Monday, November 23, 2015

दोस्ती साईकिल से ४: दूरियाँ नजदिकीयाँ बन गई. . .


दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक 
दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक 
दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर

दूरियाँ नजदिकीयाँ बन गई. . .


पुणे की आसपास की चढाई और उतराईवाली सड़कों पर दो अर्धशतक करने के बाद काफी विश्वास मिला| अब इसी क्रम को आगे बढ़ाना है| पानशेत डॅम की सोलो राईड करने के चार ही दिन बाद वहीं पर दो मित्रों के साथ ग्रूप राईड की| फिर २ अक्तूबर को उन्ही मित्रों के साथ राष्ट्रीय राजमार्ग ४ पर भी एक राईड की| उसका उद्देश्य पचास- साठ किलोमीटर जाना जरूर था, पर मित्र की साईकिल पंक्चर होने के कारण वह नही हो पाया| उसके बजाय सिर्फ २८ किलोमीटर की एक छोटी राईड हो सकी| लेकिन उसमें भी लगभग डेढ किलोमीटर के टनेल के भीतर साईकिल चलाना हुआ| छोटे लाईटस होने का बावजूद अन्धेरे में लिप्त टनेल और उसमें से जाती सड़क| दो लेन की सड़क होने के बावजूद साईकिल चलानेवालों को हेवी ट्रैफिक से परेशानी होती है| और टनेल में तो सड़क के बाए किनारे पर कांच के छोटे टुकड़े बिखरे थे| जाहिर है, जब दुर्घटनाएँ होती हो, तब बिखरी कांच एक तरफ रख दी गई होगी| लेकिन टनेल के भीतर चलाने का बड़ा मज़ा आया| जैसे टनेल पूरा होने को आता था, धीरे धीरे रोशनी आती है| हम में से कितने लोगों ने कई बार ऐसा सपना देखा होगा- एक टनेल में से जा रहे हैं और अन्त में रोशनी मिलती है| जीवन की कुल कहानि यही तो है या यही होनी चाहिए| खैर| इसी राईड में एक छोटा घाट चलाने का भी अनुभव मिला|






थोड़े ही दिनों बाद ६ अक्तूबर २०१३ को एक बड़ी राईड की| पुणे के एक उपनगर से दूसरे छोर के उपनगर तक- डिएसके विश्व, धायरी से राष्ट्रीय राजमार्ग ४ से वाकड- चिंचवड गाँव होते हुए तळवडे इंडस्ट्रियल एरिया से चाकण के पास खराबवाड़ी गाँव| कुल दूरी लगभग ५२ किलोमीटर हुई| और समय लगा सिर्फ साढ़ेतीन घण्टे! यह यात्रा बहुत हौसला देनेवाली रही| और अब तक साईकिल से शरीर अच्छा अभ्यस्त हुआ है, इसलिए थकान भी न के बराबर हुई| अगले दिन भी उसी रूट पर वापस यात्रा की| ट्रैफिक से भरे राष्ट्रीय राजमार्ग पर भी साईकिल चलाने का अच्छा हौसला बढ़ा| और जितना समय साईकिल पर लगा- ५२ किलोमीटर दूरी के लिए कुल साढ़ेतीन- चार घण्टे; करीब उतना ही समय पब्लिक ट्रान्सपोर्ट से भी लगता है- अलग अलग बस बदल कर जाना; वेटिंग आदि जोड़ कर| और रास्ते का लुफ्त तो क्या कहें! बड़े शहरों में मुझे पसन्द न आनेवाली बातें बहुत हैं; पर कुछ थोड़ीसी बातें पसन्द भी आती हैं और उसमे हैं नए बने शानदार रास्तें! इंडस्ट्रियल एरिया में बने चौड़े दो लेन के हायवे! और अभी ये नए हैं, इसलिए ट्रैफिक भी बहुत कम है| ऐसे सुन्दर और सुनसान रास्ते पर साईकिल चलाना अद्भुत हैं! दूसरे दिन के अर्धशतक के साथ लगातार दो अर्धशतक हुए| पीछले एक माह में काफी साईकिल चलायी|




  

शहर के कारण नष्ट होने के कगार पर खड़ा हुआ छोटा तालाब 



अब साईकिल चलाने के कई लाभ मिल रहे हैं| शारीरिक लाभ तो है हि; शरीर मजबूत होता है; पेट, पैर आदि के विकार ठीक होने लगते हैं; अच्छी भूख लगती है; अच्छा पाचन होता है| शरीर में इकठ्ठा हुई अतिरिक्त ऊर्जा खर्च होती है| जैसे किसी को मुंह के छाले आए हो, तो साईकिल पर बड़ी यात्रा करते रहे तो जल्द ही वे चले जाते हैं| क्यों कि शरीर में अतिरिक्त ऊर्जा का निकास हो जाता है| इसके साथ मानसिक लाभ भी है| शरीर जैसे मन में भी ब्लाकेज होते है| वे इससे हल्के पड़ते हैं| उसके साथ ही कुदरत के पास रहने से सकारात्मक ऊर्जा बहुत मिलती है| मन में जो तनाव- परेशानियाँ पहले होती हैं, उनका भी निकास हो जाता है| और एकाग्रता भी बढ़ती है| स्वयं को एक पॉजिटिव स्ट्रोक भी मिलता है- कि मै ऐसा कर सकता हुँ| और अर्थात् सबसे बड़ी बात- एक नई दृष्टि भी मिलती है कि चीजों को ऐसे अलग तरिके से भी किया जा सकता है| उसके साथ ही इच्छाएँ भी कम होने लगती है| जैसे जिस दिन बड़ी राईड की, उस दिन और कोई इच्छा आप पर हावी नही होगी| मन शान्त रहेगा| खैर|



सुबह की ताज़गी में साईकिलिंग का मज़ा!
   
अभी तक जितनी राईडस की हैं, दो राईड छोड कर सभी सोलो राईड ही है| परिवार वाले कई बार कहते हैं कि ग्रूप में जाओ| मेरा दृष्टिकोण कुछ अलग है| मुझे लगता है कि मेरा स्वभाव अकेले जाने का ही है| शायद ग्रूप साईकिलिंग मेरे लिए इतना अनुकूल ना हो| और जो दो राईड ग्रूप में की, उसमें भी यह साबित हो गया| एक व्यक्ति की साईकिलिंग बड़ी ही युनिक बात है| आपकी साईकिलिंग इस पर निर्भर करती है कि आपका फिटनेस कितना है, वर्तमान स्टॅमिना कितना है, आप साईकिलिंग कितने नियमित या अनियमित रूप से कर रहे हैं, आप कौनसी सड़कों पर अधिकतर चलते हैं, आपकी साईकिल किस प्रकार की है, और साईकिल चलाते समय आपका डाएट और शरीर में ऊर्जा स्तर कैसा है| इसलिए साईकिल चलाना बड़ी ही individualized बात है| अगर ग्रूप में जाना हो, तो सबको साथ चलना होता है| जाहिर है, उसमें कठिनाई होगी| जो तेज़ चलनेवाला होगा, उसे कम गति से चलना होगा, जो कम गतिवाला होगा, उस पर प्रेशर बनेगा कि जल्दी चलो| और हर एक की प्रवृत्ति अलग होती है| कोई व्यक्ति पहले किलोमीटर से स्पीड पकड़ता है; कोई धीरे धीरे वार्म अप होता है| किसी को ब्रेक कम अन्तराल पर जरूरी होते हैं, किसी को ज्यादा| हर एक का स्टॅमिना, तैयारी का स्तर अलग होता है| इसलिए ग्रूप साईकिलिंग मेरे लिए मुझे जची नही| इससे बेहतर सोलो साईकिलिंग ही लगी जिसमें अपने स्वाभाविक तरिके से जाया जा सकता है| इसलिए बाद में अधिकतर राईडस ग्रूप की बजाय अकेले ही की| और सुरक्षा की दृष्टि से मुझे कुछ भी आवश्यकता नही लगी| और रही बात पंक्चर आदि समस्याओं की, उसके लिए मै धीरे धीरे सीखता गया| मुझे तो लगता है कि ग्रूप में रहने के बजाय अकेले चलाने से ही कई बातें सीखता गया| हालाकी कुछ बातें ग्रूप में ही‌ अच्छी सीखी जा सकती हैं| और उसका अहसास मुझे अगले साल हुआ जब परभणी के ग्रूप के साथ साईकिलिंग की| खैर



. . जैसे ही साईकिल चलाने का विश्वास बढ़ रहा है, अब आगे की यात्रा के बारे में सोच रहा हूँ| अब इतनी यात्राओं के बाद डिएसके की चढान भी साईकिल पर बैठ कर पार कर रहा हूँ| हालाकि बीच में दो बार थोड़ा रूकना पड़ता ही है| लेकिन सुधार भी अच्छा है| अब सोच रहा हूँ सिंहगढ़ जा कर देखता हूँ| अगर डिएसके का क्लाइंब साईकिल पर पूरा कर पाता हूँ, तो सिंहगढ़ भी जाना चाहिए| तब पता लगेगा|



अगला भाग ५: सिंहगढ़ राउंड १. . .

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-11-2015) को "रास्ते में इम्तहान होता जरूर है, भारत आगे बढ़ रहा है" (चर्चा-अंक 2170) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत बढिया, सुप्रभात

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आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!