Friday, November 27, 2015

दोस्ती साईकिल से ६: ऊँचे नीचे रास्ते और मन्ज़िल तेरी दूर. . .

दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक
दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक
दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर
दोस्ती साईकिल से ४: दूरियाँ नज़दिकीयाँ बन गईं. . . 
दोस्ती साईकिल से ५: सिंहगढ़ राउंड १. . .
 
ऊँचे नीचे रास्ते और मन्ज़िल तेरी दूर. . .

सिंहगढ़ से आने के बाद एक दिन तक ऊर्जा बहुत क्षीण हुई| साईकिल को शरीर अभी पूर्ण रूपेण अभ्यस्त न होने के कारण थोड़ा बुखार जैसा भी लगा| उस दिन तो और किसी बड़ी राईड की इच्छा ही मिट गई| पर जल्द ही दूसरी बड़ी राईड की योजना बनायी| सिंहगढ़ पर जाने के चार दिन बाद १९ अक्तूबर २०१३ को अगली राईड के लिए निकला| इस बार भी एक बड़े घाट की योजना बनायी| पुणे से लदाख़ में साईकिलिंग के लिए जानेवाले लोग सिंहगढ़ के साथ पाबे घाट नाम के स्थान पर भी जाते हैं| इसलिए यहाँ जाना तय किया| साथ ही एक किला- तोरणा- देखने का भी विचार है|








Tuesday, November 24, 2015

दोस्ती साईकिल से ५: सिंहगढ़ राउंड १. . .

दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक
दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक
दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर
दोस्ती साईकिल से ४: दूरियाँ नज़दिकीयाँ बन गईं. . .

सिंहगढ़ राउंड १. . .
एक माह में अच्छी साईकिलिंग होने के बाद अब सिंहगढ़ जाना है| इन दिनों मै जहाँ रहता हूँ- डिएसके विश्व, धायरी, वहाँ से सिंहगढ़ सिर्फ २१ किलोमीटर दूर है| यहाँ से दिखता भी है और बहुत पास लगता है| लेकिन बीच में बहुत बड़ी चढाई है| लगभग नौ किलोमीटर में ६०० मीटर ऊँचाई चढनी है| इसलिए पहले तो जाने की बिल्कुल हिम्मत नही होती थी| वैसे हिम्मत तो अब भी नही हो रही है; लेकिन अब साईकिल के साथ एक दिवानगी सी लग रही है| सिंहगढ़ के पास से जानेवाले रास्तों से कई बार गया| मै सिंहगढ़ को बस देखता रहा| सिंहगढ़ मुझे पुकारता रहा| आज वह दिन आया|

सिंहगढ़! महाराष्ट्र के इतिहास की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण स्थान! सत्रहवी शताब्दि में कितनी वीरता का अविष्कार यहाँ हुआ| छत्रपती शिवाजी द्वारा सिंहगढ़ को मुक्त किया जाना| फिर वह शत्रु के पास जाना और फिर १६७० में शिवाजी महाराज के स्वराज्य में उसका पुनरागमन! उसके लिए किया हुआ वीरतापूर्ण संघर्ष! जितना उसके बारे में सोचता हूँ, हैरान होता हूँ| और सिंहगढ़ की आज की स्थिति का क्या कहें? सिंहगढ़ का इलाका आज गलत कारणों से ही जाना जाता है| होटल, बार और कई अवैध काम वहाँ होते हैं| खैर| लेकिन इन सब के बावजूद आज सिंहगढ़ ट्रेकर्स और इतिहास प्रेमियों का तीर्थ स्थान है और आगे भी रहेगा|








Monday, November 23, 2015

दोस्ती साईकिल से ४: दूरियाँ नजदिकीयाँ बन गई. . .


दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक 
दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक 
दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर

दूरियाँ नजदिकीयाँ बन गई. . .


पुणे की आसपास की चढाई और उतराईवाली सड़कों पर दो अर्धशतक करने के बाद काफी विश्वास मिला| अब इसी क्रम को आगे बढ़ाना है| पानशेत डॅम की सोलो राईड करने के चार ही दिन बाद वहीं पर दो मित्रों के साथ ग्रूप राईड की| फिर २ अक्तूबर को उन्ही मित्रों के साथ राष्ट्रीय राजमार्ग ४ पर भी एक राईड की| उसका उद्देश्य पचास- साठ किलोमीटर जाना जरूर था, पर मित्र की साईकिल पंक्चर होने के कारण वह नही हो पाया| उसके बजाय सिर्फ २८ किलोमीटर की एक छोटी राईड हो सकी| लेकिन उसमें भी लगभग डेढ किलोमीटर के टनेल के भीतर साईकिल चलाना हुआ| छोटे लाईटस होने का बावजूद अन्धेरे में लिप्त टनेल और उसमें से जाती सड़क| दो लेन की सड़क होने के बावजूद साईकिल चलानेवालों को हेवी ट्रैफिक से परेशानी होती है| और टनेल में तो सड़क के बाए किनारे पर कांच के छोटे टुकड़े बिखरे थे| जाहिर है, जब दुर्घटनाएँ होती हो, तब बिखरी कांच एक तरफ रख दी गई होगी| लेकिन टनेल के भीतर चलाने का बड़ा मज़ा आया| जैसे टनेल पूरा होने को आता था, धीरे धीरे रोशनी आती है| हम में से कितने लोगों ने कई बार ऐसा सपना देखा होगा- एक टनेल में से जा रहे हैं और अन्त में रोशनी मिलती है| जीवन की कुल कहानि यही तो है या यही होनी चाहिए| खैर| इसी राईड में एक छोटा घाट चलाने का भी अनुभव मिला|






Thursday, November 19, 2015

दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर

नदी के साथ साईकिल सफर







सितम्बर के पहले हप्ते में शतक करने के बाद कुछ दिन अन्तराल आया| इन दिनों पुणे में अधिक रहना होता था| इसलिए २० सितम्बर २०१३ को साईकिल पुणे में मंगा ली| यह साईकिल की पहली बस यात्रा रही! बिना कुछ हुए साईकिल पहुँच गई| फिर उस बस अड्डे से साईकिल को पुणे के फ्लॅट तक १७ किलोमीटर ले गया| बड़े शहर में साईकिल चलाने का थोड़ा डर जरूर था, लेकिन कोई कठिनाई नही आयी| सिर्फ एक दिक्कत आयी कि सुबह ११ बजे की धूप में डिहायड्रेशन हुआ| चलते समय एक बार रूका और अचानक बड़ी थकान महसूस हुई| थोड़ी देर विश्राम करना पड़ा| ऐसा लगा मानो थकान के कारण होश खोने के कगार पर था| लेकिन सही‌ समय पर विश्राम करने के कारण और पानी पीने के कारण राहत मिली| ऐसा अनुभव पहले भी आया था जब चौथे मंजिल पर बहुत सा सामान रखने के लिए उपर- नीचे चला था| शायद शरीर में ऊर्जा की खपत एकदम से बढ़ने के कारण और पानी‌ कम होने के कारण ऐसा हुआ हो| खैर|

पुणे में जहाँ उस समय रहता था, वह डिएसके विश्व एक छोटी चढाई पर स्थित है| साईकिल लाते समय पहली बार वह चढाई पर गया| वैसे तो है छोटी ही; एक किलोमीटर का चढाईभरा रास्ता और बस सबसे छोटा ५ वे ग्रेड का घाट| लेकिन वह भी नही‌ चढ पाया| जैसे ही‌ चढाई शुरू हुई, थोड़ी ही देर में पैदल जाने की नौबत आयी| इतना ही नही, पैदल जाते समय रूकना भी‌ पड़ा! अब पुणे के पास की पहाडी सडकों पर क्या हाल होनेवाला है, यह भी पता चला|

सत्रह किलोमीटर चलाने के बाद अगले दिन २१ सितम्बर को पास के खडकवासला डॅम पर गया| एन.डी.ए. के पास यह डॅम है| यह राईड अच्छी रही| चौदह किलोमीटर साईकिल चलायी| चढाई को देखते हुए डेढ घण्टा जरूर लगा, लेकिन नजारा अच्छा था| वापस घर आते समय वह डिएसके की चढाई पैदल ही चढनी पड़ी| और उसी में इतना थक जाता था कि दोपहर या शाम को वापिस नीचे जाने की इच्छा भी‌ नही होती थी|

अगले दिन २२ सितम्बर को बड़ी राईड करने की सोची| डिएसके विश्व से छब्बीस किलोमीटर दूर वाकड तक| यह यात्रा राष्ट्रीय राजमार्ग ४ से की| इस पर भी चढाई का रास्ता है और छोटे क्लाइंब भी है| लेकिन ये यात्रा बिना पैदल चले पूरी की| जाकर और आकर कुल बावन किलोमीटर हुए| लगभग चार घण्टे लगे| लेकिन अच्छा विश्वास भी आया| लगातार तीसरे दिन साईकिल चलाने से शरीर भी थोड़ा अभ्यस्त हो गया| और चढाईवाले रास्तों पर भी इतना चला सकता हूँ, इससे खुशी हुई| लेकिन थकान के कारण फिर तुरन्त बड़ी राईड करने की इच्छा नही हुई| यह अनुभव बार बार आता रहा| एक बड़ी राईड करो की अगली राईड करने की इच्छा अधमरी सी हो जाती| लेकिन फिर एक- दो दिनों में इच्छा फिर मन में आती है| २३ सितम्बर को पास ही राष्ट्रीय राजमार्ग पर छोटी राईड की| यहा एक रिजरवॉईर है| छोटा तालाब| मज़ा आया| लगातार चार दिन साईकिल चलाना हुआ| इसका फायदा भी मिला| अब डिएसके की चढाई आधी साईकिल पर चला पा रहा हूँ| लेकिन बाद में पैदल ही जाना पड़ता है|

एक दिन विश्राम किया और अगले दिन बड़ी राईड करने का प्लॅन बनाया| स्वयं का प्रायवेट प्रोफेशन होने के कारण यह सम्भव हुआ| २५ सितम्बर को सुबह निकला| आज एक डॅम की‌ तरफ ही जाना है| और उसके साथ कई छोटी चढाईयाँ और पहाड़ी सडकों पर जाना है| सुबह खडकवासला डॅम के पास अच्छा कोहरा मिला| वहाँ मिलिटरी के कई युनिटसभी है| परिसर रमणीय है| यहाँ प्रगाढ़ शान्ति मिली| यहाँ से बेहद सुन्दर नजारे शुरू हुए| सड़क भी सुनसान होती गई|
अब रास्ता मुठा नदी के साथ ही आगे बढ रहा है| पास ही सिंहगढ़ दिखाई दे रहा है! सिंहगढ़! यह एक बहुत बढ़िया घाट सड़क है| वहाँ जाने का मन तो करता है; लेकिन उसके लिए पहले पात्र बनना होगा! साईकिल लेने का एक कारण लदाख़ में साईकिल चलाना भी है और पुणे से लदाख़ में साईकिल चलाने के लिए जानेवाले सिंहगढ़ पर ही प्रॅक्टिस करते हैं और कहते हैं कि सिंहगढ़ की चढाई डेढ घण्टे में पूरी करना लदाख़ में साईकिल चलाने का 'क्वालिफिकेशन' है! पर सिंहगढ़ तो दूर; उससे छह गुणा छोटी डिएसके विश्व की चढाई भी मुझसे नही चढ़ी जा रही है| इसलिए पहले अपनी हैसियत बनानी पड़ेगी. . .


बादलों से घिरा सिंहगढ़. .



एक गाँव पार करने के बाद थोड़ी लम्बी चढाई आयी| उसने काफी तकलीफ दी| मुश्किल से सबसे नीचले गेअर पर उसे पार कर पाया| योगोदा आश्रम के पास से सड़क गुजरी| गति कम ही है; लेकिन चलाने में कोई कठिनाई नही आ रही है| चढाई पर जरूर वक्त लग रहा है| पानशेत डॅम के पास पहुँचने में लगभग तीन घण्टे लगे| दूरी है लगभग ३२ किलोमीटर| थकान जरूर लग रही है; लेकिन और आगे जाने की इच्छा है| पानशेत‌ डॅम में अच्छा पानी है| बरसाती सीजन के कारण और भी मजा आ रहा है| थोड़ी देर रूक के पानशेत डॅम से आगे दूसरे रास्ते की ओर बढ़ा| अब दूसरी सड़क से वापस लौटूँगा|











इस सड़क पर बी.एस.एफ. का एक युनिट भी है| आगे एक पहाड़ पर नीलकण्ठेश्वर महादेव मन्दीर देखना है| एक ब्लॉग पर उसके बारे में पढ़ा था| यह सड़क भी शानदार और सुनसान है| यहाँ की‌ सड़कें किसी बड़े रोड़ से जुड़ी नही है; इसलिए सुनसान हैं| वह मन्दीर एक चोटी पर स्थित है| चढाई बड़ी ही है; इसलिए साईकिल नीचे एक गाँव में खड़ी की और पैदल चल पड़ा| यह तीन किलोमीटर की चढाई भी अच्छी खासी निकली| यहाँ पर जीप और बाईक आती हैं| लेकिन सड़क कच्ची ही है| और पार्किंग के उपर भी कच्ची सड़क जाती है| जैसे जैसे मन्दीर पास आता गया नीचे का नजारा और रमणीय होता गया| अब वही डॅम बहुत उपर से दिखाई दे रहा है| मन्दीर में पहुँचते समय उतरने के बारे में कुछ डर लगने लगा| क्योंकि सड़क कच्ची थी| उसमें पैर फिसलने का डर है!




















मन्दीर में कोई भी नही दिखाई‌ दे रहा है| लेकिन इस मन्दीर में काफी पुतलें बने है| मन्दीर घूमते घूमते अचानक आवाज सुनाई दी| एकदम से चौंक गया| लेकिन तब देखा की अन्दर तो कई लोग हैं| फिर थोड़ा सुकून मिला| अब उतरते समय किसी के साथ ही उतरूँगा| दोपहर का एक बज रहा है| इसलिए अधिक समय न गंवाते हुए निकला| दो सज्जन साथ मिले| पैर बिना फिसले उतर गया| मेरा पैदल पगडण्डी के रास्ते पर ट्रेकिंग का अनुभव न के बराबर है| उतरते समय एक मरा हुआ साँप देखा| अब जल्द से जल्द निकलना है| अभी काफी दूरी पार करनी है|

अपेक्षाकृत आगे की यात्रा कठिन होती गई| बीच में रास्ता भी पूछना पड़ा| यह सड़क अब खडकवासला डॅम के उस तरफ से जा रही है| एक अर्थ में इस डॅम की परिक्रमा हो जाएगी! बीच बीच में विश्राम जरूर करना पड़ा| लेकिन बहुत ज्यादा तकलीफ नही हुई| शाम के पहले डिएसके विश्व में पहूँच गया| छह किलोमीटर पैदल और ६६ किलोमीटर साईकिलिंग के साथ यह और एक अर्धशतक पूरा हुआ| इसका रूट यहाँ पर देखा जा सकता है| लेकिन उस समय अर्धशतक के एहसास के बजाय थकान का ही‌ अहसास है| आखरी चरण में तो एक डेस्परेशन आता है कि कब घर पहूँचता हूँ| और इतनी शारीरिक और मानसिक ऊर्जा खर्च हो जाती है कि अगले राईड के बारे में कुछ भी सोचना सम्भव नही होता है! खैर| संयोग से चार ही दिन बाद फिर पानशेत जाना हुआ| इस बार दो मित्रों के साथ पहली ग्रूप राईड की| उसका भी अलग मज़ा आया| अब अच्छा विश्वास बढ़ने लगा है|





अगला भाग: ४: दूरियाँ नज़दिकीयाँ बन गई. . .

Monday, November 16, 2015

दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक



दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक



पहला शतक

साईकिल पर पहला अर्धशतक पूरा करने के बाद शतक का इन्तजार कुछ ज्यादा लम्बा हुआ| आरम्भिक यात्राओं के बाद कुछ हप्तों तक बाहर जाना हुआ| इसलिए करीब एक महिना साईकिल दूर ही रही| आखिर कर जुलाई के बाद सितम्बर महिने में ही साईकिल चलाने का मौका मिला| इतने दिन साईकिल चलाने के बारे में डे- ड्रिम कर रहा था! अब देखना है कैसे चला पाता हूँ|

पेट्रोल के दाम तो पहाड़ से भी अधिक ऊँचाईयों को छू रहे हैं। ऐसी स्थिति में साईकिल एक सशक्त विकल्प के रूप में सामने आती है। साईकिल कई मायनों में उपयोगी है। एक तो इन्धन खर्चे की बचत। यह एक अच्छा व्यायाम भी है। तथा इससे हमारे जीवन का नियंत्रण करनेवाली तथाकथित आधुनिक जीवनशैली की बेहुदा रफ्तार को भी नियंत्रण में लाया जा सकता है। मंजिल से अधिक रोमांच सफर में आता है। तो फिर काहे को भेडचाल की तरह हर समय छोटे मोटे लाभ की ओर दौडना? चलिए, एक साईकिल उठाते है और शुरू करते है यात्रा।





२ सितम्बर २०१३. दोपहर अचानक साईकिल उठायी और चल पड़ा| महाराष्ट्र में परभणी में घर से वसमत की तरफ निकला| यहाँ से वसमत ४४ किलोमीटर दूर है| निकलते समय दोपहर का एक बज रहा है| सोचा कि जितना जा सकता हूँ, जाऊँगा| काफी दिनों के विराम के बाद चलाने पर भी कठिनाई नही आयी| डेढ घण्टे में २० किलोमीटर पार हुए और वसमत सिर्फ २४ किलोमीटर दूर रहा| तो सोचा कि चलो, थोड़ा और आगे चलता हूँ| ऐसा करते करते वसमत ही पहुँच गया| अतीत में यह गाँव वसुमती नगरी नाम से जाना जाता था| पहुँचने पर बड़ा नाश्ता किया| करीब साढे तीन घण्टे लगे पहुँचने में|

हमारे लोगों की सोच अभी भी काफी स्थितिशील है। कितना भी कुछ कहिए, अभी कुछ भी उतना बदला नही है। सब कुछ वैसा ही है। रास्ते पर साईकिल और वह भी गिअर की साईकिल देख कर बच्चे चिल्लाते है, ‘वो देखो, गिअर वाली साईकिल!’ कुछ बच्चे तो साईकिल उठा कर चक्कर लगाते हैं। शहर से जितने दूर जाओ, लोगों का अचरज बढता है। उन्हे कुछ अटपटा सा लगता है। इतनी दूर (हालांकि दूरी मात्र बीस- पच्चीस किलोमीटर ही हो) साईकिल पर? और उनके कौतूहल का जवाब भी उन्हें मिल जाता है- जरूर गिअर वाली होने के कारण यह खूब दौडती होगी। कुछ लोग तो नई चीज दिखने से कुछ ज्यादा ही उत्साहित होते हैं। एक ग्रामीण ने तो कहा, यह तो मोटरसाईकिल जैसी दौडती होगी। नई चीज दिखाई देने पर ऐसी प्रतिक्रिया! शायद वे अपनी सारी निराशाएँ, अपने सारे तनाव जैसे उसके सहारे व्यक्त करते है। उनको बडी बेसब्री से ऐसी चीज की तलाश है जो उन्हे सहारा देगी। इसलिए एक छोटी सी पर नई चीज दिखाई पडने पर उनकी प्रतिक्रियाएँ उस चीज के बारे में कम और उनकी सोच के बारे में ज्यादा बताती है। खैर।

अब वापस निकलना है| साढ़ेपाँच बज रहे हैं| कम से कम सांत बजे तक तो रोशनी रहेगी| लेकिन उसके बाद घण्टा- डेढ घण्टा अन्धेरे में चलना होगा| और मेरे साथ एक मोबाईल के छोटे फ्लॅश लाईट के अलावा रोशनी नही है! देखते हैं| निकलते समय सूर्यास्त करीब आया है| शाम का लाल- पिले उजाले का नजारा और रास्ते में लगनेवाले पेड़! उस अनुभव को स्वयं ही लेना होता है; उसका निवेदन सम्भव नही है| किसी तितलि का स्पर्श कर जाना, पास के खेतों में पेडों का हिलना, गाँव के लोगों के चेहरे; बार बार बात करनेवाले स्कूल के लड़कें. . . ऐसे कई अविस्मरणीय अनुभव| जाते समय एक होटल में चाय के लिए रूका था, जाते समय भी वही रूका| वहाँ की दिदी ने चुल्हे को फिर से जला कर चाय बनाई| थोड़ी बातचीत हुई| ऐसे समय कहीं पर न मिलनेवाले लोगों के साथ मिलना होता है. .

इस यात्रा का कठिन पड़ाव सांत बजे के बाद शुरू हुआ| घर अभी २५ किलोमीटर दूर है और पूरा अन्धेरा हुआ है| एक छोटे से फ्लॅश लाईट की ही रोशनी साथ है| हालांकि सड़क पर लगभग सतत आवाजाही शुरू है| उन वाहनों का प्रकाश है| सूरज डूबने के बाद सामने शुक्र का दिया जला हुआ है| उसने डेढ़ घण्टा साथ दिया| उसके अलावा ज्येष्ठा, अनुराधा, धनु और मूल आदि तारका समूह भी नॉन स्ट्राईकर एंड से साथ दे ही रहे हैं| बीच में लगनेवाले गाँवों में दो मिनट विश्राम करते हुए यात्रा जारी रखी| इस बार भी आखरी दस किलोमीटर ने बड़ा कष्ट दिया| घर पहुँचते पहुँचते रात के नौ बजे है| अर्थात् कुल आठ घण्टे साईकिल चलायी| एक घण्टा वसमत में रूका था| अर्थात् सांत घण्टों में ८८ किलोमीटर हुए| सिख्खड़ साईकिलिस्ट के लिए बहुत आत्मविश्वास देनेवाली बात!





अब शतक का इन्तजार है| लेकिन थोड़ा रूकना होगा| करीब दो दिनों तक पैरों में थोड़ा कड़ापन रहा| उस समय में बाकी काम निपटाए| अब ५ सितम्बर २०१३ को बड़ी यात्रा करने के लिए परभणी के जिन्तुर के पास स्थित येलदरी डॅम और नेमगिरी स्थान को चुना| कुल यात्रा १२१ किलोमीटर की होगी, ऐसी योजना बनायी| इस बार सुबह साढ़े पाँच बजे निकला| सुबह शरीर बहुत सख्त होता है| फिर भी एक घण्टे में चौदह किलोमीटर जा सका| आगे कोई कठिनाई नही आयी और नौ बजे घर से ४४ किलोमीटर दूर जिन्तुर तक पहुँचा| वहाँ बड़ा नाश्ता किया| थोड़ी देर रूक कर आगे निकला|

जिन्तुर के बाद कुछ फर्क आया| गाँव की भीड़ खतम होने के बाद चढाई शुरू हुई| बीच बीच में कुछ शैक्षिक संस्थाएँ और यात्रियों से खचाखच भरे रिक्षा! कुछ साईकिल पर जानेवाले बच्चे मिले| अब सड़क बहुत खराब हो गई है|‌ कई स्थानों पर टूटी- फूटी है| सड़क पर एक दाया मोड लगा जो नेमगिरी को जाता है| लौटते समय वहाँ जाऊँगा| एक स्कूली लड़का- शिवाजी- साथ आ कर बातचीत करने लगा| वह है तो दसवी में; पर दिखाई दे रहा है छटी कक्षा का| चढाई अब थोड़ी कठिन लगी| नीचले गेअर्स पर चलाने का प्रयास किया, लेकिन फिर पैदल चलना पड़ा| अब ग्यारह बजे हैं| इसलिए धूप बहुत अधिक है| जैसे ही चढाई समाप्त हुई, फिर साईकिल शुरू की| लेकिन थोड़ी ही‌ देर में फिर चढाई और फिर पैदल यात्रा| दो बार ऐसा हुआ| एक जगह के बाद सीधा ढलान मिली| वहाँ रास्ता भी अच्छा है, इसलिए फिर साईकिल तेज़ दौड गई| फिर थोड़ी चढाई| ऐसा करते करते येलदरी पहूँच गया| जिन्तुर से इसकी दूरी थी मात्र १४ किलोमीटर; पर उसके लिए डेढ़ घण्टा लगा|

येलदरी कँप यह गाँव डॅम के पास ही है| पूर्णा नदी पर स्थित इस डॅम में अच्छा पानी है| गेट पर सरकारी लोगों ने फोटो खींचने को मनाही की, पर फिर भी फोटो लिए| जल्द ही वापस मूड़ा| आज बैल का त्योहार होने के कारण बैल बहुत दिखाई दे रहे हैं| यह परिसर देखने जैसा है| बीच बीच में फूलों की खेती! फिर से चढते- उतरते नेमगिरी की ओर जानेवाली सड़क तक पहूँचा| यह भी कच्चा ही रास्ता है! यहाँ और अधिक चढाई मिली| बड़ी मुश्किल से साईकिल चला पा रहा हूँ| आखरी एक किलोमीटर तो पैदल जाना पड़ा| यहाँ कुछ देर रूक कर मन्दिर का दर्शन लिया| यह श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र है| यहाँ शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ, आदिनाथ, महावीर आदि के पुतले गुफा में है| जब सड़कें नही थी, उस समय यह स्थान निश्चित दुर्गम रहा होगा| यहाँ छोटे पहाड़ है| पास में ही चन्द्रगिरी नाम की एक गुफा है| पहले देखी होने के कारण और मुख्य उद्देश्य साईकिलिंग होने के कारण वहाँ गया नही और तुरन्त निकला|
















लौटते समय जिन्तुर तक ढलान है| जिन्तुर में बड़ा नाश्ता किया| साईकिलिंग करते समय भोजन करने के बजाय थोड़े थोड़े अन्तराल में नाश्ता करता हूँ| इसके बाद भी थोड़ी ढलान होने के कारण पचास मिनट में पन्द्रह किलोमीटर हुए| उसके बाद और एक विश्राम- गाँव में चाय- बिस्किट ले कर आगे निकला| दोपहर की तेज धूप होने के कारण रूकना पड़ रहा है| इसके बाद चढाई नही होते हुए भी अधिक बार रूकना पड़ा| आखरी बीस किलोमीटर तो बड़े कठिन गए| सारी ताकत लगानी पड़ी| लेकिन तब तक शतक पूरा हो गया| परभणी में पहूँचते समय शाम के साढ़े छह बजे है. . . दिन में कुल १२१ किलोमीटर साईकिल चलाई| शतक करने का मज़ा चखा! एक मलाल यह लगा कि यह शतक सिक्स के साथ पूरा नही कर पाया; और सभी रन्स सिंगल्स में ही बनाने पड़े!

यात्रा में यह अनुभव में आया कि यह शरीर के श्रम का कार्य तो था ही, लेकिन मन का भी था| शरीर जितना ही मन का भी सहभाग इसमें था| और मन तो अस्थिर होता है| वह और अस्वस्थ हो जाता है| इसलिए उसको कुछ काम चाहिए| इसी लिए साथ में गाने रखे थे| गानों के कारण अधिक मज़ा आया| लक्ष्य और स्वदेस के गाने! जब शरीर थकता है; गति कम होती है और चलाना कठिन होता है; तब तो यह शरीर से अधिक माइंड गेम बन जाता है| क्यों कि मन का साथ भी उतना ही चाहिए| इसलिए उसे किसी जगह एंगेज रखना पड़ता है|

. . . शाम को बहुत ज्यादा थकान लगी| पहले ८८ किलोमीटर चलाने के बावजूद थकान लगी| तेज़ धूप और चढाईभरे रास्ते के कारण अधिक ऊर्जा व्यय हुई| नही तो शायद उतने ही समय में और अधिक जा पाता| अब और आगे जाना है| लेकिन पहले शरीर को ऐसी यात्रा का अधिक अभ्यस्त बनाना होगा|

तीन दिन पहले की हुई ८८ किलोमीटर की यात्रा ने शरीर के साथ मन को भी तैयार किया था| ८८ किलोमीटर करने के बाद शतक करने के सम्बन्ध में मन में पूरा विश्वास बन गया| वैसा ही अब डेढ़ सौ किलोमीटर के बारे में लग रहा है| उसमें कठिन कुछ भी नही है| सब परिस्थिति देख कर साईकिल चलाना, इतना ही तो है| मुश्किल या विशेष कुछ भी नही| यह तो सृष्टि का नियम होता है कि हम एक समय पर एक ही काम कर सकते हैं| इसलिए यदि हम दस अन्य काम थोड़े दूर रख कर एक काम पर ही ध्यान देते है, तो वह होगा ही| मल्टी टास्किंग के ज़माने में यह एक कमी है कि हमारी एकाग्रता खो रही है| कहते हैं, ९९ चीजों से यदि ध्यान हटाया, तो वह अपने आप एक चीज पर केन्द्रित हो जाता है| उसमें खास कुछ भी नही| बात सिर्फ ९९ चीजों को डिस्कनेक्ट करने की है| तेरह घण्टों में एक ही काम किया| अर्थात् ऑफिस का काम, घर का काम, रसोई, सामान रखना, रुटीन आदि बातें उस समय के पहले या बाद में करनी पड़ी| और कुछ नही|

एक व्हिडिओ: युंही साईकिल पर चला चल राही



परभणी- जिंतूर- येलदरी


अनुभवी साईकिलवालों के लिए आसान; मगर सिख्खड के लिए 'कठिन' चढाई!






यात्रा जारी है. . . अभी मन्जिल नही आयी. .


अगला भाग: ३: नदी के साथ साईकिल सफर

Wednesday, November 11, 2015

दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक

पहला अर्धशतक

साईकिल! एक सामान्य सी चीज! २००३ में जीवन से साईकिल विदा हो गई| कालेज में पढ़ते समय कुछ दिनों तक साईकिल का प्रयोग किया| लेकिन बड़े शहर की भीड़- भाड़ में साईकिल नही चला पाया और २००३ में साईकिल छूट गई| लेकिन उसी जीवन ने फिर एक बार साईकिल से मिलवाया- २०१३ में! और दस सालों की यह गैप काफी कारगर रही| यदि यह गैप न होती, तो शायद साईकिल से इतना कुछ किया जा सकता है, उसका इतना आनन्द लिया जा सकता है, यह भी अनुभव में नही आता| २०१३ में‌ साईकिल लेते समय उद्देश्य था कि इससे घूमा जाए, ट्रेकिंग की जाए, स्वास्थ्य के साथ पर्यटन भी हो| इंटरनेट पर मिले कई साईकिलबाजों ने इसके लिए प्रेरणा दी थी| इस प्रकार दोबारा साईकिल जीवन में आयी| और साईकिल के साथ धीरे धीरे जीवन की वह पर्त उघड़ गई जो आम तौर पर बहुत कम जानी थी| प्रस्तुत है साईकिल के साथ हुई दोस्ती की दास्ताँ. . .

जुलाई २०१३ में साईकिल ली| आज यह साईकिल मुझे लगभग बच्चों की साईकिल लगती है! ५५०० रूपए की क्रॉस कंपनी की बाईक| गेअर की सबसे सस्ती साईकिल| सामने के तीन और पीछे के छह गेअर्स| लेते समय दुकान में जब चलायी, तब पहले प्रयास में सन्तुलन बनाना कठिन गया| लेकिन चूँकि दस साल की गैप होने पर भी अतीत में कम से कम सात- आंठ साल (स्कूल और कॉलेज के दिनों में) साईकिल चलायी हुई होने के कारण तुरन्त चला पाया| अब यह देखना है कि कितनी दूरी पार कर सकता हूँ, कहाँ तक चला सकता हूँ| इसलिए पहले दिन थोड़ी ही चलायी| दुकान से घर तक और घर के आस- पास. फिर दो दिनों के बाद दस किलोमीटर चला पाया| हौसला बढ़ा| फिर दो दिनों के बाद पच्चीस किलोमीटर किए| पैर थोड़े थक गए, लौटते समय गति कम हुई| फिर भी हौसला बहुत बढ़ा| पच्चीस के बाद चालिस किलोमीटर किए| जाते समय तो कुछ भी कठिनाई नही आयी, लेकिन लौटते समय आखरी दस किलोमीटर बड़े कठिन लगे| बार बार रूकना पड़ा| जाते समय तो सवा घण्टा लगा था; आते समय दो- सवा दो घण्टे लगे| लेकिन बड़ा मज़ा आया- धीमी गति से सड़क से जाना; पेड- पौधे करीब से देखना; खेतों के तरफ देखते हुए आगे जाना. . .

अब धीरे धीरे एहसास हो रहा है कि साईकिल चलाना क्या है| इन दो- तीन राईडस में ही अतीत में एक बार में कभी भी जितनी नही चलायी थी, उससे अधिक साईकिल चलायी| स्कूल- कॉलेज के दिनों में कभी भी बीस किलोमीटर से अधिक साईकिल नही चलायी थी| लेकिन अब चला पाया! क्यों कि अब आनन्द के लिए चला रहा हूँ| उससे बहुत फर्क पड़ता है| आप यदि दफ्तर जा रहे हो तो आपके चलने जो ढंग होगा, वह मॉर्निंग वॉक के ढंग से अलग होगा| अभी मै जिस तरह एंजॉय कर रहा हूँ, उसे वे लोग नही एंजॉय कर सकेंगे जो काम के लिए साईकिल चला रहे हैं| शायद बीच में दस साल का गैप न होता, तो मै भी कभी यह देख नही पाता| खैर|

चालीस किलोमीटर जाने के बाद अगला लक्ष्य है पचास किलोमीटर से उपर चलाना| पहला अर्धशतक! इसलिए योजना बनायी| घर से लगभग बत्तीस किलोमीटर दूरी पर गोदावरी नदी है| इससे कुल मिलाकर चौसठ किलोमीटर हो जाएंगे| मजा आएगा| और क्षमता का एहसास भी होगा| योजना के अनुसार सुबह सात बजे निकला| २० जुलाई २०१३! बारीश का मौसम है और थोड़ी बूँदाबाँदी भी हो रही है| इसलिए रेन कोट पहन कर निकला| लेकिन उससे जबर्दस्त पसीना आया| एकदम से थकान भी होने लगी| जैसे तैसे गाँव के बाहर निकला और एक होटल पे चाय नही थी पर काफी मिल गई| बारीश तो रूक गई है| अब रेन कोट निकाल पर केरिअर पे लगा दिया| यह साधारण सी गेअरवाली साईकिल होने के कारण ही इसमें केरिअर था| अन्यथा और एडव्हान्स्ड गेअर साईकिलों में केरिअर नही आता है|

जैसे ही आगे निकला, ताजगी आ गयी| थकान कम हो गई| बारीश भी‌ रूकी रही और आगे बढ़ता गया| रास्ते में लोग गेअर की साईकिल देख कर चौंक रहे है| बच्चे तो घूर घूर के देखते हैं! अब आसानी से पैर चल रहे हैं| ऐसा लग रहा है मानो यह टेस्ट क्रिकेट की बल्लेबाजी जैसा है| पहले घण्टे में गेन्द नयी होती है; स्विंग होती है; घूमती है| उसके बाद धीरे धीरे बल्लेबाजी करना आसान होता है| इस प्रकार अब साईकिल चलाना सहज हुआ जा रहा है| शायद नीन्द के कारण पैर और शरीर कड़ा था; जो अब हलका हो रहा है| इसलिए कठिनाई नही हो रही है| जल्द ही आगे बढ़ता गया| एक होटल में नाश्ते के लिए रूका| किसी के मोबाईल पर रिंग टोन में गाना बजा- होशवालों को खबर क्या. . . एकदम से माहौल ही बन गया| आगे निकलने पर भी वही गाना जेहन में चलता रहा| कम भीड़ वाली सड़क पर साईकिल चलाने का आनन्द और ही है!

कहते है चलनेवालों को मन्जिल निश्चित ही मिलती है; बस चलते रहना जरूरी है| जल्द ही नदी किनारे पर पहुँच गया| थोड़ी देर वहाँ रूका और मूडा| वहा रेत में से सोना ढूँढनेवाले लड़के मिलें| उन्हे अचरज हुआ- बत्तीस किलोमीटर साईकिल पर? लौटते समय शुरू में दिक्कत नही हुई| धीरे धीरे आगे बढ़ता गया| जल्द ही अर्धशतक पूरा हो गया! पहला अर्धशतक! गति काफी कम है और अब तो और भी कम होगी| लेकिन फिर भी बड़ा आनन्द आ रहा है| आखरी के पन्द्रह किलोमीटर बहुत थकानेवाले लगे| कब घर आ जाए, यही भाव मन में आ रहा है| अन्तिम दस किलोमीटर में भी बहुत रूकना पड़ा| अन्त में घर पहूँच गया और ६४ किलोमीटर की यात्रा पूरी हुई! पहला अर्धशतक पूरा हुआ| पैर बिल्कुल भारी हो गए है| लंगडे जैसा चल रहा हूँ| शायद यह पहली बड़ी राईड है, इसलिए शरीर उसका आदि हो रहा होगा| इसके बाद ऐसी तकलीफ नही आएगी| ६४ किलोमीटर! साढ़े पाँच घण्टे जरूर लगे; क्यों कि अभी मै बड़ी राईड के लिए तैयार हो रहा हूँ| इसलिए गति कम होना स्वाभाविक है| लेकिन साढ़े पाँच घण्टे और ६४ किलोमीटर तक साईकिल चला सकता हूँ, यह विश्वास मिल गया है| इस हिसाब से एक दिन में तो शतक भी किया जा सकता है| देखते हैं|












































गोदावरी नदी


 


३२ किमी दूरी में‌ मामुली चढाई- उतराई| लेकिन उस समय

मामुली चढाई भी बड़ी लगी|


ये तो शुरुआत है










































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