Monday, August 26, 2019

साईकिल पर जुले किन्नौर- स्पीति ३: नार्कण्डा से रामपूर बुशहर


३: नार्कण्डा से रामपूर बुशहर
 

इस लेखमाला को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए|

२९ जुलाई! इस यात्रा का दूसरा दिन| आज नार्कण्डा से रामपूर बुशहर की तरफ जाना है| कल नार्कण्डा में अच्छा विश्राम हुआ| रात बारीश भी हुई| २७०० मीटर से अधिक ऊँचाई पर रात में कोई दिक्कत नही हुई| और वैसे आज का दिन एक तरह का आसान चरण भी है, क्यों कि आज बिल्कुल चढाई नही है, वरन् बड़ी उतराई है| सुबह चाय- बिस्कीट और केले का नाश्ता कर रेस्ट हाऊस से निकला| नार्कण्डा में कई घर और दुकानों पर 'ॐ मणि पद्मे हुं' मन्त्र लगे हुए हैं! सुबह के लगभग आठ बजने के बाद भी बाहर बहुत कोहरा- धुन्द है| बारीश तो रूक गई है, लेकीन रोशनी बहुत कम है| नीचे बादल दिखाई दे रहे हैं| नार्कण्डा से आगे बढ़ते ही उतराई शुरू होती है| जैसे ही उतराई शुरू हुई, सड़क बादलों के बीच घिर गई| जैसे सड़क नीचे उतरने लगी तो बिल्कुल बादलों का समन्दर शुरू हुआ| विजिबिलिटी बिल्कुल ही कम है| मुश्किल से दस कदमों तक दिखाई दे रहा है| साईकिल पर टॉर्च लगाया| सभी वाहन रोशनी और इमर्जन्सी लाईट लगा कर ही चल रहे हैं! इस तरह की कम रोशनी बड़ी कठिन होती है| अगर पूरी रात हो, तो भी एक तरह से आसानी होती है| धीरे धीरे कुछ बून्दाबान्दी हुई और ठण्ड भी बढ़ गई| तब चेहरे पर मास्क लगा कर आगे बढ़ने लगा| पेडल मारने की जरूरत तो बिल्कुल नही है| यही उतराई अब सीधा शतद्रू अर्थात् सतलुज के करीब आने तक जारी रहेगी!







Monday, August 19, 2019

साईकिल पर जुले किन्नौर- स्पीति २: शिमला से नार्कण्डा

२: शिमला से नार्कण्डा 

इस लेखमाला को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए|

२५ जुलाई को ट्रेन से स्पीति- लदाख़ साईकिल यात्रा के लिए निकला| ट्रेन पर मुझे छोडने के लिए कई साईकिल मित्र और परिवारवाले आए| ट्रेन में चढ़ कर जल्द ही साईकिल का थैला बर्थ के नीचे रख दिया| बहुत आसानी से फोल्ड की हुई साईकिल और उसी थैले में काफी सामान भी बर्थ के नीचे चला गया! इससे बड़ी राहत मिली| अब साईकिल ट्रेन में से आसानी से ले जा सकता हूँ! साईकिल इस तरह फोल्ड करने के लिए उसका कैरीयर, दोनों पहिए, स्टैंड, सीट और दोनों पेडल निकालने पड़ते हैं| कल साईकिल इस तरह से थैले में भरने के लिए भी मित्रों ने सहायता की| अगले दो दिनों में शिमला तक की यात्रा करूंगा और उसके बाद २८ जुलाई से साईकिल चलाऊँगा| प्रयासपूर्वक मन को वर्तमान में ही रखा और ट्रेन की यात्रा का आनन्द लेने लगा|






Thursday, August 15, 2019

साईकिल पर जुले किन्नौर- स्पीति १: प्रस्तावना

साईकिल पर जुले किन्नौर- स्पीति १: प्रस्तावना
 

सभी को नमस्कार! हाल ही में किन्नौर- स्पीति यात्रा साईकिल पर की| इसके बारे में अब विस्तार से लिखना आरम्भ कर रहा हूँ| हर साईकिल यात्रा काफी कुछ सीखा जाती है, समृद्ध कर जाती है| इस यात्रा में भी बहुत कुछ सीखने को मिला| एक तरह से स्पीति में साईकिल चलाने का सपना भी पूरा हुआ| यह साईकिल यात्रा सिर्फ एक साईकिल यात्रा न हो कर एक सामाजिक उद्देश्य होनेवाली यात्रा थी| स्वास्थ्य, फिटनेस, पर्यावरण इन बातों के बारे में जागरूकता का मैसेज दिया जाना तथा इन्ही विषयों पर विभिन्न लोगों और समूहों से बात करना भी इसका एक अंग था| पुणे की संस्था मंथन फाउंडेशन, रिलीफ फाउंडेशन और अन्य संस्थाएँ तथा सहयोगियों का कई तरह का सहयोग इस सोलो साईकिल यात्रा के लिए मिला| एक तरह से यह एक नई पहल थी| समाज के सहयोग के साथ और सामाजिक उद्देश्य को ले कर यह यात्रा हुई| इसके बारे में अलग अलग सोच हो सकती है| किसी को ऐसा भी लग सकता है साईकिल यात्रा करनी हो तो अपने ही बल पर क्यों नही करते, संस्था का और अन्य व्यक्तियों का सहयोग क्यों लेना चाहिए| यह भी एक राय हो सकती है| मेरे विचार से मैने इस बार थोड़ा नया करने की कोशिश की| एक विचार और एक थीम ले कर कई लोगों के पास गया| पुणे की मंथन फाउंडेशन और रिलीफ फाउंडेशन इन दो संस्थाओं ने इस अभियान और उसके सामाजिक मैसेज में रूचि ली| उनके अपील पर कई और संस्थाएँ और व्यक्तियों ने भी इसमें रुचि ली| इसमें और एक बात भी है| जब मै अकेला साईकिल चलाता हूँ, तो वह मेरे तक या सिर्फ मेरे सोशल मीडीया तक सीमित रहता है| लेकीन जब मै किसी संस्था के साथ, व्यापक समाज के सामने आ कर साईकिल चलाता हूँ, तो वह ज्यादा लोगों तक पहुँचता है| प्रिंट मीडिया से और अधिक अनुपात में सोशल मीडिया में आने से कई लोगों तक यह विचार पहुँचता है| और जहाँ तक यात्रा के खर्च में सहयोग का मुद्दा है, यह सहयोग बहुत आंशिक होता है| इस यात्रा के प्रत्यक्ष यात्रा में होनेवाले अनुमानित खर्च के लिए संस्थाएँ और व्यक्तियों से सहयोग मिला| लेकीन काफी खर्च तो अप्रत्यक्ष होता है- जैसे मैने यात्रा की तैयारी के लिए कई महिनों तक जो राईडस की, जो अभ्यास किए उसका खर्च तो अलग ही होता है| या छुट्टियों की वजह से भी जो एक तरह का आर्थिक नुकसान होगा, वह भी तो होता ही है| खैर|