Monday, June 22, 2015

साईकिल पर जुले लदाख़ भाग ४- लेह दर्शन


०. साईकिल पर जुले लदाख़ भाग ०- प्रस्तावना 

१. साईकिल पर जुले लदाख़ भाग १- करगिल- मुलबेक- नमिकेला- बुधखारबू

२. साईकिल पर जुले लदाख़ भाग २- बुधखारबू- फोतुला- लामायुरू- नुरला

३. साईकिल पर जुले लदाख़ भाग ३- नुरला- ससपोल- निम्मू- लेह.... 



२ जून की सुबह करीब चौबिस घण्टों के बाद विश्राम का अवसर मिला| आज पहले विश्राम करना है| सुबह प्रोद्युत जी के पास पहुँचने तक रोशनी तो हुई है; लेकिन धूप नही खिली है| और मौसम भी कुछ विपरित दिख रहा है| पीछली बार जब अगस्त २०११ में‌ यहाँ आया था, तब बरफ तो थी; पर इतनी अधिक नही| उस समय मौसम अधिकांश रूप से साफ था| इस बार अलग दिख रहा है| शायद यह अगस्त और जून के बीच का भी अन्तर हो सकता है|

दोपहर तक जम कर विश्राम किया|‌ कल नब्बे किलोमीटर साईकिल चलायी थी; लगभग दो दिनों की साईकिलिंग ही दिन में की| इस वजह से आज आराम करने का पूरा अधिकार है| दोपहर बाद भी मौसम वैसा ही रहा| प्रोद्युत जी ने बताया कि इस बार जून में भी‌ मौसम कुछ सर्दियों जैसा ही चल रहा है| और अभी तक अच्छी धूप नही खिली है| प्रोद्युत जी‌ यहाँ एक हेल्थ सेंटर चलाते हैं| चोगलमसर गाँव! आसपास के लोगों‌ से भी मिलना हुआ; जुले जुले हुआ| यहाँ से अच्छा नजारा दिखाई पड़ता है| दूर शान्ति स्तुप भी दिखाई देता है| यह जगह सड़क से थोड़ी उपर है| शाम को कहीं जाने का मन नही हुआ तो पूरा विश्राम ही कर लिया| शाम होते होते फिर ठण्ड बढ़ गई|

अगले दिन सुबह बारीश हुई| मौसम वैसा ही रहा| रजाई से उठने की इच्छा ही नही हो रही है| मौसम ठीक होने तक मै दूर नही जा सकूँगा| इसलिए थोडा रूकना ही बेहतर है| दोपहर तक और विश्राम करने के बाद बाहर निकलने का मन हुआ| आज पहले लेह जाना है| वहाँ पुराने होटलवाले मित्र है| उनसे मिलना है| उसके बाद शान्ति स्तुप जाना है| यहाँ से लेह शहर करीब छह- सात किलोमीटर दूर है| लेकिन नीचे सड़क पर जाने के बाद अधिक चढाई ही‌ है| मिलिटरी के कई‌ युनिटस लगते है| भारत तिब्बत सीमा पुलिस; बीआरओ के हिमांक युनिट का मुख्यालय और राष्ट्रीय रक्षा उच्च तुंगता अनुसन्धान संस्थान भी है|

लेह पहुँचने में ही करीब एक घण्टा लगा| ओल्ड रोड़ पर पहुँचने पर फिर साईकिल हाथ में‌ ले कर जाना पड़ रहा है| ओल्ड रोड पर मोहम्मद हुसेन जी से मिला| ये काफी अच्छे इन्सान है| बहुत ख़ुशी हुई| उन्होने बताया कि अभी मनाली रोड़ बन्द है| उसे खुलने में अभी और समय लगेगा| यहाँ से शान्ति स्तुप तक अधिक चढाई ही है| बीच में एक जगह थोड़ी उतराई मिली| बाद में सीधे चढाई| लेकिन शान्ति स्तुप के कुछ पहले फिर से साईकिल चला पाया| वाकई खूबसुरत स्थान है

वहाँ‌से लौटते समय एक साईकिल का दुकान लगा| यहाँ साईकिल किराए से दी जाती है| लदाख़ में कई स्थानों पर यहाँ से साईकिलिस्ट जाते हैं| साईकिल का गेअर थोड़ा सेट कर लिया| बाकी चेक कर लिया| साईकिल बिल्कुल ठीक है| कुछ भारतीय और विदेशी साईकिलिस्ट भी दिखें| शाम को खाना बनाने में प्रोद्युत जी की सहायता की| रजाई से निकलने की इच्छा नही हो रही है| रात होते होते ठण्ड का वर्चस्व शुरू हुआ| पीछले बार के मुकाबले मौसम बहुत ही अलग है|

४ जून को भी करीब यही क्रम रहा| आज शान्ति स्तुप के स्थान पर लेह पॅलेस गया| गाड़ी से जाते समय सड़क का अन्दाजा नही होता है| लेकिन साईकिल चलाते समय पूरा चप्पा चप्पा ध्यान में आता है| आज मै लेह तक बिना पैदल चले साईकिल पर जा सकता हुँ| और लेह पॅलेस की‌ चढाई भी साईकिल पर ही पार कर ली| वाकई, यहाँ ठहरने का लाभ मिल रहा है| शरीर को समय मिलने से अनुकूलन अच्छा हो गया होगा| मनाली रोड़ के जल्द खुलने के आसार नही है| शायद मुझे मेरा प्रोग्राम बदलना पड़ेगा| देखते हैं| जाते समय खर्दुंगला जानेवाली सड़क दिखी... लेह के पास एक पेट्रोल पंप पर लिखा है- "I often relax the most in my first home i.e. the road.." कितना सच है यह! वापस जाते समय थोड़ा जल्दी पहुँच गया|

शाम को चोगलमसर लौटने पर पहले सिन्धू घाट जाने की इच्छा थी| पर ठण्ड की वजह से आराम ही करने का मन हुआ| यहाँ प्रोद्युत जी के पास बहुत से लोग मिलने के लिए आते हैं| आसपास के पडोसीयों से भी बातें हुई| कल जिनके दुकान में साईकिल का सेटिंग ठीक किया, वे यहीं रहते हैं! सब कह रहे हैं कि मौसम इस बार विपरित है| जून में य़हाँ गर्मी‌ होती है और फॅन भी चलाना पड़ता है| इस बार वह मौसम ही नही है| वह दिन भी विश्राम में ही बिता|  
कल और आज मिला कर करीब चालीस किलोमीटर साईकिल चलायी| कल और आज भी चढाई भी लगभग तीनसौ मीटर होगी| लेकिन जैसे मै यहाँ अभ्यस्त हो रहा हुँ, ठण्ड भी कम लग रही है और साईकिलिंग का स्टॅमिना भी सुधर रहा है| आगे देखते है कैसा होता है|
शान्ति स्तुप की ओर

शान्ति स्तुप से दिखता लेह









































लेह पॅलेस से दिखता लेह और शान्ति स्तुप

 

































3 comments:

  1. सुंदर मनमोहक वृतांत ।

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  2. बहुत आराम किया । ऐसा शांति स्थूप मैंने पटना के पास राजगीर नै देखा था।

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