Thursday, December 17, 2015

दोस्ती साईकिल से १०: एक चमत्कारिक राईड- नर्वस नाइंटी!


दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक
दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक
दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर
दोस्ती साईकिल से ४: दूरियाँ नज़दिकीयाँ बन गईं. . . 
दोस्ती साईकिल से ५: सिंहगढ़ राउंड १. . . 
दोस्ती साईकिल से ६: ऊँचे नीचे रास्ते और मन्ज़िल तेरी दूर. . . 
दोस्ती साईकिल से ७: शहर में साईकिलिंग. . . 
दोस्ती साईकिल से ८: सिंहगढ़ राउंड २! 
दोस्ती साईकिल से ९: दूसरा शतक. . . 


एक चमत्कारिक राईड- नर्वस नाइंटी!


८ फरवरी को दूसरा शतक होने के बाद कुछ दिन विराम आया| छोटी दूरी तक साईकिल चलाने की इच्छा नही हुई| इन दिनों मुझे छोटी पर नियमित राईडस का महत्त्व भी पता नही था| इसलिए विचार बड़ी राईडस का ही करता था| दिनों दिन डे- ड्रिमिंग चलता| शीघ्र ही अगली यात्रा की योजना बन गई| समन्दर का बड़ा आकर्षण मन में है| इसलिए सोच रहा हूँ कि समन्दर के तट तक साईकिल चलाऊँ| पुणे से कोंकण में दिवे आगार तक जाने की योजना बनायी| मेरे घर से करीब १६० किलोमीटर दूरी है| पहले १२१ और ११२ किलोमीटर चलाने के कारण १६० किलोमीटर करने का हौसला है| और इस राईड में मुझे घाट उतर कर कोंकण में जाना है| इसलिए करीब २० किलोमीटर की उतराई भी मिलेगी| इंटरनेट से सारी जानकारी जुटायी और तैयार हुआ|

२३ फरवरी २०१४| इस बार सुबह होने के पहले ५.३० बजे ही बाहर निकला| पहली बार एक इंडिकेटर लाईट का प्रयोग किया| साईकिल पर बोतल लगाने के लिए एक छोटा स्टँड भी लगाया है| सुबह की घनी ठण्ड| थोड़ी ही दूर जाते ही बोतल गिरी| फिर उसे बैग में ही रखा| अन्धेरे में ही राष्ट्रीय राजमार्ग ४ पर साईकिल चलाना शुरू किया| एक इंडिकेटर रखा है और एक टॉर्च जैसा लाईट भी लिया है| लेकिन जल्द ही ये दोनो पर्याप्त नही साबित हुए| करीब डेढ घण्टे तक अन्धेरे में ही साईकिल चलायी| हायवे पर चलाते समय दिक्कत आयी, लेकिन आगे और पीछे के वाहनों की रोशनी भी थी| बारह किलोमीटर बाद हायवे छोडा तब मुश्किल बढी, क्योंकि अब रोशनी बिल्कुल ही कम है| और बीच में तेज़ रफ्तारवाले वाहन अचानक से सामने आ रहे है| उससे आँखें चुन्धिया जा रही है| करीब डेढ घण्टे के बाद धीरे धीरे उजाला होने लगा| तब तक एक पाँचवे ग्रेड की चढाई पार हो गई|








एक बार अच्छा उजाला होने के बाद सुकून मिला| उजाला होते होते धुन्द में सोए हुए पहाड़ नजर आने लगे| अन्धेरे की वजह से जरूर मैने सुन्दर नजारा मिस किया होगा| लेकिन आगे अब नजारे ही नजारे हैं! अब पहले नाश्ते के लिए होटल देखना है| दो घण्टों में करीब चौबीस किलोमीटर हो गए है और अच्छी खासा पसीना बह रहा है| पानी भी भर लेना है| रास्ते में होटल तो लगातार है, लेकिन सुबह के अभी साढ़े सात ही बजे है, इसलिए वे बन्द है| उतने में और एक चढाई सामने आयी| पिरंगूट के पहले का घाट| यहाँ से भी सिंहगढ़ दूर से दिखाई देता है| दो घण्टे चलाने के कारण अब पैर खुल गए हैं, इसलिए इस घाट में कोई परेशानी नही हुई| पिरंगुट आया और यहाँ एक होटल खुला मिल गया| यहाँ नाश्ता कर लिया| बिना रूके आगे बढ़ा|

पिरंगुट के बाद एक ही बड़ा गाँव लगता है- पौड| इसके बाद आगे बस्ती लगातार कम होती जाएगी| पिरंगुट के बाद और एक घाट लगा| थकान नही होने के कारण इसे भी सहजता से पार किया| साईकिल में हवा शायद कम हुई है| पंक्चर की चिन्ता सताने लगी| पौड यही इस सड़क का आखरी बड़ा गाँव है| उसके बाद का बड़ा गाँव लगभग साठ- सत्तर किलोमीटर बाद ही आएगा| सौभाग्य से यहाँ एक साईकिल का दुकान मिला| दुकान बन्द है, लेकिन घर खुला है| इसलिए पंक्चर चेक किया| पंक्चर था नही, बस हवा कम हुई थी| बिना समय गंवाए आगे बढ़ा|







धीरे धीरे धूप बढ रही है| फरवरी माह एक तरह का संध्या समय है| सुबह सूरज उठने के पहले काफी ठण्डा मौसम और फिर पूरे दिन भीषण गर्मी| जैसे घडी आगे बढ रही है, गर्मी बढती जा रही है| बार बार पानी पीने से भी राहत नही मिल रही है| इस सड़क पर दूसरी कठिनाई यह है कि खाने के विकल्प बहुत कम है| गाँव भी बहुत छोटे हैं| काफी देर इन्तजार करने के बाद माले गाँव आया जहाँ कुछ नाश्ता मिल सका| अब तक लगभग साठ किलोमीटर हो गए हैं| थोड़ी थकान शुरू हुई| तेज़ गर्मी ने और मुश्किलें बढायी| अब ज्यादा ब्रेक्स की जरूरत हो रही है|

लेकिन नजारे बेहत सुन्दर है| छोटी सी सुनसान सड़क; उसके पास खेती, पहाड़ और नदी! मुळा नदी इस सड़क के समानान्तर ही बहती है| मुळशी गाँव के पास से इस नदी पर बना मुळशी डैम दिखने लगा| अब यह सड़क डैम को चक्कर लगा कर आगे जाएगी| रास्ता वैसे तो समतल ही है| यदा कदा चढाई आती है| मुळशी के बाद एक जगह पर तेज़ चढाई मिली और साईकिल की चेन गिर गई| इस चढाई पर साईकिल चलाना कठिन हुआ| चढाई बहुत तेज़ नही है, लेकिन साठ से अधिक किलोमीटर होने के कारण थकान भी है| ऊर्जा स्तर भी कम हुआ है| इस कारण इसे पैदल पार करना पड़ा| निरंतर पसीना आने से शरीर थकता जा रहा है| यहाँ से हौसला कम होना शुरू हुआ! फिर भी आगे बढना जारी रहा| इस यात्रा का गंतव्य स्थान- समन्दर के तट पर स्थित दिवे आगार इस गाँव के एक रेसॉर्ट का बोर्ड दिखा जिससे थोड़ी प्रेरणा मिली| एक जगह लारी में साईकिल रख कर वापस जा रहा एक साईकिलबाज भी दिखा|







मुळशी के बाद सड़क बड़ी विरान जगह से गुजरती है| यहाँ पर दूरियों के मिल के पत्थर भी नही है| कुछ समय सन्देह बना रहा कि मै कहाँ तक पहूँचा हूँ| मोबाईल में जीपीएस पर देखा तब पता चला कि मै ताम्हिणी घाट के पास आ गया हूँ| अभी थोड़े ही किलोमीटर और उसके बाद ताम्हिणी घाट आ जाएगा जहाँ से उतराई शुरू होगी| रूकते चलते आगे बढता गया| अब सुबह के करीब ग्यारह बजे है| हालाकि सिर्फ ग्यारह बजे हैं, लेकिन सुबह साढ़े पाँच से चल रहा हूँ, इसलिए ये 'सिर्फ' ग्यारह नही है| निरंतर चलने के बाद ताम्हिणी नाम का गाँव आया| लेकिन ये क्या? यहाँ पर तो कुछ भी नही है| कुछ भी नही! एक ढंग का होटल भी नही है| चाय का ठेला भी नही है! बड़ी मुश्किल से एक जगह पानी मिला| अब मनोबल तेज़ी से गिरता जा रहा है| और दूसरी बात- अभी उतराई नही आयी है, बल्की रास्ता तो थोड़ा उपर भी चढ रहा है!

यह चरण इस यात्रा का बड़ा कठिन चरण रहा| मिल के पत्थर न होने के कारण कितना आगे बढ़ा हूँ, यह भी पता नही चल रहा है| शरीर में ऊर्जा स्तर बिल्कुल कम हुआ है| और चलने की रफ्तार भी कम हुई है| हालाकि काफी समय से बड़ी चढाई नही लगी है| कुछ देर और आगे जाने के बाद एक गाँव मिला और यहाँ स्टोअर भी है| चलो, बिस्किट- चिप्स तो मिलेंगे ही| पानी भी मिलेगा| फोन को नेटवर्क नही था, तो बूथ से घर पर बात की| मात्र सत्तर किलोमीटर आगे आया हूँ, लेकिन लग रहा है कि एक अरसा हुआ साईकिल चला रहा हूँ| बिस्किट खाते समय सड़क पर एक बस रूकी| मन में इच्छा हुई काश कोई दोस्त उसमें से उतरे| धीरे धीरे मन साईकिल चलाने के बिल्कुल विपरित हुआ है- यू टर्न लेने की ओर जा रहा है!







उस सुनसान गाँव से आगे बढ़ने के बाद सड़क और विराने से जा रही है| यह जंगल ही है| अब वाकई बड़े बड़े पहाड़ पास आए हैं| पता नही कब यह सड़क नीचे उतरने लगेगी| लेकिन नजारे बेहद खूबसूरत हैं| इन्सान कितना भी गर्व करे, कितना भी स्वयं को श्रेष्ठ समझे, प्रकृति इतनी बड़ी है कि उसके सामने हम एक चिटी से ज्यादा नही| इन्सान प्रकृति पर हावी होने का कितना भी प्रयास करें, प्रकृति उससे बहुत बड़ी है| ऊँचे पहाड़ और वहाँ का जंगल! जंगल जैसा परिसर होने के कारण सड़क पर बन्दर भी हैं! यह सब ठीक है, पर उतराई कहाँ हैं?

दूर धीरे धीरे पहाड़ कम होते दिखाई दे रहे हैं| जरूर आगे एक जगह आएगी जहाँ यह पहाड़ की रेंज समाप्त होगी और वहीं बड़ी उतराई मिलेगी जो नीचे सीधा कोंकण तक ले जाएगी| पर कब? शरीर तो तेज़ी से थकता जा रहा है| एक सड़क लोणावळा जानेवाली मिली| कुछ समय के लिए लगा की अब शायद पहाड़ खतम हो गए हैं और अब तेज़ उतराई मिलेगी| लेकिन यह क्या? सड़क अब भी समतल जा रही है| अब तो जैसे तैसे घसीट रहा हूँ| जल्द से जल्द कोई होटल चाहिए| नही तो मेरी स्थिति बिगड़ती जाएगी|




लोणावळा की तरफ जानेवाली सड़क

उंचे उंचे पर्वत!

बड़ी देर चलते रहने के बाद आखिर कर एक होटल मिला| चलो, उतराई नही पर होटल तो मिला| घडी में सिर्फ दोपहर के साड़े बारह बज रहे हैं| लेकिन शरीर ने जवाब दिया है| अब लग रहा है यहीं से वापिस लिफ्ट ले कर चलूँ| पहले खाना खाता हूँ, फिर देखता हूँ| यहाँ आमलेट खाया| काफी देर विश्राम किया| कितना चला हूँ, यह तो मैप पर देखना पड़ेगा| लेकिन ७५- ८० किलोमीटर जरूर साईकिल चलायी है| लेकिन अब आगे बढ़ने की सम्भावना ही नही है| दस- पन्द्रह किलोमीटर उतराई होने पर भी आगे का रास्ता बड़ा कठिन जाएगा| इसलिए यहीं से लौटता हूँ| लिफ्ट के लिए जीप/ लारीज तो नही दिख रही है| लेकिन बहुत समय बाद एक अच्छी खबर यह पता चली कि थोड़ी देर में एक बस जाएगी| उससे काफी राहत मिली| हालाकि मन में डर है कि क्या वह बस रूकेगी, क्या बस का कंडक्टर साईकिल रखने की इजाजत देगा. . .? आदरवाडी इस गाँव का यह बस स्टॉप पास ही है, पर वहाँ तक भी पैदल गया| स्टॉप पर कुछ ग्रामीण भी मिले| अब कुछ राहत मिली| देर सबेर बस आयी| साईकिल उपर रखने में कंडक्टर ने बड़ी सहायता की| स्वयं बस के उपर चढ कर साईकिल रखी| लेकिन यह सब होते समय मन बड़ा नर्वस रहा| वापसी की यात्रा शुरू हुई| लेकिन मन स्वयं को कोस रहा है कि हाय! क्या से क्या हो गया!! कहाँ १६० किलोमीटर का लक्ष्य और करीब ८० किलोमीटर में ही पस्त?? लेकिन जो हुआ वही ठीक था| शरीर का कहना माना|





तीन छोटे क्लाइंबस लगे

रूट मैप


बाद में चान्दनी चौक नाम की जगह पर बस से साईकिल नीचे उतारी| यहाँ सड़क पर जानेवाले एक सज्जन ने भी सहायता की| साईकिल चढाना और फिर उसे उतारना एक कठिन काम लगा| लेकिन हो गया| अब यहाँ से बारह किलोमीटर फिर साईकिल चलाऊँगा| यह आखरी चरण आसान रहा| यात्रा कब खतम होती है, ऐसा डेस्परेशन रहा, लेकिन दूरी थोड़ी होने के कारण चलाता गया| दिन ढलने के पहले घर पहूँचा| लेकिन पूरे शरीर में दर्द और थकान है| घर की सुरक्षा में आने के बाद बहुत तसल्ली मिली| काफी देर विश्राम किया| बाद में इस यात्रा की दूरी देखी| तब पता चला कि मै दोपहर एक बजे के पहले ८१ किलोमीटर साईकिल चला पाया| सुबह साढ़े पाँच से दोपहर एक बजे तक- साढ़े छह- सात घण्टों में ८१ किलोमीटर| बीच में कम से कम डेढ- दो घण्टा रूकना भी हुआ| तो एव्हरेज स्पीड बारह किलोमीटर और मूव्हिंग स्पीड लगभग पन्द्रह किलोमीटर| और वो भी आधे दिन में| दिन के पाँच- छह घण्टे बाकी थे| इस लिहाज से तो अच्छी‌ साईकिल चलायी| और दिन के अन्त में बारह किलोमीटर भी चलायी| तो कुल मिला कर ९३ किलोमीटर हो गए| १६० का लक्ष्य था, तो ९३ किलोमीटर चला सका| एकदम बुरा नही कहा जा सकता| यह एक चमत्कारिक राईड रही जिसका कुछ भी आगा- पीछा नही था| ८ फरवरी को शतक करने के बाद बीच में एक भी राईड किए बिना २३ फरवरी की यह राईड! बिल्कुल दीवानगी का अनुभव रहा! अर्धशतक और शतक तो हो गए, इस बार नर्वस नाइंटी का स्वाद भी चखा!

अगला भाग ११: नई सड़कों पर साईकिल यात्रा

No comments:

Post a Comment

आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!