७. अंबेजोगाई से हसेगांव (लातूर)
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१८ नवम्बर की भोर, यात्रा का सांतवा दिन| आज रविवार है और आज का चरण वैसे छोटा भी है| आज ७५ किलोमीटर साईकिल चलानी है और लगातार कई दिनों तक साईकिल चलाने से ये ७५ किलोमीटर अब सिर्फ लग रहे हैं| जैसे एक पेडल मारने से साईकिल अपने आप कुछ आगे जाती है, एक पेडल का मूमेंटम दूसरे पेडल में मिलता है, उसी प्रकार कई दिनों का मूमेंटम अब मेरे पास है| बस डर एक ही है कि आज के रूट पर भी कुछ हद तक निम्न दर्जे की सड़क है| ठीक सवा छह बजे अंबेजोगाई से निकला| यशवंतराव चव्हाण चौक में कल मेरा स्वागत हुआ था, वहीं से लातूर रोड़ की तरफ बढ़ा| शहर से बाहर निकलने तक सड़क ठीक है, लेकीन जब पहला मोड़ आया, तो सड़क बिल्कुल टूटी फूटी मिली| लेकीन यहाँ के लोगों ने बताया कि जल्द ही अच्छी सड़क मिलेगी, इस सड़क का लगभग काम पूरा हो चुका है| और मै अब तक ऐसी ऐसी सड़कों से गुजर चुका हूँ कि मुझे सड़क कम दर्जे की हो तो कुछ फर्क ही नही लग रहा है| उसका भी अभ्यास हो गया है| इसलिए पथरिली सड़क पर भी आराम से आगे बढ़ा| दूर से गिरवली सबस्टेशन का परिसर और अंबेजोगाई- परली रोड़ पर स्थित टीवी टॉवर दिखा| बचपन में अक्सर यहाँ आया करता था! उस परिसर का दूर दर्शन कर यादों को ताज़ा कर लिया| थोड़ी ही दूरी पर अच्छा दो लेन का हायवे मिला| अब लातूर तक अच्छा हायवे होगा|
आज मुझे तीसरे बाल गृह में विजिट करनी है| लातूर के पास हसेगांव में स्थित सेवालय| हायवे अच्छा मिलने से आसानी से आगे बढ़ता रहा| धीरे धीरे लातूर पास आ रहा है| लगभग तीन दिन तक सड़क ने परेशान किया है, उसके बाद आज तो मख्खन जैसी सड़क! साईकिल चलाने का स्वाद लेते हुए बिना रूके आगे बढ़ा| आज शायद मै चार घण्टों में ही पहुँच जाऊँगा| रास्ते में रेणापूर के पास और एक विश्राम लिया| यहाँ से लातूर बहुत पास है| आज लातूर के रूप में मुझे इस यात्रा में पहली बार ऐसा कोई शहर मिलेगा जहाँ साईकिल का कोई ठीक दुकान होगा| पहले तीन दिनों तक तो मुझे टायर बदलने की बड़ी इच्छा थी| लेकीन उसके बाद लगातार तीन दिनों तक पंक्चर भी नही हुआ| और तब यह भी पता चला कि मेरे जो लगातार दो दिन पंक्चर हुए थे, वे एक ही तार के टूकडे के कारण हुए थे| उसके बाद कई डरावनी सड़कों पर पंक्चर हुआ ही नही| इसलिए नए टायर लेने का विचार फिलहाल छोड दिया है| बस बार बार टायर प्रेशर चेक कर रहा हूँ, लगभग हर दिन थोड़ी हवा भरता हूँ| और टायर भी जाँचता हूँ| इसलिए टायर बदलने की जरूरत नही रही है| और किसी भी कोशिश में सबसे बड़ी बात मानसिक प्रक्रिया होती है| जैसे यह १४ दिनों में ११६५ किलोमीटर की यात्रा शारीरिक है, वैसे मानसिक भी है| और इतने दिनों के चरण पूरे होने पर मानसिक दृष्टि से यह बहुत आसान हो गया है| या कहिए कि मानसिक दृष्टि से यात्रा पूरी ही हुई है, सिर्फ execution बाकी है| उसमें दिक्कतें आएंगी, एक या दो बार पंक्चर भी होने की सम्भावना है| लेकीन सब कुछ मैनेज हो जाएगा| इतना मूमेंटम मुझे मिल चुका है| आज कुछ बादल भी छाएं हैं जिससे मुझे गर्मी से थोड़ी राहत भी मिल गई|
लातूर शहर में एक मज़ेदार किस्सा हुआ| साईकिल चलाते समय अचानक कोई मेरे पास से गया और उसने कहा, 'हां मैने भी किया है'| एक पल के लिए मै नही समझा| लेकीन तुरन्त पता चला कि उसने मेरे टी- शर्ट पर होनेवाले सवाल का जवाब दिया है! 'मैने एचआयवी टेस्ट की है, आपने?' यह वह सवाल! लातूर से आगे औसा रोड़ पर बुधोडा गांव पर टर्न लिया| यहाँ से अन्दरूनी गाँव शुरू हुए| जगह जगह पर पूछताछ करते हुए हसेगांव की तरफ बढ़ चला| यह लगभग लातूर के पास ही है, लेकीन सड़क घूम घूम कर जाती है| सड़क लेकीन बहुत अच्छी मिली| छोटे गाँव होने पर भी शानदार सड़क! यहाँ से कर्नाटक सीमा दूर नही हैं| हिप्परेसोगा जैसे गांवों के नाम से पता चल रहा है| अन्त में पूछताछ करने के कारण थोड़ा अधिक समय लगा| लेकीन पाँच घण्टों के अन्दर मै हसेगांव, सेवालय में पहुँचा| आज ७५ किलोमीटर हुए और कुल ७ दिनों में ५८९ किलोमीटर हो गए| एक तरह से तो विश्वास ही नही हो रहा है! लेकीन आज की विजिट के बाद आधी यात्रा पूरी हो जाएगी!
सेवालय कैंपस में आने पर बच्चों ने और सेवालय के संस्थापक रवी बापटले जी ने उत्साह के साथ स्वागत किया| जिनकी पहले चर्चा की थी, वे डॉ. पवन चांडक जी अक्सर सेवालय में आते हैं, यहाँ के लिए वे सहायता भी जुटाते हैं और यहाँ पर उन्होने दो साईकिलें भी बच्चों के लिए दी हैं| अत: यहाँ मेरे साईकिल यात्रा के लिए बहुत उत्साह है| लातूर जिले के एचआयवी पर काम करनेवाले सरकारी कर्मचारी और विहान प्रोजेक्ट के लोगों से भी यहीं पर मिलना हुआ| मेरी सुविधा के लिए लातूर के सरकारी अस्पताल के बजाय वे यहीं पर आए| हालांकी आज रविवार होने से संख्या कम थी| पहले उनके साथ चर्चा हुई| मेरे कारण कई दिनों के बाद उनका सेवालय में आना हो रहा है| उन्होने बताया कि अब प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और उपकेन्द्र पर भी एचआयवी की जाँच होती है| एचआयवी होनेवाले लोगों को जल्द सरकारी बस में मुफ्त यात्रा की सुविधा भी मिलेगी| कुछ देर तक यह चर्चा चली| सेवालय के अन्य कार्यकर्ताओं से भी मिलना हुआ| उसके बाद रवी बापटले जी सेवालय के दूसरे कैंपस में चल रहे निर्माण कार्य देखने के लिए उस तरफ गए| मै नहा कर विश्राम करने लगा| सेवालय के कैंपस में कई कुटियाँ हैं| इनमें से एक कुटि में मै ठहरा|
हैपी इंडियन विलेज पर चल रहा निर्माण कार्य
दोपहर के विश्राम के बाद शाम को सबसे मिलने के लिए तैयार हुआ| रवी जी सेवालय के दूसरे कैंपस में ही हैं| इसलिए अन्य सदस्यों से बातचीत हुई| यह कैंपस बहुत बड़े संघर्ष के बाद फलती फुलती संस्था का उदाहरण है| रवी जी मूल रूप से पत्रकार थे| पत्रकारिता में अपना करिअर कर रहे थे| एक दिन उन्हे सुनने में आया कि एक गाँव में एक एचआयवी होनेवाले बच्चे की स्थिति बेहद विपरित है| तब वे उसे देखने गए| उसकी स्थिति बेहद विपरित ही थी, कहने के लिए शब्द भी काफी नही है| सभी ने उसे अस्पृश्य मान कर अलग- थलक कर दिया था| उसके घावों में किड़े हो गए थे| शरीर सिर्फ हड्डियाँ हुआ था| बाद में उसकी मृत्यु होने पर उसका अन्तिम संस्कार भी नही हो पाया| एचआयवी व्यक्ति का दहन किया तो हमारी मिट्टी भी 'बाधित' होगी या उसके धुए से हमें भी इन्फेक्शन होगा, ऐसी लोगों की सोच थी! ऐसी स्थिति में रवी जी सामने आए और उन्होने यह जिम्मेदारी अपने कन्धों पर ली| बाद में इस विषय के लिए अपना शानदार करीअर छोड दिया| अपने सपनों को राख कर दिया| कुछ लोगों की सहायता से धीरे धीरे यह काम शुरू हुआ| एक सज्जन के डोनेशन से हसेगांव के पास यह जमीन मिली| उस समय तो यहाँ पर सब बन्जर था| लेकीन कई लोगों का निस्पृह योगदान और समाज के भले मानसों की सहायता से धीरे धीरे यहाँ कुछ बच्चों की व्यवस्था का इन्तजाम खड़ा हुआ| लेकीन इन सबके दौरान आसपास के गाँवों से बहुत विरोध भी हुआ| कुछ लोगों ने यहाँ के कार्यकर्ताओं से मारपीट की| इमारत का निर्माण कार्य ध्वस्त कर दिया| उस समय रवी जी ने बड़ा ही बड़ा हृदय रखते हुए उन लोगों के खिलाफ पुलिस कम्प्लेंट करने से परहेज़ किया| क्यों कि उनकी सोच थी कि पुलिस शिकायत से लोग और दूर जाएंगे, उनका विरोध जारी रहेगा| इसलिए उन्होने उसे संवाद से सुलझाने के प्रयास किए| धीरे धीरे लोग इस काम को समझते गए| और जहाँ से लोग इस कार्य में खलल डालने के लिए आते थे, वहीं से कार्यकर्ता भी आने लगे| इस बड़े कार्य के लिए काफी हाथ चाहिए थे, वे भी आसपास के गाँवों से आने लगे| सेवालय के पुराने कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत में यह सब सुननें में आया|
इस संस्था का काम देख कर बार बार यही लग रहा है कि कैसे अगर कोई व्यक्ति अकेला भी अपने दम पर एक राह पर बढ़ता जाता है, तो उसके साथ धीरे धीरे काफिला बनता जाता है; कारवाँ बनता जाता है| इस संस्था का काम इतना बड़ा है कि उसे एक दिन में देख पाना भी सम्भव नही| और इसके कार्यकर्ता इसी कैंपस में हैं, ऐसा भी नही है| शाम को हैपी इंडियन विलेज (एचआयवी) नाम से जाने जानेवाले सेवालय के दूसरे कैंपस में गया| यहाँ एक बहुत बड़ा भवन बन रहा है| यहाँ अठारह के उपर के बच्चे और अन्य कार्यकर्ता रहते हैं| हैपी इंडियन विलेज एक तरह का पुनर्वास केन्द्र हैं| जो बच्चे अठारह के बाद बाल गृह में नही रह सकते हैं, वे यहाँ रहते हैं और सेवालय के कार्य में योगदान देते हैं| समाज और परिवार में पुनर्वसन हो जाने तक बच्चे यहाँ रह सकते हैं| सभी बच्चों को यहाँ शिक्षा, पोषण, स्वास्थ्य देखभाल, एआरटी उपचार आदि के साथ अलग अलग हुनर भी सीखाए जाते हैं|
हैपी इंडियन विलेज का स्थान
बच्चों से मिलते समय इसका प्रमाण भी मिला| बच्चे बिना थके दिन भर डान्स की प्रैक्टीस कर रहे हैं| १ दिसम्बर- जागतिक एड्स निर्मूल दिन पर उनका म्युजिक शो होनेवाला है| सेवालय के बच्चों ने हैपी म्युजिक शोज से अपनी अलग पहचान बनाई है| बच्चों को अलग अलग हुनर देने के क्रम में एक बार यहाँ एक नृत्य शिक्षिका आई और बच्चों का ऑर्केस्ट्रा उसने बनाया| फिर बच्चे उसमें बड़ी तेज़ी से आगे बढे| उनका सीखना और उनके हुनर देख कर धीरे धीरे उनका एक समूह बन गया| अब पीछले तीन सालों से यहाँ के बच्चे हैपी म्युजिक शोज करते हैं| समाज में जा कर अपना हुनर दिखाते हैं| सेवालय का कार्य इस माध्यम के द्वारा लोगों तक पहुँचता है और इसी माध्यम से कई लोग भी सेवालय से जुड़ते हैं| साथ ही सेवालय के काम के लिए निधि भी मिलता है| इन म्युजिक शोज के द्वारा कुछ हद तक आज सेवालय आत्मनिर्भर हो गया है| यह एक बेहद अनुठा उदाहरण लगा| जो बच्चे समाज की नजर में अस्पृश्य जैसे थे, समाज जिन्हे नकारता था, वे ही बच्चे आज आत्मनिर्भर हुए हैं और आत्मविश्वास से भरे हैं, तो क्रान्ति इससे अलग क्या हो सकती है? इन बच्चों के डान्स का उनकी सेहत पर भी सकारात्मक असर हुआ| एचआयवी की एआरटी ट्रीटमेंट को उनका शरीर बेहतर प्रतिसाद देने लगा| ऐसे बच्चे कम बार बीमार होते हैं, ऐसा देखा गया|
सेवालय के कार्यकर्ताओं में से एक प्रणील जी से भी अच्छी बातचीत हुई| ये भी मास्टर इन सोशल वर्क हैं और पीछले कई वर्षों से सेवालय के साथ जुड़े हैं| मेरे कुछ मित्रों को भी ये जानते हैं! आज उनकी तरह कई लोग अपना अपना व्यवसाय करते हुए भी सेवालय के लिए काम करते हैं| जैसे एक पॉजिटीव बच्चे के पिताजी भी यहाँ आए और अब वे ऑल राउंडर की तौर पर ड्रायविंग से ले कर सभी काम करते हैं| वस्तुत: इसे काम भी नही कहना चाहिए| माँ जब बच्चे का ख्याल रखती है, तो माँ के लिए वह काम ही नही होता है| बस सब सहज होता है| यहाँ भी सब देख कर ऐसा ही लग रहा है| और ऐसे कार्यकर्ताओं की बड़ी सूचि में परभणी के मेरे मित्र डॉ. पवन चांडक भी हैं| परभणी में जब एचआयवी बाल गृह बन्द हुआ और कई बच्चों का भविष्य संकट में आया, तब उनके प्रयास से वे बच्चे यहाँ आए| वहाँ से चांडक जी सेवालय से जुड़ गए| उनकी HARC संस्था द्वारा (जिसके बारे में पहले लेखों में बता चूका हूँ) वे सेवालय और अन्य बाल गृहों के लिए तरह तरह की सहायता जुटाते हैं| उनकी चिकित्सा करते हैं, उनके लिए पोषक आहार उपलब्ध कराते हैं और लड़कियों को सैनिटरी नैपकीन तक उपलब्ध कराते हैं| यह सब काम देख कर मैने भी इसमें छोटा डोनेशन दिया|
बच्चों के साथ भी गपशप हुई| उन्होने उनके गाने कहे, अपने पसन्दीदा खेल खेले| ऐसी बातों में ही रात हो गई| रात में अचानक बरसात हुई| मौसम का नूर ही बदल गया| लेकीन कार्यकर्ता चौकन्ने हैं, उन्होने सब इन्तजाम किया| बच्चों को कोई असुविधा न हो, इसका ख्याल रखा| आज यह काम आगे बढ़ रहा है, लेकीन फिर भी समाज के भेदभाव का काला साया इस पर है| इसलिए कोई भी समस्या हो, उसका अन्त तब तक नही होता है जब तक समाज में उसके बारे में जागरूकता नही होती है| हम सबको यह समझना चाहिए| गलत धारणाओं के बारे में जागरूक हो कर क्या सही है, यह जानने के लिए प्रयास करना चाहिए|
सेवालय के बारे में अधिक जानने के लिए और सहभाग हेतु सम्पर्क करने के लिए:
Amhi Sevak Sanstha, Sevalay At/Post: Hasegaon
Tal: Ausa Dist: Latur, Maharashtra.
Email: sevalayravi@gmail.com
contact@sevalay.org
Contact: 9503177700, 9970093457
Web: http://sevalay.org/about-us/
अगला भाग: एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव ८. हसेगांव (लातूर) से अहमदपूर
मेरी पीछली साईकिल यात्राओं के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं: www.niranjan-vichar.blogspot.com
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१८ नवम्बर की भोर, यात्रा का सांतवा दिन| आज रविवार है और आज का चरण वैसे छोटा भी है| आज ७५ किलोमीटर साईकिल चलानी है और लगातार कई दिनों तक साईकिल चलाने से ये ७५ किलोमीटर अब सिर्फ लग रहे हैं| जैसे एक पेडल मारने से साईकिल अपने आप कुछ आगे जाती है, एक पेडल का मूमेंटम दूसरे पेडल में मिलता है, उसी प्रकार कई दिनों का मूमेंटम अब मेरे पास है| बस डर एक ही है कि आज के रूट पर भी कुछ हद तक निम्न दर्जे की सड़क है| ठीक सवा छह बजे अंबेजोगाई से निकला| यशवंतराव चव्हाण चौक में कल मेरा स्वागत हुआ था, वहीं से लातूर रोड़ की तरफ बढ़ा| शहर से बाहर निकलने तक सड़क ठीक है, लेकीन जब पहला मोड़ आया, तो सड़क बिल्कुल टूटी फूटी मिली| लेकीन यहाँ के लोगों ने बताया कि जल्द ही अच्छी सड़क मिलेगी, इस सड़क का लगभग काम पूरा हो चुका है| और मै अब तक ऐसी ऐसी सड़कों से गुजर चुका हूँ कि मुझे सड़क कम दर्जे की हो तो कुछ फर्क ही नही लग रहा है| उसका भी अभ्यास हो गया है| इसलिए पथरिली सड़क पर भी आराम से आगे बढ़ा| दूर से गिरवली सबस्टेशन का परिसर और अंबेजोगाई- परली रोड़ पर स्थित टीवी टॉवर दिखा| बचपन में अक्सर यहाँ आया करता था! उस परिसर का दूर दर्शन कर यादों को ताज़ा कर लिया| थोड़ी ही दूरी पर अच्छा दो लेन का हायवे मिला| अब लातूर तक अच्छा हायवे होगा|
आज मुझे तीसरे बाल गृह में विजिट करनी है| लातूर के पास हसेगांव में स्थित सेवालय| हायवे अच्छा मिलने से आसानी से आगे बढ़ता रहा| धीरे धीरे लातूर पास आ रहा है| लगभग तीन दिन तक सड़क ने परेशान किया है, उसके बाद आज तो मख्खन जैसी सड़क! साईकिल चलाने का स्वाद लेते हुए बिना रूके आगे बढ़ा| आज शायद मै चार घण्टों में ही पहुँच जाऊँगा| रास्ते में रेणापूर के पास और एक विश्राम लिया| यहाँ से लातूर बहुत पास है| आज लातूर के रूप में मुझे इस यात्रा में पहली बार ऐसा कोई शहर मिलेगा जहाँ साईकिल का कोई ठीक दुकान होगा| पहले तीन दिनों तक तो मुझे टायर बदलने की बड़ी इच्छा थी| लेकीन उसके बाद लगातार तीन दिनों तक पंक्चर भी नही हुआ| और तब यह भी पता चला कि मेरे जो लगातार दो दिन पंक्चर हुए थे, वे एक ही तार के टूकडे के कारण हुए थे| उसके बाद कई डरावनी सड़कों पर पंक्चर हुआ ही नही| इसलिए नए टायर लेने का विचार फिलहाल छोड दिया है| बस बार बार टायर प्रेशर चेक कर रहा हूँ, लगभग हर दिन थोड़ी हवा भरता हूँ| और टायर भी जाँचता हूँ| इसलिए टायर बदलने की जरूरत नही रही है| और किसी भी कोशिश में सबसे बड़ी बात मानसिक प्रक्रिया होती है| जैसे यह १४ दिनों में ११६५ किलोमीटर की यात्रा शारीरिक है, वैसे मानसिक भी है| और इतने दिनों के चरण पूरे होने पर मानसिक दृष्टि से यह बहुत आसान हो गया है| या कहिए कि मानसिक दृष्टि से यात्रा पूरी ही हुई है, सिर्फ execution बाकी है| उसमें दिक्कतें आएंगी, एक या दो बार पंक्चर भी होने की सम्भावना है| लेकीन सब कुछ मैनेज हो जाएगा| इतना मूमेंटम मुझे मिल चुका है| आज कुछ बादल भी छाएं हैं जिससे मुझे गर्मी से थोड़ी राहत भी मिल गई|
लातूर शहर में एक मज़ेदार किस्सा हुआ| साईकिल चलाते समय अचानक कोई मेरे पास से गया और उसने कहा, 'हां मैने भी किया है'| एक पल के लिए मै नही समझा| लेकीन तुरन्त पता चला कि उसने मेरे टी- शर्ट पर होनेवाले सवाल का जवाब दिया है! 'मैने एचआयवी टेस्ट की है, आपने?' यह वह सवाल! लातूर से आगे औसा रोड़ पर बुधोडा गांव पर टर्न लिया| यहाँ से अन्दरूनी गाँव शुरू हुए| जगह जगह पर पूछताछ करते हुए हसेगांव की तरफ बढ़ चला| यह लगभग लातूर के पास ही है, लेकीन सड़क घूम घूम कर जाती है| सड़क लेकीन बहुत अच्छी मिली| छोटे गाँव होने पर भी शानदार सड़क! यहाँ से कर्नाटक सीमा दूर नही हैं| हिप्परेसोगा जैसे गांवों के नाम से पता चल रहा है| अन्त में पूछताछ करने के कारण थोड़ा अधिक समय लगा| लेकीन पाँच घण्टों के अन्दर मै हसेगांव, सेवालय में पहुँचा| आज ७५ किलोमीटर हुए और कुल ७ दिनों में ५८९ किलोमीटर हो गए| एक तरह से तो विश्वास ही नही हो रहा है! लेकीन आज की विजिट के बाद आधी यात्रा पूरी हो जाएगी!
सेवालय कैंपस में आने पर बच्चों ने और सेवालय के संस्थापक रवी बापटले जी ने उत्साह के साथ स्वागत किया| जिनकी पहले चर्चा की थी, वे डॉ. पवन चांडक जी अक्सर सेवालय में आते हैं, यहाँ के लिए वे सहायता भी जुटाते हैं और यहाँ पर उन्होने दो साईकिलें भी बच्चों के लिए दी हैं| अत: यहाँ मेरे साईकिल यात्रा के लिए बहुत उत्साह है| लातूर जिले के एचआयवी पर काम करनेवाले सरकारी कर्मचारी और विहान प्रोजेक्ट के लोगों से भी यहीं पर मिलना हुआ| मेरी सुविधा के लिए लातूर के सरकारी अस्पताल के बजाय वे यहीं पर आए| हालांकी आज रविवार होने से संख्या कम थी| पहले उनके साथ चर्चा हुई| मेरे कारण कई दिनों के बाद उनका सेवालय में आना हो रहा है| उन्होने बताया कि अब प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और उपकेन्द्र पर भी एचआयवी की जाँच होती है| एचआयवी होनेवाले लोगों को जल्द सरकारी बस में मुफ्त यात्रा की सुविधा भी मिलेगी| कुछ देर तक यह चर्चा चली| सेवालय के अन्य कार्यकर्ताओं से भी मिलना हुआ| उसके बाद रवी बापटले जी सेवालय के दूसरे कैंपस में चल रहे निर्माण कार्य देखने के लिए उस तरफ गए| मै नहा कर विश्राम करने लगा| सेवालय के कैंपस में कई कुटियाँ हैं| इनमें से एक कुटि में मै ठहरा|
हैपी इंडियन विलेज पर चल रहा निर्माण कार्य
दोपहर के विश्राम के बाद शाम को सबसे मिलने के लिए तैयार हुआ| रवी जी सेवालय के दूसरे कैंपस में ही हैं| इसलिए अन्य सदस्यों से बातचीत हुई| यह कैंपस बहुत बड़े संघर्ष के बाद फलती फुलती संस्था का उदाहरण है| रवी जी मूल रूप से पत्रकार थे| पत्रकारिता में अपना करिअर कर रहे थे| एक दिन उन्हे सुनने में आया कि एक गाँव में एक एचआयवी होनेवाले बच्चे की स्थिति बेहद विपरित है| तब वे उसे देखने गए| उसकी स्थिति बेहद विपरित ही थी, कहने के लिए शब्द भी काफी नही है| सभी ने उसे अस्पृश्य मान कर अलग- थलक कर दिया था| उसके घावों में किड़े हो गए थे| शरीर सिर्फ हड्डियाँ हुआ था| बाद में उसकी मृत्यु होने पर उसका अन्तिम संस्कार भी नही हो पाया| एचआयवी व्यक्ति का दहन किया तो हमारी मिट्टी भी 'बाधित' होगी या उसके धुए से हमें भी इन्फेक्शन होगा, ऐसी लोगों की सोच थी! ऐसी स्थिति में रवी जी सामने आए और उन्होने यह जिम्मेदारी अपने कन्धों पर ली| बाद में इस विषय के लिए अपना शानदार करीअर छोड दिया| अपने सपनों को राख कर दिया| कुछ लोगों की सहायता से धीरे धीरे यह काम शुरू हुआ| एक सज्जन के डोनेशन से हसेगांव के पास यह जमीन मिली| उस समय तो यहाँ पर सब बन्जर था| लेकीन कई लोगों का निस्पृह योगदान और समाज के भले मानसों की सहायता से धीरे धीरे यहाँ कुछ बच्चों की व्यवस्था का इन्तजाम खड़ा हुआ| लेकीन इन सबके दौरान आसपास के गाँवों से बहुत विरोध भी हुआ| कुछ लोगों ने यहाँ के कार्यकर्ताओं से मारपीट की| इमारत का निर्माण कार्य ध्वस्त कर दिया| उस समय रवी जी ने बड़ा ही बड़ा हृदय रखते हुए उन लोगों के खिलाफ पुलिस कम्प्लेंट करने से परहेज़ किया| क्यों कि उनकी सोच थी कि पुलिस शिकायत से लोग और दूर जाएंगे, उनका विरोध जारी रहेगा| इसलिए उन्होने उसे संवाद से सुलझाने के प्रयास किए| धीरे धीरे लोग इस काम को समझते गए| और जहाँ से लोग इस कार्य में खलल डालने के लिए आते थे, वहीं से कार्यकर्ता भी आने लगे| इस बड़े कार्य के लिए काफी हाथ चाहिए थे, वे भी आसपास के गाँवों से आने लगे| सेवालय के पुराने कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत में यह सब सुननें में आया|
इस संस्था का काम देख कर बार बार यही लग रहा है कि कैसे अगर कोई व्यक्ति अकेला भी अपने दम पर एक राह पर बढ़ता जाता है, तो उसके साथ धीरे धीरे काफिला बनता जाता है; कारवाँ बनता जाता है| इस संस्था का काम इतना बड़ा है कि उसे एक दिन में देख पाना भी सम्भव नही| और इसके कार्यकर्ता इसी कैंपस में हैं, ऐसा भी नही है| शाम को हैपी इंडियन विलेज (एचआयवी) नाम से जाने जानेवाले सेवालय के दूसरे कैंपस में गया| यहाँ एक बहुत बड़ा भवन बन रहा है| यहाँ अठारह के उपर के बच्चे और अन्य कार्यकर्ता रहते हैं| हैपी इंडियन विलेज एक तरह का पुनर्वास केन्द्र हैं| जो बच्चे अठारह के बाद बाल गृह में नही रह सकते हैं, वे यहाँ रहते हैं और सेवालय के कार्य में योगदान देते हैं| समाज और परिवार में पुनर्वसन हो जाने तक बच्चे यहाँ रह सकते हैं| सभी बच्चों को यहाँ शिक्षा, पोषण, स्वास्थ्य देखभाल, एआरटी उपचार आदि के साथ अलग अलग हुनर भी सीखाए जाते हैं|
हैपी इंडियन विलेज का स्थान
बच्चों से मिलते समय इसका प्रमाण भी मिला| बच्चे बिना थके दिन भर डान्स की प्रैक्टीस कर रहे हैं| १ दिसम्बर- जागतिक एड्स निर्मूल दिन पर उनका म्युजिक शो होनेवाला है| सेवालय के बच्चों ने हैपी म्युजिक शोज से अपनी अलग पहचान बनाई है| बच्चों को अलग अलग हुनर देने के क्रम में एक बार यहाँ एक नृत्य शिक्षिका आई और बच्चों का ऑर्केस्ट्रा उसने बनाया| फिर बच्चे उसमें बड़ी तेज़ी से आगे बढे| उनका सीखना और उनके हुनर देख कर धीरे धीरे उनका एक समूह बन गया| अब पीछले तीन सालों से यहाँ के बच्चे हैपी म्युजिक शोज करते हैं| समाज में जा कर अपना हुनर दिखाते हैं| सेवालय का कार्य इस माध्यम के द्वारा लोगों तक पहुँचता है और इसी माध्यम से कई लोग भी सेवालय से जुड़ते हैं| साथ ही सेवालय के काम के लिए निधि भी मिलता है| इन म्युजिक शोज के द्वारा कुछ हद तक आज सेवालय आत्मनिर्भर हो गया है| यह एक बेहद अनुठा उदाहरण लगा| जो बच्चे समाज की नजर में अस्पृश्य जैसे थे, समाज जिन्हे नकारता था, वे ही बच्चे आज आत्मनिर्भर हुए हैं और आत्मविश्वास से भरे हैं, तो क्रान्ति इससे अलग क्या हो सकती है? इन बच्चों के डान्स का उनकी सेहत पर भी सकारात्मक असर हुआ| एचआयवी की एआरटी ट्रीटमेंट को उनका शरीर बेहतर प्रतिसाद देने लगा| ऐसे बच्चे कम बार बीमार होते हैं, ऐसा देखा गया|
सेवालय के कार्यकर्ताओं में से एक प्रणील जी से भी अच्छी बातचीत हुई| ये भी मास्टर इन सोशल वर्क हैं और पीछले कई वर्षों से सेवालय के साथ जुड़े हैं| मेरे कुछ मित्रों को भी ये जानते हैं! आज उनकी तरह कई लोग अपना अपना व्यवसाय करते हुए भी सेवालय के लिए काम करते हैं| जैसे एक पॉजिटीव बच्चे के पिताजी भी यहाँ आए और अब वे ऑल राउंडर की तौर पर ड्रायविंग से ले कर सभी काम करते हैं| वस्तुत: इसे काम भी नही कहना चाहिए| माँ जब बच्चे का ख्याल रखती है, तो माँ के लिए वह काम ही नही होता है| बस सब सहज होता है| यहाँ भी सब देख कर ऐसा ही लग रहा है| और ऐसे कार्यकर्ताओं की बड़ी सूचि में परभणी के मेरे मित्र डॉ. पवन चांडक भी हैं| परभणी में जब एचआयवी बाल गृह बन्द हुआ और कई बच्चों का भविष्य संकट में आया, तब उनके प्रयास से वे बच्चे यहाँ आए| वहाँ से चांडक जी सेवालय से जुड़ गए| उनकी HARC संस्था द्वारा (जिसके बारे में पहले लेखों में बता चूका हूँ) वे सेवालय और अन्य बाल गृहों के लिए तरह तरह की सहायता जुटाते हैं| उनकी चिकित्सा करते हैं, उनके लिए पोषक आहार उपलब्ध कराते हैं और लड़कियों को सैनिटरी नैपकीन तक उपलब्ध कराते हैं| यह सब काम देख कर मैने भी इसमें छोटा डोनेशन दिया|
बच्चों के साथ भी गपशप हुई| उन्होने उनके गाने कहे, अपने पसन्दीदा खेल खेले| ऐसी बातों में ही रात हो गई| रात में अचानक बरसात हुई| मौसम का नूर ही बदल गया| लेकीन कार्यकर्ता चौकन्ने हैं, उन्होने सब इन्तजाम किया| बच्चों को कोई असुविधा न हो, इसका ख्याल रखा| आज यह काम आगे बढ़ रहा है, लेकीन फिर भी समाज के भेदभाव का काला साया इस पर है| इसलिए कोई भी समस्या हो, उसका अन्त तब तक नही होता है जब तक समाज में उसके बारे में जागरूकता नही होती है| हम सबको यह समझना चाहिए| गलत धारणाओं के बारे में जागरूक हो कर क्या सही है, यह जानने के लिए प्रयास करना चाहिए|
सेवालय के बारे में अधिक जानने के लिए और सहभाग हेतु सम्पर्क करने के लिए:
Amhi Sevak Sanstha, Sevalay At/Post: Hasegaon
Tal: Ausa Dist: Latur, Maharashtra.
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Web: http://sevalay.org/about-us/
अगला भाग: एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव ८. हसेगांव (लातूर) से अहमदपूर
मेरी पीछली साईकिल यात्राओं के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं: www.niranjan-vichar.blogspot.com
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