Saturday, April 27, 2019

“भाग दौड़" भरी ज़िन्दगी ५: सिंहगढ़ पर रनिंग!

५: सिंहगढ़ पर रनिंग!
 

डिस्क्लेमर: यह लेख माला कोई भी टेक्निकल गाईड नही है| इसमें मै मेरे रनिंग के अनुभव लिख रहा हूँ| जैसे मै सीखता गया, गलती करता गया, आगे बढता गया, यह सब वैसे ही लिख रहा हूँ| इस लेखन को सिर्फ रनिंग के व्यक्तिगत तौर पर आए हुए अनुभव के तौर पर देखना चाहिए| अगर किसे टेक्निकल गायडन्स चाहिए, तो व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क कर सकते हैं|

इस लेख माला को शुरू से पढने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए|अगस्त २०१७ के अन्त में पहली निजी हाफ मैरेथॉन पूरी की| इससे काफी कुछ हौसला मिला| हालांकी अभी बहुत कुछ बाकी भी है| जैसे २१ के बजाय १९ किलोमीटर तक ही‌ दौड़ पाया था और समय भी बहुत ज्यादा लगा| जैसे जैसे रनिंग करता रहूँगा, वैसे इसमें सुधार होगा| लेकीन चाहे समय अधिक लगा हो, इस दौड़ से ज्यादा दूरी दौड़ने का हौसला जरूर आया| और यह सिर्फ शारीरिक नही‌ होता है| मन का टेंपरामेंट भी धीरे धीरे ही‌ आता है| किसी भी चीज़ को आगे बढ़ाना हो, तो उसके लिए कुछ उद्देश्य मन में रखने चाहिए| क्यों कि अक्सर अगर हमारे सामने टारगेट हो, तो ही हम कोशिश करते हैं| शायद मेरे सामने साईकिलिंग में सुधार करने का टारगेट न होता, तो मै कभी रनिंग भी नही करता!





इसलिए कुछ दिनों के बाद तय किया कि अब सिंहगढ़ के घाट पर रनिंग करूँगा| साईकिल के मामले में तो सिंहगढ़ ऐसा कठिन घाट है जो एक बेंच मार्क जैसा है| सिंहगढ़ साईकिल चलाते समय चढना अपने आप में ऊर्जादायी बात है| सिंहगढ़ के पूरे घाट को साईकिल से उतरे बिना पार करने के लिए मुझे तीन बार प्रयास करने पड़े थे| अब सोच रहा हूँ कि यहाँ रनिंग करूँगा| कठिन तो होगा ही, लेकीन मेरा स्टैमिना कितना है पता चलेगा| सिंहगढ़ पर दौड़ने के पहले खडकवासला डैम के पास १० किलोमीटर दौड़ की| अक्तूबर के दिन है, इसलिए बरसात समाप्त हो गई है, हल्की सी ठण्ड लगती है| सुबह की ठण्डक में इस सड़क पर दौड़ना अपनेआप में सुन्दर अनुभव है! इसी परिसर में मिलिटरी के भी कुछ युनिटस है; पूरी सड़क पर घने पेड़ है| इसलिए यहाँ दौड़ना एक रॉयल अनुभव जैसा लगता है|

सिंहगढ़ के घाट पर दौड़ने की योजना बनाई| मेरे भाई के घर से यह पास में आता है| लेकीन घाट तक पहुँचने के लिए मुझे पहले डेढ किलोमीटर चलना होगा, फिर थोड़ी देर बस से चलना होगा और उसके बाद और एक किलोमीटर चलना होगा| उसके बाद घाट शुरू होगा| और घाट शुरू होने के स्थान से रनिंग शुरू करूंगा| निकलने के पहले साथ में बिस्कीट, चिक्की, एनर्जाल आदि रख लिया| सोलो दौड़ूंगा तो साथ में पानी भी रखना पड़ेगा|





सुबह ठीक पाँच बजे निकला| थोड़ी स्ट्रेचिंग की, उसके बाद डेढ किलोमीटर तक वॉक किया| कुछ देर रूकने के बाद बस मिली| बस से उतर कर और एक किलोमीटर चल कर पार किया| इससे अच्छा वॉर्म अप हुआ| यहाँ से प्रत्यक्ष रनिंग शुरू की| अब तक सुबह की रोशनी फूट चुकी है| हल्का सा कोहरा भी है! वाह! साईकिल पर तो पहली बार में सिर्फ डेढ़ किलोमीटर जा पाया था| इसलिए उत्सुकता है कि कितना दौड़ सकूँगा| और दौड़ता ही गया| अपेक्षा के बिल्कुल विपरित, यह रनिंग कुछ भी मुश्कील नही गई| कहीं पर भी दौड़ना बन्द कर चलना चाहिए, ऐसा नही लगा| आसानी से बढ़ता रहा| हालांकी चढ़ाई तिखी होने के कारण स्पीड बहुत ही कम है| लेकीन कोई बात नही! मै सिंहगढ़ के घाट में भी दौड़ पा रहा हूँ!

सिंहगढ़ मेरी साईकिल यात्रा का एक बड़ा साक्षीदार रहा है| मार्गदर्शक भी| आज वह मेरी रनिंग का भी साक्षीदार बना! बीच बीच में कुछ साईकिलिस्ट भी मिलते रहे| आगे जा कर एक जगह सड़क बन्द हुई है| यहाँ पर सड़क ठीक करने का काम चल रहा है| इसलिए सड़क पर यातायात भी बिल्कुल नही है! पैदल और साईकिलवालों के लिए तो सड़क खुली ही है| और बाकी सड़क बहुत शानदार बनी है! जैसे जैसे सड़क उपर उठती गई, दूर के नजारे दिखने लगे| फिर खड़कवासला डैम, पुणे शहर भी दिखने लगा| बिना किसी कठिनाई के आगे बढ़ता रहा| आखिर कर लगभग साढ़े आंठ किलोमीटर का घाट दौड़ते दौड़ते ही पार किया! इसके लिए समय लगा लगभग पौने दो घण्टे! क्यों की चढ़ाई के कारण रफ्तार बहुत कम है| थोड़ी देर उपर रूका, पानी- एनर्जाल- चिक्की- चाय लिया और वापस निकला| अब थोड़ी धूप लगने लगी है|

चढाई के बजाय उतरने में कठिनाई आने लगी! धीरे धीरे पैर दर्द करने लगे| बीच में जहाँ सड़क कुछ समतल या चढाईवाली होती, वहाँ पर पैरों को दर्द नही होता है| लेकीन निरंतर अधिक उतराई होने के कारण कुछ देर बाद पैर बहुत दर्द करने लगे| धीरे धीरे बार बार रूकना पड़ रहा है| और लगभग १४ किलोमीटर पूरे होने के बाद- आधे से अधिक घाट उतरने के बाद पैदल चलने की नौबत आई| बार बार रूकने से बेहतर पैदल चलना लगा| पैदल चलने में कोई कठिनाई नही है| घाट के अन्त के तीन- चार किलोमीटर पैद्ल पार किए| इस तरह लगभग १७ किलोमीटर का यह घाट पूरा किया| १७ किलोमीटर का घाट रनिंग में पूरा करने के लिए सवा तीन घण्टे लगे| इसके आगे और एक किलोमीटर चलने के बाद एक टेंपो में लिफ्ट मिली| और जिस क्रम से आया था, उसी क्रम से रोड़ से घर तक जाने के लिए भी ढेढ किलोमीटर का वॉक किया| कुल मिला कर १४ किलोमीटर रनिंग हुई (१७- १८ किलोमीटर का घाट ही दौड़ना था) और बाकी आठ- नौ किलोमीटर का वॉक हुआ| कुल मिला कर २२ किलोमीटर हुए| एक तरह से यह भी एक अलग किस्म की हाफ मैरेथॉन ही हो गई| रनिंग के बाद पैदल चलने से भी अच्छा लगा| दिन में कई बार स्ट्रेचिंग किया| योगासन भी किए|







इस चढ़ाई के अगले ही दिन मेरे रनिंग के प्रेरणास्रोत और मित्र हर्षद पेंडसे जी से मिलना हुआ| उनसे खार्दुंगला चैलेंज के अनुभव भी सुनने को मिले| बड़ी ही विपरित परिस्थिति में उन्होने ५३०० मीटर की ऊंचाई पर ७२ किलोमीटर रनिंग की थी! सोच कर ही डर लगता है!! थोड़ी देर तक उनके साथ रनिंग करने का भी मौका मिला! लेकीन बाद में फिर पैरों में दर्द होने लगा| इसके कारण अधिक दौड़ नही पाया| उस समय पैर में इस तरह दर्द होने का कारण बाद में पता चला| नियमितता कम हो; सही स्ट्रेचिंग ना हो, पैरों के मसल्स रनिंग के लिए तैयार ना हो, तो ही ऐसा होता है| खैर| अभी बहुत कुछ सीखना है| सिंहगढ़ के घाट पर दौड़ सकता हूँ, इससे काफी हौसला मिला, स्टैमिना बढ गया है, इसका अनुभव हुआ| लेकीन बाद में पैरों में दर्द हुआ और समय भी अधिक लगा| यह एक तरह से अलग किस्म की हाफ मैरेथॉन हुई| अगस्त में २१ किलोमीटर जब दौड़ा था, तब भी अधिक समय लगा था| बाद में जब पता चला कि एक endurance activity के तौर पर हाफ मैरेथॉन का कट- ऑफ टायमिंग २ घण्टा ४५ मिनट होता है, तब लगा कि अरे! अभी तो यह हाफ मैरेथॉन भी नही‌ हुई है| तब मन में इच्छ हुई कि अब २१ किलोमीटर दौड़ना है और वह भी २ घण्टे ४५ मिनट के अन्दर!

अगला भाग: “भाग दौड़" भरी ज़िन्दगी ६: हाफ मैरेथॉन का नशा!

3 comments:

  1. आपके अनुभव प्रेरणा देते हैं, फिर चाहे वो भागने वाले हों या साइकिलिंग वाले। अगले भाग का इन्तजार रहेगा।

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