Thursday, December 3, 2015

दोस्ती साईकिल से ८: सिंहगढ़ राउंड २!


दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक
दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक
दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर
दोस्ती साईकिल से ४: दूरियाँ नज़दिकीयाँ बन गईं. . . 
दोस्ती साईकिल से ५: सिंहगढ़ राउंड १. . . 
दोस्ती साईकिल से ६: ऊँचे नीचे रास्ते और मन्ज़िल तेरी दूर. . . 
दोस्ती साईकिल से ७: शहर में साईकिलिंग. . . 


सिंहगढ़ राउंड २!

जनवरी २०१४ में साईकिलिंग जारी रही, लेकिन उसमें सातत्य नही ला पाया| ७ जनवरी को एक छोटी राईड की| साईकिलिंग में गैप आने के बावजूद भी अब हौसला बढ़ गया है| शायद जो योगासन और प्राणायाम कर रहा हूँ (सप्ताह में हर रोज न सही लेकिन कम से कम चार बार) और जो जंप्स लगा रहा हूँ, उससे स्टॅमिना जरूर बढ गया है| अब डिएसके का छोटा क्लाइंब बहुत आसानी से पार कर सकता हूँ| अब फिर एक बार सिंहगढ़ जाने का विचार है| चार माह बाद फिर सिंहगढ़ जाने का विचार इसलिए है कि मै २०१४ के जून- जुलाई में लदाख़ में साईकिल चलाना चाहता हूँ| उसके लिए मै कितना तैयार हूँ और पीछले मुकाबले सिंहगढ़ पर कैसे जा सकता हूँ, यह वही जा कर पता चलेगा|

१६ जनवरी को दिन खुलने से पहले निकल गया| जाड़े के दिन हैं, तो बहुत ठण्ड भी है| इसलिए स्वेटर पहना है| लेकिन दस मिनट साईकिल चलाने के बाद ही पसीना आ गया, तो स्वेटर कैरिअर पर रखना पड़ा| वैसे पसीना भी‌ एक तरह का फिटनेस इंडिकेटर है| जितना स्टॅमिना अच्छा होगा, उतना पसीना देर से आएगा| साँस भी देर से फूलेगी| अगर स्टॅमिना कम हो, तो तीन मंजिल चढने के बाद भी पसीना आ सकता है; लेकिन अगर स्टॅमिना अच्छा और मजबूत हो, तो उतने में पसीना नही आएगा| खैर|






सुबह अभी उजाला होने में समय है| खडकवासला के पास से गुजरा| शहर के हमले में भी यह जगह अपनी पुलक को बचाती नजर आती है| उसके बाद मिलिटरी के परिसर की शान्ति| सिंहगढ़ के बेस तक यह सड़क नदी के पास से ही चलती है| छोटे छोटे गाँव लगते हैं| ये गाँव अब तक शहर की चंगुल से बचे हुए हैं| फिर भी यहाँ कई रेसॉर्ट, बार, रो हाउसेस आदि सब शहर की संस्कृति आ रही है| सिंहगढ़ के नीचे होनेवाले गाँव के पास चाय- बिस्कुट ले ली| बोतल में पानी भर लिया| अब देखना है कितना फर्क आता है|

सुबह होने पर भी सिंहगढ़ पर घना कोहरा दिखाई दे रहा है| चढाई पर साईकिल चलाना शुरू किया| मन में थोड़ा डर भी है| लेकिन पीछली बार के मुकाबले इस बार चढना इतना कठिन नही लग रहा है|‌जल्द ही पहला किलोमीटर पूरा हो गया| वह स्थान भी पीछे छूटा जहाँ तक पीछली बार साईकिल चलायी थी! बिना ज्यादा दिक्कत के आगे बढ़ रहा हूँ| थोड़ी देर बाद दो क्षण रूकना जरूर पड़ रहा है, लेकिन मै ऐसी चढाई पर भी साईकिल चला पा रहा हूँ! वाकई यह बात बहुत अधिक सन्तोष देनेवाली है! जहाँ सड़क बहुत तेज चढाई के साथ उपर उठ रही है, वहाँ राँग साईड पर जा कर लेकिन साईकिल चलाते हुए ही वह जगह पार की| बाईक से सिंहगढ़ जानेवाले लोग भी मुझे चढता हुआ देख कर अचरज में है| मुझे स्वयं को भी बहुत अचरज है!

कुछ समय के लिए लगा कि मै शायद डेढ़ घण्टे में सिंहगढ़ पहूँच जाऊँगा और इस प्रकार एक अर्थ में लदाख़ में‌ साईकिल चलाने के लिए 'पात्र' हो जाऊँगा| एक घण्टा साईकिल चलाता रहा| हालाकि अब ज्यादा रूकना पड़ रहा है| पानी भी बार बार पीना पड़ रहा है| जल्द ही दो किलोमीटर का हिस्सा आ गया जहाँ सड़क थोड़ी सी नीचे उतरती है| दो किलोमीटर तो आसानी से गुजर जाएंगे| तेजी‌ से आगे निकला| गति से जाने के कारण अच्छी हवा लगी और साँस भी थिर हुई| फूर्ति आ गई| यहाँ एक और सड़क सिंहगढ़ के घाट को आ कर मिलती है| और यह दूसरी सड़क बेहतर है| इस पर से शायद बस भी सिंहगढ़ पहूँच सकती है|





अब फिर चढाई! आखरी तीन किलोमीटर बचे है| चढाई पर फिर से साईकिल चलाना शुरू किया| लेकिन अब बहुत अधिक तकलीफ हो रही है| साईकिल चला पाना कठिन हो रहा है| जैसे तैसे खुद को खींचते एक किलोमीटर दूरी पार की| साँस फूल रही है और ऊर्जा भी क्षीण हो रही है| आखिर कर कोई उपाय न देख कर फिर पैदल यात्रा शुरू की| आखरी डेढ किलोमीटर पैदल जाना पड़ा| और पैदल जाते समय भी तकलीफ हुई| पैदल जाते समय एक साईकिलबाज उपर से नीचे जाता दिखाई दिया| उसने मेरे तरफ ऐसे देखा जैसे कोई शहरी किसी आदिवासी को देख रहा हो! वो हेलमेटधारी साईकिलबाज पतली सी सॅक ले कर चल रहा है और मै साईकिल की कैरिअर पर थैलि रख कर उसमें बिस्कुट- बोतल आदि लिए जा रहा हूँ! सिंहगढ़ बहुत पास आ गया है, पर फिर भी बार बार रूकना पड़ा| डेढ घण्टे का टारगेट तो गया ही, पहुँचते पहुँचते सवा दो घण्टे हो गए| लेकिन सुधार भी बहुत है| पीछली बार सिर्फ डेढ किलोमीटर साईकिल चला पाया था, इस बार साढ़े- सात किलोमीटर चढाई पर साईकिल चलायी| दो किलोमीटर की उतराई छोडने पर भी पाँच किलोमीटर चढाई पर साईकिल चलायी! और वह भी एक घण्टे में| यदि स्टॅमिना रहता था, तो इसी गति से बाकी डेढ किलोमीटर भी करीब डेढ घण्टे में ही पूरे कर लेता था| लेकिन नही कर पाया|





और एक बात भी स्पष्ट हुई कि, जरा सा स्टॅमिना और और इसी साईकिल से ही मै सिंहगढ़ डेढ घण्टे में पहूँच सकूँगा| यह साईकिल भी बड़ी चढाई पर चढ सकती है| यह साईकिल गेअर होने के बावजूद सामान्य सी ही है, फिर भी उसमें क्षमता है| और देखा जाए तो कोई भी साईकिल चल सकती है| क्यों कि यह सब चलानेवाले पर निर्भर करता है| पुराने ज़माने में महाराष्ट्र की आशा पाटील ने मुंबई- पुणे की १६० किलोमीटर की दूरी और बीच में आनेवाले घाट और चढाई सिर्फ छह घण्टों के भीतर पूरी की थी| और यक़िन मानिए, उनकी साईकिल पुराने ज़माने की (१९७० का दशक) लेडीज साईकिल थी| बिना गेअर की| उस समय की सड़कें और उस समय के फिटनेस के साधन! बहुत आश्चर्य होता है जब उनके बारे में सोचता हूँ. . . २५ किलोमीटर प्रति घण्टा गति वह भी सामान्य वर्कमैन साईकिल से! यक़िन नही होता है|


मेरी साईकिलिंग का एक प्रेरणास्थान ये भी हैं|



वापसी में उतराई पर कोई दिक्कत नही हुई| सावधानी से उतरता गया| कुछ तेज़ मोड पैदल उतरा| घर पहूँचने में समय लगा| थकान बढ़ती गई| लेकिन अब एक हौसला भी आया है| एक बार तो लगा कि रोज़ सिंहगढ़ पर आना चाहिए| मेरे उस समय के घर से मात्र २१ किलोमीटर तो दूरी है! लेकिन एक बार जाकर आने के बाद इच्छा ही नही होती है| जाकर आने में साढ़े पाँच घण्टे लगते हैं| हर रोज़ इतना समय निकालना सम्भव नही है| लेकिन यह भी सच है कि हर रोज़ सिंहगढ़ पर जाऊँगा तो उसके लाभ कई होंगे| एक तो चढाई पर साईकिल चलाने का बहुत बेहतर अभ्यास हो जाएगा| कोई भी चढाई डरावनी नही लगेगी| फिटनेस और साईकिलिंग दोनो बढिया हो जाएंगे| और निरंतर जाते रहने पर यही राईड साढ़े चार या चार घण्टों में भी की जा सकती है| लेकिन. . . . लेकिन दोबारा सिंहगढ़ जाने की इच्छा तुरन्त नही हुई| खैर|







लेकिन इस राईड से स्पष्टता भी मिली की मेरी तैयारी सही दिशा में चल रही है| बस थोड़ी सी और कन्सिस्टन्सी चाहिए| और भी आगे जा सकूँगा|

अगला भाग ९: दूसरा शतक. . .

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (05-12-2015) को "आईने बुरे लगते हैं" (चर्चा अंक- 2181) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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