Sunday, October 8, 2017

एक ड्रीम साईकिल यात्रा!!!!


एक ऐसी साईकिल यात्रा जिस पर मुझे अब तक भरोसा नही आ रहा है! बरसों का एक सपना सा पूरा हो गया है! महाराष्ट्र में महाबळेश्वर हिल स्टेशन और उसके आस- पास के अनुठे प्राकृतिक सुन्दरता से सजे क्षेत्र में सात दिन की साईकिल यात्रा सफल हुई| अब धीरे धीरे उसके बारे में लिखूँगा| शुरुआत आज इस पोस्ट से करता हूँ|‌ इसकी योजना क्या थी, किस थीम के साथ यह यात्रा की यह बताता हूँ| आज सिर्फ इतना कहूँगा की ठीक इसी योजना जैसी यात्रा रही| बिल्कुल भी बदलाव करने की ज़रूरत नही हुई| बहुत ही रोमँटिक या कहें तो रोमँटिकेस्ट साईकिल यात्रा रही!!! आईए, इसकी योजना से शुरुआत करते हैं|










































योग- ध्यान के लिए साईकिल यात्रा

नमस्ते! योग- ध्यान यह थीम ले कर एक साईकिल यात्रा करने जा रहा हूँ| साईकिल चलाने का करीब से सम्बन्ध योग और ध्यान से है| इतना ही नही, साईकिल चलाना, दौड़ना, अलग तरह के स्पोर्टस या नृत्य इन सब का सम्बन्ध योग और ध्यान से है| पश्चिमोत्तानासन जैसे कुछ आसन कठिन होते हैं| या सूर्य नमस्कार की तीसरी स्थिति में कई लोगों के हाथ जमीन को स्पर्श नही कर पाते हैं| लेकीन साईकिलिंग- रनिंग के साथ ऐसे आसन करना आसान होता है| इसके साथ एंड्युरन्स की गतिविधि में हृदय अधिक हवा पंप करता है| इसलिए साईकिल जैसे व्यायाम के बाद भस्त्रिका जैसा प्राणायाम भी अधिक शक्ति के साथ किया जा सकता है| साईकिल चलाते समय एक बात होती है कि हमारी गति कम हो जाती‌ है| अक्सर हमें गति की आदत होती है| लेकीन साईकिल चलाते समय हम धिमे से बढ़ते हैं और हमारी 'सजगता' बढ़ती है| उसके साथ साँस लेने की क्षमता भी बढ़ती है| गहरी साँस लेने की क्षमता ध्यान की बुनियाद होती है| इसके अलावा जब हम किसी प्राकृतिक क्षेत्र में घूमने जाते हैं, तब हमारा हर रोज का रूटीन अलग रह जाता है और एक गैप क्रिएट होता है| प्रकृति हमें शान्त करती है, रिचार्ज कराती है| इस कारण साईकिल चलाने में एक डायनॅमिक मेडिटेशन भी होता है|




इसलिए साईकिल चलाते समय उसमें ध्यान- योग होते ही हैं| योग अर्थात् शारीरिक फिटनेस के बिना और धिमी गति से लम्बी दूरी पार करने के लिए आवश्यक शान्त मन हुए बिना साईकिल चलाई ही नही‌जा सकती है| इस दृष्टि से साईकिल चलाना काफी हद तक योग और ध्यान को समान्तर है| इन पहलूओं को देखते हुए इस योग- ध्यान थीम के साथ एक साईकिल यात्रा करने जा रहा हूँ| योग- ध्यान या भक्ति- शक्ति यह इस यात्रा की थीम होगी| इसका आरम्भ पुणे के निगडी क्षेत्र में भक्ति- शक्ति चौक से होगा| कहते हैं कि यहाँ शिवाजी महाराज और संत तुकाराम मिले थे और इसी लिए इस चौक को भक्ति शक्ति चौक कहा जाता है| योग- ध्यान या भक्ति शक्ति इस थीम की इस यात्रा में पुणे से साईकिल चलाना शुरू कर आगे मांढरदेवी, महाबळेश्वर, सातारा- अजिंक्यतारा- सज्जनगड ऐसे योग और ध्यान के लिए अनुकूल केन्द्र देखने है| यह पूरा प्रदेश पहाड़ी है| सह्याद्री की गोद में बसा हुआ पहाड़ी इलाका! यहाँ प्रकृति खुद हमें ध्यान के लिए सहायता करती है|

 
यात्रा की योजना:
 
यह साईकिलिंग 28 सितम्बर से 5 अक्तूबर के बीच होगा| हर रोज 
एक घाट या चढाई होगी|
दिन 1: चाकण- धायरी (भक्ती शक्ती चौक से यात्रा)- 51 किमी
दिन 2: धायरी- भोर (55 किमी)
दिन 3: भोर- मांढरदेवी- वाई- धोम डॅम और वाई परिसर (51 किमी)
दिन 4: (रविवार): वाई- पंचगनी- महाबळेश्वर- वाई (65 किमी)
दिन 5: वाई- सातारा- सज्जनगड (52 किमी)
दिन 6: सज्जनगड- ठोसेघर- सातारा- अजिंक्यतारा (लगभग 40 किमी)
दिन 7: सातारा- कास पठार- सातारा (52 किमी)




ऐसा यह नियोजन है| वैसे शुरुआत तो 21 सितम्बर को ही करनेवाला था, लेकीन तब बड़ी बारीश हुई| इस कारण यात्रा एक सप्ताह पोस्टपोन की| और वही अच्छा हुआ| इस बीच किए कुछ टेस्ट राईडस में और कुछ बाते ध्यान में आई| इसके अलावा योग- ध्यान लिखे हुए टी- शर्ट भी बना सका|

अब नए सीरे से साईकिल चलाने को आरम्भ कर चार वर्ष हुए है| इस दौरान कई शतक किए; दिन में सहजता से 130 किलोमीटर भी किए| इन सब अनुभवों से कई चीज़ें सीखता गया| उसके अलावा कई सारे साईकिलबाज और एंड्युरन्स के विशेषज्ञ- स्पोर्टसमन इन सबसे बहुत कुछ सीखने को मिला| कई बार साईकिल थम जाती थी, लेकीन हर बार उसे चलाने की प्रेरणा भी मिलती गई| और सीखता चला गया| इन सब बातों को देखते हुए इस बार एक दिन में सिर्फ 50- 60 किलोमीटर का ही रास्ता पार करूँगा| उसके साथ लॅपटॉप साथ रख कर लॉज में ठहर कर काम भी करूँगा| बिना कोई छुट्टी लिए, रेग्युलर रूटीन में ही यह साईकिल यात्रा करनी है| उसके साथ बड़े फासले पार करने के बजाय छोटे चरण में यात्रा करनी है, उसे अधिक एंजॉय करना है और हर पड़ाव करीब से देखना है| इसलिए दिन में सिर्फ 50- 60 किलोमीटर का ही रास्ता होगा जो की छोटा ही है| हालांकी, इस रूट में आनेवाले बड़े घाट, लम्बी चढाई देखते हुए वह भी आसान नही होगा| फिर भी सुबह 6 बजे शुरू कर 11- 12 बजे तक ठहरने की जगह तक पहुँचूंगा, ऐसा कयास है| देखते हैं कैसे होता है|

दक्षिण आफ्रिकी क्रिकेट टीम को चोकर्स कहते है, क्यों कि वे सब तैयारी कर अन्त में हार जाते हैं| मेरी भी अतीत की दो यात्राएँ ऐसी ही आधी रह गई थी| इसलिए इस बार तो कम से कम अन्त तक अच्छे से साईकिल चलाने का प्रयास है| साईकिल चलाना या फिटनेस के बजाय मानसिक रूप से मजबूत होना अधिक महत्त्वपूर्ण होता है| वही वास्तविक चुनौति होती है| इस दृष्टि से अब तक के मेरे अनुभव और मेरी ही पहले की हुई लाँग राईडस से काफी कुछ सीखने जैसा है|‌ और एक बात सोलो साईकिलिंग में यह होती है कि कुछ चीज़ें अलग होती है| ग्रूप में जाते समय दूसरों को देखते हुए अन्जाने साईकिल चलाने का विश्वास बढ़ता है| ग्रूप में कई चीज़ें आसान हो जाती है| ग्रूप में सीखना भी आसान होता है| कहते हैं कि ग्रूप में ध्यान करना भी अकेले ध्यान करने से आसान होता है| क्यों कि ग्रूप की एक धारा बनती है और वह हर एक को उस दिशा में बढ़ने के लिए मदद करती है| पर अकेले कोई चीज़ सीखना या अकेले साईकिल चलाना थोड़ा कठिन होता है| सोलो चलाते समय खुद के मन की आशंकाएँ बड़ी होती हैं| उन्हे खुद से अलग रखना एक तरह की चुनौति होती है| शरीर थकता है, मन भी थकता है| लेकीन ऐसे समय क्या हम शरीर और मन को थोड़ा अलग रख सकते हैं, यह वास्तविक प्रश्न है|

ध्यान के सम्बन्ध में एक कहानि याद आती है| ध्यान इस शब्द से बौद्ध धर्म में जो सम्प्रदाय बना- झेन उसी परंपरा का एक किस्सा है|‌ एक बार एक शिष्या झेन गुरू के पास साधना कर रही थी| उसने गुरू को कहा, मेरे मन में बहुत अशान्ति है, बहुत तनाव है| उस पर गुरू बोले- 'TAKE NO NOTICE!' बाद में साधना करते हुए एक समय उसने महसूस किया कि उसके विचार शान्त होने लगे है| उसने वह गुरू से कहा| गुरू ने कहा, 'TAKE NO NOTICE!' बाद में उसने देखा कि कुछ पलों के लिए उसके विचार शून्य हो रहे है| वह निर्विचार स्थिति को उपलब्ध हो रही है| उसने गुरू को बताया| तब उन्होने कहा, 'TAKE NO NOTICE!' कुछ समय पश्चात् उसे बोधि प्राप्त हुई, परम् ज्ञान मिला| तब भी वह गुरू के पास गई, उन्हे बताया| तब भी उन्होने यही‌ कहा, 'TAKE NO NOTICE!'

इसी फॉर्म्युले का इस्तेमाल इस साईकिल यात्रा में करूँगा| 'TAKE NO NOTICE' या 'तो, क्या हुआ?' या 'So what?' ऐसा प्रश्न खुद को पुछूँगा| इससे हमारे विचारों में अन्तराल आता है, एक गैप आता है| अगर विचार कही अटके हो, तो एक क्षण के लिए तो वे हल्के होते हैं| साईकिल चलाते समय बड़ी गर्मी है- "तो, क्या हुआ?” सुबह सुबह पंक्चर हुआ- "अच्छा, तो?” या घाट आसानी से चढ पा रहा हूँ, फिर भी- "सो व्हॉट?” इसी तरह क्रिकेट की भाषा में सिर्फ आनेवाली गेन्द पर ध्यान देते हुए यह साईकिल यात्रा करनी है| देखते हैं आगे आगे होता है क्या!


मेरे साईकिल के पहले के अनुभव और अन्य लेखन यहाँ हैं|

ताज़ा कलम

इस योजना पर पूरा अमल करते हुए मैने यह यात्रा सफलता से पूरी की है| विश्वास नही हो रहा है, लेकीन बड़े घाट, बड़ी चढाईयाँ आसानी से पार हुई| इसका विवरण जल्द प्रस्तुत करूँगा| धन्यवाद| तब तक फोटो देख लीजिए- 




























अगला भाग: योग- ध्यान के लिए साईकिल यात्रा १: असफलता से मिली सीख 

7 comments:

  1. आने वाली कड़ियों की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा हूँ। आपने सही कहा कि अकले में किसी काम को करना समूह में काम करने की तुलना में कठिन होता है। मैं आजकल एक यात्रा करता हूँ तो इसका अनुभव कर चुंका हूँ। जितना तय किया होता है उससे कम ही जगह देख पाता हूँ। जब थकान होने लगती है तो अक्सर बिस्तर और कमरा याद आता है और इसलिए उधर की तरफ कदम सहज ही बढ़ने लगते हैं। इन कड़ियों ने मुझे प्रेरणा मिलेगी इसका मुझे विश्वास है।
    duibaat.blogspot.com

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  2. साइकिल पर यात्रा करने का आनंद ही अलग है शरीर को कष्ट तो होता है लेकिन उनका शरीर में लाभ भी बहुत होता है। मुझे साइकिल चलाने का काफी लंबा अनुभव है इसलिए मैं कह सकता हूं कि साइकिल चलाने वाला मानसिक रूप से कभी हार नहीं सकता।
    आपके साइकिल के सारे लेखों पर नजर रहेगी। मेरा कमेंट मिले ना मिले लेकर अवश्य पढ़ूंगा।

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    1. नमस्ते संदीप जी (जाटदेवता जी)!!! आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत मायने रखती है! आप साईकिलबाज तो हैं ही, साक्षात् नीरज जी के भी मित्र हैं, बहुत बहुत धन्यवाद!

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भारतीय वायुसेना दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  4. TAKE NO NOTICE!
    बहुत अच्छी लगी यात्रा प्रस्तुति

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आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!