८. हसेगांव (लातूर) से अहमदपूर
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कल रात भर अच्छी बारीश हुई| कल मै जहाँ ठहरा था, वहाँ गर्मी और मच्छरों ने नीन्द नही लेने दिया| लगभग पूरी रात जगा रहा| सुबह चार बजते ही संस्था के एक कार्यकर्ता मिलने आए| फिर कुछ देर उनसे बात हुई, अन्धेरे में ही थोड़ा टहलना भी हुआ| संस्था के कार्य के बारे में बात होती रही| बाद में उन्होने मेरे लिए बड़े प्यार से पोहे भी बनाए| अब भी बारीश का मौसम बना है, इसलिए सुबह उजाला होते देर लगी| इसलिए १९ नवम्बर हर रोज के बजाय कुछ देरी से निकला| निकलते समय भी रवी जी ने और बच्चों ने बड़े जोश से मुझे विदा किया| सेवालय में यह विजिट इस यात्रा का शायद सबसे बड़ा अनुभव रहा! बहुत कुछ देखने को और समझने को मिल रहा है! और सेवालय में आने के बाद यहाँ से जाना कठिन होता है, यह सुना था, अब उसका अनुभव ले रहा हूँ| एक तो मौसम आज कुछ अलग है और रात में विश्राम न होने से भी थकान हो रही है| आज वैसे तो मुझे छोटा ही चरण है| ७६ किलोमीटर ही चलाने है| अब अगले शनिवार तक ज्यादा बड़े चरण नही है| अब धीरे धीरे यात्रा अपनी समाप्ति की तरफ बढ़ रही है|
हसेगांव से निकलते ही पता चला कि सड़क पर पानी और किचड़ मिलेगी| लेकीन गाँवों के भीतर की सड़कें भी ठीक है यहाँ| हसेगांव लातूर से बेहद पास है| कल शाम को सेवालय के भवन से लातूर के लाईटस भी दिखाई दे रहे थे| लेकीन जैसा कि यह विषय है- समाज की मुख्य धारा से बहुत करीब होते हुए भी एचआयवी के साथ जीनेवाले लोग जैसे दूर होते हैं, पराए होते हैं, वैसे ही शहर के इतना पास होते हुए भी यह संस्था शहर से दूर ही है| खैर| मुझे अहमदपूर जाने के लिए लातूर में जाने की जरूरत नही है| लेकीन गाँवों में से सड़क ढूँढनी पड़ेगी| रवी जी ने जैसा बताया है, वैसे जा रहा हूँ| कुछ जगहों पर लोगों से पूछा भी| हायवे के करीब आते आते एक जगह एक मोड़ छूट गया, इसलिए कुछ दूरी से बाभळगांव होते हुए जाना पड़ा| महाराष्ट्र सरकार घोषणा कर चुकी है कि महाराष्ट्र खुले में शौच से मुक्त है! लेकीन यह पूर्व- मुख्यमंत्री का गाँव भी खुले में शौच से मुक्त नही दिखाई दिया! बाभळगाँव से लेकीन सड़क अच्छी मिली और जल्द ही नान्देड़ हायवे पर पहुँचा| यहाँ भी एक मज़ेदार वाकया हुआ! गाड़ी चलानेवाले एक सज्जन ने मेरी पूछताछ की और जब बताया कि १४ दिनों में ११६५ किलोमीटर साईकिल चला रहा हूँ, तो उन्होने मेरे साथ एक सेल्फी ले ली!! बस यही होना बाकी था| थोड़ा याद किया कि पीछली सेल्फी मेरे साथ कब ली गई थी? तब याद आया कि जब मै लदाख़ में साईकिल चला रहा था, तब लामायुरू में पहुँचने पर कई लोगों ने मेरे साथ सेल्फी ली थी! तो यह यात्रा भी शायद उस कोटी की यात्रा बन रही है! वाह!
आज बहुत दिनों के बाद ठीक ठीक हायवे मिला है| और इसमें बहुत दूर के बोर्डस दिखाई दे रहे हैं| जैसे नागपूर, जबलपूर और कोलकाता तक की दूरीयाँ दिखाई दे रही हैं| इसमें मेरी यात्रा का एक तरह से आगामी मुख्य पड़ाव होनेवाला अकोला भी है| बस कुछ ही दिनों में वहाँ पहुँचूँगा| मुझे तो अच्छी सड़क मिल गई, लेकीन जो लोग इस विषय पर काम कर रहे हैं, उनकी राह कब आसान होगी... सड़क पर कुछ श्रद्धालु भी दिखाई दे रहे हैं, वे पैदल जा रहे हैं| एक होटल पे मै जब चाय- बिस्कीट ले रहा था, तो किसी ने मुझे कहा कि तुम वही हो ना, जो सोलापूर की साईड में भी थे! शायद उन्होने मुझे बार्शी की तरफ देखा होगा| मौसम अब भी बरसात का बना है| मै बरसात के लिए तैयार हूँ, लेकीन बून्दाबान्दी नही हुई| लेकीन गर्मी से राहत जरूर मिल गई है|
बादलों के बीच नजारों की कतार चलती रही और लातूर रोड़, चाकूर और शिरूर ताजबन्द जैसे गाँवों से होते हुए आसानी से अहमदपूर पहुँचा| अहमदपूर में मुझे कस्तुरबा गाँधी महाविद्यालय में जाना था, गलती से पहले महात्मा गाँधी महाविद्यालय में हो आया| इस महाविद्यालय में छात्रों से मिलना हुआ और कुछ मिनटों के लिए उनके सामने मैने मेरी यात्रा के बारे में बताया| इस विषय के बारे में बताया| महाविद्यालय के प्रिंसिपल से भी मिलना हुआ| यहाँ पर और कुछ कार्यक्रम की योजना नही बन पाई थी, इसलिए एक तरह से मै विश्राम के लिए जल्दी फ्री हुआ| अहमदपूर में मेरे पिताजी के एक परिचित हैं, पिताजी डॉक्टर हैं और उनके पेशंटस चारों ओर फैले हुए हैं! तो उनके एक पेशंट और परिचित के पास ठहरूँगा| आज मुझे वैसे ज्यादा विश्राम भी चाहिए| कल रात नीन्द नही हुई है| हालांकी साईकिल चलाने में कोई दिक्कत नही आई| शाम को अहमदपूर के कुछ पत्रकार और आयसीटीसी काउंसिलर सुर्यवंशी जी से मिलना हुआ| थोड़ी देर बातचीत हुई, स्वागत भी हुआ और फोटो भी खींचे गए| आज ७६ किलोमीटर पूरे हुए और यात्रा के अब छह दिन बाकी हैं|
अगला भाग: एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव ९. अहमदपूर से नान्देड
मेरी पीछली साईकिल यात्राओं के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं: www.niranjan-vichar.blogspot.com
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कल रात भर अच्छी बारीश हुई| कल मै जहाँ ठहरा था, वहाँ गर्मी और मच्छरों ने नीन्द नही लेने दिया| लगभग पूरी रात जगा रहा| सुबह चार बजते ही संस्था के एक कार्यकर्ता मिलने आए| फिर कुछ देर उनसे बात हुई, अन्धेरे में ही थोड़ा टहलना भी हुआ| संस्था के कार्य के बारे में बात होती रही| बाद में उन्होने मेरे लिए बड़े प्यार से पोहे भी बनाए| अब भी बारीश का मौसम बना है, इसलिए सुबह उजाला होते देर लगी| इसलिए १९ नवम्बर हर रोज के बजाय कुछ देरी से निकला| निकलते समय भी रवी जी ने और बच्चों ने बड़े जोश से मुझे विदा किया| सेवालय में यह विजिट इस यात्रा का शायद सबसे बड़ा अनुभव रहा! बहुत कुछ देखने को और समझने को मिल रहा है! और सेवालय में आने के बाद यहाँ से जाना कठिन होता है, यह सुना था, अब उसका अनुभव ले रहा हूँ| एक तो मौसम आज कुछ अलग है और रात में विश्राम न होने से भी थकान हो रही है| आज वैसे तो मुझे छोटा ही चरण है| ७६ किलोमीटर ही चलाने है| अब अगले शनिवार तक ज्यादा बड़े चरण नही है| अब धीरे धीरे यात्रा अपनी समाप्ति की तरफ बढ़ रही है|
हसेगांव से निकलते ही पता चला कि सड़क पर पानी और किचड़ मिलेगी| लेकीन गाँवों के भीतर की सड़कें भी ठीक है यहाँ| हसेगांव लातूर से बेहद पास है| कल शाम को सेवालय के भवन से लातूर के लाईटस भी दिखाई दे रहे थे| लेकीन जैसा कि यह विषय है- समाज की मुख्य धारा से बहुत करीब होते हुए भी एचआयवी के साथ जीनेवाले लोग जैसे दूर होते हैं, पराए होते हैं, वैसे ही शहर के इतना पास होते हुए भी यह संस्था शहर से दूर ही है| खैर| मुझे अहमदपूर जाने के लिए लातूर में जाने की जरूरत नही है| लेकीन गाँवों में से सड़क ढूँढनी पड़ेगी| रवी जी ने जैसा बताया है, वैसे जा रहा हूँ| कुछ जगहों पर लोगों से पूछा भी| हायवे के करीब आते आते एक जगह एक मोड़ छूट गया, इसलिए कुछ दूरी से बाभळगांव होते हुए जाना पड़ा| महाराष्ट्र सरकार घोषणा कर चुकी है कि महाराष्ट्र खुले में शौच से मुक्त है! लेकीन यह पूर्व- मुख्यमंत्री का गाँव भी खुले में शौच से मुक्त नही दिखाई दिया! बाभळगाँव से लेकीन सड़क अच्छी मिली और जल्द ही नान्देड़ हायवे पर पहुँचा| यहाँ भी एक मज़ेदार वाकया हुआ! गाड़ी चलानेवाले एक सज्जन ने मेरी पूछताछ की और जब बताया कि १४ दिनों में ११६५ किलोमीटर साईकिल चला रहा हूँ, तो उन्होने मेरे साथ एक सेल्फी ले ली!! बस यही होना बाकी था| थोड़ा याद किया कि पीछली सेल्फी मेरे साथ कब ली गई थी? तब याद आया कि जब मै लदाख़ में साईकिल चला रहा था, तब लामायुरू में पहुँचने पर कई लोगों ने मेरे साथ सेल्फी ली थी! तो यह यात्रा भी शायद उस कोटी की यात्रा बन रही है! वाह!
आज बहुत दिनों के बाद ठीक ठीक हायवे मिला है| और इसमें बहुत दूर के बोर्डस दिखाई दे रहे हैं| जैसे नागपूर, जबलपूर और कोलकाता तक की दूरीयाँ दिखाई दे रही हैं| इसमें मेरी यात्रा का एक तरह से आगामी मुख्य पड़ाव होनेवाला अकोला भी है| बस कुछ ही दिनों में वहाँ पहुँचूँगा| मुझे तो अच्छी सड़क मिल गई, लेकीन जो लोग इस विषय पर काम कर रहे हैं, उनकी राह कब आसान होगी... सड़क पर कुछ श्रद्धालु भी दिखाई दे रहे हैं, वे पैदल जा रहे हैं| एक होटल पे मै जब चाय- बिस्कीट ले रहा था, तो किसी ने मुझे कहा कि तुम वही हो ना, जो सोलापूर की साईड में भी थे! शायद उन्होने मुझे बार्शी की तरफ देखा होगा| मौसम अब भी बरसात का बना है| मै बरसात के लिए तैयार हूँ, लेकीन बून्दाबान्दी नही हुई| लेकीन गर्मी से राहत जरूर मिल गई है|
बादलों के बीच नजारों की कतार चलती रही और लातूर रोड़, चाकूर और शिरूर ताजबन्द जैसे गाँवों से होते हुए आसानी से अहमदपूर पहुँचा| अहमदपूर में मुझे कस्तुरबा गाँधी महाविद्यालय में जाना था, गलती से पहले महात्मा गाँधी महाविद्यालय में हो आया| इस महाविद्यालय में छात्रों से मिलना हुआ और कुछ मिनटों के लिए उनके सामने मैने मेरी यात्रा के बारे में बताया| इस विषय के बारे में बताया| महाविद्यालय के प्रिंसिपल से भी मिलना हुआ| यहाँ पर और कुछ कार्यक्रम की योजना नही बन पाई थी, इसलिए एक तरह से मै विश्राम के लिए जल्दी फ्री हुआ| अहमदपूर में मेरे पिताजी के एक परिचित हैं, पिताजी डॉक्टर हैं और उनके पेशंटस चारों ओर फैले हुए हैं! तो उनके एक पेशंट और परिचित के पास ठहरूँगा| आज मुझे वैसे ज्यादा विश्राम भी चाहिए| कल रात नीन्द नही हुई है| हालांकी साईकिल चलाने में कोई दिक्कत नही आई| शाम को अहमदपूर के कुछ पत्रकार और आयसीटीसी काउंसिलर सुर्यवंशी जी से मिलना हुआ| थोड़ी देर बातचीत हुई, स्वागत भी हुआ और फोटो भी खींचे गए| आज ७६ किलोमीटर पूरे हुए और यात्रा के अब छह दिन बाकी हैं|
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