दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक
दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक
दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर
दोस्ती साईकिल से ४: दूरियाँ नज़दिकीयाँ बन गईं. . .
दोस्ती साईकिल से ५: सिंहगढ़ राउंड १. . .
दोस्ती साईकिल से ६: ऊँचे नीचे रास्ते और मन्ज़िल तेरी दूर. . .
दोस्ती साईकिल से ७: शहर में साईकिलिंग. . .
दोस्ती साईकिल से ८: सिंहगढ़ राउंड २!
दूसरा शतक. . .
१६ जनवरी को सिंहगढ़ जाने के बाद साईकिलिंग जारी रखी| १९ जनवरी को पुणे के पास ही चाकण तक साईकिल से गया| और इसी राईड के दौरान जीवन का एक स्वर्णिम क्षण आया- "गूड न्यूज" इसी राईड के बीच पता चली| जीवन का एक नया पर्व शुरू होने जा रहा है! और इस घड़ी में भी साईकिल साथ है| अब अर्धशतक करना एफर्टलेस हो गया है| बाद में चाकण से पुणे लौटते समय एक दूसरे आळंदी- विश्रांतवाडी- पुणे इस रास्ते से गया| शहर के अत्यधिक पास हो कर भी वीरान सड़क मिली| साईकिल पर यात्रा करने से बहुत सी सुन्दर और अन्जान सड़के पता चल रही है| इसी समय साईकिल का पहला सर्विसिंग भी करवा लिया| वैसे साईकिल बड़ी ही सख्त जान है| हजार किलोमीटर से अधिक चलाने के बाद भी उसे कुछ नही हुआ है| खैर
कुछ दिन नियमित रूप से साईकिल चलायी| ज्यादा नही, छोटी पन्द्रह- बीस किलोमीटर की ही राईड करता रहा| लेकिन फिर गैप तो आनेवाला है| थोड़े दिन साईकिल नही चला पाया| अब फिर मन में बड़ी राईड की इच्छा हो रही है| अब लग रहा है कि और एक शतक करना चाहिए| पहला शतक हो कर अरसा हुआ है| अर्धशतक तो बहुत हो गए, उन्हे गिनना भी छोड दिया| लेकिन शतक का अब भी इन्तजार है| इसलिए एक बड़ी राईड की योजना बनायी| और योजना बनाना मन का बड़ा ही पसन्दीदा काम है| डे ड्रिमिंग! योजना बनाते समय का गणित अलग ही होता है| जो योजना बनायी थी, उसे देख कर अब भी हंसी आती है! इतनी साईकिलिंग करने के बाद और साईकिलिंग की गति तथा प्रक्रिया की जानकारी होने के बाद भी एक मूढताभरी योजना बनायी| सोचा की सीधा डबल सेंचुरी करूँगा| पुणे से महाबळेश्वर जा कर वापिस आऊँगा| जाते समय एकसो दस और आते समय एकसो दस किलोमीटर करूँगा| इसमें कंटिन्जन्सी प्लैन यह भी था की लौटते समय थक गया तो बस या जीप से आऊँगा! लेकिन वास्तव में जो हुआ, वह बिल्कुल ही अलग था!
इस राईड की जाते समय की चढाई और उतराई
८ फरवरी को सुबह निकला| अच्छी खासी ठण्ड के बीच आगे बढ़ा| जल्द ही राष्ट्रीय राजमार्ग चार पर पहूँचा| यहाँ शुरू में थोड़ी चढाई है| कात्रज टनेल क्रॉस करने तक एक प्राथमिक स्तर का घाट आता है| बिना कोई कठिनाई यह पार हो गया| घण्टे भर में यह चढाई पार हो गई| टनेल के बीच से साईकिल पर जाना एक अनुठा अनुभव है| जितनी भी बार जाओ, बिल्कुल नया लगता है| पहले बारा किलोमीटर के बाद अब लगभग तीस किलोमीटर तक हल्की ढलान है| धीरे धीरे पुणे के पास का ट्रैफिक कम होता गया| हालाकि हायवे पर ट्रैफिक जारी रहा| आसपास सुन्दर नजारे दिखाई दे रहे हैं| सिंहगढ़ भी अलग कोण से दिखाई दे रहा है| हल्की ढलान होने के कारण यात्रा में परेशानी नही आयी और लगभग तीन घण्टों में ४५ किलोमीटर दूरी तय की| पुणे जिला खतम हुआ और साता जिला शुरू हुआ|
पुणे- सातारा जिलों की सीमा नीरा नदी
यहाँ तक लग रहा है कि महाबळेश्वर जा सकूँगा| अब "सिर्फ" पैसठ किलोमीटर दूरी रह गई है| लेकिन ४५ किलोमीटर के बाद अचानक हल्की चढाई शुरू हुई और रफ्तार कम हुई| मुश्किल से एक घण्टे में दस किलोमीटर और जा सका| अर्धशतक तो पूरा हुआ, पर उसके लिए चार घण्टों से अधिक समय लगा| अब दोपहर की धूप शुरू होने लगी है| देखते देखते मन पलट गया| वापसी का विचार जोर पकड़ने लगा| वैसे भी बॅक ऑफ द माइंड पता था ही कि महाबळेश्वर जाना इतना आसान नही होनेवाला है| यहाँ से आगे एक घाट आएगा और उसके बाद महाबळेश्वर की चढाई आएगी जो सिंहगढ़ की चढ़ाई से कम नही है| ऐसे में जो होना था, वही हुआ| पल में मज्नर बदल गया और साईकिल ने यु- टर्न लिया|
इतना तो तय था कि आज भले दोसौ नही होंगे, पर शतक जरूर होगा| क्यों कि अर्धशतक करने के बाद वापसी हुई है| एक तरह से रिलॅक्स भी हुआ कि चलो अब सीधा घर ही पहूँचना है| मन बड़ा उटपटांग होता है| बड़ी बड़ी छलाँगे लगाता है| बड़े बड़े यू- टर्न भी लेता है! वापसी में पहले दस किलोमीटर दिक्कत नही आयी| क्यों कि आते समय यहाँ हल्की चढाई थी जो जाते समय उतराई बन गई| फिर पुणे जिले में प्रवेश किया| अब तक पैसठ किलोमीटर पूरे हो गए है| लेकिन अब निरन्तर पच्चीस किलोमीटर तक चढाई है| घाट जैसी चढाई नही, लेकिन निरंतर चढाई है जिससे साईकिल की गति मुश्किल से दस किलोमीटर प्रति घण्टा रहेगी|
ये इस राईड का सबसे कठिन चरण रहा| ये पच्चीस किलोमीटर जाने के लिए तीन घण्टे लगे| बार बार रूकना पड़ा| मोबाईल के मैप में देखता रहा कि कहाँ पहूँचा हूँ, और कितनी दूरी बाकी है| एक एक किलोमीटर बड़ा ही लम्बा गया| शारीरिक रूप से और मानसिक रूप से यह दूरी सबसे कठिन रही| राहत की बात एक ही थी कि जब ये पच्चीस किलोमीटर खतम होंगे, तब सीधा ग्यारह किलोमीटर की उतराई आनेवाली थी| बस थोड़ा सा और, थोड़ा और यह स्वयं को समझाते हुए आगे बढ़ता रहा| उस समय मूल योजना के बारे में सोच कर मन में हंसी आ रही थी| धीरे धीरे उतराई शुरू होनेवाला बिन्दु- कात्रज टनेल पास आता गया| जैसे ही टनेल में प्रवेश किया, अब पेडल मारने की जरूरत कुछ समय के लिए बन्द हो गई| बस अब सम्भल के साईकिल चलानी है| चढाई की परेशानी झेलने के बाद लगातार उतरने की दिक्कत भी मिठी लगती है!
वापसी का चढाई मैप
लगभग ग्यारह किलोमीटर उतराई के बाद अब घर बिल्कुल पास आ गया| हालाकि अब आखरी चढाई बची है- डिएसके का छोटा क्लाइंब| लेकिन राईड समाप्त होने की खुशी में वहाँ भी साईकिल चला पाया| हालाकि उसके ठीक पहले और एक ब्रेक लेना पड़ा| इस तरह दूसरा शतक हो गया| करीब ११२ किलोमीटर साईकिल चलायी| डबल सेंच्यूरी न सही, लेकिन यह भी बड़ी राईड ही रही| रास्ते में ३ और २ ग्रेड की चढाई थी| लगभग ४०% रास्ता हल्की चढाई का ही था| ऐसी चढाईवाली सड़कों पर भी शतक कर सकता हूँ, यह विश्वास आया| अगर स्टॅमिना अच्छा ना हो और नियमितता पर्याप्त ना हो, तो ऐसी बड़ी राईड सब ऊर्जा सोख लेती है| और सोख लेगी ही| अगर हम चार दिनों का या आठ दिनों का काम एक ही दिन में करेंगे, तो अगले कुछ दिन शरीर विश्राम ही करेगा| इसी वजह से इस शतक के बाद फिर गैप आयी| छोटी छोटी राईड भी नही कर पाया|
अगला भाग १०: एक चमत्कारिक राईड- नर्वस नाइंटी!
दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक
दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर
दोस्ती साईकिल से ४: दूरियाँ नज़दिकीयाँ बन गईं. . .
दोस्ती साईकिल से ५: सिंहगढ़ राउंड १. . .
दोस्ती साईकिल से ६: ऊँचे नीचे रास्ते और मन्ज़िल तेरी दूर. . .
दोस्ती साईकिल से ७: शहर में साईकिलिंग. . .
दोस्ती साईकिल से ८: सिंहगढ़ राउंड २!
दूसरा शतक. . .
१६ जनवरी को सिंहगढ़ जाने के बाद साईकिलिंग जारी रखी| १९ जनवरी को पुणे के पास ही चाकण तक साईकिल से गया| और इसी राईड के दौरान जीवन का एक स्वर्णिम क्षण आया- "गूड न्यूज" इसी राईड के बीच पता चली| जीवन का एक नया पर्व शुरू होने जा रहा है! और इस घड़ी में भी साईकिल साथ है| अब अर्धशतक करना एफर्टलेस हो गया है| बाद में चाकण से पुणे लौटते समय एक दूसरे आळंदी- विश्रांतवाडी- पुणे इस रास्ते से गया| शहर के अत्यधिक पास हो कर भी वीरान सड़क मिली| साईकिल पर यात्रा करने से बहुत सी सुन्दर और अन्जान सड़के पता चल रही है| इसी समय साईकिल का पहला सर्विसिंग भी करवा लिया| वैसे साईकिल बड़ी ही सख्त जान है| हजार किलोमीटर से अधिक चलाने के बाद भी उसे कुछ नही हुआ है| खैर
कुछ दिन नियमित रूप से साईकिल चलायी| ज्यादा नही, छोटी पन्द्रह- बीस किलोमीटर की ही राईड करता रहा| लेकिन फिर गैप तो आनेवाला है| थोड़े दिन साईकिल नही चला पाया| अब फिर मन में बड़ी राईड की इच्छा हो रही है| अब लग रहा है कि और एक शतक करना चाहिए| पहला शतक हो कर अरसा हुआ है| अर्धशतक तो बहुत हो गए, उन्हे गिनना भी छोड दिया| लेकिन शतक का अब भी इन्तजार है| इसलिए एक बड़ी राईड की योजना बनायी| और योजना बनाना मन का बड़ा ही पसन्दीदा काम है| डे ड्रिमिंग! योजना बनाते समय का गणित अलग ही होता है| जो योजना बनायी थी, उसे देख कर अब भी हंसी आती है! इतनी साईकिलिंग करने के बाद और साईकिलिंग की गति तथा प्रक्रिया की जानकारी होने के बाद भी एक मूढताभरी योजना बनायी| सोचा की सीधा डबल सेंचुरी करूँगा| पुणे से महाबळेश्वर जा कर वापिस आऊँगा| जाते समय एकसो दस और आते समय एकसो दस किलोमीटर करूँगा| इसमें कंटिन्जन्सी प्लैन यह भी था की लौटते समय थक गया तो बस या जीप से आऊँगा! लेकिन वास्तव में जो हुआ, वह बिल्कुल ही अलग था!
इस राईड की जाते समय की चढाई और उतराई
८ फरवरी को सुबह निकला| अच्छी खासी ठण्ड के बीच आगे बढ़ा| जल्द ही राष्ट्रीय राजमार्ग चार पर पहूँचा| यहाँ शुरू में थोड़ी चढाई है| कात्रज टनेल क्रॉस करने तक एक प्राथमिक स्तर का घाट आता है| बिना कोई कठिनाई यह पार हो गया| घण्टे भर में यह चढाई पार हो गई| टनेल के बीच से साईकिल पर जाना एक अनुठा अनुभव है| जितनी भी बार जाओ, बिल्कुल नया लगता है| पहले बारा किलोमीटर के बाद अब लगभग तीस किलोमीटर तक हल्की ढलान है| धीरे धीरे पुणे के पास का ट्रैफिक कम होता गया| हालाकि हायवे पर ट्रैफिक जारी रहा| आसपास सुन्दर नजारे दिखाई दे रहे हैं| सिंहगढ़ भी अलग कोण से दिखाई दे रहा है| हल्की ढलान होने के कारण यात्रा में परेशानी नही आयी और लगभग तीन घण्टों में ४५ किलोमीटर दूरी तय की| पुणे जिला खतम हुआ और साता जिला शुरू हुआ|
पुणे- सातारा जिलों की सीमा नीरा नदी
यहाँ तक लग रहा है कि महाबळेश्वर जा सकूँगा| अब "सिर्फ" पैसठ किलोमीटर दूरी रह गई है| लेकिन ४५ किलोमीटर के बाद अचानक हल्की चढाई शुरू हुई और रफ्तार कम हुई| मुश्किल से एक घण्टे में दस किलोमीटर और जा सका| अर्धशतक तो पूरा हुआ, पर उसके लिए चार घण्टों से अधिक समय लगा| अब दोपहर की धूप शुरू होने लगी है| देखते देखते मन पलट गया| वापसी का विचार जोर पकड़ने लगा| वैसे भी बॅक ऑफ द माइंड पता था ही कि महाबळेश्वर जाना इतना आसान नही होनेवाला है| यहाँ से आगे एक घाट आएगा और उसके बाद महाबळेश्वर की चढाई आएगी जो सिंहगढ़ की चढ़ाई से कम नही है| ऐसे में जो होना था, वही हुआ| पल में मज्नर बदल गया और साईकिल ने यु- टर्न लिया|
इतना तो तय था कि आज भले दोसौ नही होंगे, पर शतक जरूर होगा| क्यों कि अर्धशतक करने के बाद वापसी हुई है| एक तरह से रिलॅक्स भी हुआ कि चलो अब सीधा घर ही पहूँचना है| मन बड़ा उटपटांग होता है| बड़ी बड़ी छलाँगे लगाता है| बड़े बड़े यू- टर्न भी लेता है! वापसी में पहले दस किलोमीटर दिक्कत नही आयी| क्यों कि आते समय यहाँ हल्की चढाई थी जो जाते समय उतराई बन गई| फिर पुणे जिले में प्रवेश किया| अब तक पैसठ किलोमीटर पूरे हो गए है| लेकिन अब निरन्तर पच्चीस किलोमीटर तक चढाई है| घाट जैसी चढाई नही, लेकिन निरंतर चढाई है जिससे साईकिल की गति मुश्किल से दस किलोमीटर प्रति घण्टा रहेगी|
ये इस राईड का सबसे कठिन चरण रहा| ये पच्चीस किलोमीटर जाने के लिए तीन घण्टे लगे| बार बार रूकना पड़ा| मोबाईल के मैप में देखता रहा कि कहाँ पहूँचा हूँ, और कितनी दूरी बाकी है| एक एक किलोमीटर बड़ा ही लम्बा गया| शारीरिक रूप से और मानसिक रूप से यह दूरी सबसे कठिन रही| राहत की बात एक ही थी कि जब ये पच्चीस किलोमीटर खतम होंगे, तब सीधा ग्यारह किलोमीटर की उतराई आनेवाली थी| बस थोड़ा सा और, थोड़ा और यह स्वयं को समझाते हुए आगे बढ़ता रहा| उस समय मूल योजना के बारे में सोच कर मन में हंसी आ रही थी| धीरे धीरे उतराई शुरू होनेवाला बिन्दु- कात्रज टनेल पास आता गया| जैसे ही टनेल में प्रवेश किया, अब पेडल मारने की जरूरत कुछ समय के लिए बन्द हो गई| बस अब सम्भल के साईकिल चलानी है| चढाई की परेशानी झेलने के बाद लगातार उतरने की दिक्कत भी मिठी लगती है!
वापसी का चढाई मैप
लगभग ग्यारह किलोमीटर उतराई के बाद अब घर बिल्कुल पास आ गया| हालाकि अब आखरी चढाई बची है- डिएसके का छोटा क्लाइंब| लेकिन राईड समाप्त होने की खुशी में वहाँ भी साईकिल चला पाया| हालाकि उसके ठीक पहले और एक ब्रेक लेना पड़ा| इस तरह दूसरा शतक हो गया| करीब ११२ किलोमीटर साईकिल चलायी| डबल सेंच्यूरी न सही, लेकिन यह भी बड़ी राईड ही रही| रास्ते में ३ और २ ग्रेड की चढाई थी| लगभग ४०% रास्ता हल्की चढाई का ही था| ऐसी चढाईवाली सड़कों पर भी शतक कर सकता हूँ, यह विश्वास आया| अगर स्टॅमिना अच्छा ना हो और नियमितता पर्याप्त ना हो, तो ऐसी बड़ी राईड सब ऊर्जा सोख लेती है| और सोख लेगी ही| अगर हम चार दिनों का या आठ दिनों का काम एक ही दिन में करेंगे, तो अगले कुछ दिन शरीर विश्राम ही करेगा| इसी वजह से इस शतक के बाद फिर गैप आयी| छोटी छोटी राईड भी नही कर पाया|
अगला भाग १०: एक चमत्कारिक राईड- नर्वस नाइंटी!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-12-2015) को "सहिष्णु देश का नागरिक" (चर्चा अंक-2188) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'