Tuesday, June 5, 2018

एटलस साईकिल पर योग- यात्रा: भाग ५: अंबड - औरंगाबाद

५: अंबड- औरंगाबादयोग साईकिल यात्रा का चौथा दिन, १४ मई की सुबह| आज अंबड से औरंगाबाद जाना है| सुबह अंबड के कुछ योग साधकों से मिलना हुआ| यहाँ कुछ लोग व्यक्तिगत रूप से क्लास लेते हैं| उनसे मिलकर आगे बढ़ा| आज भी सड़क आधी दूरी तक भारत से ही जाएगी और हायवे आने के बाद फिर इंडिया शुरू होगा! आज पहली बात तो खुद को बहुत धन्यवाद दे रहा हूँ कि मै इस यात्रा पर साईकिल पर आया, क्यों कि अगर गाडी से आता तो इस दिशा में कभी‌ भी नही आता! आज यह सड़क रोहीलागड़ से जाएगी| रोहीलागड़ यह आज एक छोटा सा कस्बा है लेकीन अतीत में‌ यहाँ पर बौद्ध गुंफाएँ थी|‌ रोहीलागड़ के पास ही जांबुवंतगड भी‌ है जिसका सम्बन्ध श्रीकृष्ण के समय के जाम्बुवन्त से है, ऐसा कहा जाता है| आज पहले इस रोहीलागड़ को देखने की उत्सुकता थी| इंटरनेट पर इसके बारे में खोजा था, पर कुछ खास मिला नही| अंबड से निकलने के बाद से ही सड़क विराने से रोहीलागड़ के तरफ बढ़ रही है| कल जैसा ही शान्त विराना और प्रकृति का साथ! बीच बीच में लगनेवाले बहुत ही‌ छोटे गाँव!





जब भी हम कुदरत के पास जाते हैं, तो कुदरत की ऊर्जा हमें ताजा करती है| रोहीलागड़ पर जो बौद्ध गुंफाएँ हैं, वे भी ध्यान का क्षेत्र रही होगी| और वे गुंफाएँ इसी परिसर में क्यों थी, यह आज भी महसूस हो रहा है| इतने गर्मी के मौसम में भी यहाँ प्राकृतिक सुन्दरता दिखाई देती है| तो जब ये गुंफाएँ बनाई गई होगी, तब तो प्रकृति और भी सुन्दर होगी ही और ध्यान के लिए और अधिक सहायता करती होगी| इसी लिए अधिकतर ध्यान के क्षेत्र और साधना के क्षेत्र दुर्गम पहाडियों पर होते हैं| प्राचीन समय में यह जगह जाने के लिए भी कठिन होगी| यह भी साधना का एक पहलू होता है|‌ ऐसे जगह पर पहुँचने में जो दिक्कत होती है; कुदरत का जो दृश्य सामने आता है, वह भी साधना को बढ़ावा देता है|‌ साथ ही ऐसे क्षेत्र तक पहुँचने में हमारे रोजमर्रा के विचार और ख्याल भी‌ छूट जाते हैं और एक तरह की रिक्तता मन में आती है| हालांकी अब ऐसे क्षेत्रों में भी पहुँचना आसान हो गया है जिससे कुछ हद तक इस पुराने उद्देश्य को बाधा भी आती होगी| खैर|


रोहीलागड़ दूर से दिखाई देता हुआ


रोहीलागड़ अब वैसे तो ध्वस्त गुंफा है| एक ही बड़ा पत्थर सड़क पर है जो कहा जाता है उसी गुंफा का हिस्सा था| गुंफा तो खण्डहर जैसी ही बची है| कुछ पल रूक कर आगे बढ़ा| मन में विचार आ रहा है प्राचीन समय में यात्री आते होंगे तो कैसे आते होंगे? साधनों की और जानकारी की तो कमी बहुत थी| लेकीन मेरा मानना है कि हर समय की अपनी अपनी चुनौतियाँ और सहजताएँ भी होती हैं| जैसे प्राचीन समय में या अब से करीब तीस- चालीस साल पहले तक भी कुछ अनुकूलताएँ भी थी| जैसे किसी यात्री को अगर तीर्थ यात्रा पर जाना होता था, तो उसे पैसों की कोई चिन्ता होने का कारण नही था| अतीत में साधन कम होने से इन्सानों के बीच जुड़ाव अधिक था, इसलिए उसे रास्ते के इन्तजाम की उतनी फिकर नही होती थी| इसलिए यात्री आसानी से देश में घूम सकते थे| क्यों कि हर जगह उनकी व्यवस्था करनेवाले लोग होते| आज साधन, तकनीक और जानकारी काफी बढ़ी है, लेकीन फिर भी इन्सानों के बीच उतना जुड़ाव नही रहा है और एक तरह से सभी बातों का आर्थिकीकरण हुआ है| इसलिए मै मानता हूँ आज भी अनुकूलताएँ भी हैं और चुनौतियाँ भी| वही बात शरीर की क्षमता की भी है| आज बुद्धी अधिक निखरी होगी, लेकीन शारीरिक क्षमता का औसत कम हुआ है| खैर|

रोहीलागड़ के बाद छह किलोमीटर पर औरंगाबाद जानेवाला हायवे मिला| यहाँ फिर एक बार नाश्ता किया, ब्रॉशर्स लोगों को दिए| यहाँ से अब आगे औरंगाबाद तक अच्छी सड़क मिलेगी| दो दिनों तक 'भारत' में से यात्रा करने के बाद अब हायवे का मज़ा लेना है| यहाँ से औरंगाबाद लगभग पैतीस किलोमीटर होगा| अब धूप लगने लगी है| आज बादल नही है| लेकीन चौथा दिन होने के कारण शरीर बिल्कुल आदी हो गया है| जैसे अगर हम पेड़ का एक पत्ता या एक डाल काटते हैं, तो पेड़ जैसे अपने आप से कहता है कि कोई बात नही, मै कई और पत्ते या कई और डाल पैदा करूँगा| वैसे मेरा शरीर भी अब कह रहा है कि इतनी धूप में साईकिल चलानी है, कोई बात नही, शरीर उसके लिए तैयार रहेगा और ऊर्जा की भरपाई भी करेगा| इसलिए बिना किसी तकलीफ के आगे बढ़ पा रहा हूँ| कुछ ही दिन पहले औरंगाबाद में कुछ टेन्शन हुआ था| शहर की स्थिति संवेदनशील बनी हुई थी| लेकीन अब कोई बात नही, जा सकता हूँ| इस पूरी यात्रा में मै एक बाद यह भी अलग महसूस कर रहा हूँ कि जहाँ भी मै जाऊँगा, वहाँ मुझे मिलने के लिए लोग होंगे| अकेले साईकिल चलाने में और इस तरह एक विषय और एक संस्था के साथ जुड़ कर साईकिल यात्रा करने में गुणात्मक फर्क साफ महसूस हो रहा है|

जल्द ही बाकी दूरी पार की| अच्छा चौडा हायवे होने के कारण कुछ गति भी मिली| हालांकी कुछ चढाई हायवे पर भी थी और हेड विंड भी थी, उसके बावजूद ग्यारह बजे औरंगाबाद पहुँचा| यहाँ भी बहुत ही भावुक करनेवाला स्वागत किया| यहाँ पर तो योग साधिकाओं ने मेरे पैर धोए, मेरे मना करने पर मुझे कहा गया ऐसा शरीर की गर्मी कम करने के लिए कर रहे हैं| औरंगाबाद में पहुँचा तो इस यात्रा के चौथे दिन २४० किलोमीटर पूरे हो गए और संयोग से औरंगाबाद का एसटीडी कोड भी २४० ही है! लगातार इतनी साईकिल चलाने से साईकिल चलाना जैसे एफर्टलेस हुआ है| जैसे अगर हम किसी बात को बहुत बार बार करते हैं, तो अपनेआप मन में विचार आता है, इसमें अब काहे की बड़ी बात है| वैसे अब शरीर भी अन्दर से महसूस कर रहा है कि साईकिल चला रहा हूँ, इसमें खास बात क्या है|



चौथा दिन अंबड से औरंगाबाद- ६३ किमी


औरंगाबाद के योग साधक

औरंगाबाद में शाम को योग साधकों से मिलना था, लेकीन जैसे ही औरंगाबाद पहुँचा मेरे क्लाएंट के फोन आने लगे और पूरा दिन लॅपटॉप पर काम करना पड़ा| सुबह चार बजे उठा था और ६३ किलोमीटर साईकिल चलाई थी, फिर भी दोपहर में एक मिनट सोने का मौका नही मिला| और वैसे डेडलाईन का प्रेशर भी इतना आया की नीन्द भी आयी नही! और काम भी ऐसा- जो बिल्कुल उबड़ खाबड़ सड़क पर चलने जैसा था! इसलिए शाम को योग साधकों से मिल नही सका| लेकीन आज मेरी योग- यात्रा की परीक्षा की‌ एक घड़ी जरूर थी| चौथा दिन होने के कारण शरीर शाम तक काम कर सका| लेकीन अब औरंगाबाद में पहुँचने से एक बड़ा पड़ाव पूरा हुआ| कल देवगिरी किला देखूँग और योग साधकों से मिलूँगा|

अगर आप चाहे तो इस कार्य से जुड़ सकते हैं| कई प्रकार से इस प्रक्रिया में सम्मीलित हो सकते हैं| अगर आप मध्य महाराष्ट्र में रहते हैं, तो यह काम देख सकते हैं; उनका हौसला बढ़ा सकते हैं| आप कहीं दूर रहते हो, तो भी आप निरामय संस्था की वेबसाईट देख सकते हैं; उस वेबसाईट पर चलनेवाली ॐ ध्वनि आपके ध्यान के लिए सहयोगी होगी| वेबसाईट पर दिए कई लेख भी आप पढ़ सकते हैं| और आप अगर कहीं दूर हो और आपको यह विचार ठीक लगे तो आप योगाभ्यास कर सकते हैं या कोई भी व्यायाम की एक्टिविटी कर सकते हैं; जो योग कर रहे हैं, उसे और आगे ले जा सकते हैं; दूसरों को योग के बारे में बता सकते हैं; आपके इलाके में काम करनेवाली योग- संस्था की जानकारी दूसरों को दे सकते हैं; उनके कार्य में सहभाग ले सकते हैं|

निरामय संस्था को किसी रूप से आर्थिक सहायता की अपेक्षा नही है| लेकीन अगर आपको संस्था को कुछ सहायता करनी हो, आपको कुछ 'योग- दान' देना हो, तो आप संस्था द्वारा प्रकाशित ३५ किताबों में से कुछ किताब या बूक सेटस खरीद सकते हैं या किसे ऐसे किताब गिफ्ट भी कर सकते हैं| निरामय द्वारा प्रकाशित किताबों की एक अनुठी बात यह है कि कई योग- परंपराओं का अध्ययन कर और हर जगह से कुछ सार निचोड़ कर ये किताबें बनाईं गई हैं| आप इन्हे संस्था की वेबसाईट द्वारा खरीद सकते हैं| निरामय संस्था की वेबसाईट- http://www.niramayyogparbhani.org/ इसके अलावा भी आप इस प्रक्रिया से जुड़ सकते हैं| आप यह पोस्ट शेअर कर सकते हैं| निरायम की वेबसाईट के लेख पढ़ सकते हैं| इस कार्य को ले कर आपके सुझाव भी दे सकते हैं| मेरे ब्लॉग पर www.niranjan-vichar.blogspot.in आप मेरी पीछली साईकिल यात्राएँ, अन्य लेख आदि पढ़ सकते हैं| आप मुझसे फेसबूक पर भी जुड़ सकते हैं| बहुत बहुत धन्यवाद!


अगला भाग: देवगिरी किला और औरंगाबाद में योग- चर्चाएँ

1 comment:

  1. बहुत बढिया।
    लेकिन सर आपने रोहिलागड क् बारे में लिखा वो सरासर गलत
    हैं। रोहिलागड के बारे मैं अधिक जानने के लिए आप निचे दिये गये website पर जा सकते हैं।

    https://rohilalgad.site123.me/

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