Tuesday, November 4, 2014

जन्नत को बचाना है: जम्मू कश्मीर राहत कार्य के अनुभव ३


राहत कार्य का आंकलन

६ अक्तूबर की सुबह! श्रीनगर में सुखद ठण्ड है| आज श्रीनगर में ईद का जश्न होगा और यहाँ सेवा भारती के सभी कार्यकर्ता अपने घर में ईद का जश्न मनाएँगे| एक तरह से यह उनके लिए छुट्टी का दिन है| हालांकी वे दोपहर सेवा भारती के दफ्तर आएँगे और काम में जुटेंगे| पर दोपहर तक उनकी व्यस्तता के कारण आज गाँवों में चिकित्सा शिविर नही होंगे| देशभर से आए डॉक्टर भी एक तरह से आज थोडा विश्राम करेंगे और दवाईयाँ लगाने में जुटेंगे| आज मुझे एक तो सब कार्य को समझना है; सभी से परिचय आगे बढाना है और रिपोर्ट बनाना है| रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु दादाजी ने बता दिए हैं| अब उसे मुझे लिखना है| इसके लिए संस्था के लॅपटॉप पर कुछ दैनिक रिपोर्ट, फोटोज, व्हिडिओज आदि जानकारी है|

सवेरे से ही पास में अजान की गूँज सुनाई दे रही है| पास ही कहीं मस्जिद है| यह ध्वनि एक तरह से वातावरण को जिन्दा बना रही है| कल रात दो कमरों में करीब पच्चीस कार्यकर्ता लोग ठहरे थे| अपने अपने समयानुसार वे तैयार हुए| जिनके पास खाना परोसने का हुनर है, वे चाय- नाश्ता बना रहे हैं| अब धीरे धीरे एक एक से परिचय हो रहा है| अभी तक के राहत कार्य का जाएजा लेते लेते बातचीत हो रही है|

सुबह दादाजी से बात हुई तो उन्होने कुछ अटपटी बात कही| कुछ बातें‌ साफ कर दी| उन्होने कहा, 'वास्तव में रिलिफ वर्क कुछ किया नही जा सकता| आप कैसे कुछ करोगे जब इतनी बड़ी तबाही होती है? पानी सब कुछ ले गया| इसे हम कैसे भर सकते हैं? हाँ हम हमसे जितनी सहायता हो, जितना दर्द बाँटा जा सकता हो, उतना हम अवश्य कर रहे हैं|' बात अटपटी लगी| यहाँ आने तक मन में यही धारणा थी कि रिलिफ के विभिन्न पहलूओं पर काम करना होगा- जैसे पहाड़ पर दूर दराज के गाँवों में जाना, राशन बाँटना, तात्कालिक शेल्टर्स के लिए सहायता करना, टर्पोलिन (तिरपाल) देना, सरकारी लोगों के साथ लोगों की आवश्यकताओं के बारे में पैरवी करना, गाँव- गाँव जा कर नुकसान का आंकलन करना, राहत सामग्री की आवश्यकता जान कर उसे भेजनेवाले लोगों तक उसे पहुँचाना, मिलिटरी के साथ टेंटस बनाना, कूड़ा साफ करना आदि| पर यहाँ कुछ अलग दिखाई पड़ रहा है| दादाजी ने दो टूक कहा- 'जिस अर्थ में तुम समझते हो, उस अर्थ में हम रिलिफ काम नही कर रहे हैं| हम हमारे तरिके से जो सम्भव हो रहा है, वह कर रहे हैं| और नुकसान इतना ज्यादा है| अगर कुछ राहत सामग्री बाँटनी चाहें तो भी नही बाँट सकेंगे| क्योंकि अगर एक गाँव में ३०० परिवारों को हानी हुई है, तो सिर्फ १०० कँबल बाँटने से नही चलेगा| इसलिए हम ज्यादा ध्यान चिकित्सा शिविरों पर दे रहे हैं| कुछ सामग्री जरूर बाँट रहे हैं; पर वह सामग्री लोगों द्वारा पहले ही भेजी हुई है|'

सेवा भारती के राहत कार्य के फोटो देखने से साफ पता चल रहा है कि वे लोग पहले दिन से सक्रिय है| जब नैकपूरा के पास- श्रीनगर से करीब बीस किलोमीटर दूरी पर- जेलम नदी का बाँध टूटा, तब याने ७ सितम्बर को श्रीनगर में सैलाब के पानी ने ताण्डव शुरू किया| तब पूरा शहर जलमग्न हुआ| सेवा भारती के कार्यकर्ता पहले ही दिन से सक्रिय थे| जितना उस समय किया जा सकता था किया गया| आस- पास के कुछ लोग करीब पन्द्रह दिन तक संस्था के दफ्तर की दुसरी मंजिल पर महफूज रूके| जहाँ तक कार्यकर्ता लोग जा सकते थे, वहाँ गए और उपलब्ध राशन बाँटा| जब सेवा भारती दफ्तर का दरवाजा टूटा, तो उसकी नाव बनायी गई और उससे जलमग्न इलाकों में सेवा भारती कार्यकर्ता जाते रहें| जहाँ नाव नही थी, वहाँ पर भी कार्यकर्ताओं ने पानी में जा कर मदद की और लोगों को कन्धों पर उठा कर सुरक्षित स्थान पर भी ले आए| कश्मीर में तीन हजार से अधिक लोगों को सेवा भारती कार्यकर्ताओं ने रिस्क्यू किया| आपदा के पहले चरण में जम्मू क्षेत्र में भी भीषण स्थिति थी| तवी के ताण्डव में संस्था ने जम्मू बस अड्डे पर लंगर लगाया| फंसे हुए लोगों की जानकारी देने के लिए हेल्पलाईन चालू की| श्रीनगर शहर में कई स्थानों पर क्लोरीन का स्प्रे भी किया गया है| बाद पानी कम होने पर चिकित्सा शिविर भी शुरू हुए| अब तक (६ अक्तूबर तक) सौ से अधिक शिविरों द्वारा पन्द्रह हजार से अधिक रुग्णों पर इलाज किया जा चुका है| अब भी सबसे अधिक जोर चिकित्सा शिविरों पर ही है| आपदा हो कर आज एक माह पूरा हो रहा है| अभी तक कोई इपिडेमिक नही आया| उसे टालने में सेवा भारती के डॉक्टरों की भी भुमिका है|

सेवा भारती दफ्तर में रह कर पीछले एक साल से कार्यरत महाराष्ट्र के एक कार्यकर्ता- मयूर पाटील ने बाढ़ के कहर को बयाँ किया- "६ सितम्बर से हम लोग फंसे थे| सेवा भारती दफ्तर की पहली मंजिल पूरी पानी में गई| हमारे साथ दो पडौसी परिवार भी बच्चों साथ आ कर रूके| संयोग से संस्था के दफ्तर में सिलिंडर और चांवल था| उससे गुजारा हो सका| हम पानी गर्म कर पीते थे| हमारे कार्यकर्ता इस सामने दिख रही गली में नाव से जा रहे थे| एक दिन मिलिटरीवाले भी आए; हमने उनसे सिर्फ पानी लिया| हमारा दुनिया से सम्पर्क कट गया था| बिजली नही थी, मोबाईल भी बन्द थे| चालू भी होते तो भी फर्क न पड़ता| पहली मंजिल पानी के नीचे जाने से इतने बुरे हाल थे कि पूछो मत| उपर के टॉयलेट में भी पूरा पानी फैला था| हमने जैसे तैसे वे दिन निकाले| कुछ लोग तो हिंमत खोने लगे थे| रात को भी नीन्द ग़ायब होने लगी| पडोस में रेंट से रहनेवाले अंकल ने हमारा हौसला बढाया| उनके साथ हम खाना बनाते थे| १८ तारीख को पानी कम होने के बाद मै नीचे जा सका| तब घरवालों से बात हुई|” यह नौजवान परिवार में इकलौता लड़का होने पर भी पीछले एक साल से अधिक समय से यहीं कार्यकर्ता का काम कर रहा है| और सभी तरह के काम कर रहा है| दफ्तर की देखभाल, पानी भरना, चाय- भोजन बनाना (और वो भी बीस- पच्चीस लोगों के लिए!), दफ्तर में रिलिफ काम का समन्वयन देखना, दवाईयाँ ठीक लगाने में डॉक्टरों की सहायता करना आदि. . .

ऐसे और भी कार्यकर्ता यहाँ हैं| कोई दस दिन के लिए आए हैं; कोई पन्द्रह दिनों से आए हुए हैं| इन्दौर की विदुषी दिदी भी ऐसी ही एक दबंग कार्यकर्ता है| अकेले के बलबूते पर इन्दौर से सीधी चलीं आयी| उन्होने सेवा भारती के बारे में आने पर ही जाना| अब वे यहाँ रिलिफ कार्य का पूरा अकाउंटस देख रही हैं| और ऐसा देख रही है की घण्टों तक बिना हिले काम कर रही है|

जैसे दिन बढता गया, कार्यकर्ताओं से और बातें हुई| रिपोर्ट लेखन भी चल रहा है| दादाजी ने और अटपटी बात कही- 'तुम्हारा रिपोर्टिंग और डॉक्युमेंटेशन का काम यहाँ नही चलेगा| तुम्हारी तकनीक यहाँ नही काम आएगी| यहाँ तुम्हे हमारे तरिके से काम लेना होगा|' फिर उन्होने समझाया कि रिपोर्ट लिखना हो तो वह बिलकुल रुखा और मात्र जानकारी सरिखा नही होना चाहिए| उसे जीवन्त होना चाहिए और धरातल पर चल रहे सभी कार्य उसमें रिफ्लेक्ट होने चाहिए| वैसे तो उपलब्ध जानकारी के आधार पर रिपोर्ट लिखना दो घण्टों का काम है; पर वह यांत्रिक होगा| उसमें इस काम की गहराई नही आएगी| इसलिए दादाजी लगातार रिपोर्ट में बदलाव बताते रहें और काम जारी रहा|

यह उनकी एक खास शैलि भी है| जो कोई उनके पास आता है, उसे वे पहले एकदम अटपटे तरिके से बात करते हैं| किसी को कहते है कि तू बिलकुल बेवकूफ है! कई लोग उनपर क्रोध भी करते हैं| लेकिन दादाजी कहते हैं कि यह उनका एक तरिका है लोगों को चुनने का और तराशने का| जो लोग शुरू में एक तरह की उपर से निगेटिव्ह दिखनेवाली बात सुन कर और उसका सामना करने पर भी दादाजी के पास ही रहते हैं, वे अच्छा काम करते हैं, ऐसा दादाजी का मानना है| एक तरह से यह आनेवालों लोगों के इण्डक्शन का एक छोटासा एक्सरसाईझ है! दादाजी के बात करने का तरिका अनुठा है| बंगाली लहेजे की हिन्दी (ऑनुभव, इसके ऑनुसार कॉरना आदि प्रयोग) और थोड़ी पंजाबी मिर्च! उनकी आयु युवा कार्यकर्ताओं से लगभग तीन गुना अधिक है| उनका तजुर्बा बहुत बड़ा है| फिर भी वे दोस्त- भाई जैसे बात करते हैं| तिखी नोंक झोक होती है| बड़ी मिठी बहस भी करते हैं| दोस्त जैसे झगड़ते भी हैं| लेकिन यह करते करते पूरे कार्य का समायोजन करते हैं| इसके ही कारण यदि किसी पर वे कभी कठोर शब्द का भी प्रयोग करते हैं, तो भी कोई आहत नही होता है|

दिन भर यही क्रम जारी रहा| कुछ कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर रिपोर्ट लिखता गया| फोटो चुनने का काम जारी रहा| दोपहर में स्थानीय कार्यकर्ता ईद का जश्न मना कर दफ्तर आ गए| कईयों ने मिठाईयाँ खिलाई और ईद मुबारकबात भी दी| गले मिले| शाम को एक कार्यकर्ता ने व्हिडिओ रिपोर्ट बनाने हेतु स्थानीय कार्यकर्ताओं के साक्षात्कार लिए| उसमें भी कुछ बातें पता चली| कश्मीरी बोली सुनना भी अनुठा अनुभव है! अभी कुछ परिचय के बावजूद स्थानीय कार्यकर्ता आँखे मिला कर बात नही कर रहे हैं|

रात को भोजन के लिए रेसिडन्सी रोड पर स्थित आश्रम गए| रात के अन्धेरे में श्रीनगर में पैदल जाते हुए जेलम नदी (स्थानिक भाषा में दरिया ए जैलम) दिखी| कुछ सडकों के फूटपाथ पर कूड़ा और स्लरी जैसा मलबा पड़ा हुआ है| अन्दर की सड़कों पर बाढ़ के निशाँ दिख रहे हैं| अर्थात् उपर से देखनेवाले को लगेगा कि श्रीनगर में तो आम हालात शुरू हो रहे हैं| रात के अन्धेरे में भी शंकराचार्य मंदीर चमक उठा है| आते समय पता चला कि आज ईद का जश्न होने के कारण कुछ लोगों ने जूलूस निकाला था| यहाँ श्रीनगर में जूलूस, नारेबाज़ी और रॅलियाँ रोज की बात है| सुनने में आया कि लोगों ने पाकिस्तान का झण्डा फहराया और फिर सुरक्षा बलों ने आंसू गैस का इस्तेमाल किया| लाठी चार्ज भी किया| हाल ही में श्रीनगर में इसिस का भी झण्डा फहराया गया है| स्थानीय लोगों के अनुसार ऐसे समाचार यहाँ आम बात है|

देखा जाए तो आज के दिन में कुछ खास नही हुआ| लेकिन कई कार्यकर्ताओं से मिलना हुआ| उनके अनुभव सुनें| कुछ लोगों से दोस्ती भी हुई|‌ कई बार आप ऐसे लोगों से मिलते हैं जिनसे मिलते ही एक तो दूरी का अनुभव होता है या फिर यदा कदा दोस्ती का भी अनुभव होता है| देश भर से आए हुए युवा कार्यकर्ता निश्चित रूप से महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं| “बूँद बूँद मिलने से बनता एक दरिया है!"

मुझे आगे का काम भी बताया गया है| अब तक के राहत कार्य का एक रिपोर्ट और पाम्पलेट बनाना है| उसके लिए दादाजी मुझे उनके साथ जम्मू आने को कह रहें हैं| वहाँ एक मीटिंग भी है| कुछ दिन जम्मू जाना होगा| उसके बात फिर आगे का काम तय होगा| रिलिफ वर्क में यही होता है- Everything can happen and anything also can happen. मन में अब भी कुछ प्रश्न है| देखते हैं क्या होता है| आज रात जल्दी सोना होगा क्यों कि कल सवेरे तीन बजे श्रीनगर से निकलना है| क्यों कि जम्मू में शाम को मीटिंग अटेंड करनी है| और बनिहालवाला रोड अब भी जाम है| इसलिए मुघल रोड से ही जाना होगा. . . 

रोगों की रोकथाम हेतु स्प्रे फोटो- https://www.facebook.com/sewabhartijk



























पुलवामा में टुटा हुआ एक आशियाँ फोटो- https://www.facebook.com/sewabhartijk


























बडगाम जिले के एक गाँव में शिविर फोटो- https://www.facebook.com/sewabhartijk

























व्हिडिओज-
जावेद भाई द्वारा राहत कार्य की जानकारी
फयाज भाई का निवेदन

क्रमश
जन्नत बचाने के लिए अब भी सहायता की आवश्यकता है. . .  सहायता हेतु सम्पर्क सूत्र:
SEWA BHARTI J&K
Vishnu Sewa Kunj, Ved Mandir Complex, Ambphalla Jammu, J&K.
www.sewabhartijammu.com 
Phone:  0191 2570750, 2547000
e-mail: sewabhartijammu@gmail.com, jaidevjammu@gmail.com
 

2 comments:

  1. अच्छा है । सुंदर वर्णन सुंदर कार्य के साथ साथ ।

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  2. निरंजन खरच या लेखांमुळे तेथील परिस्थीती अनुभवता येतेय............

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