा की खपत कम होने के कारण उसे लम्बे समय तक आसानी से जारी रखा जा सकता है| खैर|





विपरित दिशा से दिखनेवाले सिंहगढ़ की‌ मुद्रा

यह सड़क बहुत ही अच्छी लगी| इतना विराना और पुणे जैसे शहर के इतना पास! बहुत मज़ा आने लगा| यहाँ पर गाँव बिल्कुल छोटे हैं| इसलिए चाय- बिस्कुट के अलावा नाश्ता नही मिला| अब पाबे घाट की चढाई शुरू होती है| वैसे पहले क्लाइंब के बाद से ही सड़क धीरे धीरे उपर उठ रही है| लेकिन असली चढ़ाई अब| आधा किलोमीटर साईकिल पर बैठ कर चल सका| लेकिन अब सम्भव नही हो रहा है| धूप भी अच्छी लग रही है| एक क्षण मजबूर हो कर रूकना पड़ा| पानी साथ में है, उसे बहुत सावधानी से लेते रहना होगा| जल्द ही पैदल यात्रा शुरू हुई! लेकिन नजारे बेहद सुन्दर हैं| इसलिए आनन्द जारी रहा|



पाबे घाट की लम्बाई मुश्किल से चार किलोमीटर है| लेकिन क्लाइंब भी अच्छा है जिसके कारण वह ग्रेड २ का घाट है| घाट के सर्वोच्च स्थान पर कुछ भी नही है| बस एक मन्दीर है| अब अच्छी ढलान मिलेगी| यहाँ तक सिंहगढ़ ने दूर होते हुए भी नॉन स्ट्राईकर एंड से साथ दिया| अब सिंहगढ़ नही दिखेगा, उसके बजाय दो बड़े किले- तोरणा और राजगढ़ दिखाई देंगे| राजगढ़! इतनी दूर से भी उसका फैला हुआ परिसर दिखाई‌ दे रहा हैं! ज़रूर, कभी ना कभी, वहाँ जाना है|

लेकिन जैसे ही उतराई शुरू हुई, साईकिल के टायर से आवाज आने लगी! ये क्या! साईकिल का पहला पंक्चर! और मेरे पास कुछ भी विकल्प नही है! पंक्चर किट- ट्युब कुछ भी‌ नही है! और यहाँ‌ से पहला बड़ा कस्बा वेल्हे- कम से कम छह- सात किलोमीटर दूर है| अब उतराई भी पैदल चलने के अलावा कोई विकल्प नही है! थोड़ी देर पहले किसी जगह साईकिल के पास कई केकड़े थे|‌ एक केकड़ा पीछले पहिए के नीचे भी आया था| शायद उसी कारण यह पंक्चर! लेकिन अब कोई उपाय नही है| लगभग सांतसौ किलोमीटर के बाद पहला पंक्चर हुआ| कभी ना कभी यह होनेवाला ही‌ था| और उसके लिए मैने सोचा भी‌ था कि जब भी‌ ऐसा होगा, मै थोड़ा पैदल जाऊँगा या लिफ्ट लूँगा| अभी वही करना है| छह किलोमीटर चलना है|

पाबे घाटा से दिखनेवाले किले- बायी तरफ फैला हुआ राजगढ़ और दायी तरफ तोरणा



ये छह किलोमीटर क्लाइंब से भी बड़े लगे| बीच में कोई भी ठीक होटल नही‌ मिला| बड़ी देर बाद वेल्हे पहूँचा| यह है तो एक तहसील, पर गाँव तो कस्बे जैसा छोटा! इसी के पास तोरणा किला है| लेकिन अब शायद मै वहाँ‌ नही‌ जा पाऊँगा| किला तो दूर, वापसी की‌ यात्रा भी‌ बस से करने के बारे में सोच रहा हूँ| लेकिन पहले पंक्चर ठीक करना होगा| पंक्चर का दुकान मिला, लेकिन गाँव के बिल्कुल दूसरे छोर पर| पंक्चर ठीक करनेवाला मॅकेनिक कहीं‌ गया है| साईकिल वहीं पर छोड कर भोजन कर लिया| यहाँ तक सिर्फ ३९ किलोमीटर साईकिल चलायी है| उसमें‌ भी करीब नौ किलोमीटर पैदल- घाट के तीन किलोमीटर भी पैदल थे! अब लग रहा है वापस बस से ही‌ जाऊँ, पंक्चर की‌ रिस्क कौन लेगा?

थोड़ी ही‌ देर में साईकिल ठीक हो गई| थोड़ी चला कर देखी| हवा कम हुई! फिर पंक्चर ठीक करना पड़ा| उसमें बड़ा समय गया| सुब सात बजे निकला था| अब दोपहर का एक बज रहा है| और वापसी में बस/ जीप से जाने की ही इच्छा हो रही है| लेकिन भोजन के बाद और विश्राम के कारण थोड़ी ऊर्जा लौट आयी| इसलिए लगा कि चलो, साईकिल चलाते हुए ही जाऊँगा| जो भी होगा, देखा जाएगा| और पंक्चर हुआ, तो लिफ्ट ले लूँगा|





वेल्हे गाँव से बाहर निकला| अब फिर पाबे घाट दूसरी तरफ से! थोड़ी देर तक साईकिल चलायी| पाबे गाँव के बच्चों ने थोड़ी देर साईकिल रेस लगायी! जैसे ही वे पीछे रूक गए, मै भी रूक गया और पैदल चलने लगा| दोपहर की धूप में सुबह के मुकाबले और कठिनाई हुई| छोटे छोटे टारगेटस ले कर आगे बढ़ा- इस छाँव से उस छाँव तक जाऊँगा और रूकूँगा| चलते, रूकते, चलते, रूकते बड़ी देर में वह घाट चढ पाया| जब उसका बोर्ड देखा, तो बड़ा सुकून मिला! इस समय यहाँ एक चायवाला भी है! थोड़ी देर विश्राम किया| अब राजगढ़ और तोरणा पीछे रह गए और सिंहगढ़ फिर से सामने आया| अर्थात् इस राईड में मैने एक ही झटके में तीन किले देखें!

अब पहले चार किलोमीटर तक ढलान! उसका हल्का सा डर| लेकिन ब्रेक्स लगा कर निकल पड़ा| लेकिन. . . लेकिन जैसे ही आधी ढलान पार हुई, फिर पंक्चर! अब क्या करें? यहाँ यातायात न के बराबर चल रही है| घाट खतम होने पर छोटे गाँव आएंगे, वहाँ देखना होगा| जैसे तैसे घसीटता गया| उतराई पर चलना भी कठिन होता है| लेकिन उतराई गई| अब पहला गाँव| गाँव माने कुछ घर| कई जगह पूछा, साईकिल की दुकान कही नही था| एक सज्जन ने इतना ज़रूर बताया कि अगले गाँव में साईकिल की दुकान ज़रूर है| उसने उस व्यक्ति का नाम भी बताया| अभी और आगे चलना होगा| वहाँ पंक्चर की दुकान तो मिली, पर उसका पंप पुरानी साईकिलों का पंप है! उससे इस साईकिल में हवा नही भरी जा सकती है. . . उसने अच्छी खबर यह बताई की, वहाँ से थोड़े ही आगे एक मोड से मुझे जीप मिलेगी| और कोई उपाय न देख कर आगे बढ़ा| और इस बार किस्मत अच्छी आयी| जीप मिली| वह भी आगे जानेवाली आखरी जीप| पुणे के पास होने पर भी मुख्य सड़क न होने के कारण इस इलाके में यातायात कम है| जीप मिलने के बाद बड़ा सुकून मिला|

जीप ने सिंहगढ़ के बेस के थोड़ा आगे छोडा| उसे एक पंक्चरवाले का पता था| यहाँ साईकिल की अच्छी दुकान है| वहाँ पंक्चर निकलवा लिया| अब अहसास हो रहा है कि पंक्चर ठीक करने का हुनर कितना काम का है. . . यहाँ से घर बस आठ किलोमीटर दूर है| शाम हुई है| बड़ी देर बाद साईकिल पर आगे बढ़ा| अगले एक गाँव में वड़ा पाव खाने के लिए रूका| हवा देखी, तो कम हुई है! फिर पंक्चर! पंक्चर का सिलसिला थमने का नाम ही नही ले रहा है! लेकिन अब घर भी पास आ गया हैं| यहाँ भी दुकान मिली| पंक्चर ठीक भी हुआ और आगे घर तक तकलीफ नही हुई|





क्या राईड रही यह! कुल मिला कर ६३ किलोमीटर साईकिलिंग की| उसमें से १८ किलोमीटर पैदल! पैदल चलने का भी अच्छा अभ्यास हो गया! पंक्चर से तकलीफ कितनी भी हुई हो, मज़ा आ गया! ऐसी यात्राओं का भी मज़ा होता है| मैनेजमेंट का मज़ा तो होता ही है, मिसमैनेजमेंट का भी मज़ा आता है! जब कुछ भी ठीक न हो रहा हो, तब भी उसे एंजॉय किया जा सकता हैं! और ऐसे पल बड़े खास होते हैं| जैसे बड़ी‌ धूप में साईकिल हाथ में ले जाते समय पानी की खुली बोतल में झाँकना और उसके भीतर से बहनेवाली हवा की आवाज सुनना! अहा हा!

अगला भाग ७: शहर में साईकिलिंग

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (28-11-2015) को "ये धरा राम का धाम है" (चर्चा-अंक 2174) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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