Thursday, June 18, 2015

साईकिल पर जुले लदाख़ भाग २- बुधखारबू- फोतुला- लामायुरू- खालत्सी- नुरला

०. साईकिल पर जुले लदाख़ भाग ०- प्रस्तावना 

१. साईकिल पर जुले लदाख़ भाग १- करगिल- मुलबेक- नमिकेला- बुधखारबू

 

३१ मई, रविवार की सुबह! मिलिटरीवालों के साथ काफी अच्छा आराम हुआ| कल के दिन पर अभी‌ भी विश्वास नही‌ हो रहा है| कल रात जवानों से काफी बातें हुई| पहले तो मन में थोड़ा डर भी था कि उनके साथ रहना है.. पर उन्होने बहुत अनौपचारिक व्यवहार किया| हाँ, सुरक्षा के नियम से सामान की जाँच हुई| मेरे पास मेरे आयडी कागज़ भी थे; पर उन्हे उसे देखने की आवश्यकता नही हुई| रात में उनकी बराक में रूकना अनुठा रहा| यह स्थान ३४०० मीटर से अधिक ऊँचाई पर है|‌ २७०० मीटर से एक ही‌ दिन में‌ ३४०० मीटर पर आने से ठण्ड तो जरूर लगी|‌ लेकिन साँस की कोई तकलीफ महसूस नही हुई| शरीर अधिकांश रूप से इस ऊँचाई के लिए अनुकूल होता गया| रात में बराक में‌ ही जवानों ने खाना बनाया| साथ मे बुखारी भी जल रही थी| वह शाम बहुत यादगार रही| सभी ने बहुत हौसला बढाया; अच्छा ख्याल रखा| उनके अनुभव भी शेअर किए|‌ जाड़े में यहाँ बहुत बरफ गिरती है| फिर भी कँप इसी स्थान पर चलता है| जाड़े में इतनी बरफ होती हैं कि बाहर जानेवाली साँस भी जमती है| यहाँ मिलिटरी के लिए काफी इन्तजाम किए हुए थे| उनका अलग राशन, इन्धन, गर्मी की प्रणालि सब आता है| फिर भी मेजर- लेफ्टनंट जैसे हौदे के अधिकारियों के लिए व्यवस्था कुछ साधारण सी लगी| यह नही‌ भूलना चाहिए कि यह एक दुर्गम क्षेत्र है और झोजिला हाल ही में अर्थात् बीस दिन पहले दस मई को खुला है| मनाली रोड़ खुलने के अभी तो आसार भी नही दिख रहे है| इसीलिए यहाँ चीजों की कुछ कमी होना स्वाभाविक है| मिलिटरी का 'वेट कँटीन' भी दिखा| मिलिटरी की दुनिया अन्दर से देखने से स्वयं को धन्यभागी मान रहा हुँ|

ऊँचाई बढ़ने के बावजूद ठीक नीन्द लगी| लेकिन सुबह तीन बजे आँख खुल गई| सवेरा होने में‌ अभी एक घण्टा है| धीरे धीरे जवान उठते गए| उनके ही‌ साथ मै भी तैयार हुआ| मिलिटरी के कँप में एक जगह 'कन्धों से मिलते हैं कन्धे कदमों से कदम मिलते हैं' भी सुनाई दिया! सुबह चारों ओर बर्फाच्छादित पहाड़ दिख रहे हैं| वाकई‌ मै आज किस अनोखे स्थान पर हुँ...

कल सत्तर किलोमीटर चलाने से विश्वास हो गया है कि मै आज भी करीब उतना ही चला सकता हुँ| आज सबसे पहले फोतुला पार करना है| फोतुला यह श्रीनगर- लेह सड़क का सर्वोच्च बिन्दु है| ऊँचाई लगभग ४१०० मीटर है| आज सत्तर किलोमीटर होते हैं तो कल लेह पहुँचा जा सकता है| उससे काफी उत्साह लग रहा है| कल की थकान महसूस नही हो रही है| जब ऐसे माहौल में हुँ, तो थकान भला कैसे महसूस होगी? सुबह जवानों ने आर्मी की रोटी खिलाई| बाद में कॅफेटेरिया में मॅगी भी खिलाई| यहाँ अभी मॅगी पर बॅन नही है| वरन् मॅगी यहाँ मेरे लिए बहुत उपयोगी है! जवानों ने सब तरह से आतिथ्य कर मुझे विदा किया| मेरे पास उन्हे देने के लिए कुछ नही है| कुछ चॉकलेट और काजू आदि है; वही दिया| उनमें से कुछ लोग अब कॉन्वाय में निकल रहे हैं...

यहाँ‌ से अब पहला लक्ष्य फोतुला पार करना है| यहाँ से फोतुला पंधरा किलोमीटर के करीब है| लेकिन फोतुला पार करने में समय लगेगा| उसके पहले आनेवाले किसी गाँव में दोबारा नाश्ता करना होगा| साईकिलिंग कई मायनों‌ में टेस्ट क्रिकेट समान है| जैसे बल्लेबाजी में पहले घण्टे में गेन्दबाजों का सम्मान करना पड़ता है; नई गेन्द घूमती है; स्विंग होता है; उसी प्रकार पहले घण्टे की साईकिलिंग कुछ धिमी‌ होती है| रात भर सोया शरीर कुछ सख्त होता है| धीरे धीरे वह चलने की धारा में ढल जाता है| पैर आसानी से चलने लगते हैं| धीरे धीरे साईकिलिंग कुछ आसान होती है| बुधखारबू के आगे पहला गाँव हंसाकोट है, पर वहाँ होटल नही है| आगे बढ़ा| रास्ते में मिलिटरी का बहुत बड़ा कॉन्वाय मिला| कई जवानों को सर झुकाकर और सॅल्युट कर अभिवादन किया| वे भी‌ उत्तर में सॅल्युट कर रहे हैं| वाकई ऐसे अनुभव शब्दों में कैसे बताएँ..

फोतुला की दूरी पता नही चल रही‌ है| लेकिन क्या नजारा है| पहाड़ में‌ दूर दूर तक बस्ती दिखाई दे रही है| वहाँ भेड़े घूम रही हैं| दो पहाड़ों के बीच से बहता पानी! किस्मत!!! करीब डेढ़ घण्टा चलने के बाद एक छोटा सा कस्बा आया|‌ यहीं‌ एक होटल है|‌ कम से कम चाय तो मिलेगा ही| देखा तो चाय तो था ही; आमलेट भी मिल रहा है| एक आमलेट खाया और एक पार्सल लिया| यह लदाख़ की एक खासियत है|‌ कितना भी छोटा दुकान हो; उसमें सभी चीजें मिलेगी| सम्भवत:‌ अण्डे होंगे तो आमलेट बन जाएगा| मॅगी, चिप्स और मूँगफली की चिक्की (गूड़पापड़ी) भी है! झोजिला कुछ ही‌ दिन पहले खुला होने के कारण शायद नया स्टॉक है|

अच्छे से नाश्ता कर आगे बढ़ा| अब फोतुला पार कर के लामायुरू तक भोजन नही मिलेगा| आगे बढ़ते ही फोतुला की दूरी दिखाई दी| मात्र ग्यारह किलोमीटर! और आगे तीन किलोमीटर तक साईकिल चलायी जा सकी|‌ अब आगे के आँठ किलोमीटर पैदल पार करने होंगे|‌ वह गाना याद आ गया- वहाँ‌ ना हाथी ना घोड़ा है बस पैदल ही जाना है! पैदल चलने के बाद संगीत शुरू किया| “जहाँ दूर नजर दौडाए आज़ाद गगन लहराए...”

चलने की कोई जल्दबाज़ी नही की| वरन् कुछ धीमे और टहलते टहलते ही‌ जाता रहा| क्यों कि अब मै लगभग ३८०० मीटर की ऊँचाई पर हुँ| यहाँ अगर समय बिताता हुँ तो आगे और ऊँचे "ला" के लिए मुझे सहायता होगी| इसलिए बिल्कुल पैरों की प्राकृतिक गति से बढ़ता गया| फोटो खींचने के बहाने से रूकता रहा|‌ साँस सामान्य ही है| लेकिन नजारे का क्या कहूँ! गाड़ी से जाना एक बात है और साईकिल से जाना बिल्कुल ही‌ दूसरी बात है! अब मुझे यह राष्ट्रीय राजमार्ग एक हायवे जैसा लग ही नही रहा है| मै तो उसे गाँवों और कस्बों‌ को जोड़नेवाली सड़क के तौर पर देख रहा हुँ|‌ और जैसे ही रफ्तार कम करते हैं; गहराई बढ़ती है| गाड़ी से न दिखनेवाले दृश्य दिख रहे हैं| चरवाहे भेडों को पहाड़ के अन्दर तक ले जा रहे हैं| जलधाराएँ पहाड़ से बिलखती नीचे आ रही हैं| दूर कहीं‌ बरफ दिख रही है...

आठ किलोमीटर पैदल जाने में‌ दो घण्टे लगे| ऐसे धीरे जाते समय बहुत छोटे लक्ष्य बनाता गया| एक बार व्ही व्ही एस लक्ष्मण ने एक साक्षात्कार में कहा था की अन्तिम क्रम के बल्लेबाजों के साथ साझेदारी करते समय उसका एक फॉर्म्युला होता था| वे बहुत छोटे छोटे लक्ष्य बनाते थे| जैसे अगले दो ओव्हर आउट नही होना; अगले आधे घण्टे में पाँच रन बनाना| उसी को ध्यान में‌ रख कर छोटे छोटे कदम उठाता गया|

फोतुला के पाँच किलोमीटर पहले भी चाय मिली| बिस्कुट भी खाए| आगे ठण्ड बढ़ने लगी| जीवन में पहली बार चार हजार मीटर की‌ ऊँचाई पर जा रहा हुँ| फोतुला! यहाँ पर पार्सल लिया आमलेट खाया| अब बड़ी‌ ढलान मिलेगी| वहाँ‌ से लामायुरू तक बड़ी‌ ढलान है| लामायुरू में कई पर्यटकों ने रोका| एक दक्षिण भारतीय अंकल बड़े उत्साहित हुए| वे भी‌ साईकिल चलाते है|‌ मुझे साईकिल पर आते देख उन्हे बड़ी खुशी हुई| आप भी साईकिलिंग कर सकते हैं, ऐसा विश्वास उन्हे दे कर आगे बढ़ा| कुछ पर्यटकों ने मेरे साथ सेल्फी भी खींची! लामायुरू में गोन्पा देखने का लक्ष्य नही है| लामायुरू में पर्यटकों का जमावड़ा देख लगा मानो मै लेह पहुँच ही गया| एकदम से माहौल बदल गया| कुछ दूरी पर जा कर फिर से शान्ति छा गयी|‌ आगे बढ़ा| ढलान जारी रही|‌ मूनलँड का भी नजदिक से दर्शन हुआ| वाकई कुदरत के करीब जाने के क्या क्या लाभ है! लेकिन इस मूनलँड को भी शहर की फटकार पड़ रही है|

अब सिन्धू नदी की प्रतीक्षा है| खालसी से सिन्धू नदी इसी सड़क के साथ आएगी| लामायुरू के बाद भी ढलान जारी रही| यदा कदा थोड़ी सी चढाई आती; पर ढलान जारी रही|‌ यहाँ रास्ता एक बहुत सँकरी घाटी से गुजर रहा है| खालसी नदी के किनारे होने के कारण न्यूनतम ऊँचाई पर होगा और इसलिए ढलान वहाँ तक जारी रहेगी| लेकिन क्या रमणीय घाटी है! अब तो निरन्तर नीचे उतरने का डर लग रहा है| एक पल के लिए लगा कि क्या मै रास्त भटक गया हुँ? पर कोई सूचना पट्ट तो नही आया है| बीच में‌ आवाजाही भी नही दिख रही है| एक पहाड़ी‌ नदी आ कर सड़क से जुड़ी|‌ जरूर यह सिन्धू से मिलने जा रही है.. आगे जा कर सूचना पट्ट मिला| यही सही रास्ता है| अब जल्द ही खालसी और सिन्धू का दर्शन होगा.. यहीं‌ पर बटालिक से आनेवाली सड़क भी मुख्य राजमार्ग से जुड़ेगी|

सिन्धू नदी का पहला दर्शन! तिब्बत से आनेवाली रमणीय धारा! अब लेह तक अधिकांश यात्रा इसी के साथ होगी| खालत्सी‌ गाँव खालसी से थोड़ा आगे है| यहाँ पर भी पूरा पर्यटकों का जमावड़ा है| चाय पी कर आगे बढ़ा|‌ यदि कल लेह पहुँचना है तो मुझे आज खालत्सी से और आगे बढ़ना होगा|‌ खालत्सी से लेह ९७ किलोमीटर है| आज नुरला रूकूँगा| नुरला में गेस्ट हाऊस है यह जानकारी मिली| नुरला अभी और बारह किलोमीटर आगे है|‌ अभी शाम के साढे पाँच बजे है; तो रोशनी की कोई समस्या नही है|‌ और तेज़ चढाई‌ भी नही है| सिन्धू नदी के रौरव के साथ आगे की यात्रा जल्द ही पूरी हुई| नुरला के बाद अगला गाँव चौबीस किलोमीटर दूर है- ससपोल| वहाँ आज नही जा सकूँगा| इसलिए नुरला ही ठीक है| नुरला में होटल तो महंगे हैं; पर होम स्टे मिल सकता है| और यही हुआ| एक सज्जन से थोड़ी‌ बात की| थोड़ी‌ ही देर में होम स्टे मिल गया| लदाख़ में कई गाँवों में इस प्रकार रूकने का इन्तजाम मिलता है| आज पहली बार किसी लदाख़ी घर में ठहर रहा हुँ| लदाखी गाँव छोटे छोटे होने पर भी बड़े सम्पन्न है|‌ घर भी पक्के और बड़े| साथ में माने और प्रेअर व्हील तथा प्रेअर फ्लॅग भी‌ है| घर में दो नन्ही सी प्यारी परियाँ मिली| घर के उपर के कमरे में रूकने की व्यवस्था हुई| सिन्धू नदी की पुलकित करनेवाली गूँज स्पष्ट सुनाई दे रही‌ है| आज भी अच्छी साईकिलिंग चला पाया| बुधखारबू से करीब ६५ किलोमीटर आया हुँ| लेकिन एक बात अवश्य है कि फोतुला के बाद करीब पच्चीस किलोमीटर की ढलान मिलने के बावजूद भी अधिक नही जा पाया हुँ| शायद दोपहर फोतुला के बाद कुछ खाना खाया नही है; उसकी वजह से ऊर्जा स्तर कुछ कम है| शाम को भी कुछ खाने की इच्छा नही हुई| साथ में बिस्कुट हैं; पर खाए नही गए|

जहाँ दूर नजर दौडाए.. आज़ाद गगन लहराए लहराए लहराए..
वक़्त झरना सा बहता हुआ गा रहा है यह कहता हुआ...
लामाजी
फोतुला आ रहा है!



लामायुरू



मूनलँड!
आज की साईकिलिंग का लेखाजोखा- दूरी ६५ किमी; चढाई करीब १७०० मी और ढलान २१०० मी

सिन्धू!!!





































































  

"तू मेरे साथ साथ आसमाँ‌ से आगे चल.. तुझे पुकारता है तेरा आनेवाला कल.. नई हैं मन्जिलें..  
नए हैं रास्ते.. नया नया सफ़र है तेरे वास्ते.. नई नई है ज़िन्दगी.."- सिन्धू

7 comments:

  1. मुनलैंड सच में मुनलैंड जैसा है। यहाँ पहुंचने के बाद लगता है कि अन्य किसी ग्रह पर आ गए। बहुत बढ़िया, चलते रहिए। हम भी साथ हैं।

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  2. I'm enjoying reading this as much as you're enjoying keying in your experiences.... Mast..

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  3. बहुत रोमांचक यात्रा वृतांत...

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  4. निरंजन, ऐसा लग रहा की आपके साथ साथ हम भी यात्रा कर रहे है ! शुभ कामनाए!!

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  5. सुंदत फोटु मजेदार यस्त यात्रा


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  6. आप लम्बी रेस के घोड़े हो बड़ी दूर तक जाएंगे

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