१०. नान्देड से कळमनुरी
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२१ नवम्बर, इस यात्रा का दसवा दिन| नान्देड में सुबह निकलते निकलते एक योग शिक्षिका से थोड़ी देर मिलना हुआ| इस पूरी यात्रा में कई जगहों पर लोगों से मिलना हो रहा है| यह क्रम इतना लगातार जारी रहा कि २५ नवम्बर को यात्रा पूरी होने के बाद भी कई दिनों तक इसी यात्रा के सपने आते रहे और सपने में यात्रा में कुछ कुछ स्थानों पर लोगों को मिल रहा हूँ, ऐसा लगता रहा! नान्देड के भाग्यनगर से निकला, एअरपोर्ट के रास्ते अर्धापूर की तरफ जानेवाले हायवे पर आया| कुछ दूरी तक उतराई मिली| सुबह की ताज़गी और ठण्डक भी! उसके साथ शानदार मख्खन जैसा हायवे! घी में शक्कर! अभी साईकिल चलाना मानो महसूस ही नही हो रहा है| पहले योजना बनाई थी कि नान्देड से हिंगोली जाऊँगा और अगले दिन हिंगोली से वाशिम जाऊँगा| लेकीन इसमें नान्देड- हिंगोली ९२ किलोमीटर होते और अगले दिन हिंगोली- वाशिम सिर्फ ५१ किलोमीटर ही होते| इसलिए इस असमान चरण को थोड़ा सुधारा और हिंगोली के १८ किलोमीटर पहले कळमनुरी रूकने की योजना बनाई| हिंगोली जिले का केन्द्र था, लेकीन वहाँ का कार्यक्रम कळमनुरी में करने के लिए सभी लोग राज़ी हुए| इससे आज मै सिर्फ ६८ किलोमीटर चलाऊँगा और कल भी लगभग इतने याने ६६ किलोमीटर ही चलाऊँगा| और बाद में ऐसा कुछ हुआ जिससे यह निर्णय बहुत सही साबित हुआ!
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नान्देड़ के आगे अर्धापूर गाँव क्रास करते समय वसमत शहर की तरफ जानेवाला रोड़ लगा| परभणी में मेरा घर वसमत रोड़ पर ही है और यह भी वसमत रोड़ ही हुआ! इसलिए घर पास आने का भाव और भी प्रगाढ हुआ| पर अर्धापूर में टिपू सुलतान चौक देख कर डर लगा! हम ज्ञान के विस्फोट के युग में कितने अज्ञानी हो रहे है! बचपन में गाँवों के नाम का खेल खेलते समय एक गाँव बार बार कहा जाता था- डोंगरकडा! वह गाँव भी आज देखा! इस रूट से पहली बार ही जा रहा हूँ| आगे बढने पर अच्छे नजारे है, छोटे मोटे पहाड़ भी है! आगे वारंगा फाटा से हिंगोली जिला शुरू हुआ जो पूर्व में परभणी जिला ही था! एक तरह से घर पास आने की उत्तेजना बढ़ रही है| लेकीन अब भी चार दिन, नही पाँच दिन बचे हैं! आज शायद मै बहुत जल्द पहुँचनेवाला हूँ... जब इस तरह मनमौजी ढंग से आगे बढ़ रहा था, तभी पता चला की टायर पंक्चर हुआ है! लेकीन एक पल के लिए भी चिन्ता नही महसूस हुई| पास ही होटल है, मैकेनिक का दुकान भी है| इसलिए साईकिल वहाँ ले गया| मैकेनिक का दुकान तो बन्द है, इसलिए होटल में से ही एक मग लाना पड़ा| अभी पंक्चर निकाल सकता हूँ, इसलिए ट्युब चेंज करने के बजाय पंक्चर निकाल दिया| कुछ नही जी, सिर्फ आधा घण्टा लगा| वह भी सामान उतार कर पूरा क्रिया कर्म करने के बाद सामान पैक करने तक| इस यात्रा में यह तिसरा पंक्चर| अतीत के परभणी जिले ने मेरा कुछ खास तरीके से स्वागत किया! लेकीन अब पंक्चर भी मुझे संकट जैसा महसूस नही हो रहा है| पंक्चर होना और ठीक भी करना सामान्य सी बात हो गई है| साईकिल पंक्चर हुई, सो व्हॉट? ठीक करते हैं| बस इसमें दिक्कत यह हुई कि कुछ समय चला गया और महत्त्वपूर्ण बात यह की साईकिल चलाने की लय कुछ टूट गई| इससे पहुँचने के लिए अधिक समय लगेगा| तब पता चला कि हिंगोली के बजाय कळमनुरी में ठहरने का मेरा निर्णय कितना सही साबित हुआ|
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वारंगा से आगे सड़क थोड़ी छोटी हो गई है| लेकीन ज्यादा ट्रैफिक नही, तो कोई दिक्कत नही है| सुन्दर पहाडियाँ साथ में हैं| बीच में एक होटल पर चिप्स और बिस्कीट लिए| यहाँ बहुत से बच्चे मिले, उनसे थोड़ी बात होती रही| आगे आखाडा बाळापूर नाम के गाँव में चाय और बिस्कीट भी लिए| यहाँ एनर्जाल भी लिया| अब गर्मी बढ़ रही है, इसलिए एनर्जाल आवश्यक होगा| इसके बाद कळमनुरी तक कुछ चढाई होगी| आगे बढ़ने पर घाट तो नही, लेकीन चढाई- उतराईवाली सड़क मिली| छोटे से हिल को क्रॉस कर सड़क आगे जा रही है| परभणी से यह स्थान वैसे तो करीब ही है, लेकीन कभी इस रोड़ पर आना नही हुआ था| इसी चढाई पर सशस्त्र सीमा बल की एक कालनी मिली| इसके बोर्ड का फोटो खींचा तो वहाँ बैठे जवान ने पूछताछ की| थोड़ी देर उनसे बात की, उनसे भी प्रशंसा मिली और आगे बढ़ चला| फिर जल्द ही कळमनुरी के ग्रामीण रुग्णालय में पहुँच गया|
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कळमनुरी में कार्यक्रम कई मायनों में खास रहा| एक तो आठ साल पहले मेरी पत्नि आशा हिंगोली में कळमनुरी की ही संस्था में एचआयवी इसी विषय पर काम करती थी| तो यहाँ के कुछ लोगों से अच्छा परिचय था, वे भी मुझसे मिलना चाहते थे| उन सबसे मिलना हुआ| कुछ लोग दूर से मुझे मिलने के लिए आए| एक जन तो अब इस विषय में काम भी नही करते हैं, लेकीन पहले आशा के साथ इस विषय पर काम किया था, इसलिए मिलने आए| विहान प्रोजेक्ट, लिंक वर्कर प्रोजेक्ट, कयाधू संस्था के सदस्य, लेकुरे गुरूजी, डाप्कू के सदस्य सबसे बातचीत हुई| अब तक ऐसी कई चर्चाओं के बाद मुझे हर जगह पर एचआयवी पर होनेवाला कार्य थोड़ा थोड़ा समझ में आ रहा है| किस प्रकारे रिस्क ग्रूप्स के साथ एनजीओज या सरकारी कर्मी काम करते हैं, किस प्रकार वे उन्हे एचआयवी जाँच के लिए राज़ी करते हैं, किस प्रकार वे फिर ट्रीटमेंट शुरू करते हैं, कैसे कुछ लोग ट्रीटमेंट से ड्रॉप आउट होते हैं, कैसे उन्हे दोबारा समझाना होता है| और इन सबमे स्टिग्मा और सामाजिक विरोध के कारण होनेवाली कठिनाईयाँ| यहाँ एक बात थोड़ी सी शॉकिंग यह लगी कि परभणी- हिंगोली रोड़ पर एक बाजार का गाँव है| मै वहाँ से कई बार साईकिल पर भी गया हूँ! उस गाँव में female sex workers का बड़ा सेंटर है ऐसा बताया गया| और वे लोग छुप छुप के यह काम करते हैं, जिससे कई बार उनसे मिलना नही हो पाता है| रहने की जगह बदलते हैं, सेक्स वर्कर्स के क्लाएंटस बदलते रहते हैं| इतने छोटे गाँव में भी महाराष्ट्र के बाहर से क्लाएंटस आते हैं, यह मुझे शॉकिंग लगा| लेकीन जब संस्था के कार्यकर्ताओं ने बताया कि उन्होने लगातार प्रयास कर कुछ सेक्स वर्कर्स को इस धन्दे से छुडवाया है और उन्हे दूसरे रोजगार के विकल्प दिए हैं, उसके लिए हुनर मिलने में भी सहायता की है, तब अच्छा लगा|
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इससे एक ही बात पता चलती है कि हमारा मन नही मानता है, हम सोचते हैं कि यह "बीमारी" कुछ ही लोगों में होगी, कुछ अपराधी किस्म के या गलत ढंग के लोगों में होती होगी| लेकीन ऐसा बिल्कुल नही है| इस पूरी यात्रा में ऐसे उदाहरण सामने आए जहाँ बिल्कुल अप्रत्याशित मामले में भी एचआयवी पाया गया है| जैसे वृद्ध ग्रामीण जोड़ा हो, बहुत धनवान या पढे लिखे तथा कथित समझदार लोग हो या ऐसे कुछ ऐसे हो जिन्हे प्रोफेशन के लिए लगातार यात्रा करनी होती है या महिलाओं से जिनका ज्यादा सम्बन्ध आता है| जैसे आज तकनीक के लाभ ग्रामीण इलाकों में भी पहुँच गए हैं, वैसे ही यह बीमारी भी पहुँच ही गई है| अच्छा होगा हम हमारे मन से भ्रम निकाल दे| कोई अपराधी किस्म का या गलत ढंग का व्यक्ति ही इसमें फंसता है, ऐसी हमारी सोच नही होनी चाहिए| बल्की हमें यह सोचना चाहिए कि मेरे जैसा कोई भी व्यक्ति इसमें फंस सकता है, लिप्त हो सकता है| इसके बारे में सचेत होना चाहिए| एक बात याद आती है| जब भी कहीं अत्याचार होता है, बलात्कार होता है, तब हमें लगता है कि किसी नरपशू ने, किसी गुंडे ने या किसी गलत इन्सान ने बलात्कार किया| लेकीन ऐसा जो भी आदमी हो, होता तो आदमी ही है, लगभग आप जैसा और मेरे जैसा| होता तो किसी का बेटा, भाई और पति भी| हमें यह नही सोचना चाहिए कि कोई शैतान जैसा इन्सान यह करता है, हमें सोचना यह चाहिए कि एक तरह से मेरे जैसा ही कोई यह कर रहा है| वह भी तो एक "मै" ही है| खैर| इस कार्यक्रम में और भी यह अच्छा लगा कि एचआयवी के साथ इतने सालों से जिते हुए भी लोग खुशहाल तरीके से रहते हैं| जीवन कैसा भी हो, उसे आनन्द के साथ जिया जा सकता है!
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अगला भाग: एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव ११. कळमनुरी से वाशिम
मेरी पीछली साईकिल यात्राओं के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं: www.niranjan-vichar.blogspot.com
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२१ नवम्बर, इस यात्रा का दसवा दिन| नान्देड में सुबह निकलते निकलते एक योग शिक्षिका से थोड़ी देर मिलना हुआ| इस पूरी यात्रा में कई जगहों पर लोगों से मिलना हो रहा है| यह क्रम इतना लगातार जारी रहा कि २५ नवम्बर को यात्रा पूरी होने के बाद भी कई दिनों तक इसी यात्रा के सपने आते रहे और सपने में यात्रा में कुछ कुछ स्थानों पर लोगों को मिल रहा हूँ, ऐसा लगता रहा! नान्देड के भाग्यनगर से निकला, एअरपोर्ट के रास्ते अर्धापूर की तरफ जानेवाले हायवे पर आया| कुछ दूरी तक उतराई मिली| सुबह की ताज़गी और ठण्डक भी! उसके साथ शानदार मख्खन जैसा हायवे! घी में शक्कर! अभी साईकिल चलाना मानो महसूस ही नही हो रहा है| पहले योजना बनाई थी कि नान्देड से हिंगोली जाऊँगा और अगले दिन हिंगोली से वाशिम जाऊँगा| लेकीन इसमें नान्देड- हिंगोली ९२ किलोमीटर होते और अगले दिन हिंगोली- वाशिम सिर्फ ५१ किलोमीटर ही होते| इसलिए इस असमान चरण को थोड़ा सुधारा और हिंगोली के १८ किलोमीटर पहले कळमनुरी रूकने की योजना बनाई| हिंगोली जिले का केन्द्र था, लेकीन वहाँ का कार्यक्रम कळमनुरी में करने के लिए सभी लोग राज़ी हुए| इससे आज मै सिर्फ ६८ किलोमीटर चलाऊँगा और कल भी लगभग इतने याने ६६ किलोमीटर ही चलाऊँगा| और बाद में ऐसा कुछ हुआ जिससे यह निर्णय बहुत सही साबित हुआ!
नान्देड़ के आगे अर्धापूर गाँव क्रास करते समय वसमत शहर की तरफ जानेवाला रोड़ लगा| परभणी में मेरा घर वसमत रोड़ पर ही है और यह भी वसमत रोड़ ही हुआ! इसलिए घर पास आने का भाव और भी प्रगाढ हुआ| पर अर्धापूर में टिपू सुलतान चौक देख कर डर लगा! हम ज्ञान के विस्फोट के युग में कितने अज्ञानी हो रहे है! बचपन में गाँवों के नाम का खेल खेलते समय एक गाँव बार बार कहा जाता था- डोंगरकडा! वह गाँव भी आज देखा! इस रूट से पहली बार ही जा रहा हूँ| आगे बढने पर अच्छे नजारे है, छोटे मोटे पहाड़ भी है! आगे वारंगा फाटा से हिंगोली जिला शुरू हुआ जो पूर्व में परभणी जिला ही था! एक तरह से घर पास आने की उत्तेजना बढ़ रही है| लेकीन अब भी चार दिन, नही पाँच दिन बचे हैं! आज शायद मै बहुत जल्द पहुँचनेवाला हूँ... जब इस तरह मनमौजी ढंग से आगे बढ़ रहा था, तभी पता चला की टायर पंक्चर हुआ है! लेकीन एक पल के लिए भी चिन्ता नही महसूस हुई| पास ही होटल है, मैकेनिक का दुकान भी है| इसलिए साईकिल वहाँ ले गया| मैकेनिक का दुकान तो बन्द है, इसलिए होटल में से ही एक मग लाना पड़ा| अभी पंक्चर निकाल सकता हूँ, इसलिए ट्युब चेंज करने के बजाय पंक्चर निकाल दिया| कुछ नही जी, सिर्फ आधा घण्टा लगा| वह भी सामान उतार कर पूरा क्रिया कर्म करने के बाद सामान पैक करने तक| इस यात्रा में यह तिसरा पंक्चर| अतीत के परभणी जिले ने मेरा कुछ खास तरीके से स्वागत किया! लेकीन अब पंक्चर भी मुझे संकट जैसा महसूस नही हो रहा है| पंक्चर होना और ठीक भी करना सामान्य सी बात हो गई है| साईकिल पंक्चर हुई, सो व्हॉट? ठीक करते हैं| बस इसमें दिक्कत यह हुई कि कुछ समय चला गया और महत्त्वपूर्ण बात यह की साईकिल चलाने की लय कुछ टूट गई| इससे पहुँचने के लिए अधिक समय लगेगा| तब पता चला कि हिंगोली के बजाय कळमनुरी में ठहरने का मेरा निर्णय कितना सही साबित हुआ|
वारंगा से आगे सड़क थोड़ी छोटी हो गई है| लेकीन ज्यादा ट्रैफिक नही, तो कोई दिक्कत नही है| सुन्दर पहाडियाँ साथ में हैं| बीच में एक होटल पर चिप्स और बिस्कीट लिए| यहाँ बहुत से बच्चे मिले, उनसे थोड़ी बात होती रही| आगे आखाडा बाळापूर नाम के गाँव में चाय और बिस्कीट भी लिए| यहाँ एनर्जाल भी लिया| अब गर्मी बढ़ रही है, इसलिए एनर्जाल आवश्यक होगा| इसके बाद कळमनुरी तक कुछ चढाई होगी| आगे बढ़ने पर घाट तो नही, लेकीन चढाई- उतराईवाली सड़क मिली| छोटे से हिल को क्रॉस कर सड़क आगे जा रही है| परभणी से यह स्थान वैसे तो करीब ही है, लेकीन कभी इस रोड़ पर आना नही हुआ था| इसी चढाई पर सशस्त्र सीमा बल की एक कालनी मिली| इसके बोर्ड का फोटो खींचा तो वहाँ बैठे जवान ने पूछताछ की| थोड़ी देर उनसे बात की, उनसे भी प्रशंसा मिली और आगे बढ़ चला| फिर जल्द ही कळमनुरी के ग्रामीण रुग्णालय में पहुँच गया|
कळमनुरी में कार्यक्रम कई मायनों में खास रहा| एक तो आठ साल पहले मेरी पत्नि आशा हिंगोली में कळमनुरी की ही संस्था में एचआयवी इसी विषय पर काम करती थी| तो यहाँ के कुछ लोगों से अच्छा परिचय था, वे भी मुझसे मिलना चाहते थे| उन सबसे मिलना हुआ| कुछ लोग दूर से मुझे मिलने के लिए आए| एक जन तो अब इस विषय में काम भी नही करते हैं, लेकीन पहले आशा के साथ इस विषय पर काम किया था, इसलिए मिलने आए| विहान प्रोजेक्ट, लिंक वर्कर प्रोजेक्ट, कयाधू संस्था के सदस्य, लेकुरे गुरूजी, डाप्कू के सदस्य सबसे बातचीत हुई| अब तक ऐसी कई चर्चाओं के बाद मुझे हर जगह पर एचआयवी पर होनेवाला कार्य थोड़ा थोड़ा समझ में आ रहा है| किस प्रकारे रिस्क ग्रूप्स के साथ एनजीओज या सरकारी कर्मी काम करते हैं, किस प्रकार वे उन्हे एचआयवी जाँच के लिए राज़ी करते हैं, किस प्रकार वे फिर ट्रीटमेंट शुरू करते हैं, कैसे कुछ लोग ट्रीटमेंट से ड्रॉप आउट होते हैं, कैसे उन्हे दोबारा समझाना होता है| और इन सबमे स्टिग्मा और सामाजिक विरोध के कारण होनेवाली कठिनाईयाँ| यहाँ एक बात थोड़ी सी शॉकिंग यह लगी कि परभणी- हिंगोली रोड़ पर एक बाजार का गाँव है| मै वहाँ से कई बार साईकिल पर भी गया हूँ! उस गाँव में female sex workers का बड़ा सेंटर है ऐसा बताया गया| और वे लोग छुप छुप के यह काम करते हैं, जिससे कई बार उनसे मिलना नही हो पाता है| रहने की जगह बदलते हैं, सेक्स वर्कर्स के क्लाएंटस बदलते रहते हैं| इतने छोटे गाँव में भी महाराष्ट्र के बाहर से क्लाएंटस आते हैं, यह मुझे शॉकिंग लगा| लेकीन जब संस्था के कार्यकर्ताओं ने बताया कि उन्होने लगातार प्रयास कर कुछ सेक्स वर्कर्स को इस धन्दे से छुडवाया है और उन्हे दूसरे रोजगार के विकल्प दिए हैं, उसके लिए हुनर मिलने में भी सहायता की है, तब अच्छा लगा|
इससे एक ही बात पता चलती है कि हमारा मन नही मानता है, हम सोचते हैं कि यह "बीमारी" कुछ ही लोगों में होगी, कुछ अपराधी किस्म के या गलत ढंग के लोगों में होती होगी| लेकीन ऐसा बिल्कुल नही है| इस पूरी यात्रा में ऐसे उदाहरण सामने आए जहाँ बिल्कुल अप्रत्याशित मामले में भी एचआयवी पाया गया है| जैसे वृद्ध ग्रामीण जोड़ा हो, बहुत धनवान या पढे लिखे तथा कथित समझदार लोग हो या ऐसे कुछ ऐसे हो जिन्हे प्रोफेशन के लिए लगातार यात्रा करनी होती है या महिलाओं से जिनका ज्यादा सम्बन्ध आता है| जैसे आज तकनीक के लाभ ग्रामीण इलाकों में भी पहुँच गए हैं, वैसे ही यह बीमारी भी पहुँच ही गई है| अच्छा होगा हम हमारे मन से भ्रम निकाल दे| कोई अपराधी किस्म का या गलत ढंग का व्यक्ति ही इसमें फंसता है, ऐसी हमारी सोच नही होनी चाहिए| बल्की हमें यह सोचना चाहिए कि मेरे जैसा कोई भी व्यक्ति इसमें फंस सकता है, लिप्त हो सकता है| इसके बारे में सचेत होना चाहिए| एक बात याद आती है| जब भी कहीं अत्याचार होता है, बलात्कार होता है, तब हमें लगता है कि किसी नरपशू ने, किसी गुंडे ने या किसी गलत इन्सान ने बलात्कार किया| लेकीन ऐसा जो भी आदमी हो, होता तो आदमी ही है, लगभग आप जैसा और मेरे जैसा| होता तो किसी का बेटा, भाई और पति भी| हमें यह नही सोचना चाहिए कि कोई शैतान जैसा इन्सान यह करता है, हमें सोचना यह चाहिए कि एक तरह से मेरे जैसा ही कोई यह कर रहा है| वह भी तो एक "मै" ही है| खैर| इस कार्यक्रम में और भी यह अच्छा लगा कि एचआयवी के साथ इतने सालों से जिते हुए भी लोग खुशहाल तरीके से रहते हैं| जीवन कैसा भी हो, उसे आनन्द के साथ जिया जा सकता है!
अगला भाग: एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव ११. कळमनुरी से वाशिम
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