Saturday, June 30, 2018

एटलस साईकिल पर योग- यात्रा भाग १३: यात्रा समापन (अंतिम)

१३:‌ यात्रा समापन (अंतिम)
 

योग साईकिल यात्रा २१ मई को सम्पन्न हुई| ग्यारह दिनों में लगभग ५९५ किलोमीटर साईकिल चलाई और ग्यारह जगहों के योग साधकों से मिलना हुआ| मेरे लिए यह बहुत अनुठा और विलक्षण अनुभव रहा| इस यात्रा पर अब संक्षेप में कुछ बातें कहना चाहता हूँ| शुरुआत करता हूँ आने के बाद परभणी में निरामय की टीम और परभणी के योग साधकों के साथ हुई चर्चा से| परभणी के निरामय की टीम को मैने मेरे हर दिन के अनुभव कहे| हर जगह पर मिले योग साधकों के बारे में मेरा निरीक्षण बताया| हालांकी सिर्फ एक ही दिन मिलने से बहुत कुछ जाना नही जा सकता है| लेकीन चूँकी मेरा सामाजिक संस्था के क्षेत्र में अनुभव रहा है, कई बातें मैने हर जगह पर देखी| हर जगह के साधक और टीम या टीम का अभाव भी देखा| ये निरीक्षण सिर्फ मेरी एक प्रतिक्रिया के तौर पर देखिए, इसे एक ठोस राय मत मानिए, ऐसा भी मैने कहा| हर जगह बहुत से लोग रोज मिलते रहे| लोगों ने बहुत सारी बातें भी कहीं| लेकीन जो कहा क्या वही वास्तव है, यह भी मुझे देखना था| जैसे चर्चाओं में कई लोग कहते थे कि हम इतने बारीकी से और इतने नियमित रूप से योग करते हैं| जब भी कोई ऐसा कहता, तब मै उसके शरीर को देखता| हमारा मन झूठ बोल सकता है, लेकीन शरीर कभी झूठ नही बोलता| कई जगहों पर शरीर ने ऐसी बातों को प्रमाण नही भी‌ दिया| तब मै समझता था कि जब कई लोग सुनने के लिए होते हैं, तो कुछ इन्सान अन्यथा जो नही कहेंगे, वैसी बातें भी कह जाते हैं| खैर| इसलिए मेरी यात्रा और मेरे सभी अनुभवों के बारे में मैने मेरी प्रतिक्रियाएँ निरामय टीम को दी| हर जगह का कार्य, वहाँ के कार्यकर्ताओं की‌ समझ, उनके कार्य की गहराई आदि पर मेरा जो कुछ छोटा सा निरीक्षण रहा, वह मैने उन्हे कहा| साथ में यह भी‌ बताया कि मैने इस यात्रा में क्या किया और क्या मै कर नही सका| जैसे चर्चा का संचालन करना या सम्भाषण करना मेरा गुण नही है| इसकी कमी एक- दो जगहों पर मुझे महसूस हुई|‌ कहीं कहीं पर थकान के कारण मेरा सहभाग उतना अधिक नही रहा| यह भी निरामय टीम को बताया|





यात्रा के जो उद्देश्य थे वह कुछ हद तक जरूर पूरे होते नजर आए| जैसे इस योग कार्य को सामने लाना, लोगों तक पहुँचाना, जो लोग अच्छा कार्य कर रहे हैं, उनकी जानकारी इकठ्ठा करना, कार्यकर्ताओं से संवाद करना आदि| योग- प्रसार भी होता रहा| लेकीन इसके अलावा इस यात्रा में एक जो सबसे अलग परिणाम मिला वह यह कि हर जगह पर काम करनेवाले अलग- अलग प्रणालियों के साधकों में इस चर्चा के निमित्त से सम्पर्क हुआ और वहाँ की टीम को मजबूती मिली| क्यों की बहुतसी जगहों पर ऐसे साधक चर्चा में आए जिनमें से कई एक- दूसरे को पहली बार ही मिल रहे थे| और साधकों का काम जानने में मैने जो रस लिया, उन्हे जो सुना, उससे उन्हे भी प्रेरणा मिली और एक तरह से पॉजिटिव स्ट्रोक मिला| जालना के कार्यक्रम में कई साधकों ने स्वयं कहा कि वे आगे भी योग करते रहेंगे और उसका प्रसार भी करेंगे| यह इस यात्रा का एक परिणाम रहा| दूसरी बात यह होती है कि यह एक तरह से बीज बोने जैसा काम था| जगह जगह पर मैने बीज बोए, बीज मिट्टी में डाले| जाहीर है सभी जगहों पर परिणाम नही‌ आएंगे| स्वाभाविक भी है| लेकीन कुछ जगहों पर जरूर आ सकते हैं| जैसे आज मै योग कर रहा हूँ या साईकिल चला रहा हूँ, तो किसी से प्रेरणा लेकर ही ना| ऐसा ही कोई व्यक्ति मेरे लिए भी निमित्त रहा, माध्यम रहा जिस कारण मै इस पथ पर आया| वैसे ही कुछ थोड़े लोग जरूर होंगे जिन्हे प्रेरणा मिलेगी|





एक बात यह रही कि मैने पूरी यात्रा में किसे भी साईकिल चलाने के लिए बिल्कुल नही कहा| लेकीन हर जगह लोग साईकिल चलाते दिखे| अब यह कहना मुश्कील है इनमें से कितने लोग वाकई साईकिल चलाएंगे या आगे भी चलाते रहेंगे| उत्साहवश बहुत से लोग कहते हैं कि आज से मै भी चलाता हूँ| पर क्या वे वाकई चलाते हैं या वह कार्य- योग हो या योग प्रसार हो- करते हैं, यह वे ही तय कर सकते हैं| मै उन्हे यह सोचने के लिए एक निमित्त या माध्यम जरूर बना| मेरे बारे में कई गलतफहमियाँ भी हुईं| जैसे मुझे योग- गुरू और योग शिक्षक कहा गया| मै सिर्फ योग छात्र हूँ| इससे अतिरिक्त मै नही हूँ| दूसरी बात यह कि मैने जो कुछ यात्रा की, वह भी होती गई| उसमें मेरा कुछ भी नही है| जैसे साईकिल चलाने की प्रेरणा मिली तो भी किसी और से| अच्छी साईकिल कैसे चलानी चाहिए, यह भी किसी ने सीखाया| और इस साईकिल यात्रा का अमृत- जिसके बलबूते पर यह साईकिल चल सकी- वो एनर्जाल भी बाहर का! तो इसमें‌ मेरा जैसा कुछ है ही नही| मै तो सिर्फ एक निमित्त; एक माध्यम बना रहा| खैर|





लेकीन साईकिल का माध्यम कितना सक्षम है, यह जरूर देखने को मिला| अगर यही विषय मै कोई फोर व्हीलर पर यात्रा कर उठाता, तो बहुत कम प्रतिसाद मिलता| साईकिल का एक सम्बन्ध भावना से जुड़ता है| बुद्धी या विचार तो हमारे व्यक्तित्व की बाहरी पर्त है, लेकीन भावना या भाव और गहरें जाते हैं| साईकिल होने के कारण लोगों में वह भाव जगा| मस्तिष्क के बजाय हृदय तक यह भाव पहुँचा और लोग आते रहे, मिलते रहे और जुड़ते रहे| कई जगहों पर तो बड़े बड़े पोस्ट पर काम करनेवाले डॉक्टर और अन्य लोग भी मुझे मिलते रहे, चर्चा में आते रहे, मेरा स्वागत करते रहे| इसलिए यह यात्रा साईकिल के माध्यम के लिए तो सफल ही रही|


निरामय की दृष्टि से देखे तो उनके साधकों के द्वारा सीखाए गए साधकों का काम इसमें मुख्य रूप से देखना था| परभणी के बाहर निरामय से जुड़ा या एक तरह से निरामय से बढ़ा हुआ कार्य मुख्य रूप से देखा गया| कई जगहों पर निरामय टीम के डॉ. रामपूरकर सर, प्रकाश बुजुर्गे जी, डॉ. धीरज देशपांडे जी आदि के नाम वहाँ के साधकों ने बड़े कृतज्ञ भाव से कहे| निरामय की टीम का भी बहुत जिक्र होता रहा| इस यात्रा के सम्बन्ध में दूसरी बात यह रही कि मैने अतीत में कई संस्थाओं को देखा है; उनके काम को देखा है, ऐसा काम किस प्रकार आगे बढाया जाता है, इसका कुछ अनुभव मेरे पास है; वह मै निरामय टीम के साथ शेअर कर सका| उनके काम को और आगे ले जाने के लिए आज उपलब्ध तकनीक एवम् साधनों का कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है, यह मैने उन्हे बताया| इस यात्रा के आयोजन के साथ ही एक तरह से मेरी एक अलग तरह की सलाह निरामय टीम को मिलती रही| योग प्रसार सहित संस्था के कार्य के प्रसार और विस्तार के बारे में भी बातें हुई| खैर|





फिर परभणी के योग- साधकों से मिलना हुआ| डॉ. राहुल झांबड जी के घर पर यह कार्यक्रम हुआ| यहाँ कई वर्षों से योग- केन्द्र चलानेवाले कई वरिष्ठ योग साधक मिले| हर जगह जैसी चर्चा यहाँ पर भी हुई| परभणी में एक विशेष बात यह है कि यहाँ कई तरीके से योग करनेवाले साधक और उनके अलग- अलग सेंटर्स भी‌ हैं| लेकीन विश्व योग दिन के समारोह का आयोजन वे सब मिल कर करते हैं| उनमें अच्छा संवाद है, अच्छा सम्पर्क भी है| यह देख कर अच्छा लगा| क्यों कि मेरे निरीक्षणों में यह भी बात मैने बहुत बार देखी कि योग की इतनी अलग अलग विधियाँ आज उपलब्ध है; योग का नाम ले तो लोग कन्फ्युज हो जाते हैं- कहते है किसका योग करूँ? रामदेव जी का या सहज योग करू या अष्टांग योग करूँ? जैसे आज मेडीकल सायन्स में सुपरस्पेशालिटीज हैं, वैसी यह भी सुपरस्पेशालीटीज हैं  और कुछ हद तक तो सुपरफिशिअल स्पेशालिटीज भी हैं| लेकीन अब इनसे बचा भी नही जा सकता है| आज ज्ञान का असीम भाण्डार कई रास्तों से हम तक आ रहा है| उसमें‌ बहुत से गलत जरिए भी हैं| लेकीन ऐसी स्थिति में सामान्य साधक को सम्भ्रम न हो, इसके लिए विभिन्न तरीकों से योग करनेवालों के बीच सम्पर्क और संवाद होना बहुत जरूरी है| अलग तरीकों से योग करना कभी गलत नही हो सकता है, क्यों कि उनसे साधकों की समझ भी बढ़ती है| लेकीन इसके लिए साधकों का आपस में जुड़ा होना बहुत जरूरी है| खैर|




अन्त में इस तरह यह यात्रा कुछ अर्थों में सार्थक रही, कई लोगों के लिए उपयोगी रही| व्यक्तिगत तौर पर तो मेरे लिए यह बहुत बड़ा अनुभव रहा| बहुत से साधकों से मैत्री हुई, बहुत से लोगों से जुड़ पाया| साईकिल चलाने के सम्बन्ध में पहले दो दिन जरूर कठिन रहे, लेकीन वहाँ साईकिल चला पाना एक बड़ा अनुभव रहा| सबसे बहुत कुछ प्रेरणा मिली| मेरे लिए तो यह यात्रा और उसके हर एक पल बार बार याद आएंगे. . . सबको धन्यवाद देते हुए और सबको एवम् साईकिल को भी नमन करते हुए यहाँ अब रूकता हूँ| बहुत बहुत धन्यवाद! 



अगर आप चाहे तो इस कार्य से जुड़ सकते हैं| कई प्रकार से इस प्रक्रिया में सम्मीलित हो सकते हैं| अगर आप मध्य महाराष्ट्र में रहते हैं, तो यह काम देख सकते हैं; उनका हौसला बढ़ा सकते हैं| आप कहीं दूर रहते हो, तो भी आप निरामय संस्था की वेबसाईट देख सकते हैं; उस वेबसाईट पर चलनेवाली ॐ ध्वनि आपके ध्यान के लिए सहयोगी होगी| वेबसाईट पर दिए कई लेख भी आप पढ़ सकते हैं| और आप अगर कहीं दूर हो और आपको यह विचार ठीक लगे तो आप योगाभ्यास कर सकते हैं या कोई भी व्यायाम की एक्टिविटी कर सकते हैं; जो योग कर रहे हैं, उसे और आगे ले जा सकते हैं; दूसरों को योग के बारे में बता सकते हैं; आपके इलाके में काम करनेवाली योग- संस्था की जानकारी दूसरों को दे सकते हैं; उनके कार्य में सहभाग ले सकते हैं|

निरामय संस्था को किसी रूप से आर्थिक सहायता की अपेक्षा नही है| लेकीन अगर आपको संस्था को कुछ सहायता करनी हो, आपको कुछ 'योग- दान' देना हो, तो आप संस्था द्वारा प्रकाशित ३५ किताबों में से कुछ किताब या बूक सेटस खरीद सकते हैं या किसे ऐसे किताब गिफ्ट भी कर सकते हैं| निरामय द्वारा प्रकाशित किताबों की एक अनुठी बात यह है कि कई योग- परंपराओं का अध्ययन कर और हर जगह से कुछ सार निचोड़ कर ये किताबें बनाईं गई हैं| आप इन्हे संस्था की वेबसाईट द्वारा खरीद सकते हैं| निरामय संस्था की वेबसाईट- http://www.niramayyogparbhani.org/ इसके अलावा भी आप इस प्रक्रिया से जुड़ सकते हैं| आप यह पोस्ट शेअर कर सकते हैं| निरायम की वेबसाईट के लेख पढ़ सकते हैं| इस कार्य को ले कर आपके सुझाव भी दे सकते हैं| मेरे ब्लॉग पर www.niranjan-vichar.blogspot.in आप मेरी पीछली साईकिल यात्राएँ, अन्य लेख आदि पढ़ सकते हैं| आप मुझसे फेसबूक पर भी जुड़ सकते हैं| बहुत बहुत धन्यवाद!


1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (02-07-2018) को "अतिथि देवो भवः" (चर्चा अंक-3018) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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