Wednesday, December 9, 2009

डिजिटल गवरनन्स अर्थात् सांख्यिकी या इलेक्ट्रॉनिक प्रशासन प्रक्रिया

डिजिटल गवरनन्स अर्थात् सांख्यिकी या इलेक्ट्रॉनिक प्रशासन प्रक्रिया
तकनीक तथा विज्ञान प्रसार निरंतर प्रगती पर है । संगणक, दूरसंचार तथा इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का तेजी के साथ विस्तार हो रहा है । इससे समाज में कई प्रकार के परिवर्तन आ रहे है । विज्ञान तथा तकनीक कई प्रकार से लोगों के जीवन को प्रभावित करती है । सामाजिक शास्त्र से जुडी हुई मूलभूत प्रक्रियाएँ जैसे कार्यजीवन, मानवी रिश्ते तथा आचार-विचार; प्राथमिकताएँ इन सब पर तकनीक का बढता असर देखा जा सकता है । इसके कई सकारात्मक तथा नकारात्मक परिणाम सामने आ रहे है । इससे कई तरह के नए अवसरों की निर्मिती हो रही है । ऐसा ही एक नया मॉडल या प्रारूप है डिजिटल गवरनन्स अर्थात् सांख्यिकी या इलेक्ट्रॉनिक प्रशासन प्रक्रिया ।
क्या है डिजिटल गवरनन्स?
यह एक तकनीक का विशेष प्रयोग है जिससे सरकारी प्रक्रियाओं मे तेजी तथा सुधार आ सकता है । सरकारी गतिविधियाँ – जैसे जनता के लिए योजना बनाना; उनका क्रियान्वयन करना; जनता की सुविधा हेतु सेवाएँ उपलब्ध कराना; जनता के हकों तथा अधिकारों की रक्षा करना आदि को इससे मजबूती मिलती है एवम् जनता का अधिक सहभाग उन गतिविधियों मे प्राप्त किया जा सकता है । समाजशास्त्रीय नजरिए से सरकारी प्रक्रिया को उपर से नीचे (टॉप- डाउन ऍप्रोच) के बजाय नीचे से उपर (बॉटम अप ऍप्रोच) बनाने के लिए यह तकनीक बहुत उपयोगी है ।
डिजिटल प्रक्रिया का उदाहरण ऑनलाईन रेल्वे टिकट निकालना; या एटीएम से पैसे निकालना है । डिजिटल प्रक्रिया सरल तथा सुविधाजनक होती है । पारंपारिक तरिके से काम करने मे जो दिक्कतें आती है; वे इसमें नही आती । कम समय में अधिक काम हो सकता है । इसी प्रक्रिया को जब सरकारी प्रक्रिया तथा उसकी निर्णयप्रक्रिया से जोडा जाता है; तो डिजिटल गवरन्नस की शुरुवात होती है । कोईभी सरकारी कार्य प्रक्रिया हो; उसमें यदि हम डिजिटल तरिके से सहभाग ले रहे है; तो वह डिजिटल गवरन्नस कहलाएगी । उदाहरण के तौर पर सरकारी नीति के गठन को देखेंगे । सरकार जब भी कोई नीति बनाती है; तो कुछ महिनों तक उसका कच्चा प्रारूप या ड्राफ्ट ऑनलाईन उपलब्ध किया जाता है जिसपर सुझाव आमंत्रित किए जाते है । जनता, विशेषज्ञ तथा पत्रकार या कोईभी इनपर सुझाव दे सकते है, अपनी बात रख सकते है । ये सुझाव सीधे नीति-गठन करनेवाले दल तक पहुंचते है । या आप सीधे राष्ट्रपती या प्रधानमंत्री तक अपनी बात रख सकते है । अभी तो ऑनलाईन पीआयएल (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) अर्थात् जनहित याचिका भी दाखल की जा सकती है । न्यायालयों मे चल रही प्रक्रिया की ताजा स्थिति तथा निर्णय ऑनलाईन देखे जा सकते है ।
डिजिटल प्रक्रियाओं की विशेषताएँ :

1. डिजिटल प्रक्रिया स्थल निरपेक्ष होती है । ऑनलाईन होने के कारण इन्हे स्थान का बंधन नही होता है । कहींसे भी उन्हें किया जा सकता है । 2. उनमें मुख्य रूप से लिखित माध्यम का प्रयोग किया जाता है । 3. सभी यातायात तत्काल होने के कारण सूचना के आदानप्रदान में समय नही लगता ।
4. न्यूनतम आवश्यक तकनीक की पूर्तता होने के पश्चात इसमें अधिक आर्थिक लागत या खर्चे की आवश्यकता नही होती ।
5. सूचना तथा ज्ञान के साथ सत्ता का विकेंद्रिकरण और समान वितरण होने में सहायता होती है ।

डिजिटल प्रक्रियाओं का प्रयोग:

हालाँकी यह तकनीक सरल है; इससे जुडे मानवी कार्यकलापों मे कभी कभी दिक्कते हो सकती है; जिनपर विचार करना जरूरी है । तकनीक तो सार्वत्रिक होती है; लेकिन उनका प्रयोग मानव के उपर निर्भर करता है ।

1. तकनीक का प्रसार और उसका ज्ञान सभी को उपलब्ध नही होता । हमारे देश में सूचना प्रौद्योगिकी का इतना विस्तार होने के बावजूद भी सामान्य जनता तथा समाज के दबे और पीछडे तबकों के लिए यह कोई मायने नही रखती । पीछडे समुदायों तथा वर्गों तक यह अभी पहुंची नही है ।
2. तकनीक सार्वत्रिक नही हो; तो वह भी विषमता का कारण बन जाती है । यही बात ज्ञान के लिए भी है । अगर ज्ञान सभी को उपलब्ध तथा मुक्त ( Available and accessible) नही है; तो वह समाज में दूरियाँ तथा विषमता बढाता है । विकसनशील देशों मे आर्थिक स्तरीकरण के पश्चात ज्ञान स्तरीकरण भी देखा गया है ।

3. ज्ञान तथा सूचना का वितरण सत्ता का विकेंद्रिकरण करता जरूर है; पर वो सभी का समावेश करनेवाली चाहिए । यदी ज्ञान तथा सूचना कुछ समुदायों या कुछ लोगों के पास अधिकता से है; तो सामाजिक विषमता को बढावा ही मिलेगा । इसी लिए आवश्यक है की डिजिटल प्रक्रियाएँ तथा तकनीक सर्वसमावेशक बनें और उसमें दबे तबकों को भी भरसक जगह हो ।


समारोप:

अभी प्रयोग में होनेवाले अधिकतर डिजिटल शासन के प्रारूप सूचना का एक दिशा में प्रसारण करनेवाले है । इसका सबसे सरल उदाहरण रेडिओ या टीवी है । इनमें सूचना का आदानप्रदान एकही दिशा में होता है । परंतु यदि लोगों का सहभाग बढाना है; तो इस प्रक्रिया को दोनों दिशाओं मे करना होगा । यह इंटरनेट से सरलता के साथ किया जाता है । जैसे सरकार द्वारा प्रस्तावित नीति का दस्तावेज सभी को उपलब्ध है; और उसपर अभी तक दिए गए सुझाव भी सभी को उपलब्ध है । जैसे जैसे इस तकनीक की कार्य करने की प्रक्रिया सरल और सर्वसमावेशक होती जाएगी; वैसे इसमें लोगों का सहभाग भी बढेगा तथा सरकारी कार्यप्रणाली नीचे से उपर बनने में मदद मिलेगी । इसके लिए तकनीक का विस्तार तथा उसको सबके साथ उसको जोडने की आवश्यकता है ।


संदर्भ:
Digital Governance Models: moving towards good governance in developing countries; Vikas Nath,
Inlaks Fellow (LSE) Policy Analyst, UNDP

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