“मेरे रुह की तस्वीर मेरा कश्मीर. . .”
मेरे रुह की तस्वीर मेरा कश्मीर. . .
ओ खुदाया लौटा दे कश्मीर दोबारा. . .
यह गाना जेहन में बिल्कुल ताज़ा है| १९ अक्तूबर को प्रात: जल्दी आँखें खुली| जितना जल्दी हो सके जम्मू के लिए निकलना है क्यों कि मुघल रोड़ पर भी बाद में ट्रॅफिक जाम हो सकता है| फिर से सुबह साढ़ेपाँच बजे ठण्ड में निकला| साथी सोए हुए है| सुनसान माहौल. . . बस अड़्डे पर जा कर जीप लेनी है| ठण्ड में चलने का बड़ा मजा आया| कदम आगे चल रहे हैं पर विचार पीछे चल रहे हैं| मात्र पन्द्रह दिन का यह सफर रहा| लेकिन इसके बावजूद ऐसा लग रहा है कि यह साझेदारी पुरानी है. . .
जिन जिन साथियों के साथ काम किया, वे याद आ रहे हैं| देश के कई स्थान से आए हुए डॉक्टर और अन्य कार्यकर्ता गण| सेवा भारती के कार्यकर्ता या अब दोस्त कहना ज्यादा ठीक होगा| जावेद भाई का गाना| कश्मीर का अन्दर से दर्शन| काफी बातें मन मे आ रही है| खैर| बस अड़्डे के करीब रोड़ पर ही एक जीप मिली| अभी जम्मू जानेवाले लोगों की संख्या अधिक और साधनों की संख्या कम है; अत: किराया बढ गया है| जीप जम्मू के सांबा जिले के पासिंग की है| जेके- २१| चालक ने श्रीनगर में घूम कर और पाँच सवारियाँ इकठ्ठा की| एक सरदारजी परिवार है| पुलवामा के रास्ते निकलते पंक्चर भी हो गया| सब कुछ हो कर बाहर निकले तो सात बज गए है| ठण्ड से अच्छी खासी ठिठुरन हो रही है| जाते समय शोपियाँ में साथ बैठे सरदारों ने कुछ खण्डहरनुमा मकानों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ये कश्मीरी पण्डितों के मकान है| शोपियाँ में ही कुछ स्थानीय लोग भी लिफ्ट चाहते है| पर किराए का विवाद हुआ और बात बनी नही| जगह जगह एक दूरी का अनुभव होता है| शोपियाँ में एक धाबे पर थोड़ी देर रूक कर आगे निकले| शोपियाँ सेब का शहर!
फिर पीर की गली| अब यहाँ रोड़ पर भी बर्फबारी हुई है! थोड़ी देर वहाँ के नजारे का आनन्द लिया| यहाँ ट्रॅफिक जाम भी है| लेकिन थोड़ी ही देर में ट्रॅफिक से आगे निकले| एक जगह मिलिटरी ने सभी की पूछताछ की| बीच बीच में चरवाहे सामने आते है| यह दृश्य भी अद्भुत है| इस यात्रा के फोटोज और व्हिडिओज यहाँ है| आगे थोड़ा जाम बीच में है; पर बिना रुकावट के पीर पंजाल उतर कर दोपहर में दो बजे तक राजौरी पहुँचे| भोजन के लिए नौशेरा के कुछ पहले रोका| वहाँ पास से ही नदी जा रही है और आसपास सब चिनार राज्य है! नि:सन्देह चिनार ही कश्मीर के सच्चे पहरेदार है! यहाँ मोबाईल नेटवर्क सर्च किए तो दो नेटवर्क पाकिस्तान के साफ दिखाई पड़े| उनके सिग्नल भी अच्छे थे| यह छोटीसी बात एक बडे तथ्य की तरफ इशारा करती है| हम आँखें खोल कर देखें तो दिखाई पड़ता है कि देश के कितने ही ऐसे हिस्से है जहाँ देश के लोगों के बजाय विदेशी ज्यादा रस लेते हैं| और यह बात मात्र राजनीतिक नही है कि कश्मीर में पाकिस्तान के इंटरेस्ट है| यह बात व्यापक है और सामाजिक है| यदि हम देश के सभी हिस्सों से ताल्लुक रखेंगे ही नही; तो जाहिर सी बात है वहाँ से हमारे रिश्ते धीरे धीरे टूटेंगे| जैसे नॉर्थ ईस्ट प्रदेश हो| अगर हम वहाँ कभी गए नही; वहाँ के प्रदेश को; जनता को; वहाँ की संस्कृतियों को समझा ही नही; तो जाहिर है जुड़ाव कम होगा| आज देश के कितने ऐसे हिस्से हैं जिनके बारे में यदि हमे जानना हो तो विदेशी यात्रियों के विवरण पढ़ने पड़ते है| हिमालय में हमसे शायद अधिक विदेशी यात्री भ्रमण करते हैं| हिमालय के ऐसे सुदूर और दुर्गम स्थान हैं जहाँ हम जाने का सोच भी नही सकते और ये लोग जाते हैं| यदि हमें लगता है कि ये सब स्थान हमारे देश में हैं और आगे भी रहें तो हमें वहाँसे जुड़ना चाहिए| खैर|
यात्रा सकुशल रही और शाम को छह बजे जम्मू पहुँच गया| पैदल चलते और जम्मू शहर देखते सेवा भारती कार्यालय पहुँच गया|
यहाँ रोहितजी और दादाजी से मिलना हुआ| राहत कार्य का अपडेट लिया| बनाए गए कुछ पाम्पलेट भी मिले| आगे कुछ स्टॉल्स देने की योजना पर काम होगा| इससे लोगों को उनकी आजीविका रिस्टोअर करने में मदद मिलेगी| छह महिनों के लिए डॉक्टर आए, इसके भी पुख़्ता प्रयास हो रहे हैं| रोहितजी भी बड़े उत्साह के साथ और कुछ करना चाहते हैं| शाम को जम्मू में थोड़ी सी शॉपिंग की| फिर रवि जी से बातें हुईं| कई यादों के साथ वह दिन समाप्त हुआ|
बीस अक्तूबर की सुबह दादाजी से विदा लिया| संस्था के साथ आगे भी कार्य करना है| जैसे सम्भव हो वापस आना है और पहली बात जो काम वहाँ देखा उसे सभी तक पहुँचाना है| रवि जी ने ही स्टेशन पर छोडा| उन्होने ने ही जम्मू में रात डेढ़ बजे रिसिव्ह भी किया था मात्र पन्द्रह दिन पहले| लेकिन उसे अब एक अरसा हो गया है. . . .
जम्मू से निकलते समय मन में कई विचार और भावनाएँ हैं| पहली बात तो कश्मीर में जितना कुछ देखना हुआ, उसमें लोग फिर से खड़े होते दिखाई दिए| कुछ कुछ जगहों पर तो लगा ही नही कि इतनी तबाहकारी बाढ़ आ के गई है| लोगों में अपने बलबूते पर खड़े होने का जस्बा दिखा| ऐसे कई कार्यकर्ताओं से मिलना हुआ जिन्होने राहत कार्य में अहम भुमिका निभाई| हिलाल भाई- जिन्होने कई जिंदगियाँ बचायी| उनके पिताजी तब तक हॉस्पिटल में ही थे; बाद में उनका स्वास्थ्य बेहतर हुआ| अकेले चले आए कई कार्यकर्ता! सेवा भारती का कार्य और उसका 'good conductor' बनना! माध्यम बनना! दादाजी जैसे व्यक्तित्व से मिलना| ऐसे और भी बहुत. . . .
और वे अस्वस्थ करनेवाली बातें| लेकिन अब इतनी भी अधिक अस्वस्थ नही कर रही है| जैसा पहले एक बार कहा, मजहब के भेद और रहने- बसने से होनेवाले भेद बहुत उपरी होते हैं| सीमित होते हैं| बड़ी सच्चाई इन्सान होना है| अत: इन संकीर्ण और उपरी भेदों को इतना महत्त्व देने की कोई आवश्यकता नही है| और हर एक बात के पीछे ठोस कारण है| जो भी प्रतिक्रियाएँ हैं; जो भी भावनाएँ हैं; उनके पीछे बड़ी पृष्ठभूमि है| ऐसी परिस्थितियों में हम भी शायद ऐसे ही विचार करेंगे| यह तो स्वाभाविक है|
थोड़ा सा दु:ख इस बात का जरूर है कि इन्सान को अब भी इन्सान नही देखा जाता है| उसके लेबल से; उसके बॅकग्राउंड से ही देखा जाता है| सिर्फ इन्सान देखनेवाली दृष्टि और वह समझ अब भी कम पैमाने पर है| लेकिन जब वह दृष्टि और वह समझ समाज में आएगी, तो हालात बदल जाएँगे| अभी के हालात जरूर अस्वस्थ करनेवाले हैं| ऐसे में मिल्खासिंह के फिल्म का एक संवाद याद आता है- “इन्सान बुरे नही होते हैं; हालात बुरे होते हैं|” और हालात को ठीक करना हो तो उसके लिए आधुनिक दृष्टि और समझ चाहिए जो युवाओं में साफ तौर पर दिखाई पड़ती है| जैसे जैसे यह समझ बढ़ेगी हालात बदलेंगे| इसके लिए हमें बस एक कदम उठाना है| जो दूरी है उसे चल कर कम करना है| डॉ. त्रिपाठी जी इस कार्य के शुरू के चरण में बड़े सक्रिय रहें| उनकी एक बात याद आती है- आप जो कुछ करना चाहेंगे कश्मीर आ कर किजिए| घूमना हो, ट्रेकिंग करना हो, पर्यटन हो, उसके लिए कश्मीर आईए| यही बात देश के ऐसे अन्य हिस्सों के लिए भी लागू है| जम्मू- कश्मीर- लदाख हो, हिमाचल, उत्तराखण्ड, नॉर्थ ईस्ट, अन्दमान या लक्षद्विप हो; वहाँ पर हमे जाना चाहिए; जुड़ना चाहिए| अधिकारों के बारे में कहा जाता है कि जो अधिकार इस्तेमाल नही किए जाते हैं, वे धीरे धीरे समाप्त होते हैं| और यह हमारा चुनाव है| खैर|
युवा पिढी की बढ़ती हुई समझ एक सपना दे जाती है| अगर समझ ऐसी बढती रही तो एक दिन भारत पाकिस्तान भी युरोपियन युनियन जैसे करीब आ सकते हैं| युरोपियन युनियन में भी सभी देश एक दूसरे से अनगिनत बार झगड़े हैं| और उन देशों में तो मतभेद और भिन्नताएँ बड़ी गहन है| भारत- पाकिस्तान में तो काफी समानताएँ हैं| भाषा का भेद ना के बराबर है; संस्कृति मोटा मोटी समान है| और स्ट्रेंथ और वीकनेसेस भी एक दूसरे जैसे ही है! अगर थोड़ी सी समझ आ जाए और सच्चे 'स्वार्थ' की दृष्टि की भनक लगे; तो ये देश करीब आ सकते हैं| क्यों कि वे करीब हैं ही| इसमें और भी एक बात हैं| कहते हैं ना कि दुश्मनी दोस्ती के सिक्के का ही दूसरा पहलू होता हैं; या प्यार में इन्कार भी होता है! वैसे यहाँ पर भी है| आप उसी से दुश्मनी कर सकते हैं जिसके आप दोस्त हो| उसी से झगड़ सकते हैं जिससे कुछ रिश्ता हो| अन्यथा किसी अन्जान व्यक्ति से कौन झगड़ेगा? इसलिए काफी कुछ चीजें सकारात्मक हैं|
मेरे रुह की तस्वीर मेरा कश्मीर. . .
ओ खुदाया लौटा दे कश्मीर दोबारा. . .
यह गाना जेहन में बिल्कुल ताज़ा है| १९ अक्तूबर को प्रात: जल्दी आँखें खुली| जितना जल्दी हो सके जम्मू के लिए निकलना है क्यों कि मुघल रोड़ पर भी बाद में ट्रॅफिक जाम हो सकता है| फिर से सुबह साढ़ेपाँच बजे ठण्ड में निकला| साथी सोए हुए है| सुनसान माहौल. . . बस अड़्डे पर जा कर जीप लेनी है| ठण्ड में चलने का बड़ा मजा आया| कदम आगे चल रहे हैं पर विचार पीछे चल रहे हैं| मात्र पन्द्रह दिन का यह सफर रहा| लेकिन इसके बावजूद ऐसा लग रहा है कि यह साझेदारी पुरानी है. . .
जिन जिन साथियों के साथ काम किया, वे याद आ रहे हैं| देश के कई स्थान से आए हुए डॉक्टर और अन्य कार्यकर्ता गण| सेवा भारती के कार्यकर्ता या अब दोस्त कहना ज्यादा ठीक होगा| जावेद भाई का गाना| कश्मीर का अन्दर से दर्शन| काफी बातें मन मे आ रही है| खैर| बस अड़्डे के करीब रोड़ पर ही एक जीप मिली| अभी जम्मू जानेवाले लोगों की संख्या अधिक और साधनों की संख्या कम है; अत: किराया बढ गया है| जीप जम्मू के सांबा जिले के पासिंग की है| जेके- २१| चालक ने श्रीनगर में घूम कर और पाँच सवारियाँ इकठ्ठा की| एक सरदारजी परिवार है| पुलवामा के रास्ते निकलते पंक्चर भी हो गया| सब कुछ हो कर बाहर निकले तो सात बज गए है| ठण्ड से अच्छी खासी ठिठुरन हो रही है| जाते समय शोपियाँ में साथ बैठे सरदारों ने कुछ खण्डहरनुमा मकानों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ये कश्मीरी पण्डितों के मकान है| शोपियाँ में ही कुछ स्थानीय लोग भी लिफ्ट चाहते है| पर किराए का विवाद हुआ और बात बनी नही| जगह जगह एक दूरी का अनुभव होता है| शोपियाँ में एक धाबे पर थोड़ी देर रूक कर आगे निकले| शोपियाँ सेब का शहर!
फिर पीर की गली| अब यहाँ रोड़ पर भी बर्फबारी हुई है! थोड़ी देर वहाँ के नजारे का आनन्द लिया| यहाँ ट्रॅफिक जाम भी है| लेकिन थोड़ी ही देर में ट्रॅफिक से आगे निकले| एक जगह मिलिटरी ने सभी की पूछताछ की| बीच बीच में चरवाहे सामने आते है| यह दृश्य भी अद्भुत है| इस यात्रा के फोटोज और व्हिडिओज यहाँ है| आगे थोड़ा जाम बीच में है; पर बिना रुकावट के पीर पंजाल उतर कर दोपहर में दो बजे तक राजौरी पहुँचे| भोजन के लिए नौशेरा के कुछ पहले रोका| वहाँ पास से ही नदी जा रही है और आसपास सब चिनार राज्य है! नि:सन्देह चिनार ही कश्मीर के सच्चे पहरेदार है! यहाँ मोबाईल नेटवर्क सर्च किए तो दो नेटवर्क पाकिस्तान के साफ दिखाई पड़े| उनके सिग्नल भी अच्छे थे| यह छोटीसी बात एक बडे तथ्य की तरफ इशारा करती है| हम आँखें खोल कर देखें तो दिखाई पड़ता है कि देश के कितने ही ऐसे हिस्से है जहाँ देश के लोगों के बजाय विदेशी ज्यादा रस लेते हैं| और यह बात मात्र राजनीतिक नही है कि कश्मीर में पाकिस्तान के इंटरेस्ट है| यह बात व्यापक है और सामाजिक है| यदि हम देश के सभी हिस्सों से ताल्लुक रखेंगे ही नही; तो जाहिर सी बात है वहाँ से हमारे रिश्ते धीरे धीरे टूटेंगे| जैसे नॉर्थ ईस्ट प्रदेश हो| अगर हम वहाँ कभी गए नही; वहाँ के प्रदेश को; जनता को; वहाँ की संस्कृतियों को समझा ही नही; तो जाहिर है जुड़ाव कम होगा| आज देश के कितने ऐसे हिस्से हैं जिनके बारे में यदि हमे जानना हो तो विदेशी यात्रियों के विवरण पढ़ने पड़ते है| हिमालय में हमसे शायद अधिक विदेशी यात्री भ्रमण करते हैं| हिमालय के ऐसे सुदूर और दुर्गम स्थान हैं जहाँ हम जाने का सोच भी नही सकते और ये लोग जाते हैं| यदि हमें लगता है कि ये सब स्थान हमारे देश में हैं और आगे भी रहें तो हमें वहाँसे जुड़ना चाहिए| खैर|
यात्रा सकुशल रही और शाम को छह बजे जम्मू पहुँच गया| पैदल चलते और जम्मू शहर देखते सेवा भारती कार्यालय पहुँच गया|
यहाँ रोहितजी और दादाजी से मिलना हुआ| राहत कार्य का अपडेट लिया| बनाए गए कुछ पाम्पलेट भी मिले| आगे कुछ स्टॉल्स देने की योजना पर काम होगा| इससे लोगों को उनकी आजीविका रिस्टोअर करने में मदद मिलेगी| छह महिनों के लिए डॉक्टर आए, इसके भी पुख़्ता प्रयास हो रहे हैं| रोहितजी भी बड़े उत्साह के साथ और कुछ करना चाहते हैं| शाम को जम्मू में थोड़ी सी शॉपिंग की| फिर रवि जी से बातें हुईं| कई यादों के साथ वह दिन समाप्त हुआ|
बीस अक्तूबर की सुबह दादाजी से विदा लिया| संस्था के साथ आगे भी कार्य करना है| जैसे सम्भव हो वापस आना है और पहली बात जो काम वहाँ देखा उसे सभी तक पहुँचाना है| रवि जी ने ही स्टेशन पर छोडा| उन्होने ने ही जम्मू में रात डेढ़ बजे रिसिव्ह भी किया था मात्र पन्द्रह दिन पहले| लेकिन उसे अब एक अरसा हो गया है. . . .
जम्मू से निकलते समय मन में कई विचार और भावनाएँ हैं| पहली बात तो कश्मीर में जितना कुछ देखना हुआ, उसमें लोग फिर से खड़े होते दिखाई दिए| कुछ कुछ जगहों पर तो लगा ही नही कि इतनी तबाहकारी बाढ़ आ के गई है| लोगों में अपने बलबूते पर खड़े होने का जस्बा दिखा| ऐसे कई कार्यकर्ताओं से मिलना हुआ जिन्होने राहत कार्य में अहम भुमिका निभाई| हिलाल भाई- जिन्होने कई जिंदगियाँ बचायी| उनके पिताजी तब तक हॉस्पिटल में ही थे; बाद में उनका स्वास्थ्य बेहतर हुआ| अकेले चले आए कई कार्यकर्ता! सेवा भारती का कार्य और उसका 'good conductor' बनना! माध्यम बनना! दादाजी जैसे व्यक्तित्व से मिलना| ऐसे और भी बहुत. . . .
और वे अस्वस्थ करनेवाली बातें| लेकिन अब इतनी भी अधिक अस्वस्थ नही कर रही है| जैसा पहले एक बार कहा, मजहब के भेद और रहने- बसने से होनेवाले भेद बहुत उपरी होते हैं| सीमित होते हैं| बड़ी सच्चाई इन्सान होना है| अत: इन संकीर्ण और उपरी भेदों को इतना महत्त्व देने की कोई आवश्यकता नही है| और हर एक बात के पीछे ठोस कारण है| जो भी प्रतिक्रियाएँ हैं; जो भी भावनाएँ हैं; उनके पीछे बड़ी पृष्ठभूमि है| ऐसी परिस्थितियों में हम भी शायद ऐसे ही विचार करेंगे| यह तो स्वाभाविक है|
थोड़ा सा दु:ख इस बात का जरूर है कि इन्सान को अब भी इन्सान नही देखा जाता है| उसके लेबल से; उसके बॅकग्राउंड से ही देखा जाता है| सिर्फ इन्सान देखनेवाली दृष्टि और वह समझ अब भी कम पैमाने पर है| लेकिन जब वह दृष्टि और वह समझ समाज में आएगी, तो हालात बदल जाएँगे| अभी के हालात जरूर अस्वस्थ करनेवाले हैं| ऐसे में मिल्खासिंह के फिल्म का एक संवाद याद आता है- “इन्सान बुरे नही होते हैं; हालात बुरे होते हैं|” और हालात को ठीक करना हो तो उसके लिए आधुनिक दृष्टि और समझ चाहिए जो युवाओं में साफ तौर पर दिखाई पड़ती है| जैसे जैसे यह समझ बढ़ेगी हालात बदलेंगे| इसके लिए हमें बस एक कदम उठाना है| जो दूरी है उसे चल कर कम करना है| डॉ. त्रिपाठी जी इस कार्य के शुरू के चरण में बड़े सक्रिय रहें| उनकी एक बात याद आती है- आप जो कुछ करना चाहेंगे कश्मीर आ कर किजिए| घूमना हो, ट्रेकिंग करना हो, पर्यटन हो, उसके लिए कश्मीर आईए| यही बात देश के ऐसे अन्य हिस्सों के लिए भी लागू है| जम्मू- कश्मीर- लदाख हो, हिमाचल, उत्तराखण्ड, नॉर्थ ईस्ट, अन्दमान या लक्षद्विप हो; वहाँ पर हमे जाना चाहिए; जुड़ना चाहिए| अधिकारों के बारे में कहा जाता है कि जो अधिकार इस्तेमाल नही किए जाते हैं, वे धीरे धीरे समाप्त होते हैं| और यह हमारा चुनाव है| खैर|
युवा पिढी की बढ़ती हुई समझ एक सपना दे जाती है| अगर समझ ऐसी बढती रही तो एक दिन भारत पाकिस्तान भी युरोपियन युनियन जैसे करीब आ सकते हैं| युरोपियन युनियन में भी सभी देश एक दूसरे से अनगिनत बार झगड़े हैं| और उन देशों में तो मतभेद और भिन्नताएँ बड़ी गहन है| भारत- पाकिस्तान में तो काफी समानताएँ हैं| भाषा का भेद ना के बराबर है; संस्कृति मोटा मोटी समान है| और स्ट्रेंथ और वीकनेसेस भी एक दूसरे जैसे ही है! अगर थोड़ी सी समझ आ जाए और सच्चे 'स्वार्थ' की दृष्टि की भनक लगे; तो ये देश करीब आ सकते हैं| क्यों कि वे करीब हैं ही| इसमें और भी एक बात हैं| कहते हैं ना कि दुश्मनी दोस्ती के सिक्के का ही दूसरा पहलू होता हैं; या प्यार में इन्कार भी होता है! वैसे यहाँ पर भी है| आप उसी से दुश्मनी कर सकते हैं जिसके आप दोस्त हो| उसी से झगड़ सकते हैं जिससे कुछ रिश्ता हो| अन्यथा किसी अन्जान व्यक्ति से कौन झगड़ेगा? इसलिए काफी कुछ चीजें सकारात्मक हैं|
जहाँ दूर नजर दौडाए. . . आज़ाद गगन लहराए. . . लहराए . . . |
सभी
यादों को संजोते हुए और सभी
साथियों को प्रणाम करते हुए
अब इस लेखन को रोकना होगा|
मंजिल
जैसी चीज जीवन में होती नही
है|
जीवन
तो एक पड़ाव से अगले पड़ाव पर
आगे ही जाता रहता है|
जीवन
की धारा रूकती नही है|
सभी
साथियों को प्रणाम करते हुए
और आप जैसे सभी पढ़नेवालों को
धन्यवाद देते हुए लेखणि को
तात्कालिक विराम देता हुँ|
किसी
अगले पड़ाव पर मिलने तक रामराम,
अलविदा!
बहुत
बहुत धन्यवाद एवम् सभी को
प्रणाम|