Saturday, March 12, 2016

दोस्ती साईकिल से १९: हौसला बढानेवाली राईडस

दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक
दोस्ती साईकिल से २: पहला शतक
दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर
दोस्ती साईकिल से ४: दूरियाँ नज़दिकीयाँ बन गईं. . . 
दोस्ती साईकिल से ५: सिंहगढ़ राउंड १. . . 
दोस्ती साईकिल से ६: ऊँचे नीचे रास्ते और मन्ज़िल तेरी दूर. . . 
दोस्ती साईकिल से ७: शहर में साईकिलिंग. . . 
दोस्ती साईकिल से ८: सिंहगढ़ राउंड २! 
दोस्ती साईकिल से ९: दूसरा शतक. . . 
दोस्ती साईकिल से १०: एक चमत्कारिक राईड- नर्वस नाइंटी!  
दोस्ती साईकिल से ११: नई सड़कों पर साईकिल यात्रा!  
दोस्ती साईकिल से १२: तिसरा शतक- जीएमआरटी राईड 
दोस्ती साईकिल से १३: ग्रामीण सड़कों पर साईकिल राईड
दोस्ती साईकिल से: १४ "नई साईकिल" से नई शुरुआत
दोस्ती साईकिल से: १५: औंढा नागनाथ के साथ चौथा शतक
दोस्ती साईकिल से: १६: पाँचवा शतक- लोअर दुधना डैम
दोस्ती साईकिल से: १७: एक ड्रीम माउंटेन राईड- साक्री से नन्दुरबार
दोस्ती साईकिल से: १८: तोरणमाळ हिल स्टेशन पर साईकिल ट्रेक!


हौसला बढानेवाली राईडस

तोरणमाळ ट्रेक करने के बाद हौसला बहुत बढ़ गया| इसके बाद लगातार राईडस शुरू हुई| सितम्बर २०१४ में कई यादगार राईडस हुई| कुछ अर्धशतक और कुछ छोटी राईडस लगातार जारी रही| अब ऐसी छोटी रेग्युलर राईडस का महत्त्व पता चला है| जितनी नियमित राईडस करते हैं, उतना शरीर अभ्यस्त होता जाता है| विशेष रूप से एक छोटी राईड ऐसी हुई जब तेज़ बरसात में साईकिल चलायी| राईड छोटी ही है, मुश्किल से चालिस किलोमीटर होगी| वापस आते समय आखरी बारह किलोमीटर में बहुत तेज बरसात आयी| एकदम विजिबिलिटी कम हो गई और सड़क पर धुन्द फैल गई| इस वजह से शाम होते होते अचानक जैसे रात हो गई| हायवे पर रात में साईकिल चलाना बहुत कठिन होता है| लेकिन साईकिल चलाता गया और थोड़ी ही देर बाद शहर पहूँचा| उस समय का मजा और ही है! अन्धेरी सड़क, झमाझम बरसात और साईकिल!








लगातार राईडस करने का फर्क भी दिखाई दे रहा है| एक ८० किलोमीटर की राईड महाराष्ट्र के परभणी के पास की| मज़े की बात यह रही की सुबह पाँच बजे शुरू करने के बाद सुबह के सवा दस बजे तक राईड पूरी भी हो गई| मात्र पाँच घण्टों में ८० किलोमीटर! यह है रेग्युलरिटी का फायदा! अब मूव्हिंग स्पीड लगभग २० किलोमीटर प्रति घण्टा मिल रही है| हालाकी यहाँ के रोड़स एकदम फ्लैट है| फिर भी बहुत फर्क दिखाई दे रहा है| बून्द बून्द से बनता एक दरिया- उसी प्रकार एक एक छोटी राईड से भी स्टैमिना बढ़ने के लिए बहुत मदद होती है| लेकिन अक्सर हम बड़ी राईडस की सोच में उलझ जाते हैं- करेंगे तो कुछ बड़ा यही कहते हैं और छोटा कदम उठाने से भी चूक जाते हैं|


अब साठ- अस्सी किलोमीटर की राईडस एकदम आसान लग रही है| शरीर में थकान भी कम होती है| हालाकि यह रेग्युलरिटी‌को अब और आगे बढ़ाना है| और यह थोड़ा कठिन काम है| हप्ते में कम से कम पाँच दिन राईडस करनी हैं| अगर गैप आती है, तो फिर यह तैयारी काम न आएगी| सितम्बर महिने में और कुछ राईडस हुई| साईकिल राईडस करते समय बहुत ध्यान रखना चाहिए| शरीर के साथ अच्छा तालमेल होना बहुत जरूरी है| अगर जल्दबाजी की तो शरीर थक भी जाता है और विश्राम करना पड़ता है| इसलिए साईकिल के विशेषज्ञ एक प्लैन देते हैं- इस हप्ते में ५ दिन १० किलोमीटर; फिर अगले हप्ते में ५ दिन १२- १५ किमी और इसी‌ प्रकार धीरे धीरे आगे बढ़ना होता है| इस तरह शरीर को समय देते हुए और उसकी गति से आगे बढ़ते हैं, तो शरीर बहुत कुछ एडप्ट कर लेता है| अगर एकदम से आगे जाने की कोशिश की तो विपरित परिणाम होता है| खैर|







रूट कोई भी हो, दूरी कितनी भी हो, हर राईड में अलग मज़ा आता है! यदि रूट वही हो, तो भी मज़ा अलग ही होता है| सुबह की ताज़गी, पंछियों की‌ चहचहाट, उगता हुआ सूरज, अदृश्य होनेवाले सितारे और साईकिल चलाने से आनेवाली सुहानी हवा की आवाज! जब साईकिल चलाते समय सिर मोडने पर टायर्स की सुन्दर आवाज! बिलकुल वैसी आवाज जैसे हायवे पर जानेवाले ट्रक्स के टायर्स की आवाज दूर से सुनाई देती है. . . लेकिन यह सब एंजॉय करनेवाले पर भी निर्भर करता है| अक्सर हम अपनी साईकिल चलाते समय भी अपनी चिन्ताएँ, आगे की प्लैनिंग, अतीत या भविष्य के बारे में सोचते है और इससे उस राईड के उस क्षण का मज़ा नही ले पाते हैं| सच कहूँ, तो मेरा अनुभव भी‌ यही है कि बड़ी मुश्किल से राईडस में कभी मन उस क्षण में ठहर कर उस क्षण को एंजॉय कर पाता है| और अगर कभी ऐसा एंजॉय कर सकते हैं, तो साथ देने के लिए प्रकृति तो होती ही है|







अगला भाग २०: इंज्युरी के बाद की राईडस

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (13-03-2016) को "लोग मासूम कलियाँ मसलने लगे" (चर्चा अंक-2280) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सार्थक व प्रशंसनीय रचना...
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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