२: शिमला से नार्कण्डा
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२५ जुलाई को ट्रेन से स्पीति- लदाख़ साईकिल यात्रा के लिए निकला| ट्रेन पर मुझे छोडने के लिए कई साईकिल मित्र और परिवारवाले आए| ट्रेन में चढ़ कर जल्द ही साईकिल का थैला बर्थ के नीचे रख दिया| बहुत आसानी से फोल्ड की हुई साईकिल और उसी थैले में काफी सामान भी बर्थ के नीचे चला गया! इससे बड़ी राहत मिली| अब साईकिल ट्रेन में से आसानी से ले जा सकता हूँ! साईकिल इस तरह फोल्ड करने के लिए उसका कैरीयर, दोनों पहिए, स्टैंड, सीट और दोनों पेडल निकालने पड़ते हैं| कल साईकिल इस तरह से थैले में भरने के लिए भी मित्रों ने सहायता की| अगले दो दिनों में शिमला तक की यात्रा करूंगा और उसके बाद २८ जुलाई से साईकिल चलाऊँगा| प्रयासपूर्वक मन को वर्तमान में ही रखा और ट्रेन की यात्रा का आनन्द लेने लगा|
साईकिल पर जुले किन्नौर- स्पीति १: प्रस्तावना
सभी को नमस्कार! हाल ही में किन्नौर- स्पीति यात्रा साईकिल पर की| इसके बारे में अब विस्तार से लिखना आरम्भ कर रहा हूँ| हर साईकिल यात्रा काफी कुछ सीखा जाती है, समृद्ध कर जाती है| इस यात्रा में भी बहुत कुछ सीखने को मिला| एक तरह से स्पीति में साईकिल चलाने का सपना भी पूरा हुआ| यह साईकिल यात्रा सिर्फ एक साईकिल यात्रा न हो कर एक सामाजिक उद्देश्य होनेवाली यात्रा थी| स्वास्थ्य, फिटनेस, पर्यावरण इन बातों के बारे में जागरूकता का मैसेज दिया जाना तथा इन्ही विषयों पर विभिन्न लोगों और समूहों से बात करना भी इसका एक अंग था| पुणे की संस्था मंथन फाउंडेशन, रिलीफ फाउंडेशन और अन्य संस्थाएँ तथा सहयोगियों का कई तरह का सहयोग इस सोलो साईकिल यात्रा के लिए मिला| एक तरह से यह एक नई पहल थी| समाज के सहयोग के साथ और सामाजिक उद्देश्य को ले कर यह यात्रा हुई| इसके बारे में अलग अलग सोच हो सकती है| किसी को ऐसा भी लग सकता है साईकिल यात्रा करनी हो तो अपने ही बल पर क्यों नही करते, संस्था का और अन्य व्यक्तियों का सहयोग क्यों लेना चाहिए| यह भी एक राय हो सकती है| मेरे विचार से मैने इस बार थोड़ा नया करने की कोशिश की| एक विचार और एक थीम ले कर कई लोगों के पास गया| पुणे की मंथन फाउंडेशन और रिलीफ फाउंडेशन इन दो संस्थाओं ने इस अभियान और उसके सामाजिक मैसेज में रूचि ली| उनके अपील पर कई और संस्थाएँ और व्यक्तियों ने भी इसमें रुचि ली| इसमें और एक बात भी है| जब मै अकेला साईकिल चलाता हूँ, तो वह मेरे तक या सिर्फ मेरे सोशल मीडीया तक सीमित रहता है| लेकीन जब मै किसी संस्था के साथ, व्यापक समाज के सामने आ कर साईकिल चलाता हूँ, तो वह ज्यादा लोगों तक पहुँचता है| प्रिंट मीडिया से और अधिक अनुपात में सोशल मीडिया में आने से कई लोगों तक यह विचार पहुँचता है| और जहाँ तक यात्रा के खर्च में सहयोग का मुद्दा है, यह सहयोग बहुत आंशिक होता है| इस यात्रा के प्रत्यक्ष यात्रा में होनेवाले अनुमानित खर्च के लिए संस्थाएँ और व्यक्तियों से सहयोग मिला| लेकीन काफी खर्च तो अप्रत्यक्ष होता है- जैसे मैने यात्रा की तैयारी के लिए कई महिनों तक जो राईडस की, जो अभ्यास किए उसका खर्च तो अलग ही होता है| या छुट्टियों की वजह से भी जो एक तरह का आर्थिक नुकसान होगा, वह भी तो होता ही है| खैर|