योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा १: असफलता से मिली सीख
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा २: पहला दिन- चाकण से धायरी (पुणे)
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ३: दूसरा दिन- धायरी (पुणे) से भोर
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ४: तिसरा दिन- भोर- मांढरदेवी- वाई
चौथा दिन- वाई- महाबळेश्वर- वाई
१ अक्तूबर की सुबह| नीन्द जल्दी खुल गई और उठने पर ताज़गी भी लगी| अच्छा विश्राम हुआ| कल तीसरा दिन होने के कारण शरीर अब इस रूटीन का आदी हो गया है| इसलिए नीन्द आसानी से लगी| सुबह पाँच बजे उठ कर तैयार हुआ| मेरा लॉज वाई बस स्टँड के ठीक सामने है| इसलिए सुबह भी अच्छी चहल- पहल है| बाहर चाय भी मिली| सुबह का सन्नाटा और अन्धेरा! हल्की सी ठण्ड, वाह! आसमान में जाने पहचाने मित्र- व्याध, मृग, रोहिणी, कृत्तिका! कुछ देर चाय का आनन्द लिया और फिर निकलने के लिए तैयार हुआ| लेकीन बाहर निकलने के पहले पाँच मिनिट फिर कंबल ओढ कर नीन्द का भी आनन्द लिया! आज मुझे कोई सामान साथ नही लेना है| सिर्फ पंक्चर का किट, पानी की बोतल और चॉकलेटस- बिस्किट आदि| इसलिए बिल्कुल फ्री हो कर जाऊँगा|
एक डर था की बारीश या कोहरा हो सकता है| लेकीन आसमान बहुत साफ है| सुबह छह बजे अच्छे से डबल प्लेट पोहे खाए और निकल पड़ा| महाबळेश्वर का रास्ता सामने से ही जाता है| आज इस पूरी यात्रा का सबसे अहम पड़ाव है| यहाँ से बारह किलोमीटर तक घाट है| एक तरह से इसी चरण पर पूरी यात्रा निर्भर करती है| अगर यहाँ मै साईकिल चला पाता हूँ, तो आगे भी दिक्कत नही आएगी| और अतीत की असफल यात्राओं का मलाल भी मिट जाएगा| इस तरह ये बारह किलोमीटर बहुत निर्णायक होंगे| मेरे गाँव परभणी में दो कहावतें हैं| लोग कहते हैं, 'दुनिया में जर्मनी वैसे भारत में परभणी' और इसके साथ 'बनी तो बनी, नही तो परभणी!' भी कहते हैं! देखते हैं आज इनमें से क्या होता है| ये विचार मन में होने के बावजूद काफी हद तक मन शान्त है|
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा २: पहला दिन- चाकण से धायरी (पुणे)
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ३: दूसरा दिन- धायरी (पुणे) से भोर
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ४: तिसरा दिन- भोर- मांढरदेवी- वाई
चौथा दिन- वाई- महाबळेश्वर- वाई
१ अक्तूबर की सुबह| नीन्द जल्दी खुल गई और उठने पर ताज़गी भी लगी| अच्छा विश्राम हुआ| कल तीसरा दिन होने के कारण शरीर अब इस रूटीन का आदी हो गया है| इसलिए नीन्द आसानी से लगी| सुबह पाँच बजे उठ कर तैयार हुआ| मेरा लॉज वाई बस स्टँड के ठीक सामने है| इसलिए सुबह भी अच्छी चहल- पहल है| बाहर चाय भी मिली| सुबह का सन्नाटा और अन्धेरा! हल्की सी ठण्ड, वाह! आसमान में जाने पहचाने मित्र- व्याध, मृग, रोहिणी, कृत्तिका! कुछ देर चाय का आनन्द लिया और फिर निकलने के लिए तैयार हुआ| लेकीन बाहर निकलने के पहले पाँच मिनिट फिर कंबल ओढ कर नीन्द का भी आनन्द लिया! आज मुझे कोई सामान साथ नही लेना है| सिर्फ पंक्चर का किट, पानी की बोतल और चॉकलेटस- बिस्किट आदि| इसलिए बिल्कुल फ्री हो कर जाऊँगा|
एक डर था की बारीश या कोहरा हो सकता है| लेकीन आसमान बहुत साफ है| सुबह छह बजे अच्छे से डबल प्लेट पोहे खाए और निकल पड़ा| महाबळेश्वर का रास्ता सामने से ही जाता है| आज इस पूरी यात्रा का सबसे अहम पड़ाव है| यहाँ से बारह किलोमीटर तक घाट है| एक तरह से इसी चरण पर पूरी यात्रा निर्भर करती है| अगर यहाँ मै साईकिल चला पाता हूँ, तो आगे भी दिक्कत नही आएगी| और अतीत की असफल यात्राओं का मलाल भी मिट जाएगा| इस तरह ये बारह किलोमीटर बहुत निर्णायक होंगे| मेरे गाँव परभणी में दो कहावतें हैं| लोग कहते हैं, 'दुनिया में जर्मनी वैसे भारत में परभणी' और इसके साथ 'बनी तो बनी, नही तो परभणी!' भी कहते हैं! देखते हैं आज इनमें से क्या होता है| ये विचार मन में होने के बावजूद काफी हद तक मन शान्त है|