Thursday, March 17, 2016

दोस्ती साईकिल से २१: चढाई पर साईकिल चलाने का आनन्द


दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक
दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक
दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर
दोस्ती साईकिल से ४: दूरियाँ नज़दिकीयाँ बन गईं. . . 
दोस्ती साईकिल से ५: सिंहगढ़ राउंड १. . . 
दोस्ती साईकिल से ६: ऊँचे नीचे रास्ते और मन्ज़िल तेरी दूर. . . 
दोस्ती साईकिल से ७: शहर में साईकिलिंग. . . 
दोस्ती साईकिल से ८: सिंहगढ़ राउंड २! 
दोस्ती साईकिल से ९: दूसरा शतक. . . 
दोस्ती साईकिल से १०: एक चमत्कारिक राईड- नर्वस नाइंटी!  
दोस्ती साईकिल से ११: नई सड़कों पर साईकिल यात्रा!  
दोस्ती साईकिल से १२: तिसरा शतक- जीएमआरटी राईड 
दोस्ती साईकिल से १३: ग्रामीण सड़कों पर साईकिल राईड
दोस्ती साईकिल से: १४ "नई साईकिल" से नई शुरुआत
दोस्ती साईकिल से: १५: औंढा नागनाथ के साथ चौथा शतक
दोस्ती साईकिल से: १६: पाँचवा शतक- लोअर दुधना डैम
दोस्ती साईकिल से: १७: एक ड्रीम माउंटेन राईड- साक्री से नन्दुरबार
दोस्ती साईकिल से: १८: तोरणमाळ हिल स्टेशन पर साईकिल ट्रेक!
दोस्ती साईकिल से: १९: हौसला बढ़ानेवाली राईडस!
दोस्ती साईकिल से: २०: इंज्युरी के बाद की राईडस


चढाई पर साईकिल चलाने का आनन्द

एक छोटी सी लगभग सवा किलोमीटर की चढाई-

१. साईकिल पर जाना नामुमकिन जैसा है| मुश्किल से एक चौथाई दूरी साईकिल पर चलायी और अब पैदल जाने की नौबत आयी. . .
२. साईकिल पर जा पा रहा हूँ, लेकिन तीन बड़े विश्राम के लिए रूकना पड़ रहा है. . .
३. बिना रूके पूरी चढाई पार करता तो हूँ, लेकिन बड़ा थक जाता हूँ. . .
४. लगातार चार बार यही चढाई अब सहजता से पार कर सकता हूँ. . .
५. अब यही चढाई सबसे लोअर (१-१) गेअर के बजाय २-१ गेअर पर भी लगातार कई बार पार कर सकता हूँ. . .
६. अब यह चढाई चढते समय २-१ गेअर में मुंह बन्द रख कर सामान्य श्वसन में भी‌ साईकिल चला सकता हूँ. . .

. . .२०१५ वर्ष की शुरुआत छोटी राईडस के साथ हुई| साईकिल चलाना जारी रहा| देखा जाए तो छोटी राईडस में मज़ा तो आता हैं, लेकिन हमारा मन सन्तुष्ट नही होता है| मन को चाहिए कुछ बड़ा- भव्य! रह रह कर २०१५ में लदाख़ में साईकिल चलाने की इच्छा हो रही है| बार बार वही सपना देख रहा हूँ| इस सपने ने इतना बुरी तरह पकड़ लिया जिससे धीरे धीरे उस दिशा में कदम उठने लगे| लदाख़ में साईकिल चलानी हो तो सबसे पहली बात चढाई पर साईकिल चलाना आना चाहिए| बिल्कुल प्राथमिक पात्रता| इसलिए अब चढाई पर साईकिल चलाने का अभ्यास करना चाहता हूँ और वैसा मौका भी आया|





पुणे के धायरी इलाके में डिएसके विश्व एक छोटी सी हिल पर बसी कालनी है| वहाँ मुझे अभ्यास के लिए बहुत अच्छी चढाई मिल गई| है तो छोटी सी ही- लगभग सवा किलोमीटर में ६० मीटर का क्लाइंब| सबसे छोटे ग्रेड का घाट है| यहाँ साईकिलिंग का अभ्यास शुरू किया| कुछ समय पहले तो यहाँ साईकिल चला ही नही पाता था| लेकिन अब चूँकि बहुत अच्छा अभ्यास हो गया है, सातत्य रखा है, इसलिए अब आसानी से इसे चढ सकता हूँ| लेकिन एक बार चढने से बात नही बनेगी| इसलिए लगातार राउंडस करने का क्रम शुरू किया| सुबह दो- तीन बार और शाम को दो- तीन बार| यह हिल है तो बहुत छोटी| इसलिए यदि पाँच राउंड भी करता हूँ, तो सिर्फ १२ किलोमीटर होते हैं| लेकिन इन १२ किलोमीटर में ६ किलोमीटर चढाई के हैं और उससे ही फर्क आएगा| पूरे फरवरी महिने में लगातार इसी चढाई के राउंडस करता रहा| उसके अलावा बहुत थोड़ी दूर की राईडस की| लेकिन इस नियमित अभ्यास का फल मिलने लगा| धीरे धीरे यह चढाई बिल्कुल आसान होती गई| फिर तो लगातार तीन- चार बार करने में भी कोई परेशानी नही आयी|



डिएसके की सड़क


डिएसके का क्लाइंब- लगभग १.३७ किलोमीटर में ६० मीटर गेन


यह सबसे छोटे स्तर का घाट है

कभी कभी यकिन नही होता है कि एक समय जो चढाई कठिन लगती थी, वह अब बिल्कुल एफर्टलेस हो गई है! जब भी यह चढाई चढता हूँ, खुशी सी होती है| यही शरीर की क्षमता है| हमारे शरीर में क्षमता तो बहुत होती है, लेकिन हम उसका इस्तेमाल ठीक से नही करते हैं| धीरे धीरे अगर हम शरीर को अभ्यास दिलाते हैं, तो शरीर आश्चर्यकारक एडजस्टमेंट कर लेता है| जैसे आपको एकदम से कहा जाए की, पाँच मंजिला बिल्डिंग पर लिफ्ट के बजाय स्टेअर्स से जाना है, तो डर लगेगा| लेकिन अगर धीरे धीरे शरीर को अभ्यास दिया जाए- एक हप्ते तक सिर्फ उतना चढना जितना आप आसानी से जा सकते हो- जैसे दूसरी मंजिल तक और आगे उसे बढाया जाए, तो देर नही लगेगी| या यदि आपको सिर्फ दस मिनट चलने का अभ्यास है, तो आप धीरे धीरे उसे बढा सकते हैं| इसका सूत्र इतना ही है कि एकदम से शरीर पर तनाव नही डालना है| दस मिनट चलने से सीधे दो घण्टे चलने तक नही जाना है| दस मिनट से पन्द्रह मिनट; फिर अगले हप्ते में बीस मिनट, फिर यदि सहज हो तो अगले हप्ते में पच्चीस मिनट ऐसे| शरीर अपने आप अभ्यस्त होता जाता है. . .

यह छोटा क्लाइंब तो आ गया, लेकिन यह है बहुत छोटा| क्या वाकई मै लदाख़ में साईकिल चला पाऊँगा, इसकी असली परीक्षा लेने का समय आया है| अब सिंहगढ़ पर जा कर देखूँगा| वैसे मै इस छोटे क्लाइंब पर दिन में पाँच राउंड करता हूँ, तो यह आधे सिंहगढ़ जैसा ही होता है| लेकिन यह वहाँ जाने पर ही पता चलेगा| पहली बार तो सिंहगढ़ के नौ किलोमीटर के क्लाइंब में सिर्फ डेढ किलोमीटर साईकिल चला पाया| दूसरी बार बेहतर प्रयास रहा, लेकिन फिर भी सात किलोमीटर साईकिल चलाने के बाद आखरी के डेढ किलोमीटर पैदल जाने की नौबत आयी| इस बार क्या होगा. . .





अगला भाग २२: सिंहगढ़ राउंड ३ सिंहगढ़ पर फतह!

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (19-03-2016) को "दुखी तू भी दुखी मैं भी" (चर्चा अंक - 2286) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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