Tuesday, June 23, 2015

साईकिल पर जुले लदाख़ भाग ५- सिंधू दर्शन स्थल और गोंपा

०. साईकिल पर जुले लदाख़ भाग ०- प्रस्तावना 

१. साईकिल पर जुले लदाख़ भाग १- करगिल- मुलबेक- नमिकेला- बुधखारबू

२. साईकिल पर जुले लदाख़ भाग २- बुधखारबू- फोतुला- लामायुरू- नुरला

३. साईकिल पर जुले लदाख़ भाग ३- नुरला- ससपोल- निम्मू- लेह.... 

४. साईकिल पर जुले लदाख़ भाग ४- लेह दर्शन


५ जून की सुबह भी सर्द है| इस बार लदाख़ का अलग ही मौसम देखने का अवसर मिला है| आज का दिन इस साईकिल यात्रा का अहम पड़ाव है| देखा जाए तो लेह में दो से तीन तक ही रूकने का पहले विचार था| पहले जो योजना बनायी थी, वह करगिल- लेह करने के बाद मनाली की ओर जाने की थी|‌ चूँकि अभी भी मनाली रोड़ बन्द है; उसे पोस्टपोन करना पड़ रहा है|‌ दूसरी योजना यह सोची कि त्सोमोरिरी की तरफ जाऊँगा| वहाँ सड़क खुली है| त्सोमोरिरी से एक सड़क त्सो कार होते हुए मनाली- लेह रोड़ को भी मिलती है| इसलिए त्सोमोरिरी जाने से मनालीवाला विकल्प भी खुला रहेगा| लदाख़ी भाषा में त्से का अर्थ गाँव और त्सो का अर्थ सरोवर होता है| लेकिन यहाँ आने के बाद मौसम ने इस योजना पर भी प्रश्नचिह्न लगाया है|

स्थानीय लोग बता रहे हैं कि, यहाँ ३३०० मीटर ऊँचाई पर लेह के पास ही इतनी ठण्ड है; तो वहाँ त्सोमोरिरी के रास्ते पर और अधिक होगी| वह सड़क ४५०० मीटर करीब ऊँचाई पर है| और लदाख़ में इस समय इतने बादल और थोड़ी बरसात होना भी ख़राब मौसम का ही‌ संकेत है|‌ और मई के अन्त तक खुलनेवाले मनाली रोड़ के खुलने में भी समय होना इसी तथ्य को दर्शाता है|‌ इसलिए आगे बढ़ने के बजाय यहीं रूकता हुँ| मैने बीस दिन का कार्यक्रम बनाया है; सो मेरे पास अभी भी बहुत दिन है| और तब तक लेह के पास साईकिल चलाता रहूँगा| उसका भी लाभ मिलेगा| शरीर और अभ्यस्त होता जाएगा|

फिर भी पीछली बार मेरे साथ लदाख़ आए मित्र गिरीश से और नीरज जाट जी से बात कर रहा हुँ| गिरीश ने त्सोमोरिरी रोड़ की ऊँचाई‌ का ब्योरा भी बताया| नीरज जाट जी तो कह रहे हैं कि बिल्कुल जा सकते हो| लेकिन जब त्सोमोरिरी रोड़ पर आनेवाले गाँव- हिमिया और चुमाथांग आदि का मौसम देखा तो वहाँ भी बादल छाए हैं| उसके अलावा वहाँ का दिन का तपमान भी माईनस में चल रहा है| दिन में -४ और रात में -१२ से. ! नि:सन्देह मै इतने विषम मौसम के लिए तैयार नही‌ हुँ| मैने जो कल्पना की थी, वह तो गर्मी का मौसम था| अर्थात् लदाख़ में गर्मी का अर्थ होता है कम ऊँचाई पर दिन में १५ से. और रात में ५-७ से. और यही मौसम अधिक ऊँचे स्थानों पर या 'ला' जगहों पर शून्य के करीब आता है; लेकिन अधिकांश जगहों पर शून्य से उपर ही होता है| इस बार सब कुछ अलग है| यही कारण है जिसके वजह से आज मै त्सोमोरिरी के लिए नही‌ निकल पाया हुँ|

अकेले लदाख़ साईकिलिंग करते समय एक बात बिलकुल पक्की थी| अकेले आने में कई पहलू है| लेकिन उनमें‌से सबसे जोखिमभरा पहलू यह है कि स्वयं की भावनाएँ, तनाव और बदलते विचारों का सामना करना| अधिकतर लोग अकेले नही जाना चाहते इसके पीछे एक कारण यह भी होता है कि स्वयं के तनाव का सामना ना करना पड़े| साथी या समूह हो; तो बातें सुलझ जाती हैं; प्रेशर रिलीज होता है| लेकिन अकेले होने में सब का सामना अकेले ही करना होता है और विचार और भावनाओं के कुछ विस्फोट जैसी स्थिति होती है| ऐसी स्थिति पहले दिन साईकिलिंग शुरू करने के ठीक पहले हुई थी| करगिल में मन बुरी तरह आशंकाओं से घिरा था| लेकिन फिर भी अगले दिन आगे बढ़ पाया| वही विस्फोट जैसी स्थिति यही‌ भी अनुभव हो रही है| तरह तरह के विचार और आशंकाओं से मन व्याप्त है| आगे बढ़ू या रूकूँ, मौसम ठीक है या नही है; आगे और ऊँचाई पर जा भी पाऊँगा या नही| ऐसे में मन शान्त रखना; मन में‌ हो रही उथल पुथल देख पाना और स्वयं को उससे अलग रखना चुनौति है| उसमें निर्णय भी लेने है| आते समय पत्थर साहिब गुरुद्वारे में न रूकने का निर्णय लिया और उसका खामियाज़ा भी भुगता| इस बार अधिक सावधान रहना होगा|

आज भी मौसम ऐसा है कि कहीं जाने की इच्छा नही हुई| प्रोद्युतजी के पास ही रहा| लेकिन मन फिर भी अस्वस्थ हो रहा है| मन स्वयं को कोस रहा है, इतनी दूर साईकिलिंग करने के लिए आया हुँ, इतना विश्राम ठीक नही| वैसे तो यह साईकिलिंग प्रोग्राम एक तरह से छुट्टियों का है| फिर भी उसमें भी आदत के अनुरूप मन टारगेट बनाता है; यहीं पर भी वही अपेक्षा रखता है कि आगे जाते रहना चाहिए; रूकना नही चाहिए| योजना के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए| फिर सामान्य वर्क लाईफ और छुट्टी में अन्तर ही कहाँ? खैर|

दोपहर को मौसम थोड़ा ठीक लगा तो बाहर निकलना हुआ| आज सिन्धू दर्शन स्थल जा रहा हुँ| चोगलमसर से पास ही‌ है| रास्ते में कई गोंपा भी है| यहीं एक होटल में स्थानीय थुप्का टेस्ट किया| स्थानीय भोजन में माँसाहारी भोजन अधिक है| यहाँ कुछ दिनों बाद सिंधू दर्शन महोत्सव शुरू होगा| उसकी तैयारी जोरों पर है| पीछले साल यहाँ पास ही में कालचक्र २०१४ उत्सव हुआ था| लौटते समय एक गोंपा देखा| भीतर कुछ पूजा अर्चना चल रही है| बाहरी इन्सान भी अन्दर जा कर देख सकते है| यहाँ लामाजी ने बताया कि इस गोंपा में पाली लिपी का प्रयोग होता है| उन्होने बताया कि, लदाख़ ऐसे थोड़े से स्थानों‌ में से एक स्थान है जहाँ भारत में बौद्ध संस्कृति सुरक्षित रही| वरन् बाकी‌ देश ने तो बौद्धों से दूरी बनायी| वाकई यह एक अलग ही तरिके का स्थल है| उल्लेखनीय है कि इस्लामी आक्रमण में नष्ट हुए कई संस्कृत ग्रन्थों की प्रतियाँ तिब्बती भाषा में तिब्बत में सुरक्षित रही| चोगलमसर में और एक बड़ा गोंपा है; लेकिन वह बन्द मिला| वहाँ के लामाजी 'डाउन' में‌ होते हैं, ऐसा बताया गया| महाबोधी इंटरनॅशनल इन्स्टिट्युट ऑफ मेडिटेशन भी देखा|

यहाँ हेल्थ सेंटर में कई लोग आते है| अच्छी बातचीत हुई| सभी अच्छी हिन्दी बोलते हैं| यहाँ सर्दियों में तपमान शून्य से बीस डिग्री नीचे होता है| इसलिए कई लोग 'डाऊन' में- देश के अन्य हिस्सों में- जाना पसन्द करते हैं| यहाँ की आजीविका मुख्य रूप से गर्मी के चार महिनों पर चलती है| जून से अक्तूबर के चार महिनों में लोग अधिक आजीविका प्राप्त करते हैं और उसके बाद सर्दियों के लिए खुद को तैयार करते हैं| सर्दियों में भी कुछ काम चलते हैं- जैसे याक के बालों से पश्मिना शॉल बनाना; उसके कपड़े बनाना आदि| लोगों ने बताया कि यहाँ सर्दियों में रहना हो तो नॉन वेज खाना और किसी ना किसी किस्म की शराब लेना अनिवार्य है| यहाँ लदाख़ी लोग अरक नाम की एक शुद्ध शराब बनाते हैं जो बहुत गर्मी देती है| उसे बनाने की विधि यहाँ किसी को बतायी नही‌ जाती है| याक का मांस भी गर्मी देता है| 'डाऊन' से आने के बाद भी मुझे लदाख़ में शराब या नॉन व्हेज न लेते हुए देख कर लोग चकित हुए| इसके पीछे यह कारण है कि 'डाऊन' से आनेवाले अधिकतर लोग सभी तरह के मज़े करने के लिए ही लदाख़ में आते है| ऐसे लोग किस प्रकार मज़े करते होंगे बताने की आवश्यकता नही है| लदाख़ मे राजनीतिक रूप से देश के अन्य नागरिकों के साथ कोई विवाद नही है; पर पीछले कुछ सालों में पनपे टूरिजम के कारण कुछ तनाव जरुर बने हैं|

आज मात्र दस किलोमीटर ही साईकिल चलाई| आगे की यात्रा के बारे में दुविधा बनी हुई है| अभी कुछ भी कह पाना मुश्किल है| लोग बताते हैं कि यहाँ का मौसम मुंबई की फॅशन जैसा है| कभी भी बदल सकता है| ठीक भी हो सकता है| लेकिन एक बात पक्की कि मै यहाँ आया सहजता से घूमने के लिए हुँ| एक सीमा के आगे जाने के लिए मेरी तैयारी नही है| किसी भी किमत पर या जान की बाज़ी लगा कर या चुनौति स्वीकार कर जाने की मेरी इच्छा नही है| मुझे कुछ प्रूव्ह करना नही है वरन् बस एंजॉय करना है|‌ अगर मेरी तैयारी के भीतर जाना सम्भव होगा; तो जाऊँगा| नही तो शायद नही जा पाऊँगा| आते समय यह ध्यान में था ही कि लदाख़ में मौसम और सड़कों की स्थिति के सम्बन्ध में कुछ भी हो सकता है| कभी भी एव्हलाँच या लँड स्लाईड से सड़क बन्द हो सकती है| अत: जो मिल जाएगा, उसी को मुकद्दर समझना है और जो खो जाएगा उसे भुलाते जाना है यह साफ था| देखते हैं|
सिन्धू दर्शन स्थल
लामाजी
बड़ा सा पर बन्द गोंपा


यह एक छोटे नगर जितना बड़ा अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है|


हिमालय समान ऊँचाई के बुद्ध!
एक पुस्तक में तिब्बती और संस्कृत भाषा|



लदाख़ी संस्कृति की झलक- 



2 comments:

  1. बहुत खूबसूरत नजारे ।

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  2. You've nailed it.. Not many want to confront themselves, look within and take the entire responsibility/blame on their own shoulders.. When pushed into a corner, one often looks for some support outside... When you're alone, adversities bring the best out of you.. nay.. they don't remain adversities anymore but become opportunities to be thanked to have been provided.... Keepitup...

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