Tuesday, December 1, 2015

दोस्ती साईकिल से ७: शहर में साईकिलिंग

दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक
दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक
दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर
दोस्ती साईकिल से ४: दूरियाँ नज़दिकीयाँ बन गईं. . . 
दोस्ती साईकिल से ५: सिंहगढ़ राउंड १. . . 
दोस्ती साईकिल से ६: ऊँचे नीचे रास्ते और मन्ज़िल तेरी दूर. . . 

शहर में साईकिलिंग  
१९ अक्तूबर को ६३ किलोमीटर साईकिल चलायी थी| उसमें बहुत अधिक चलना भी हुआ| बड़ी राईड के बाद अक्सर यह होता है की कभी कभी अगली‌ राईड की इच्छा चली जाती है| बड़ी राईड में शरीर के साथ मन भी थक जाता है| इसलिए तुरन्त कोई बड़ी राईड नही की‌ जा सकी| उसके बाद कुछ दिनों का गैप भी आया| किसी भी काम में यही होता है| जैसे एक्सरसाईझ- हम कुछ दिन नियमित रूप से करते हैं, फिर अचानक लय टूट सी जाती है| कुछ दिनों का गैप आता है| किसी ना किसी वजह से ऐसा हो जाता है|





ऐसे में हमें यह ध्यान देना होता है कि, गैप आती है तो आए, हम अपना प्रयास जारी‌ रखेंगे| इसलिए गैप आने पर भी‌ साईकिलिंग चालू रखी| छोटी‌ छोटी राईड करता रहा| लेकिन हर रोज नही चलाता गया| हर रोज चलाने में कठिनाई यही आती थी कि, आसपास की सभी सड़कें देखी थी| उन पर घूम चूका था| इसलिए अब फिर उसी सड़क पर चलाने में मज़ा नही आता था| मज़ा तो सड़क का नही, वरन् साईकिल चलाने का होता है, यह बात उस समय ज़ेहन में थी ही नही! और दूसरी दिक्कत यह भी थी कि शहर की ट्रैफिक में चलाना बड़ा कठिन लगा| सुबह का थोड़ा समय छोड कर पूरे समय ट्रैफिक| और जैसी गैप बढ़ती है, वैसे साईकिल पर राईड करना कठिन भी होता जाता है| मन तैयार ही नही होता है| इसलिए कुछ दिन साईकिल खड़ी रही| मात्र एक- दो किलोमीटर तक ही चलाता रहा| जाड़े के दिनों में सुबह जल्दी निकला भी कठिन लग रहा है|

इस दौरान इंटरनेट पर साईकिलबाजों के अनुभव पढ़ना जारी रहा| उससे भी प्रेरणा मिलती ही रही| आखिर जब रहा नही गया, तब साईकिल उठायी| पुणे जैसे शहर में काम के लिए जाते समय भी साईकिल का प्रयोग किया| और यह भी बड़ा अच्छा अनुभव रहा| पुणे जैसे महानगर के एक सीरे से दूसरे सीरे तक साईकिल चलायी| पहले जब राष्ट्रीय राजमार्ग पर साईकिल चलायी थी, तब भी लॅपटॉप साथ में लिया था| इस बार भी कुछ सामान ले कर गया| बीस किलो तक का सामान रखा| मज़े की बात यह लगी की जाना और आना मिला कर पचास किलोमीटर सहजता से गया| पुणे के डिएसके विश्व- धायरी इस सीरे से दूसरी तरफ के विश्रांतवाडी की ओर| बीस किलो वजन लिए भी डिएसके विश्व की चढाई चढ पाया| और दूसरी मज़े की बात यह कि पब्लिक ट्रान्सपोर्ट से जाता तो जितना समय लगता, उतना या उससे कम ही समय लगा| और ट्रॅफिक की लम्बी कतार में से जैसे मोटर साईकिल आगे जा सकती है, वैसे ही साईकिल भी कारों को पीछे छोडती‌ हुई आगे गई! और शहर में साईकिल चलाते समय भी अलग किस्म की प्राकृतिक सुन्दरता दिखाई देती है!

अब साईकिल चलाना इतना आसान बन गया है कि उसे कहीं भी चला सकता हूँ| और जैसे पीछली राईड में हुआ, जहाँ साईकिल चलाना कठिन हो, वहाँ भी बड़ी दूरी पैदल चल कर भी पार की जा सकती है| पुणे में ऐसी तीन राईड हुई| दो अर्धशतक उसमें हुए| अब अर्धशतक लगाना बहुत आसान हो गया है| अर्धशतक लगाना अब एफर्टलेस लग रहा है| लेकिन बीच बीच में अन्तराल आने से थोड़ी कठिनाई भी होती है| और दूसरे शतक का इन्तज़ार भी है!

दिसम्बर में पानशेत डॅम के रास्ते पर ही और एक राईड की| एक हप्ते के बाद कर रहा हूँ, इसलिए पचास किलोमीटर का ही लक्ष्य रखा| जाते समय कुछ भी कठिनाई नही हुई, डेढ घण्टे में पच्चीस किलोमीटर दूरी पार की| लेकिन आते समय बुरा हाल हुआ| पच्चीस किलोमीटर के लिए लगभग तीन घण्टे लगे| यह एक तरह से rustiness था| क्यों कि मै नियमित रूप से साईकिलिंग नही कर रहा हूँ| एक बड़ी राईड की आठ- दस दिनों का गैप| एक राईड से शरीर को जितना टेंपो और मूमेंटम मिलता है, वह इतने दिनों में चला जाता है| इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ा| मात्र ५१ किलोमीटर की राईड के लिए पाँच घण्टे लगे| संयोग से इसी राईड के साथ पहले १००० किलोमीटर भी पूरे हो गए|

अब भी बड़े राईडस अच्छे ढंग से नही कर पा रहा हूँ| और जितने नियमित रूप से किए जाने चाहिए, नही कर पा रहा हूँ| यह पहेली कुछ अजीब है| यह कुछ ऐसा है- आप जितनी अधिक बड़ी राईडस करेंगे, उतना ही वह सरल होता जाएगा| लेकिन उसके पहले आपको कम से कम पाँच- छह बड़ी राईडस ऐसी ही करनी होगी- जो अच्छी खासी तकलीफ देगी- और यही कठिन होता है! इससे बाहर निकलना बड़ा कठिन होता है| लेकिन प्रयास जारी रखूँगा| मात्र पाँच महिनों में १००० किलोमीटर पूरे हो गए| दिखने में यह बड़ा अच्छा दिखेगा, लेकिन असल बात यह है कि इन दिनों में मैने मात्र २० दिन राईडस की (१० किलोमीटर से कम की राईडस छोड कर जिन्हे मैने नही गिना)| अर्थात् सिर्फ बीस दिन ही साईकिल चलायी| एकसौ पचास दिनों में सिर्फ बीस दिन| इसलिए इसमें बहुत कुछ सुधार किया जा सकता है|

अच्छी बात यह भी है कि अनियमित ही सही लेकिन योग- प्राणायाम कर रहा हूँ| उसके साथ छोटी १०० जंप्स और बड़ी १५ जंप्स भी शुरू की है जिसके कारण अभी के राईड के बाद पैरों में दर्द नही हुआ जो पहले अक्सर होता था| इसके साथ और भी कुछ करना है- जैसे रनिंग या स्विमिंग| उससे भी साईकिलिंग में काफी मदद मिलेगी| ये सब चीजें साईकिलिंग को काँप्लीमेंट करती है| शरीर और सक्षम हो जाता है| नवम्बर के अन्त में एक अर्धशतक और दिसम्बर के पहले हप्ते में‌ दो अर्धशतकों के बाद फिर साईकिल रूक सी गई| चलाने का मौका ही नही आया| इस लिए २०१३ वर्ष में साईकिलिंग यही समाप्त हो गई|


पानशेत रोड़ पर नजारा



कई बार हम ऐसी गलती करते हैं| यदि हमारा टारगेट चालिस मिनट व्यायाम करना है, तो हम या तो चालिस मिनट व्यायाम करते हैं, या करते ही नही| जैसे दस सूर्यनमस्कार| करेंगे तो दस सूर्यनमस्कार करेंगे नही तो एक भी नही| ऐसी ही मेरी गलती होती थी| उसके बजाय दृष्टिकोण यह होना चाहिए कि चलो, चालिस मिनट व्यायाम का मौका न हो, तो बीस मिनट ही सही| वह भी अवसर ना हो, तो दस मिनट प्राणायाम ही सही| या साईकिल की लम्बी राईड ना हो तो एक दस किलोमीटर की राईड ही सही| लेकिन मन छोटे से सन्तुष्ट नही होता है और बड़े की ही ज़िद करता है! खैर| २०१३ वर्ष समाप्त होते समय साईकिल की दुनिया का द्वार खुल सा गया है!

अगला भाग ८: सिंहगढ़ राउंड २!

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (02-12-2015) को "कैसे उतरें पार?" (चर्चा अंक-2178) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत शानदार। इस पर्यावरणोन्मुखी गतिविधि को हम सब को अपने जीवन में उतारने की जरुरत है।

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आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!