०. साईकिल पर जुले लदाख़ भाग ०- प्रस्तावना
१. साईकिल पर जुले लदाख़ भाग १- करगिल- मुलबेक- नमिकेला- बुधखारबू
२. साईकिल पर जुले लदाख़ भाग २- बुधखारबू- फोतुला- लामायुरू- नुरला
३. साईकिल पर जुले लदाख़ भाग ३- नुरला- ससपोल- निम्मू- लेह....
२
जून की सुबह करीब चौबिस घण्टों
के बाद विश्राम का अवसर मिला|
आज
पहले विश्राम करना है|
सुबह
प्रोद्युत जी के पास पहुँचने
तक रोशनी तो हुई है;
लेकिन
धूप नही खिली है|
और
मौसम भी कुछ विपरित दिख रहा
है|
पीछली
बार जब अगस्त २०११ में यहाँ
आया था,
तब
बरफ तो थी;
पर
इतनी अधिक नही|
उस
समय मौसम अधिकांश रूप से साफ
था|
इस
बार अलग दिख रहा है|
शायद
यह अगस्त और जून के बीच का भी
अन्तर हो सकता है|
दोपहर
तक जम कर विश्राम किया|
कल
नब्बे किलोमीटर साईकिल चलायी
थी;
लगभग
दो दिनों की साईकिलिंग ही दिन
में की|
इस
वजह से आज आराम करने का पूरा
अधिकार है|
दोपहर
बाद भी मौसम वैसा ही रहा|
प्रोद्युत
जी ने बताया कि इस बार जून में
भी मौसम कुछ सर्दियों जैसा
ही चल रहा है|
और
अभी तक अच्छी धूप नही खिली है|
प्रोद्युत
जी यहाँ एक हेल्थ सेंटर चलाते
हैं|
चोगलमसर
गाँव!
आसपास
के लोगों से भी मिलना हुआ;
जुले
जुले हुआ|
यहाँ
से अच्छा नजारा दिखाई पड़ता
है|
दूर
शान्ति स्तुप भी दिखाई देता
है|
यह
जगह सड़क से थोड़ी उपर है|
शाम
को कहीं जाने का मन नही हुआ तो
पूरा विश्राम ही कर लिया|
शाम
होते होते फिर ठण्ड बढ़ गई|
अगले
दिन सुबह बारीश हुई|
मौसम
वैसा ही रहा|
रजाई
से उठने की इच्छा ही नही हो
रही है|
मौसम
ठीक होने तक मै दूर नही जा
सकूँगा|
इसलिए
थोडा रूकना ही बेहतर है|
दोपहर
तक और विश्राम करने के बाद
बाहर निकलने का मन हुआ|
आज
पहले लेह जाना है|
वहाँ
पुराने होटलवाले मित्र है|
उनसे
मिलना है|
उसके
बाद शान्ति स्तुप जाना है|
यहाँ
से लेह शहर करीब छह-
सात
किलोमीटर दूर है|
लेकिन
नीचे सड़क पर जाने के बाद अधिक
चढाई ही है|
मिलिटरी
के कई युनिटस लगते है|
भारत
तिब्बत सीमा पुलिस;
बीआरओ
के हिमांक युनिट का मुख्यालय
और राष्ट्रीय रक्षा उच्च
तुंगता अनुसन्धान संस्थान भी है|
लेह
पहुँचने में ही करीब एक घण्टा
लगा|
ओल्ड
रोड़ पर पहुँचने पर फिर साईकिल
हाथ में ले कर जाना पड़ रहा
है|
ओल्ड
रोड पर मोहम्मद हुसेन जी से
मिला|
ये
काफी अच्छे इन्सान है|
बहुत
ख़ुशी हुई|
उन्होने
बताया कि अभी मनाली रोड़ बन्द
है|
उसे
खुलने में अभी और समय लगेगा|
यहाँ
से शान्ति स्तुप तक अधिक चढाई
ही है|
बीच
में एक जगह थोड़ी उतराई मिली|
बाद
में सीधे चढाई|
लेकिन
शान्ति स्तुप के कुछ पहले फिर
से साईकिल चला पाया|
वाकई
खूबसुरत स्थान है|
वहाँसे लौटते समय एक साईकिल का दुकान लगा| यहाँ साईकिल किराए से दी जाती है| लदाख़ में कई स्थानों पर यहाँ से साईकिलिस्ट जाते हैं| साईकिल का गेअर थोड़ा सेट कर लिया| बाकी चेक कर लिया| साईकिल बिल्कुल ठीक है| कुछ भारतीय और विदेशी साईकिलिस्ट भी दिखें| शाम को खाना बनाने में प्रोद्युत जी की सहायता की| रजाई से निकलने की इच्छा नही हो रही है| रात होते होते ठण्ड का वर्चस्व शुरू हुआ| पीछले बार के मुकाबले मौसम बहुत ही अलग है|
वहाँसे लौटते समय एक साईकिल का दुकान लगा| यहाँ साईकिल किराए से दी जाती है| लदाख़ में कई स्थानों पर यहाँ से साईकिलिस्ट जाते हैं| साईकिल का गेअर थोड़ा सेट कर लिया| बाकी चेक कर लिया| साईकिल बिल्कुल ठीक है| कुछ भारतीय और विदेशी साईकिलिस्ट भी दिखें| शाम को खाना बनाने में प्रोद्युत जी की सहायता की| रजाई से निकलने की इच्छा नही हो रही है| रात होते होते ठण्ड का वर्चस्व शुरू हुआ| पीछले बार के मुकाबले मौसम बहुत ही अलग है|
४
जून को
भी करीब यही क्रम रहा|
आज
शान्ति स्तुप के स्थान पर लेह
पॅलेस गया|
गाड़ी
से जाते समय सड़क का अन्दाजा
नही होता है|
लेकिन
साईकिल चलाते समय पूरा चप्पा
चप्पा ध्यान में आता है|
आज
मै लेह तक बिना पैदल चले साईकिल
पर जा सकता हुँ|
और
लेह पॅलेस की चढाई भी साईकिल
पर ही पार कर ली|
वाकई,
यहाँ ठहरने
का लाभ मिल रहा है|
शरीर
को समय मिलने से अनुकूलन अच्छा
हो गया होगा|
मनाली
रोड़ के जल्द खुलने के आसार नही
है|
शायद
मुझे मेरा प्रोग्राम बदलना
पड़ेगा|
देखते
हैं|
जाते
समय खर्दुंगला जानेवाली सड़क
दिखी...
लेह
के पास एक पेट्रोल पंप पर लिखा
है-
"I often relax the most in my first home i.e. the road.."
कितना
सच है यह!
वापस
जाते समय थोड़ा जल्दी पहुँच
गया|
शाम
को चोगलमसर लौटने पर पहले
सिन्धू घाट जाने की इच्छा थी|
पर
ठण्ड की वजह से आराम ही करने
का मन हुआ|
यहाँ
प्रोद्युत जी के पास बहुत से
लोग मिलने के लिए आते हैं|
आसपास
के पडोसीयों से भी बातें हुई|
कल
जिनके दुकान में साईकिल का
सेटिंग ठीक किया,
वे
यहीं रहते हैं!
सब
कह रहे हैं कि मौसम इस बार
विपरित है|
जून
में य़हाँ गर्मी होती है और
फॅन भी चलाना पड़ता है|
इस
बार वह मौसम ही नही है|
वह
दिन भी विश्राम में ही बिता|
कल और आज मिला कर करीब चालीस किलोमीटर साईकिल चलायी| कल और आज भी चढाई भी लगभग तीनसौ मीटर होगी| लेकिन जैसे मै यहाँ अभ्यस्त हो रहा हुँ, ठण्ड भी कम लग रही है और साईकिलिंग का स्टॅमिना भी सुधर रहा है| आगे देखते है कैसा होता है|
कल और आज मिला कर करीब चालीस किलोमीटर साईकिल चलायी| कल और आज भी चढाई भी लगभग तीनसौ मीटर होगी| लेकिन जैसे मै यहाँ अभ्यस्त हो रहा हुँ, ठण्ड भी कम लग रही है और साईकिलिंग का स्टॅमिना भी सुधर रहा है| आगे देखते है कैसा होता है|
लेह पॅलेस से दिखता लेह और शान्ति स्तुप |
सुंदर मनमोहक वृतांत ।
ReplyDeletePicturesque....
ReplyDeleteबहुत आराम किया । ऐसा शांति स्थूप मैंने पटना के पास राजगीर नै देखा था।
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