१३: यात्रा समापन (अंतिम)
योग साईकिल यात्रा २१ मई को सम्पन्न हुई| ग्यारह दिनों में लगभग ५९५ किलोमीटर साईकिल चलाई और ग्यारह जगहों के योग साधकों से मिलना हुआ| मेरे लिए यह बहुत अनुठा और विलक्षण अनुभव रहा| इस यात्रा पर अब संक्षेप में कुछ बातें कहना चाहता हूँ| शुरुआत करता हूँ आने के बाद परभणी में निरामय की टीम और परभणी के योग साधकों के साथ हुई चर्चा से| परभणी के निरामय की टीम को मैने मेरे हर दिन के अनुभव कहे| हर जगह पर मिले योग साधकों के बारे में मेरा निरीक्षण बताया| हालांकी सिर्फ एक ही दिन मिलने से बहुत कुछ जाना नही जा सकता है| लेकीन चूँकी मेरा सामाजिक संस्था के क्षेत्र में अनुभव रहा है, कई बातें मैने हर जगह पर देखी| हर जगह के साधक और टीम या टीम का अभाव भी देखा| ये निरीक्षण सिर्फ मेरी एक प्रतिक्रिया के तौर पर देखिए, इसे एक ठोस राय मत मानिए, ऐसा भी मैने कहा| हर जगह बहुत से लोग रोज मिलते रहे| लोगों ने बहुत सारी बातें भी कहीं| लेकीन जो कहा क्या वही वास्तव है, यह भी मुझे देखना था| जैसे चर्चाओं में कई लोग कहते थे कि हम इतने बारीकी से और इतने नियमित रूप से योग करते हैं| जब भी कोई ऐसा कहता, तब मै उसके शरीर को देखता| हमारा मन झूठ बोल सकता है, लेकीन शरीर कभी झूठ नही बोलता| कई जगहों पर शरीर ने ऐसी बातों को प्रमाण नही भी दिया| तब मै समझता था कि जब कई लोग सुनने के लिए होते हैं, तो कुछ इन्सान अन्यथा जो नही कहेंगे, वैसी बातें भी कह जाते हैं| खैर| इसलिए मेरी यात्रा और मेरे सभी अनुभवों के बारे में मैने मेरी प्रतिक्रियाएँ निरामय टीम को दी| हर जगह का कार्य, वहाँ के कार्यकर्ताओं की समझ, उनके कार्य की गहराई आदि पर मेरा जो कुछ छोटा सा निरीक्षण रहा, वह मैने उन्हे कहा| साथ में यह भी बताया कि मैने इस यात्रा में क्या किया और क्या मै कर नही सका| जैसे चर्चा का संचालन करना या सम्भाषण करना मेरा गुण नही है| इसकी कमी एक- दो जगहों पर मुझे महसूस हुई| कहीं कहीं पर थकान के कारण मेरा सहभाग उतना अधिक नही रहा| यह भी निरामय टीम को बताया|
१२: मानवत- परभणी
योग साईकिल यात्रा का अन्तिम दिन- २१ मई की सुबह| आज यह यात्रा समाप्त होगी! मेरे लिए यह पूरी यात्रा और हर पड़ाव बहुत अनुठे रहे है| मेरे लिए बहुत कुछ सीखने जैसा इसमें मिला| बहुत लोगों से और साधकों से मिलना हुआ| कुल मिला कर एक अविस्मरणीय यह यात्रा रही है| इसके बारे में विस्तार से अगले अन्तिम लेख में बात करूँगा| अभी बात करता हूँ इस यात्रा के साईकिल चलाने के अन्तिम दिन की| मानवत- परभणी दूरी छोटी है, इसलिए रास्ते में रूढि गाँव के योग- शिविर पर जाना हुआ| मानवत से इस शिविर तक मेरे साथ श्री पद्मकुमारजी कहेकर जी भी आए| रूढ़ी गाँव में स्वामी मनिषानन्द जी का आश्रम है और यहाँ पर मिटकरी सर योग शिविर लेते हैं| मिटकरी सर से कल मिलना भी हुआ था| सुबह छह बजे इस शिविर में पहुँचा| लगभग पच्चीस- तीस बच्चे योग कर रहे हैं| थोड़ी उनसे बातचीत की| आश्रम में स्वामीजी से मिलना हुआ| उनका आशीर्वाद प्राप्त हुआ| यह भी इस यात्रा की एक खास बात रही| कई तरह के एनर्जी फिल्डस और डॉ. प्रशान्त पटेल अर्थात् स्वामी प्रशांतानंद जी जैसे कई दिग्गज साधकों का भी सत्संग मिला|
११: मंठा- मानवत
यह लिखते लिखते एक महिना हो गया, लेकीन अब भी सब नजरों के सामने है| योग साईकिल यात्रा का दसवा दिन २० मई की सुबह| आज सिर्फ ५३ किलोमीटर साईकिल चलानी है| अब यह यात्रा आखरी दिनों में है| लेकीन कल का दिन क्या खूब रहा! मंठा में बहुत अच्छी चर्चा हुई| कई साधकों से और कार्यकर्ताओं से अच्छा मिलना हुआ| आज मानवत में जाना है| रोज के जैसे ही सुबह ठीक साढ़ेपाँच बजे निकला| कुछ दूरी तक डॉ. चिंचणे जी मुझे छोडने आए| कल बहुत उखडी हुई सड़क थी| आज अच्छी सड़क है| हमारा मन बहुत छलाँग लगाता है| अब भी इस यात्रा के पूरे दो दिन बाकी है, लेकीन मन तो पहुँच गया वापस| लेकीन फिर भी सजगता रखते हुए मन को वर्तमान में ला कर आज के चरण का आनन्द ले रहा हूँ| इतनी शानदार यह यात्रा रही है कि जो भी पल बचे हैं, उनका आनन्द पूरी तरह से लेना चाहिए|
साईकिल पर यात्रा करते समय मैने अक्सर देखा है कि कोई भी सड़क कितनी भी परिचित क्यों ना हो, उस पर हम जो अलग- अलग राईड करते हैं, उसका मज़ा अलग अलग होता है| अगर हम एक ही रूट पर लगातार- हमेशा- साईकिल चला रहे हैं, तब भी हर एक राईड का मजा अलग ही होता है| और इसका कारण यह है कि राईड चाहे एक जैसी हो, साईकिल वही हो, रूट भी वही हो, लेकीन हम तो वही नही होते हैं- देखनेवाला वही नही होता है! साथ में हमारा मन, विचार, भावनाएँ तो हर समय बदलती रहती है| किसी विचारक ने कहा है कि कोई भी एक नदी में दो बार डुबकी नही लगा सकता है| इसके दो कारण हैं- एक तो नदी की धारा बहती रहती है; पानी आगे- और आगे जाता है; और दूसरी बात हम भी हर पल बदलते रहते हैं| मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि हम में इतने परम्युटेशन्स- काँबीनेशन्स होते हैं कि हम बिल्कुल भी थिर नही रह सकते हैं| जो भी इन्सान खुद से प्रामाणिक है, वह अक्सर यह अनुभव करता है कि उसका मन कई बार उसी के विपरित जाता है| इसलिए व्यक्तित्व में द्वंद्व पैदा होते है| कई बार इसी तरह बहुत तनाव होता है और कई बार हम आत्महत्या की खबरें भी सुनते हैं| ऐसे मे हमारे शरीर- मन में यह सब जो बदलाव होते हैं, उसे देखनेवाला जो है, उसे जानके का नाम ध्यान है| साईकिल चलाते समय भी उस समय जो कुछ घट रहा है- जो अनुभव आ रहे हैं, जो विचार मन में आ रहे हैं, उनका साक्षी बनने का प्रयास करते हुए आगे बढ़ रहा हूँ|
९: सिंदखेड़ राजा- मेहकर
योग साईकिल यात्रा का आंठवा दिन, १८ मई की सुबह| सुबह ठीक साढ़ेपाँच बजे निकला| आज कुछ अन्धेरा है| गर्मियों के दिनों में सुबह साढ़ेपाँच बजे रोशनी हो जाती है, लेकीन आज कुछ मिनटों तक अन्धेरा रहा| पहली बार ऐसा हो रहा है| और सिंदखेड़ राजा से मेहकर जानेवाला यह हायवे पुणे- नागपूर मार्ग भी है, इसलिए यहाँ बहुत तेज़ रफ्तार से ट्रैवल्स की बसें जा रही हैं| इसलिए कुछ मिनटों तक अन्धेरे का थोड़ा डर लगा| उसके साथ तेज़ गति से जानेवाले और बहुत पास से गुजरनेवाले ट्रक्स| आखिर जब आधे घण्टे बाद धीरे धीरे रोशनी आती गई, कुछ सुकून मिला| अब तक की योग चर्चाएँ याद आ रही है| एक जगह पर एक योग साधिका ने कहा था कि मेरा बेटा बहुत भागदौड़ करता था, उससे कुछ शान्ति के लिए मैने योग शुरू किया और बाद में बेटा भी योग करने लगा! एक जगह एक योग शिक्षक ने हमारी खाने के आदतों के बारे में बहुत अच्छी टिपणि की थी| उन्होने कहा था कि हम अगर खाना खा रहे है तो हमे ऐसा खाना चाहिए- अगर हमें आम बहुत पसन्द है, तो उसे बहुत धीरे से, उसे देखते हुए, उसका पूरा आनन्द लेते हुए खाना चाहिए| जैसे आम को देखना, उसका सुगन्ध लेना, धीरे धीरे उसका स्वाद लेना| अगर हम इस तरह खाते हैं तो बहुत थोड़ा सा खाना भी शरीर के लिए पर्याप्त होता है| इससे ध्यानपूर्वक खाना खाया जा सकता है और अतिरिक्त खाना भी नही खाया जाएगा!
८: जालना- सिंदखेडराजा
योग साईकिल यात्रा का सांतवा दिन, १७ मई की सुबह| आज सिर्फ ३४ किलोमीटर दूर होनेवाले सिंदखेड राजा जाना है, इसलिए थोड़ी देर से निकला| निकलते समय जालना शहर में चलनेवाले दो योग वर्गों के साधकों से मिला| हर रोज कुछ साधक इन स्थानों पर योग करते हैं| उनसे मिल कर आगे बढ़ा| जालना के कुछ साधक मुझे विदा करने के लिए भी आए| अब एक तरह से यह यात्रा समापन की ओर बढ़ रही है| आज सांतवा दिन, इसके बाद सिर्फ चार दिन रहेंगे| लेकीन हमारा मन कितना दौड़ता है! आज सांतवा दिन शुरू भी नही हुआ कि मन तो पहुँच गया वापस! साईकिल चलाते समय भी मन दौड़ता रहता है| बहुत कम बार, बड़ी मुश्कील से वह साईकिल पर रूकता है और सिर्फ उस क्षण को देख पाता है| स्पीड, टारगेट, समय सीमा आदि के बारे में सोचे बिना बहुत मुश्कील से मन वर्तमान क्षण में ठहरता है| लेकीन इसी का नाम तो ध्यान है! एक समय कोई भी गतिविधि अगर पूर्ण रूपेण करते हैं, तो वह ध्यान बन जाता है| चाहे वह साईकिलिंग ही क्यो ना हो| लेकीन यह उतना ही कठीन भी है, क्यों कि हमारा मन बहुत जटिल होता है; उसके अक्सर अलग- अलग टुकड़े होते हैं| उन खण्ड- खण्डों को इकठ्ठा लाने का नाम तो ध्यान है| खैर|
७: औरंगाबाद- जालना
योग साईकिल यात्रा का छटा दिन, १६ मई की सुबह| कल औरंगाबाद में अच्छी चर्चा हुई और आज अब औरंगाबाद से जालना जाना है| जालना एक तरह से इस पूरी योग- यात्रा का केन्द्र बिन्दू रहा है| जब से इस यात्रा की योजना बनी, यह विषय सब साधकों के सामने रखा गया तब से जालना के लोग इसमें अग्रेसर रहे| उन्होने इस पूरी यात्रा के आयोजन में बहुत सहभाग लेना शुरू किया और बहुत अच्छा प्रतिसाद भी दिया| मेरा हौसला भी बढाया| जालना के चैतन्य योग केंद्र से सीखे योग साधकाओं से पहले परतूर और अंबड में मिला ही हूँ| आज यह केन्द्र देखना है, यहाँ के साधकों से बातचीत करनी है| कल डॉ. पटेल सर से मिलना इस पूरी यात्रा का एक शिखर था और आज जालना में हुए कार्य- विस्तार को देखना एक दूसरा चरम बिन्दू है! जालना और औरंगाबाद में मेरी यात्रा के बारे में अखबारों में खबर भी आयी हैं| पहले मेरी योजना बनी थी, तब भी खबर दी गई थी| कुल मिला कर इस यात्रा के दौरान मेरी कम से कम दस- बारह खबरें तो आयी ही होगी! यह भी वहाँ के साधकों की तैयारी और उनके कार्य की गहराई दर्शाता है|
हर रोज की तरह आज भी सुबह बहुत जल्द, ५.४५ बजे निकला| आज की दूरी वैसे ६० किलोमीटर है| लेकीन अब शरीर के लिए यह दूरी बहुत कम लग रही है| और आज की सड़क इस पूरी यात्रा की सबसे शानदार सड़क है| बहुत बढिया दो- दो लेनवाली मेरी पसंतीदा सड़क! इसलिए आज जल्दी ही पहुँचूँगा| और दूसरी बात यह भी है कि इस सड़क पर औरंगाबाद से जालना जाते समय हल्की ढलान भी है जिससे और भी आसानी होगी| तथा आज तक मै बहती हवा की विपरित दिशा में साईकिल चला रहा था, आज कुछ हद तक हवा भी मेरा साथ देगी! सुबह की ताज़गी में बढ़ चला| और बिना रूके बढ़ता ही गया| जल्द ही पता चला कि आज तो पूरी बॅटींग पिच है भाई! अब तक कुछ साधारण और कुछ निम्न साधारण सड़कों से गुजर चुका हूँ| आज का दिन मेरे लिए और मेरी साईकिल के लिए बॅटिंग पिच जैसा है! सुहावना मौसम, आसपास दिखाई देनेवाले पहाड़ और सड़क भी उतनी ही रोमँटीक! और क्या चाहिए!
६: देवगिरी किला और औरंगाबाद में योग- चर्चाएँ
योग साईकिल यात्रा का पांचवा दिन, १५ मई की सुबह| कल बहुत बड़ा दिन था| लेकीन रात में अच्छा विश्राम हुआ और सुबह बहुत ताज़ा महसूस कर रहा हूँ| आज की साईकिल राईड छोटी ही है- सिर्फ ३७ किलोमीटर| और आज पाँचवा दिन होने के कारण यह बहुत ही मामुली लग रही है| कल शाम को योग साधकों से मिलना नही हुआ था| आज उनसे मिलूँगा| कल मुझे रिसिव करने के लिए जो साधक आए थे, उनमें एक साईकिल चलानेवाले भी थे| आज उनके साथ पहले औरंगाबाद के पास होनेवाले देवगिरी किले पर जाऊँगा| वहाँ श्री. खानवेलकर और कुछ योग साधक आएंगे जिनसे अनौपचारिक बात होगी|
सुबह ठीक साढ़ेपाँच बजे निकला| महेन्द्रकर सर भी तैयार थे| वे औरंगाबाद में साईकिल चलाते हैं| उनके साथ दौलताबाद अर्थात् देवगिरी किले की तरफ बढ़ा| कई दिन अकेले साईकिल चलाई थी, आज बात करते हुए जाना अच्छा लग रहा है| और साथ में औरंगाबाद एक हिल स्टेशन होने के कारण होनेवाला सुहावना मौसम, हरियाली और छोटे पहाड़ भी है! दौलताबाद अर्थात् देवगिरी किला! अतीत की गहराईयों में से उपर उठता हुआ एक शिखर! जाने कितने समय, कितने लोग देखे होंगे इस किले ने! भारत के इतिहास का एक पुख़्ता प्रतिक! इस किले के बारे में एक बात बहुत रोचक है| जब अलाउद्दीन खिलजी की सेना इस पर हमला करने के लिए आई थी, तो कुछ दिनों तक उन्हे यही लगा कि देवगिरी के पास जो शरणापूर की गढ़ी या टीला है, वही देवगिरी है! इसलिए वे इसी के पास कुछ दिनों तक लड़ते रहे और बाद में उन्हे पता चला कि देवगिरी किला तो और आगे हैं! देवगिरी के पास आते समय पहले शरणापूर का टिला ही दिखा और एक पल के लिए मै भी धोख़ा खा गया!
५: अंबड- औरंगाबादयोग साईकिल यात्रा का चौथा दिन, १४ मई की सुबह| आज अंबड से औरंगाबाद जाना है| सुबह अंबड के कुछ योग साधकों से मिलना हुआ| यहाँ कुछ लोग व्यक्तिगत रूप से क्लास लेते हैं| उनसे मिलकर आगे बढ़ा| आज भी सड़क आधी दूरी तक भारत से ही जाएगी और हायवे आने के बाद फिर इंडिया शुरू होगा! आज पहली बात तो खुद को बहुत धन्यवाद दे रहा हूँ कि मै इस यात्रा पर साईकिल पर आया, क्यों कि अगर गाडी से आता तो इस दिशा में कभी भी नही आता! आज यह सड़क रोहीलागड़ से जाएगी| रोहीलागड़ यह आज एक छोटा सा कस्बा है लेकीन अतीत में यहाँ पर बौद्ध गुंफाएँ थी| रोहीलागड़ के पास ही जांबुवंतगड भी है जिसका सम्बन्ध श्रीकृष्ण के समय के जाम्बुवन्त से है, ऐसा कहा जाता है| आज पहले इस रोहीलागड़ को देखने की उत्सुकता थी| इंटरनेट पर इसके बारे में खोजा था, पर कुछ खास मिला नही| अंबड से निकलने के बाद से ही सड़क विराने से रोहीलागड़ के तरफ बढ़ रही है| कल जैसा ही शान्त विराना और प्रकृति का साथ! बीच बीच में लगनेवाले बहुत ही छोटे गाँव!
४: परतूर- अंबड
योग साईकिल यात्रा का तिसरा दिन, १३ मई की सुबह| रात में अच्छा विश्राम हुआ है और कल जो योग साधकों से मिलना हुआ था, उससे भी बहुत ऊर्जा मिली है| इस यात्रा के लिए उत्साह और भी बढ़ गया है| कल जहाँ ठहरा था वह परतूर गाँव! इसे वैसे तो परतुड़ भी कहा जाता है| और महाराष्ट्र और भारत के इतिहास में भी इस गाँव से जुड़ा एक घटनाक्रम है| १७६१ में पानिपत में मराठा सेना और अब्दाली के बीच पानिपत का तिसरा युद्ध हुआ| जब मराठा सेना इस युद्ध के लिए निकली थी, तो तब वह यहाँ परतूड़ में थी| परतूड़ में पेशवा सदाशिवरावभाऊ की अगुवाई में मराठा सेना ने निज़ाम की सेना को मात दी थी| यहीं मराठा सेना को अब्दाली और नजीबखान रोहीला की सेना ने मराठा सरदार दत्ताजी शिंदे को मात देने की की खबर मिली और सीधा परतूड़ से ही मराठा सेना दिल्ली के लिए निकली थी|