Monday, December 17, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: ९. अहमदपूर से नान्देड

९. अहमदपूर से नान्देड
 

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२० नवम्बर, इस यात्रा का नौवा दिन| अहमदपूर में सुबह निकलते समय आसमां बिल्कुल साफ है| संयोग से मै यहाँ जिनके पास ठहरा था, वे आज परभणी मेरे पिताजी के पास जा रहे हैं| इसलिए कुछ वजन उनके पास भेज दिया| साईकिल पर लगभग बारह किलो का सामान होगा, उसमें से एक- डेढ किलो कम हुआ| सामान अगर ठीक से रखा जाए, तो महसूस भी नही होता है| और अब इतने दिनों के बाद मुझे बिल्कुल भी महसूस नही होता है| आज का चरण भी छोटा ही है| यहाँ से नान्देड तक ७४ किलोमीटर साईकिल चलाऊँगा| आज के दिन की खास बात यह रहेगी कि नान्देड मेरा ननिहाल है और आज मै मामा के घर पर ठहरूँगा| इस स्वप्नवत् यात्रा का और एक सुनहरा दिन! 






सुबह एक घण्टे की ठण्ड के बाद धूप का मज़ा लेने लगा| हर रोज मुझे तीन मौसम मिलते हैं- पहले एक घण्टे तक काफी ठण्ड, उससे सर्दी भी हो गई है| उसके बाद दो घण्टों तक अच्छी लगनेवाली धूप और अन्तिम एक- दो घण्टे काफी गर्मी| आज के बाद इस यात्रा के सिर्फ पाँच दिन बचेंगे| लेकीन हमारा मन बहुत दौड़ता रहता है| अभी आज का ही दिन पूरा होना बाकी है! आज का हायवे भी बेहद शानदार है| जानकार लोगों की बात माने तो शायद मुझे रिसोड़ तक सड़क की परेशानी नही आएगी| वहाँ तक हायवे पर ही साईकिल चलाऊँगा| लोहा के पहले जब नाश्ता कर रहा था, तो मेरे मित्र और रनिंग में मेरे गुरू बनसकर सर का फोन आया कि लोहा गाँव में उनके एक मित्र मुझसे मिलेंगे! मैने उनसे कहा सर मै मिलूँगा, लेकीन मुझे पाँच मिनट में‌ जाने दिजिए| उन्होने कहा ठीक है| अब नान्देड जिला शुरू हुआ है| बीच में एक सरदार साईकिलबाज भी मिला, शायद वह किसी गुरुद्वारे की यात्रा कर रहा था| मैने हाथ दिखा कर उसका अभिवादन किया| वह भी मुस्कुराया| लोहा के पहले एक छोटा घाट आया, इसे उतरकर लोहा पहुँचा| पाँच मिनट ही मिलना था, लेकीन एक दूसरे को ढूँढते और चाय- गपशप में बीस मिनट हो गए| लेकीन कोई बात नही, आज वैसे भी‌ मुझे पास ही जाना है|



कल बादलों का मौसम होने से मन में एक तरह की अस्वस्थता थी| जब बेमौसम बादल आते हैं, तो हमें अस्वस्थ करते हैं| कोई लोग कहते हैं कि इसका कारण यह होता है कि आकाश इस पंचतत्त्व से हमारा शरीर जुड़ा होता है और अचानक ही बादल आ जाए, तो यह सम्पर्क क्षीण होता है, जिससे मन अशांत होता है| कुछ लोगों को जमीन- धरति से सम्पर्क क्षीण हो जाने पर भी यही‌ अनुभव होता है- जैसे पहाड़ में चढने पर या समन्दर में बोट में‌ बैठने पर| लेकीन आज मौसम बिल्कुल ठीक है और इससे मन का मिजाज भी‌ अच्छा है| देखते देखते आगे की यात्रा पूरी होती गई और जल्द ही मै नान्देड शहर अर्थात् हजूर साहीब नान्देड़ की दस्तक पर पहुँचा| यहाँ मैने गुरू गोबिन्द साहाब कॉलेज से हायवे छोडा और टर्न ले कर नए ब्रिज से सीधा वज़िराबाद में पहुँचा| वहाँ शिवाजी पुतले के पास पुराना सिविल हॉस्पिटल है| यहीं पर अब कार्यक्रम होगा|



संयोग से मेरे नान्देड के मामा भी अपने मित्रों के साथ कार्यक्रम में आ पहुँचे| यहाँ पर स्वागत के समय साईकिल यात्रा के लिए खास बैनर तयार किया था, जिसे देख कर अच्छा लगा| District AIDS  Prevention and Control Unit (डाप्कू), अन्य सरकारी अधिकारी, अमीलकंठवार सर, विहान की टीम, आदर्श शिक्षण प्रसारक मंडळ संस्था के लिंक वर्कर प्रोजेक्ट की टीम, पॉजिटीव नेटवर्क इन सबने स्वागत किया| इसी हॉस्पिटल के पीछे डाप्कू के कक्ष में कार्यक्रम हुआ| इसमें सभी युनिटस के सदस्य उपस्थित है| सबने अपने अपने अनुभव भी कहे| इस चर्चा में दो मुद्दे मुझे विशेष रूप से याद रहे| कई जनों ने यह बात बताई कि, एचआयवी पर काम करने में बड़ी दिक्कतें होती हैं| कई बार पेशंटस को जाँच के लिए ले जाना पड़ता है| इससे कभी कभी इन कर्मियों को या एनजीओज के कार्यकर्ताओं को अपने जेब से खर्च भी करना पड़ता है| और इस तुलना में उन्हे जो मानदेय मिलता है, वह बहुत कम होता है| कुछ जनों ने यह भी कहा, कि मानदेय तो कम होता है, लेकीन वे इसे सिर्फ नौकरी (चाहे सरकार में या संस्था में) के तौर पर नही देखते हैं, बल्की सेवा ही समझते हैं| और जब कोई पेशंट ठीक से ट्रीटमेंट लेने लगता है, तब उन्हे जो सुकून और जो शान्ति मिलती है, वह अनुठी होती है| इसी चर्चा में एक दिदी ने यह भी कहा कि female sex workers के साथ काम करते समय बहुत दिक्कतें होती हैं| उनसे बात तक करना, उनका विश्वास प्राप्त करना भी कठिन होता है| ऐसी स्थिति में उन दिदी ने कहा कि एक बार एक FSW से बात करते समय उन्हे भी ऐसा दिखाना पड़ा कि वे स्वयं भी FSW हैं, तब जा कर संवाद हो सका, बात हो सकी| वाकई यह एक बहुत् अलग दुनिया है! जिन लोगों ने इस क्षेत्र में काम किया है, वही यह समझ सकते हैं| मुझे भी इस विषय के बारे में‌ अभी बहुत कुछ समझना चाहिए| यहीं पर एक बात बता दूँ, मेरे टी- शर्ट पर जो लिखा है, U= U, तो यह एक मिशन का मॅसेज है| विश्व भर में अभी एचआयवी पर जो जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, उसका अभी का एक उद्देश्य यह है कि एचआयवी का वायरस इतना कंट्रोल में आ जाए, इतना सीमित हो जाए जिससे वह undetectable होगा और untransmitable भी होगा| तो U = U का मतलब undetectable and untransmitable स्थिति की तरफ जाना यह है| इसके और भी अर्थ हो सकते हैं- जैसे हम और आप साथ हैं, एक दूसरे के प्रति संवेदनशील है|



चर्चा में मेरे मामा के एक मित्र श्री शेंबोलीकर जी आए थे, उनकाँ ग्रामीण क्षेत्र में बड़ा काम है, ग्राम विकास और जल संवर्धन इस विषय पर उन्होने बड़ा कार्य किया है| उन्हे जलनायक पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है| जब चर्चा में मुद्दा उपस्थित हुआ कि कई बार एचआयवी होनेवाले व्यक्तियों को सरकारी सुविधाओं के लाभ लेने में दिक्कत होती हैं, जैसे गम्भीर रोग के रुग्णों को मिलनेवाले सरकारी लाभ उन्हे मिलते हैं, लेकीन उसके लिए उन्हे डॉक्युमेंटस देने पड़ते हैं और इसके लिए बहुत दिक्कते होती हैं, उनका एचआयवी स्टेटस वे जाहीर नही कर सकते हैं| इसलिए ऐसी डॉक्युमेंटस प्राप्त करना (जैसे सरपंच के द्वारा गम्भीर रोग होने के पत्र पर दस्तखत प्राप्त करना) कई बार कठिन होता है| इस समय शेम्बोलीकर जी ने कहा कि वे इसके बारे में सम्बन्धित लोगों से बात करेंगे| आवश्यकता हो तो सरकार के सामने भी इनका पक्ष रखेंगे| मुझे लगा कि जगह जगह पर मेरे अभियान में जो कार्यक्रम हो रहे हैं, उनका यह एक दृश्य परिणाम है| कई तरह से लोग- अधिकारी- एनजीओज के कार्यकर्ता- आपस में जुड़ रहे हैं और इसका लाभ उनके कार्य को भी हो रहा है| खैर|



काफी देर तक यह कार्यक्रम चला| कार्यक्रम के बाद नान्देड़ में ही और तीन किलोमीटर साईकिल चला कर मामा के घर पहुँचा| ननिहाल होने से काफी यादें भी हैं! लेकीन उन्हे संवारने के लिए समय नही है| मेरे कई साईकिल मित्र नान्देड़ में भी हैं| लेकीन वे भी एक साईकिल यात्रा पर गए हैं| एक बार लगा कि नान्देड़ में इस साईकिल का मैकेनिक होगा, तो उससे साईकिल चेक कर लेता हूँ| लेकीन बाद में इच्छा नही हुई| सिर्फ साईकिल की एक बार जाँच की| पुर्जे- आदि जाँचे| हर दिन का क्रम जारी रहा| इस पूरी यात्रा में मेरे लिए यह बात बहुत अच्छी रही कि एक- दो दिन छोड कर मुझे अर्जंट सबमिशन्स/ डेडलाईन्स नही आए| और एक- दो छोटे सबमिशन्स आए, वो साईकिल चलाते समय ही करने थे, जिन्हे मै कर नही पाया| लेकीन वे छोटे ही थे और बाद में ऐसी दिक्कत भी नही हुई| मामा और मामी के साथ गपशप भी हुई| इस तरह साईकिल पर यहाँ आना अब भी सपने जैसा लग रहा है| कई बार सच भी सपने जैसा हो जाता है! खैर| अब बाकी हैं पाँच दिन|

अगला भाग: एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव १०. नान्देड से कळमनुरी

मेरी पीछली साईकिल यात्राओं के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं: www.niranjan-vichar.blogspot.com

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