हमारी समस्याओं के लिए विपश्यना का मार्ग:
विपश्यना का मतलब विशेष प्रकारे से देखना. यह एक खुद को समझने की, खुद को बदलने की प्रक्रिया है.
प्रस्तावना:
विपश्यना यह गौतम बुद्ध द्वारा फिर से खोजी गयी और प्रसारित की गयी पुरातन भारतीय विद्या है, जो गौतम बुद्ध के पश्चात 500 बरस बाद भारत से लुप्त हुई. यह विद्या भारत से लुप्त हुई पर ब्रह्मदेश (आजके म्यानमार) में सुरक्षित थी और सत्यनारायणजी गोयंका जी के प्रयास द्वारा भारत लौट आयी और विगत 40 सालों से पूरे विश्व में जा रही है और लोगों को ज्ञान दे रही है. सत्यनारायणजी गोयंका जी द्वारा प्रारंभ किए हुए विपश्यना केंद्रों से यह ज्ञान सब लोगों को दिया जाता है.
विपश्यना क्या है ?
विपश्यना यह कोई अमूर्त कल्पना नही. यह अत्यंत प्रत्यय आनेवाली क्रिया है, पूर्ण रूप से बुद्धिवादी और विज्ञाननिष्ठ आहे. हम उसका उपयोग कर सकते है, उसे प्रत्यक्ष कर सकते है.
विपश्यना पद्धति यह हमारे शरिर और मन की संवेदनाओं तथा अनुभवों को अलिप्त दृष्टी से, साक्षीभाव से देखने की कला. हमारे मन, शरिर में हमेशा कई संवेदना, वासना, इच्छा, आसक्ती और विरोध आते जाते रहते है. यह विद्या/ टेक्निक हमको उनकी ओर अलिप्तता से, साक्षीभाव से देखने को कहती है.
इस पद्धति के अनुसार, हमारी सब समस्याए, कठीनाईया, परेशानिया और तनाव ये हमारे अधिक, मतलब निसर्ग से, स्वाभाविक तरह आने वाले से ज्यादा होनेवाले वासना, इच्छा, आसक्ती और विरोध के कारण निर्माण होते है. मतलब हमको निसर्गत: होनेवाली इच्छा से अधिक इच्छा, माने लालच, आसक्ती होती है और यह आसक्ती हमको और हमारे साथ कई लोगों को कठीनाई देती है. नैसर्गिक इच्छा, भावना इनको हमने नियंत्रण मे रखा नही, तो वह बढतेही जाते है और हमारी मुसीबतों का कारण बनते है जैसे पैसा प्राप्त करने की इच्छा. यदि वह स्वाभाविक, नैसर्गिक मर्यादा तक है तो ठीक है. पर यदि उसका अतिरेक होता है, तो वह हानिकारक है. अथवा अधिक उपभोग की इच्छा तनाव निर्माण करती है; क्यों कि यह हमेशा नही मिल सकता है. और यदि मिलता भी है, तो उसे लेने की इच्छा भी बढेगी.
विपश्यना कहती है कि यदि अंतर्मुख होकर अपने वासना, इच्छा, आसक्ती और विरोध को देखते है, तो हम उनसे मुक्त हो सकते है, वे हमें कोई कठिनाई नही दे सकते. यह एक अलग दृष्टीकोण है. समस्या सुलझाने के प्रचलित एप्रोच से अलग.
मनुष्यों की समस्या सुलझाने के प्रचलित मार्ग आवश्यकतांओं की पूर्ति करने पर भर देते है. जब तक स्वाभाविक तथा नैसर्गिक आवश्यकताए पूरी नही होती, तब तक यह आवश्यकता पूरी होना जरूरी है. पर हमारी कितनी समस्याए आवश्यकताओं के अभाव से होती है और कितनी लालच से होती है, यह देखना जरूरी है. और किसकी जरूरते ये किसीकी (सामाजिक और पर्यावरणीय घटक की) आवश्यकताओं के अभाव का कारण नही बन रही है, यह भी देखना जरूरी है. यदि आवश्यकताए नैसर्गिक मर्यादा, स्वाभाविक हद तक भी पूरी होती है, तो कौन कह सकता है कि आगे जाकर वे लालच अथवा आसक्ती नही बनेंगी ?
इसलिए विपश्यना मार्ग महत्त्वपूर्ण है. इस मार्ग के अनुसार हमारी वासना, आसक्ती, अन्य चीजों के प्रति असाधारण विरोध हम कम कर सकते है. इस हेतु एक विशेष प्रक्रिया का अभ्यास बताया जाता है. हम अपने सांस पर मन केंद्रित कर के मन तथा शरिर में आनेवाले संवेदनाओं की ओर अलिप्त दृष्टी से देखने को सीखते है, यदि ऐसा अभ्यास करते है, तो हमारे मन के विरुद्ध होनेवाली चीजें हमें अस्वस्थ और अशांत नही कर सकेंगी. हमारे मन पर अपना नियंत्रण आ सकता है और उससे हमारी समस्याए कम हो सकती है. विपश्यना पद्धति हमको हमारे अंतर्मन पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए सहायता करती है. हम बुद्धी, याने की बाह्य मन से कई चीजें समझते है; पर करते समय कई बार उतने पैमाने पर नही कर सकते; इसका कारण यह है की हमारे अंतर्मन का स्वभाव उसके विरुद्ध है. अत: ज्ञान होते हुए भी कई प्रकार की कठिनाईया, तकलीफ, असमतोल होते हुए दिखते है. विपश्यना की सहायता से हम अंतर्मन के स्वभाव को नियंत्रण में लाकर हमारे जीवन में आनेवाला तनाव तथा असंतुलन कम कर सकते है.
सामाजिक समस्या सुलझाने के लिए भी यह तरिका, एप्रोच महत्त्वपूर्ण है. कई प्रकार के सामाजिक इंटरव्हेंशस आवश्यकतांओं की पूर्ति पर जोर देते हुए दिखते है. उदाहरणार्थ, सेक्स वर्कर्स को और उनके ग्राहकों को कंडोम देना, समुदाय की आवश्यकता अनुसार पैसा देना इत्यादि. पर इससे यह संकट नहीं क्या की, ये आवश्यकताए बढती जाएंगी और फिर अब है वह असंतुलन बढता ही जा सकेगा. इस पृष्ठभूमि में विपश्यना का मार्ग हमको तनाव, अशांतता देनेवाली वासनाए, विकार, तीव्र इच्छा, कुछ चीजों के प्रति का असाधारण विरोध इनसे हमें मुक्त करता है. यदि वासनाए नियंत्रण में है, तो वे किसी भी तरह का तनाव निर्माण नही कर सकेंगी.
कई परिस्थितियों में समस्या सुलझाने के मार्ग सिर्फ बुद्धी मतलब माने बाह्य मन तक पहुंचते है, उदाहरणार्थ – जानकारी देना, समुपदेशन करना. पर सब विकारों का मूल अंतर्मन में है और वहाँ बुद्धी स्तर के इंटरवेंशन का परिणाम बहुत थोडा होता है. इसलिए समस्याए वैसे ही रहती है, अथवा थोडी कम होती है. पर यदि विपश्यना अंतर्मन को बदलने हेतु, नियंत्रण में लाने हेतु सहायता करती है, तो यह बडी बात है; कारण उसके द्वारा सभी समस्याओं का मूल कारण दूर होने में सहायता होगी.
विपश्यना केंद्र और 10 दिवसीय शिविर:
विपश्यना सीखने की शुरूआत करने का राजमार्ग 10 दिवसीय शिविर है, जो कई विपश्यना केंद्रों पर होते है. देशभर में कई शहरों मे ये होते है, जिसकी सूचना आपको वेबसाईट पर मिल सकती है. ये निवासी शिविर 10 दिन चलते है. इन शिविरों की शर्ते (उदा., संपूर्ण मौन, सतत ध्यान, एक समय भोजन) कुछ लोगों के लिए दिक्कत की हो सकती है. फिर भी इस अनमोल विद्या को देखते हुए ये चीजें महत्त्वपूर्ण नही है.
विपश्यना विद्या सब के लिए है, किसी पंथ, संप्रदाय, उपासना मार्ग इनमे वह बंद नही है. हमारी समस्याओं को सुलझाने का एक नया मार्ग मिलने हेतु कम से कम एक बार इन शिविरों मे जाना उत्तम है. ये शिविर विनामूल्य है, कारण उसका व्यय वहाँ आए हुए छात्रों के सहयोग से होता है. और यह विद्या इतनी श्रेष्ठ होने के कारण उसका लाभ प्राप्त किए हुए लोग खुद उसका व्यय करते है, उसका लाभ अन्य लोगों को मिलें इसलिए प्रयास करते है. इसी प्रकार से नि:शुल्क तत्त्व से पूरे विश्व में विपश्यना केंद्र कार्यरत है. यह बात भी सामाजिक क्षेत्र में काम कर रहे लोगों ने समझना ज़रूरी है. अधिकतर संस्था पैसों के आधार पर काम कर रही है, तब खुद के छात्रों द्वारा खुद का निर्वाह करनेवाली विपश्यना परंपरा कई तरह से नूतन आदर्श, नए मार्ग और नया दृष्टीकोण देती है.
इस संदर्भ में अधिक जानने हेतु और 10 दिवसीय शिविर में भाग लेने हेतु संपर्क सूत्र:
विपश्यना विशोधन विन्यास, धम्मगिरि, इगतपूरी, जिला नाशिक. 422403, महाराष्ट्र (02553) 244076, 244086 वेबसाईट – www.vridhamma.org, www.dhamma.org
ईमेल – info@giri.dhamma.org
विपश्यना का मतलब विशेष प्रकारे से देखना. यह एक खुद को समझने की, खुद को बदलने की प्रक्रिया है.
प्रस्तावना:
विपश्यना यह गौतम बुद्ध द्वारा फिर से खोजी गयी और प्रसारित की गयी पुरातन भारतीय विद्या है, जो गौतम बुद्ध के पश्चात 500 बरस बाद भारत से लुप्त हुई. यह विद्या भारत से लुप्त हुई पर ब्रह्मदेश (आजके म्यानमार) में सुरक्षित थी और सत्यनारायणजी गोयंका जी के प्रयास द्वारा भारत लौट आयी और विगत 40 सालों से पूरे विश्व में जा रही है और लोगों को ज्ञान दे रही है. सत्यनारायणजी गोयंका जी द्वारा प्रारंभ किए हुए विपश्यना केंद्रों से यह ज्ञान सब लोगों को दिया जाता है.
विपश्यना क्या है ?
विपश्यना यह कोई अमूर्त कल्पना नही. यह अत्यंत प्रत्यय आनेवाली क्रिया है, पूर्ण रूप से बुद्धिवादी और विज्ञाननिष्ठ आहे. हम उसका उपयोग कर सकते है, उसे प्रत्यक्ष कर सकते है.
विपश्यना पद्धति यह हमारे शरिर और मन की संवेदनाओं तथा अनुभवों को अलिप्त दृष्टी से, साक्षीभाव से देखने की कला. हमारे मन, शरिर में हमेशा कई संवेदना, वासना, इच्छा, आसक्ती और विरोध आते जाते रहते है. यह विद्या/ टेक्निक हमको उनकी ओर अलिप्तता से, साक्षीभाव से देखने को कहती है.
इस पद्धति के अनुसार, हमारी सब समस्याए, कठीनाईया, परेशानिया और तनाव ये हमारे अधिक, मतलब निसर्ग से, स्वाभाविक तरह आने वाले से ज्यादा होनेवाले वासना, इच्छा, आसक्ती और विरोध के कारण निर्माण होते है. मतलब हमको निसर्गत: होनेवाली इच्छा से अधिक इच्छा, माने लालच, आसक्ती होती है और यह आसक्ती हमको और हमारे साथ कई लोगों को कठीनाई देती है. नैसर्गिक इच्छा, भावना इनको हमने नियंत्रण मे रखा नही, तो वह बढतेही जाते है और हमारी मुसीबतों का कारण बनते है जैसे पैसा प्राप्त करने की इच्छा. यदि वह स्वाभाविक, नैसर्गिक मर्यादा तक है तो ठीक है. पर यदि उसका अतिरेक होता है, तो वह हानिकारक है. अथवा अधिक उपभोग की इच्छा तनाव निर्माण करती है; क्यों कि यह हमेशा नही मिल सकता है. और यदि मिलता भी है, तो उसे लेने की इच्छा भी बढेगी.
विपश्यना कहती है कि यदि अंतर्मुख होकर अपने वासना, इच्छा, आसक्ती और विरोध को देखते है, तो हम उनसे मुक्त हो सकते है, वे हमें कोई कठिनाई नही दे सकते. यह एक अलग दृष्टीकोण है. समस्या सुलझाने के प्रचलित एप्रोच से अलग.
मनुष्यों की समस्या सुलझाने के प्रचलित मार्ग आवश्यकतांओं की पूर्ति करने पर भर देते है. जब तक स्वाभाविक तथा नैसर्गिक आवश्यकताए पूरी नही होती, तब तक यह आवश्यकता पूरी होना जरूरी है. पर हमारी कितनी समस्याए आवश्यकताओं के अभाव से होती है और कितनी लालच से होती है, यह देखना जरूरी है. और किसकी जरूरते ये किसीकी (सामाजिक और पर्यावरणीय घटक की) आवश्यकताओं के अभाव का कारण नही बन रही है, यह भी देखना जरूरी है. यदि आवश्यकताए नैसर्गिक मर्यादा, स्वाभाविक हद तक भी पूरी होती है, तो कौन कह सकता है कि आगे जाकर वे लालच अथवा आसक्ती नही बनेंगी ?
इसलिए विपश्यना मार्ग महत्त्वपूर्ण है. इस मार्ग के अनुसार हमारी वासना, आसक्ती, अन्य चीजों के प्रति असाधारण विरोध हम कम कर सकते है. इस हेतु एक विशेष प्रक्रिया का अभ्यास बताया जाता है. हम अपने सांस पर मन केंद्रित कर के मन तथा शरिर में आनेवाले संवेदनाओं की ओर अलिप्त दृष्टी से देखने को सीखते है, यदि ऐसा अभ्यास करते है, तो हमारे मन के विरुद्ध होनेवाली चीजें हमें अस्वस्थ और अशांत नही कर सकेंगी. हमारे मन पर अपना नियंत्रण आ सकता है और उससे हमारी समस्याए कम हो सकती है. विपश्यना पद्धति हमको हमारे अंतर्मन पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए सहायता करती है. हम बुद्धी, याने की बाह्य मन से कई चीजें समझते है; पर करते समय कई बार उतने पैमाने पर नही कर सकते; इसका कारण यह है की हमारे अंतर्मन का स्वभाव उसके विरुद्ध है. अत: ज्ञान होते हुए भी कई प्रकार की कठिनाईया, तकलीफ, असमतोल होते हुए दिखते है. विपश्यना की सहायता से हम अंतर्मन के स्वभाव को नियंत्रण में लाकर हमारे जीवन में आनेवाला तनाव तथा असंतुलन कम कर सकते है.
सामाजिक समस्या सुलझाने के लिए भी यह तरिका, एप्रोच महत्त्वपूर्ण है. कई प्रकार के सामाजिक इंटरव्हेंशस आवश्यकतांओं की पूर्ति पर जोर देते हुए दिखते है. उदाहरणार्थ, सेक्स वर्कर्स को और उनके ग्राहकों को कंडोम देना, समुदाय की आवश्यकता अनुसार पैसा देना इत्यादि. पर इससे यह संकट नहीं क्या की, ये आवश्यकताए बढती जाएंगी और फिर अब है वह असंतुलन बढता ही जा सकेगा. इस पृष्ठभूमि में विपश्यना का मार्ग हमको तनाव, अशांतता देनेवाली वासनाए, विकार, तीव्र इच्छा, कुछ चीजों के प्रति का असाधारण विरोध इनसे हमें मुक्त करता है. यदि वासनाए नियंत्रण में है, तो वे किसी भी तरह का तनाव निर्माण नही कर सकेंगी.
कई परिस्थितियों में समस्या सुलझाने के मार्ग सिर्फ बुद्धी मतलब माने बाह्य मन तक पहुंचते है, उदाहरणार्थ – जानकारी देना, समुपदेशन करना. पर सब विकारों का मूल अंतर्मन में है और वहाँ बुद्धी स्तर के इंटरवेंशन का परिणाम बहुत थोडा होता है. इसलिए समस्याए वैसे ही रहती है, अथवा थोडी कम होती है. पर यदि विपश्यना अंतर्मन को बदलने हेतु, नियंत्रण में लाने हेतु सहायता करती है, तो यह बडी बात है; कारण उसके द्वारा सभी समस्याओं का मूल कारण दूर होने में सहायता होगी.
विपश्यना केंद्र और 10 दिवसीय शिविर:
विपश्यना सीखने की शुरूआत करने का राजमार्ग 10 दिवसीय शिविर है, जो कई विपश्यना केंद्रों पर होते है. देशभर में कई शहरों मे ये होते है, जिसकी सूचना आपको वेबसाईट पर मिल सकती है. ये निवासी शिविर 10 दिन चलते है. इन शिविरों की शर्ते (उदा., संपूर्ण मौन, सतत ध्यान, एक समय भोजन) कुछ लोगों के लिए दिक्कत की हो सकती है. फिर भी इस अनमोल विद्या को देखते हुए ये चीजें महत्त्वपूर्ण नही है.
विपश्यना विद्या सब के लिए है, किसी पंथ, संप्रदाय, उपासना मार्ग इनमे वह बंद नही है. हमारी समस्याओं को सुलझाने का एक नया मार्ग मिलने हेतु कम से कम एक बार इन शिविरों मे जाना उत्तम है. ये शिविर विनामूल्य है, कारण उसका व्यय वहाँ आए हुए छात्रों के सहयोग से होता है. और यह विद्या इतनी श्रेष्ठ होने के कारण उसका लाभ प्राप्त किए हुए लोग खुद उसका व्यय करते है, उसका लाभ अन्य लोगों को मिलें इसलिए प्रयास करते है. इसी प्रकार से नि:शुल्क तत्त्व से पूरे विश्व में विपश्यना केंद्र कार्यरत है. यह बात भी सामाजिक क्षेत्र में काम कर रहे लोगों ने समझना ज़रूरी है. अधिकतर संस्था पैसों के आधार पर काम कर रही है, तब खुद के छात्रों द्वारा खुद का निर्वाह करनेवाली विपश्यना परंपरा कई तरह से नूतन आदर्श, नए मार्ग और नया दृष्टीकोण देती है.
इस संदर्भ में अधिक जानने हेतु और 10 दिवसीय शिविर में भाग लेने हेतु संपर्क सूत्र:
विपश्यना विशोधन विन्यास, धम्मगिरि, इगतपूरी, जिला नाशिक. 422403, महाराष्ट्र (02553) 244076, 244086 वेबसाईट – www.vridhamma.org, www.dhamma.org
ईमेल – info@giri.dhamma.org
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