१४. रिसोड से परभणी
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२५ नवम्बर की सुबह! इस यात्रा का आखरी दिन है| आज परभणी में समापन कार्यक्रम होनेवाला है| इस साईकिल यात्रा में अन्तिम दिन कब आता है, यह डेस्परेशन तो बिल्कुल नही था, लेकीन एक रोमांच जरूर है| और यह रोमांच आज भी जारी रहेगा| क्यों कि आज कुछ दूरी मुझे अज्ञात सड़क से पार करनी है| अज्ञात या जिसकी स्थिति अज्ञात है, ऐसी सड़क| और आगे भी बीच बीच में कम दर्जे की सड़क मिलेगी, जिससे आज का यह चरण थोड़ा अधिक समय लेगा| रिसोड ग्रामीण रुग्णालय में श्री निखाडे सर के घर चाय पी कर निकला| कल निखाडे सर ने बताया था कि एक जमाने में जब रिसोड अकोला जिले में था, तब यहाँ की पोस्टींग पनिशमेंट समझी जाती थी! क्यों कि रिसोड एक तरह से काफी दूर दराज का इलाका है| उजाला होते होते निकला| रिसोड से साखरा और हत्ता गाँव की सड़क से येलदरी जाऊँगा| शुरू में लोणार की ओर जानेवाली सड़क है| लेकीन क्या माहौल है! बिल्कुल सुनसान सड़क, बहुत देर में कोई वाहन मिल रहा है| और सब तरफ खेत- कुदरत का राज! कुछ किलोमीटर तक तो सड़क अच्छी है, यह पता था| असली मज़ा उसके बाद शुरू होगा!
जैसे जैसे साखरा पास आता गया, धीरे धीरे सड़क साधारण होने लगी| यह सड़क मुख्य शहरों को जोड़ती नही है, बल्की सिर्फ अन्दर के गाँवों को जोड़ती है| आराम से आगे बढता रहा| बीच बीच में अच्छे नजारे भी मिल रहे हैं, जिससे फोटो लेने का मन कर रहा है| बीच में एक किलोमीटर तक बिल्कुल पथरिली- उखडी हुई सड़क मिली| बहुत सावधानी से और धिमी रफ्तार से जाने लगा| इस यात्रा में कम से कम तीन बार इस तरह की सड़कों से सामना हुआ है, इसलिए कोई परेशानी नही हुई| लगभग एक किलोमीटर के बाद सड़क फिर ठीक होने लगी! और बाद में फिर अच्छी सड़क मिली! साखरा में पहुँचने पर चाय- बिस्कीट- चिप्स खाए| वैसे साथ में भी चिक्की आदी लिए हैं| इसके बाद अब येलदरी या जिन्तूर तक रूकना नही है| साखरा के बाद सड़क बदल गई| जैसे ही हत्ता गाँव में पहुँचा, सेनगांव- जिन्तूर हायवे मिल गया| यहाँ तीन जिलों की सीमाएँ बहुत करीब हैं- वाशिम, हिंगोली और परभणी जिला| यहाँ से येलदरी अब सिर्फ नौ किलोमीटर| मै पहले साईकिल पर येलदरी आया हूँ, इसलिए येलदरी पहुँचना ही मेरे लिए मानसिक दृष्टि से घर पहुँचने जैसा लग रहा है| येलदरी के पहले तक सड़क शानदार रही| यहाँ डैम और रिजरवॉयर भी है| उसके दृश्य बहुत खूब दिखे| और यहाँ के नजारे तो बहुत बहुत सुन्दर लगे! छोटी पहाडियाँ और चढती- उतरती सड़क! परभणी से तुलना में पास होने के बावजूद इस सड़क पर पहले कभी आया नही था! घाट जैसा ही दृश्य है! मज़ा आ गया| और दूर से दिखता हुआ येलदरी डैम का पानी! आराम से आगे बढ़ता रहा| फोटो खींचने के लिए रूकता भी रहा|
यहाँ तक की सड़क मुझे बहुत पसन्द आई| इस यात्रा में ऐसी अन्दरूनी और निम्न दर्जे की सड़कों से दोस्ती सी हो गई है| इनका अपना मज़ा होता है| कोई भीड भाड नही, कुदरत के करीब जाने का अनुभव और नजारों का साथ होता है| हायवे पर साईकिल चलाने से यह सब कुछ अलग होता है| और महसूस भी होता है कि मै कोई दूसरी जगह जा रहा हूँ| साथ ही कई बार हमारा मन साईकिल को भी एक टारगेट बना देता है- इतनी रफ्तार चाहिए, इतनी टायमिंग चाहिए, वे धारणाएँ भी ऐसी निर्जन और विरान लेकीन सुहावनी सड़कों पर बिखर जाती हैं| कुदरत और स्वयं के साथ भी अच्छा संवाद हो जाता है! ...येलदरी गाँव तक हिंगोली जिला है| यहाँ तक अच्छी सड़क है| लेकीन जैसे ही गाँव पार किया, सड़क की स्थिति बुरी हो गई| यहाँ डैम के पानी के उपर से एक बिना बॅरीकेड का पूल है| कुछ संकरी सड़क, कोई बैरीकेड नही और सीधा नीचे तालाब जैसा पानी! एक पल के लिए डर लगा, लेकीन तुरन्त उसे क्रॉस किया| तब याद आई बचपन में किए एक पिकनिक की| पिताजी के दोस्तों का एक ग्रूप यहां पर आया था| तब भी यह पूल ऐसा ही डरावना था, आज भी ऐसा ही है! हालांकी इस पर से बसें भी गुजरती हैं! यहाँ कुछ साईकिलवाले भी मिले जो साधारण सी साईकिल भी चढाई पर बड़ी आसानी से चला रहे हैं! और आखिर कर उस स्थान पर पहुँचा, जहाँ पाँच साल पहले मै साईकिल पर आया था| मेरा पहला शतक इसी येलदरी के पास हुआ था! वाह! अब एक तरह से सिर्फ औपचारिकता बाकी है| इसके बाद कुछ ५५ किलोमीटर बाकी हैं, सिर्फ ४८ किलोमीटर ही हुए है, लेकीन अब लग रहा है बाकी की दूरी तैरते तैरते ही पार हो जाएगी| यहाँ पर सड़क लेकीन थोड़ी क्षतिग्रस्त है| इस वजह से रफ्तार नही बढा पा रहा हूँ| धीरे धीरे पहाड़ पीछे रह गए हैं और दूर तक का परिसर दिखाई दे रहा है|
जिन्तूर में एनर्जाल पैकेटस लिए| यहाँ एक बार फिर ब्रेक लिया और नाश्ता किया| जिन्तूर के आगे तो कई बार इस सड़क पर आया हूँ| इसलिए बहुत घर जैसा लग रहा है| अब धूप बढ़ने लगी है| सुबह के ग्यारह बज रहे हैं| लेकीन अब यहाँ से सिर्फ ४५ किलोमीटर बाकी है और बीच बीच में थोड़ी उतराई भी है| लेकीन उसके साथ करीब नौ किलोमीटर सड़क उखडी हुई भी है| इसलिए कहना कठीन है कि कितने बजे पहुँचूंगा| परभणी में तीन बजे कार्यक्रम होनेवाला है| मेरा स्वागत भी किया जाएगा, उसके लिए मेरी लोकेशन वहाँ बताता रहा| आज गर्मी कुछ ज्यादा है| इसलिए थोड़ी तकलीफ होने लगी| फिर भी आगे बढ़ता रहा| धीरे धीरे परभणी पास आएगा| अगर येलदरी के बाद अच्छी सड़क होती, तो परभणी में शायद एक बजे ही पहुँचता| लेकीन सड़क साधारण ही है और बीच बीच में निम्न दर्जे की| इससे साईकिल धिमी रफ्तार में चला रहा हूँ| बोरी और झरी गाँवों के बीच के नौ किलोमीटर तक सड़क टूटी हुई है| फिर भी वहाँ मिट्टी की सड़क अच्छी मिली, जिससे बिल्कुल धिमी रफ्तार से जाने की नौबत नही आई| और झरी के बाद तो ठीक सड़क मिली| और लगभग एक पचास को परभणी में पहुँच गया| उसके पहले लगभग पाँच किलोमीटर आगे आकर कुछ साईकिलिस्टस ने मेरा स्वागत किया| इसमें मेरी बहन अदिती और उसके कुछ मित्र थे| उनको कहा कि धूप बहुत ज्यादा है, आप खुद को हायड्रेटेड रखिए| वाकई वे वहाँ मिलने से आखरी चरण में जो कठिनाई होती है, वह महसूस नही हुई|
इस यात्रा में अब तक अलग अलग तरीकों से मेरा स्वागत किया गया था| कहीं मै पहले पहुँचा था, लोग बाद में आए थे| कहीं मै सड़क पूछ कर जाता था| परभणी तो मेरा गाँव हैं| यहाँ जरूर कुछ 'खास' स्वागत किया जाना चाहिए! और ऐसा ही हुआ| स्वागत के स्थान से आगे पहुंचने के बाद मुझे फोटो खींचने के लिए वापस उलटी दिशा में जाना पड़ा! इससे बहुत हंसी आई! लेकीन यहाँ की संस्था स्वप्नभूमि के कुछ साईकिलिस्ट मिले| उन्होने साईकिल पर बहुत अच्छे तरीके से एचआयव्ही के मैसेज देनेवाले बैनर्स लगाए हैं| इस पूरी यात्रा का समन्वयन जिन्होने किया, वे रिलीफ फाउंडेशन के कार्यकर्ता भी स्वागत के लिए आए| थोड़ा विश्राम कर कार्यक्रम के लिए तैयार हुआ|
परभणी में स्वप्नभूमि संस्था एचआयव्ही पर काम करती है| हर जगह जैसी चर्चा यहाँ पर भी हुई| रिलीफ फाउंडेशन के सदस्यों ने उनकी भुमिका बताई| मेरी पत्नि आशा ने इस यात्रा के उद्देश्य और आयोजन के बारे में बात कही| स्वप्नभूमि संस्था का भी परिचय दिया गया| मैने मेरे अनुभव भी बताए| कार्यक्रम में पत्रकार लोग भी आए हैं, इसलिए उनके सामने भी दो मिनट में मेरे अनुभव कहे| स्वप्नभूमि संस्था कई सामाजिक विषयों पर काम करती हैं| ग्राम विकास, स्वास्थ्य, एचआयव्ही से ले कर बाल अधिकार तक| डॉ. पवन चाण्डक जी भी इस संस्था को सहायता उपलब्ध कराते हैं| वे साईकिल यात्रा पर निकले हैं, इसलिए इस कार्यक्रम में नही आ सके| कार्यक्रम में एचआयव्ही से जुड़े कई समूहों में से होनेवाले व्यक्तियों ने अपनी बात रखी| इसमें समलिंगी, सेक्स वर्कर्स, डॉक्टर आदि सभी का सहभाग रहा| एचआयवी पर जो लोग काम करते हैं, उन्हे भी इस 'कलंक' की नजरों का सामना करना पड़ता है| हमारे समाज की सोच इतनी गलत होती है कि अगर किसी स्थान का सिर्फ नाम भी लिया जाए, तो हमारे मन में एक ही भाव आता है| हम वैसी ही 'नजर' से उस चीज़ को देखते हैं| जैसे कोई आम नागरिक भी रेड लाईट एरिया में रहते हैं| जब वे किसी को अपना पता बताते हैं, तो उन्हे उस स्थान का जिक्र छिपाना पड़ता है| और साथ ही समाज में होनेवाली गलत धारणाएँ- जैसे मच्छर कांटने से एड्स होता है या साथ में खाने से होता है ऐसी गलत धारणाएँ अब भी प्रचलित हैं| कार्यक्रम में इन सब मुद्दों पर चर्चा होती रही| एचआयवी जिनको होता है ऐसे लोग अक्सर समाज की मुख्य धारा से दूर होनेवाले समूहों में होते हैं| जैसे व्यसनाधीन लोग, अशिक्षित लोग, गुंडा गर्दी से ताल्लुक रखनेवाले लोग| इस वजह से भी इनके साथ काम करना कार्यकर्ताओं के लिए कठिन होता है| बहुत देर तक यह चर्चा जारी रही| एचआयव्ही क्षेत्र में काम करनेवाले दिग्गज विशेषज्ञ दीपक निकम जी भी इस कार्यक्रम में आए| वर्तमान में एचआयवी इंटरवेंशन्स में आए परिवर्तन, आगामी रूपरेखा, तकनिक में सुधार आदि पर उन्होने और आशा ने बात की| रिलीफ फाउंडेशन के अध्यक्ष अनिल बोरकर सर भी इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे और वे साईकिल चलाते ही कार्यक्रम स्थल पर आए!
यह सब अनुभव देख कर एक गीत के बोल याद आते हैं-
जहाँ दूर नजर दौडाए, आजाद गगन लहराए
जहाँ रंग बिरंगे पंछी, आशा का संदेसा लाये
सपनो में पली हंसती हो कली, जहाँ शाम सुहानी ढले
जहाँ ग़म भी ना हो आंसू भी ना हो, बस प्यार ही प्यार पले…. इक ऐसे गगन के तले
सपनो के ऐसे जहाँ में जहाँ प्यार ही प्यार खिला हो
हम जा के वहा खो जाये शिकवा ना कोई गिला हो
कही बैर ना हो कोई गैर ना हो, सब मिलके चलते चले
जहाँ ग़म भी ना हो आंसू भी ना हो, बस प्यार ही प्यार पले…. इक ऐसे गगन के तले
... घर पहुँचने पर १०३ किलोमीटर पूरे हुए और ठीक योजना के अनुसार इस यात्रा में ११६५ किलोमीटर पूरे हो गए! बहुत ही शानदार यह यात्रा रही! साईकिल ने जो साथ निभाया, उसका तो जवाब नही है| इस चौदह दिन की यात्रा में बहुत कुछ सीखने को मिला, समझने को मिला| यह समस्या कितनी बड़ी है, और इस समस्या पर कितना बड़ा काम भी चल रहा है, यह समझने का मौका मिला| साईकिलिंग के सम्बन्ध में भी बहुत कुछ सीखने को मिला| इसके बारे में और इस पूरी यात्रा से जुड़े कुछ अन्य अनुभवों के बारे में अगले और अन्तिम लेख में आपसे बात करता हूँ|
अगला भाग: एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव १५. यात्रा के अनुभवों पर सिंहावलोकन
मेरी पीछली साईकिल यात्राओं के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं: www.niranjan-vichar.blogspot.com
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२५ नवम्बर की सुबह! इस यात्रा का आखरी दिन है| आज परभणी में समापन कार्यक्रम होनेवाला है| इस साईकिल यात्रा में अन्तिम दिन कब आता है, यह डेस्परेशन तो बिल्कुल नही था, लेकीन एक रोमांच जरूर है| और यह रोमांच आज भी जारी रहेगा| क्यों कि आज कुछ दूरी मुझे अज्ञात सड़क से पार करनी है| अज्ञात या जिसकी स्थिति अज्ञात है, ऐसी सड़क| और आगे भी बीच बीच में कम दर्जे की सड़क मिलेगी, जिससे आज का यह चरण थोड़ा अधिक समय लेगा| रिसोड ग्रामीण रुग्णालय में श्री निखाडे सर के घर चाय पी कर निकला| कल निखाडे सर ने बताया था कि एक जमाने में जब रिसोड अकोला जिले में था, तब यहाँ की पोस्टींग पनिशमेंट समझी जाती थी! क्यों कि रिसोड एक तरह से काफी दूर दराज का इलाका है| उजाला होते होते निकला| रिसोड से साखरा और हत्ता गाँव की सड़क से येलदरी जाऊँगा| शुरू में लोणार की ओर जानेवाली सड़क है| लेकीन क्या माहौल है! बिल्कुल सुनसान सड़क, बहुत देर में कोई वाहन मिल रहा है| और सब तरफ खेत- कुदरत का राज! कुछ किलोमीटर तक तो सड़क अच्छी है, यह पता था| असली मज़ा उसके बाद शुरू होगा!
जैसे जैसे साखरा पास आता गया, धीरे धीरे सड़क साधारण होने लगी| यह सड़क मुख्य शहरों को जोड़ती नही है, बल्की सिर्फ अन्दर के गाँवों को जोड़ती है| आराम से आगे बढता रहा| बीच बीच में अच्छे नजारे भी मिल रहे हैं, जिससे फोटो लेने का मन कर रहा है| बीच में एक किलोमीटर तक बिल्कुल पथरिली- उखडी हुई सड़क मिली| बहुत सावधानी से और धिमी रफ्तार से जाने लगा| इस यात्रा में कम से कम तीन बार इस तरह की सड़कों से सामना हुआ है, इसलिए कोई परेशानी नही हुई| लगभग एक किलोमीटर के बाद सड़क फिर ठीक होने लगी! और बाद में फिर अच्छी सड़क मिली! साखरा में पहुँचने पर चाय- बिस्कीट- चिप्स खाए| वैसे साथ में भी चिक्की आदी लिए हैं| इसके बाद अब येलदरी या जिन्तूर तक रूकना नही है| साखरा के बाद सड़क बदल गई| जैसे ही हत्ता गाँव में पहुँचा, सेनगांव- जिन्तूर हायवे मिल गया| यहाँ तीन जिलों की सीमाएँ बहुत करीब हैं- वाशिम, हिंगोली और परभणी जिला| यहाँ से येलदरी अब सिर्फ नौ किलोमीटर| मै पहले साईकिल पर येलदरी आया हूँ, इसलिए येलदरी पहुँचना ही मेरे लिए मानसिक दृष्टि से घर पहुँचने जैसा लग रहा है| येलदरी के पहले तक सड़क शानदार रही| यहाँ डैम और रिजरवॉयर भी है| उसके दृश्य बहुत खूब दिखे| और यहाँ के नजारे तो बहुत बहुत सुन्दर लगे! छोटी पहाडियाँ और चढती- उतरती सड़क! परभणी से तुलना में पास होने के बावजूद इस सड़क पर पहले कभी आया नही था! घाट जैसा ही दृश्य है! मज़ा आ गया| और दूर से दिखता हुआ येलदरी डैम का पानी! आराम से आगे बढ़ता रहा| फोटो खींचने के लिए रूकता भी रहा|
यहाँ तक की सड़क मुझे बहुत पसन्द आई| इस यात्रा में ऐसी अन्दरूनी और निम्न दर्जे की सड़कों से दोस्ती सी हो गई है| इनका अपना मज़ा होता है| कोई भीड भाड नही, कुदरत के करीब जाने का अनुभव और नजारों का साथ होता है| हायवे पर साईकिल चलाने से यह सब कुछ अलग होता है| और महसूस भी होता है कि मै कोई दूसरी जगह जा रहा हूँ| साथ ही कई बार हमारा मन साईकिल को भी एक टारगेट बना देता है- इतनी रफ्तार चाहिए, इतनी टायमिंग चाहिए, वे धारणाएँ भी ऐसी निर्जन और विरान लेकीन सुहावनी सड़कों पर बिखर जाती हैं| कुदरत और स्वयं के साथ भी अच्छा संवाद हो जाता है! ...येलदरी गाँव तक हिंगोली जिला है| यहाँ तक अच्छी सड़क है| लेकीन जैसे ही गाँव पार किया, सड़क की स्थिति बुरी हो गई| यहाँ डैम के पानी के उपर से एक बिना बॅरीकेड का पूल है| कुछ संकरी सड़क, कोई बैरीकेड नही और सीधा नीचे तालाब जैसा पानी! एक पल के लिए डर लगा, लेकीन तुरन्त उसे क्रॉस किया| तब याद आई बचपन में किए एक पिकनिक की| पिताजी के दोस्तों का एक ग्रूप यहां पर आया था| तब भी यह पूल ऐसा ही डरावना था, आज भी ऐसा ही है! हालांकी इस पर से बसें भी गुजरती हैं! यहाँ कुछ साईकिलवाले भी मिले जो साधारण सी साईकिल भी चढाई पर बड़ी आसानी से चला रहे हैं! और आखिर कर उस स्थान पर पहुँचा, जहाँ पाँच साल पहले मै साईकिल पर आया था| मेरा पहला शतक इसी येलदरी के पास हुआ था! वाह! अब एक तरह से सिर्फ औपचारिकता बाकी है| इसके बाद कुछ ५५ किलोमीटर बाकी हैं, सिर्फ ४८ किलोमीटर ही हुए है, लेकीन अब लग रहा है बाकी की दूरी तैरते तैरते ही पार हो जाएगी| यहाँ पर सड़क लेकीन थोड़ी क्षतिग्रस्त है| इस वजह से रफ्तार नही बढा पा रहा हूँ| धीरे धीरे पहाड़ पीछे रह गए हैं और दूर तक का परिसर दिखाई दे रहा है|
जिन्तूर में एनर्जाल पैकेटस लिए| यहाँ एक बार फिर ब्रेक लिया और नाश्ता किया| जिन्तूर के आगे तो कई बार इस सड़क पर आया हूँ| इसलिए बहुत घर जैसा लग रहा है| अब धूप बढ़ने लगी है| सुबह के ग्यारह बज रहे हैं| लेकीन अब यहाँ से सिर्फ ४५ किलोमीटर बाकी है और बीच बीच में थोड़ी उतराई भी है| लेकीन उसके साथ करीब नौ किलोमीटर सड़क उखडी हुई भी है| इसलिए कहना कठीन है कि कितने बजे पहुँचूंगा| परभणी में तीन बजे कार्यक्रम होनेवाला है| मेरा स्वागत भी किया जाएगा, उसके लिए मेरी लोकेशन वहाँ बताता रहा| आज गर्मी कुछ ज्यादा है| इसलिए थोड़ी तकलीफ होने लगी| फिर भी आगे बढ़ता रहा| धीरे धीरे परभणी पास आएगा| अगर येलदरी के बाद अच्छी सड़क होती, तो परभणी में शायद एक बजे ही पहुँचता| लेकीन सड़क साधारण ही है और बीच बीच में निम्न दर्जे की| इससे साईकिल धिमी रफ्तार में चला रहा हूँ| बोरी और झरी गाँवों के बीच के नौ किलोमीटर तक सड़क टूटी हुई है| फिर भी वहाँ मिट्टी की सड़क अच्छी मिली, जिससे बिल्कुल धिमी रफ्तार से जाने की नौबत नही आई| और झरी के बाद तो ठीक सड़क मिली| और लगभग एक पचास को परभणी में पहुँच गया| उसके पहले लगभग पाँच किलोमीटर आगे आकर कुछ साईकिलिस्टस ने मेरा स्वागत किया| इसमें मेरी बहन अदिती और उसके कुछ मित्र थे| उनको कहा कि धूप बहुत ज्यादा है, आप खुद को हायड्रेटेड रखिए| वाकई वे वहाँ मिलने से आखरी चरण में जो कठिनाई होती है, वह महसूस नही हुई|
इस यात्रा में अब तक अलग अलग तरीकों से मेरा स्वागत किया गया था| कहीं मै पहले पहुँचा था, लोग बाद में आए थे| कहीं मै सड़क पूछ कर जाता था| परभणी तो मेरा गाँव हैं| यहाँ जरूर कुछ 'खास' स्वागत किया जाना चाहिए! और ऐसा ही हुआ| स्वागत के स्थान से आगे पहुंचने के बाद मुझे फोटो खींचने के लिए वापस उलटी दिशा में जाना पड़ा! इससे बहुत हंसी आई! लेकीन यहाँ की संस्था स्वप्नभूमि के कुछ साईकिलिस्ट मिले| उन्होने साईकिल पर बहुत अच्छे तरीके से एचआयव्ही के मैसेज देनेवाले बैनर्स लगाए हैं| इस पूरी यात्रा का समन्वयन जिन्होने किया, वे रिलीफ फाउंडेशन के कार्यकर्ता भी स्वागत के लिए आए| थोड़ा विश्राम कर कार्यक्रम के लिए तैयार हुआ|
परभणी में स्वप्नभूमि संस्था एचआयव्ही पर काम करती है| हर जगह जैसी चर्चा यहाँ पर भी हुई| रिलीफ फाउंडेशन के सदस्यों ने उनकी भुमिका बताई| मेरी पत्नि आशा ने इस यात्रा के उद्देश्य और आयोजन के बारे में बात कही| स्वप्नभूमि संस्था का भी परिचय दिया गया| मैने मेरे अनुभव भी बताए| कार्यक्रम में पत्रकार लोग भी आए हैं, इसलिए उनके सामने भी दो मिनट में मेरे अनुभव कहे| स्वप्नभूमि संस्था कई सामाजिक विषयों पर काम करती हैं| ग्राम विकास, स्वास्थ्य, एचआयव्ही से ले कर बाल अधिकार तक| डॉ. पवन चाण्डक जी भी इस संस्था को सहायता उपलब्ध कराते हैं| वे साईकिल यात्रा पर निकले हैं, इसलिए इस कार्यक्रम में नही आ सके| कार्यक्रम में एचआयव्ही से जुड़े कई समूहों में से होनेवाले व्यक्तियों ने अपनी बात रखी| इसमें समलिंगी, सेक्स वर्कर्स, डॉक्टर आदि सभी का सहभाग रहा| एचआयवी पर जो लोग काम करते हैं, उन्हे भी इस 'कलंक' की नजरों का सामना करना पड़ता है| हमारे समाज की सोच इतनी गलत होती है कि अगर किसी स्थान का सिर्फ नाम भी लिया जाए, तो हमारे मन में एक ही भाव आता है| हम वैसी ही 'नजर' से उस चीज़ को देखते हैं| जैसे कोई आम नागरिक भी रेड लाईट एरिया में रहते हैं| जब वे किसी को अपना पता बताते हैं, तो उन्हे उस स्थान का जिक्र छिपाना पड़ता है| और साथ ही समाज में होनेवाली गलत धारणाएँ- जैसे मच्छर कांटने से एड्स होता है या साथ में खाने से होता है ऐसी गलत धारणाएँ अब भी प्रचलित हैं| कार्यक्रम में इन सब मुद्दों पर चर्चा होती रही| एचआयवी जिनको होता है ऐसे लोग अक्सर समाज की मुख्य धारा से दूर होनेवाले समूहों में होते हैं| जैसे व्यसनाधीन लोग, अशिक्षित लोग, गुंडा गर्दी से ताल्लुक रखनेवाले लोग| इस वजह से भी इनके साथ काम करना कार्यकर्ताओं के लिए कठिन होता है| बहुत देर तक यह चर्चा जारी रही| एचआयव्ही क्षेत्र में काम करनेवाले दिग्गज विशेषज्ञ दीपक निकम जी भी इस कार्यक्रम में आए| वर्तमान में एचआयवी इंटरवेंशन्स में आए परिवर्तन, आगामी रूपरेखा, तकनिक में सुधार आदि पर उन्होने और आशा ने बात की| रिलीफ फाउंडेशन के अध्यक्ष अनिल बोरकर सर भी इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे और वे साईकिल चलाते ही कार्यक्रम स्थल पर आए!
यह सब अनुभव देख कर एक गीत के बोल याद आते हैं-
जहाँ दूर नजर दौडाए, आजाद गगन लहराए
जहाँ रंग बिरंगे पंछी, आशा का संदेसा लाये
सपनो में पली हंसती हो कली, जहाँ शाम सुहानी ढले
जहाँ ग़म भी ना हो आंसू भी ना हो, बस प्यार ही प्यार पले…. इक ऐसे गगन के तले
सपनो के ऐसे जहाँ में जहाँ प्यार ही प्यार खिला हो
हम जा के वहा खो जाये शिकवा ना कोई गिला हो
कही बैर ना हो कोई गैर ना हो, सब मिलके चलते चले
जहाँ ग़म भी ना हो आंसू भी ना हो, बस प्यार ही प्यार पले…. इक ऐसे गगन के तले
... घर पहुँचने पर १०३ किलोमीटर पूरे हुए और ठीक योजना के अनुसार इस यात्रा में ११६५ किलोमीटर पूरे हो गए! बहुत ही शानदार यह यात्रा रही! साईकिल ने जो साथ निभाया, उसका तो जवाब नही है| इस चौदह दिन की यात्रा में बहुत कुछ सीखने को मिला, समझने को मिला| यह समस्या कितनी बड़ी है, और इस समस्या पर कितना बड़ा काम भी चल रहा है, यह समझने का मौका मिला| साईकिलिंग के सम्बन्ध में भी बहुत कुछ सीखने को मिला| इसके बारे में और इस पूरी यात्रा से जुड़े कुछ अन्य अनुभवों के बारे में अगले और अन्तिम लेख में आपसे बात करता हूँ|
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