Monday, February 29, 2016

दोस्ती साईकिल से १६: पाँचवा शतक- लोअर दुधना डैम


दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक
दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक
दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर
दोस्ती साईकिल से ४: दूरियाँ नज़दिकीयाँ बन गईं. . . 
दोस्ती साईकिल से ५: सिंहगढ़ राउंड १. . . 
दोस्ती साईकिल से ६: ऊँचे नीचे रास्ते और मन्ज़िल तेरी दूर. . . 
दोस्ती साईकिल से ७: शहर में साईकिलिंग. . . 
दोस्ती साईकिल से ८: सिंहगढ़ राउंड २! 
दोस्ती साईकिल से ९: दूसरा शतक. . . 
दोस्ती साईकिल से १०: एक चमत्कारिक राईड- नर्वस नाइंटी!  
दोस्ती साईकिल से ११: नई सड़कों पर साईकिल यात्रा!  
दोस्ती साईकिल से १२: तिसरा शतक- जीएमआरटी राईड 
दोस्ती साईकिल से १३: ग्रामीण सड़कों पर साईकिल राईड
दोस्ती साईकिल से: १४ "नई साईकिल" से नई शुरुआत
दोस्ती साईकिल से: १५ दोस्ती साईकिल से १५: औंढा नागनाथ के साथ चौथा शतक

पाँचवा शतक- लोअर दुधना डैम

१२ अगस्त २०१४ को नई साईकिल से पहला शतक करने के बाद साईकिलिंग जारी रही| छोटी छोटी राईडस लगातार करता रहा| जल्द ही अगले शतक के लिए साईकिल उठायी| इस बार करीब ६० किलोमीटर दूर स्थित लोअर दुधना डैम देखने जाऊँगा| कुल मिला कर १२० किलोमीटर होंगे| लगातार कई दिन साईकिल चलाने के कारण अब शरीर काफी हद तक अभ्यस्त भी हो गया है|

१७ अगस्त की भोर में निकला| अब पंक्चर किट साथ में ले कर जा तो रहा हूँ, लेकिन उसका प्रयोग करना ही नही जानता! सुबह की ठण्ड में मेरे साथ और भी कुछ साईकिलबाज हैं जो कुछ देर तक साथ रहेंगे| चलने के कुछ देर बाद लगा की साईकिल की सीट और उपर करनी चाहिए जिससे पेडल पर अधिक बल आएगा| सीट अधिकतम ऊँची कर ली| शुरू में बैठने में और साईकिल चलाने में दिक्कत हुई| लेकिन जल्द ही जैसे पैर लय में आ गए, पहले से अधिक बल मिलने लगा| अधिक ऊँचाई से पैर नीचे आने के दो लाभ अब मिलेंगे- एक तो पेडल पर फोर्स अधिक होगा और दूसरा पैर पूरा नीचे आएगा और इसलिए घूटने में दर्द भी नही होगा| हालाकि अब इतनी साईकिलिंग करने के बाद कुछ गुर्र तो सीख गया हूँ| साईकिल चलाते चलाते बीच बीच में बारी बारी से एक एक हाथ और पैर को थोड़ा विश्राम भी देता हूँ| उतराई हो तब बारी बारी से पैर नीचे सीधा कर के रखता हूँ| बारीश तो नही है, लेकिन बारीश जैसा खुशनुमा मौसम जरूर है|





यहाँ से तीस किलोमीटर तक तो कई बार छोटी राईडस में गया हूँ| इसलिए वह सड़क भली भाँति परिचित है| उसके बाद की सड़क भी परिचित है, पर कभी साईकिल से नही गया| महाराष्ट्र के परभणी के आस पास की ये सड़कें बेहद सुनसान हैं! विराने में साईकिल चलाने का और ही मज़ा है| अच्छा अभ्यास होने के कारण अच्छी गति से आगे बढ़ता गया| बीच बीच में चाय- नाश्ता लेते हुए साढ़े तीन घण्टों में सेलू तक पहूँचा- अर्धशतक पूरा हुआ| अब यहाँ से मात्र बारह किलोमीटर आगे जाने पर डैम मिलेगा| डैम के चार किलोमीटर पहले तक मेन रोड है ही| डैम करीब आने पर अपेक्षा के पहले ही एक सड़क शार्ट कट मिल गयी| यह सड़क मैप पर नही है, लेकिन अच्छी सड़क है|






डैम तक की यात्रा का मैप| आखरी तीन- चार किलोमीटर की सड़क मैप में नही है

साढ़े नौ तक डैम पर पहुँच गया| क्या दर्शनीय स्थल है! अभी अच्छा पानी भी भरा हुआ है| अभी थकान लग नही रही है, इसलिए थोड़ी फुरसत में वहाँ पर टहलता हूँ| थोड़े फोटो खींचे| कुछ देर डैम के सन्निधि में विश्राम भी किया| बहुत शान्त लगता है ऐसी जगहों पर आ कर| यह पर्यटन स्थल न होने के कारण भीड़ भी नही है| काफी मज़ा लेने के बाद साईकिल पलट दी|









वापसी की यात्रा में अब पहला काम भोजन करना है| पहले तो लगता था की बड़ी राईड के दौरान ज्यादा खाना नही चाहिए, क्यों कि साईकिलिंग में बहुत एनर्जी लगती है| यदि भरपेट खाना खाया, तो पेट पचाने में लग जाएगा और पैरों को कम ऊर्जा मिलेगी| लेकिन अब लगता है अच्छा खाना चाहिए, क्यों कि शरीर में ऊर्जा की खपत बढ़ती है| इसलिए बहुत कम नही और बहुत अधिक भी नही, ऐसा खाना ठीक रहेगा| लेकिन होटल नही मिलने के कारण बड़ा सा नाश्ता ही कर लिया और आगे बढ़ा| इस बार ओआरएस के सॅशे भी साथ लिए हैं| उनको आखरी तीन घण्टों के लिए रखा है| और आगे बढ़ने पर थकान धीरे धीरे बढ़ने लगी| तब एक ओआरएस का पैकेट लिया| थोड़ी ही देर में फूर्ति आ गई| अब भी २-६, २-५ काँबीनेशन पर चला पा रहा हूँ|





जब हम साईकिल चलाते हैं, तो हमेशा मन में दूरी का गणित चलता रहता है| अब कितना दूर, कितना समय लगेगा, धीरे तो नही जा रहा हूँ आदि प्रश्न चलते रहते हैं| यह सड़क बिल्कुल समतल है, इसलिए चढाई का कोई मुद्दा नही है| और आज हेड विंड भी अच्छी साथ दे रही है| और सीट भी उपर की है, तो पैर कम थके होंगे और ज्यादा बल भी मिल रहा है| साथ में ओआरएस का लाभ! इसलिए विशेष थकान नही हुई और गति भी अच्छी मिली| छोटे छोटे पॉझ लेता रहा और आगे बढ़ा| हालाकी अब धूप से तकलीफ जरूर हो रही है| लेकिन उसका भी अलग मज़ा तो होता ही है! जैसे घर तीस किलोमीटर रह गया, परिचित क्षेत्र शुरू हुआ| यहाँ के होटल में अच्छे पोहे मिलते हैं| इसके बाद अब बड़ा ब्रेक लिए बिना आगे बढ़ूँगा| मन में चलनेवाले गणित ने थोड़ी ही देर में बताया कि सौ किलोमीटर पूरे हो गए! वाह, अभी दोपहर का डेढ- भोजन का समय- भी नही हुआ है और सौ किलोमीटर भी हो गए! जैसे टेस्ट मैच में लंच के पहले ही सौ! फिर थकान नही लगी| जैसे ही घर पास आता गया, यात्रा और सरल होती‌ गई| २-५ पर ही साईकिल चला पाया| दोपहर के ढाई बजने तक घर पहुँच भी गया! कुल मिला कर १२० किलोमीटर पूरे हुए और यह अब तक का सबसे फास्ट शतक रहा| थकान भी मामुली ही है| बड़ा मज़ा आया!



अगला भाग १७: एक ड्रिम माउंटेन राईड- साक्री से नन्दुरबार

1 comment:

  1. Namaskar Niranjan Ji,

    I just wanted to ask you whether you use any app to map/document your travels. We use MyTracks but that's going obsolete in April. If you use any, please let me know.

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आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!