Thursday, November 20, 2014

जन्नत को बचाना है: जम्मू कश्मीर राहत कार्य के अनुभव १३

आपदा की आपबिती

१६ अक्तूबर को प्रात: जल्दी दादाजी और अन्य साथी जम्मू के लिए निकलें| बनिहालवाला रोड़ १८ तारीख तक बन्द किया गया है| इसी लिए उन्हे मुघल रोड़ से ही जाना पड़ा| मुझे भी १९ अक्तूबर की सुबह निकलना है| शायद मुझे भी वहाँ से ही जाना पड़ेगा| एक विचार श्रीनगर से बनिहाल तक ट्रेन और वहाँ से आगे जीप से जाने का भी है| देखते हैं| अब मात्र तीन दिन बचें है| मन की धारा कितनी अजीब है| बचे दिनों को अधिक से अधिक काम में लाने के बजाय मन १९ अक्तूबर से आगे जा रहा है| वाकई, वर्तमान में ठहरना मन का स्वभाव ही नही| अस्तु|

आज पहला मुख्य काम सुबह का आश्रम का शिविर है| उसके बाद आगे का काम तय होगा| शिविर यथा क्रम हुआ| और रोज की‌ तरह आज भी पहले 'रुग्ण' आश्रम परिसर में कार्यरत कार्मिक ही हैं! आज करीब ६७ रुग्ण आए| कल आश्रम के ज्येष्ठ स्वामीजी भी आए हैं| इसलिए डॉक्टर सर को शिविर समाप्त होने के पश्चात् भी उनका बीपी देखना पड़ा| और उनके साथ दो- तीन लोग भी आए| दफ्तर जाने के लिए गाड़ी आने में देर होने के कारण हम वहाँ से पैदल चल पड़े| अब रास्ता पता हो गया है| लाल चौक से जा कर जेलम का एक पूल क्रॉस कर जाना है| डॉक्टर सर को तो शॉर्ट कट भी पता हो गया है| छोटी छोटी गलियों से जाते हुए पहुँच गए| आज गाड़ी पवनजी के साथ लाईटस वितरण के लिए भी जा रही हैं| आज शायद उनका वितरण समाप्त होगा|

थोडी ही देर में पता चला कि आज शाम का गाँव का शिविर नही होगा, क्यों कि गाड़ी नही है| कुछ गाडियाँ जम्मू भी गईं है| दोपहर में दफ्तर में आनेवाले कार्यकर्ताओं से बातचीत होती रही| डॉक्टर सर के निर्देश पर दवाईयों के बक्सों को ठीक से लगाने का काम किया| दवाईयाँ कुछ बिखर गईं हैं; इसलिए उन्हे ग्रूप में रखना है| आगे के शिविरों के लिए सेट भी बनाए| डॉ. देसाई सर और चार दिन तक रुकेंगे| लेकिन उनके बाद काम करने के लिए कोई डॉक्टर आने की सूचना अभी तक नही मिली है| अर्थात् प्रयास पुख़्ता किए जा रहे हैं कि और भी डॉक्टर आए| महिला डॉक्टर की भी काफी आवश्यकता है|

डॉक्टर सर के साथ काम करते समय उन्होने उनके अनुभव बताएँ| वस्तुत: वे ४ सितम्बर को श्रीनगर में ही थे| घूमने के लिए आए थे| जब वे पहलगाम गए, तभी बरसात काफी बढ़ चुकी थी| वहाँ से उन्हे लौटना मुश्किल हुआ और जैसे तैसे वे अवंतीपुरा तक ही आ सके जो श्रीनगर से करीब पच्चीस किलोमीटर दूर है| मिलिटरी ने रास्ता बन्द कर दिया था| चारा न होने पर उन्हे वहीं‌ रूकना पड़ा| उस समय के उनकी आपबिती काफी सोचने पर मजबूर करनेवाली है| वे और उनकी पत्नी होटल देखने के लिए गए| तब तक उनके साथ और दो ऐसे फंसे पर्यटक कपल भी आ गए थे| काफी देखने पर इन लोगों को एक होटल ठीक लगा| पर्यटकों की मजबूरी और विकल्पों की कमी देखते हुए उस होटलवाले ने दिन का पंधरासौ किराया प्रति परिवार बताया| लेडिज को यह होटल इतना ठीक नही लगा; इसलिए सामान वहाँ छोड कर दूसरा विकल्प देखने के लिए सब गए| पास ही में एक जगह उन्हे पाँच टिचर्स मिली जो जम्मू की थी| वे किराए से कुछ कमरों में रहती थी| कुछ लोगों को उन्होने पहले से आसरा दिया था| इन लोगों ने अपनी दिक्कत उन्हे बतायी और उन टिचर्स ने उन्हे भी आसरा दिया| बस दिक्कत यह थी कि इन तीन परिवारों को (जो कि तीन कपल्स थे) एक ही कमरे में रहना पड़ेगा जिसके लिए वे तुरन्त तैयार हुए| लेकिन जब सामान वापस लाने गए, तब उस होटलवाने ने मात्र सामान रखने के हजार रूपए लिए| आपदा में भी कुछ लोग इन्सानियत भूल कर लूटपाट करते हैं| उसी का यह उदाहरण था| खैर|

फिर वे तीन कपल्स कुछ दिन उन टिचर्स के पास रहें| टिचर्स जम्मू की थी और काफी सहृदय थी|‌ उनके घर का मालिक भी अच्छा था जिसने इन लोगों से सहयोग किया| उनके पास पर्याप्त राशन भी था जिससे आपत्ति के समय सबका गुजारा हो सका| रास्ता न खुलता देख कर सब परेशान हुए| जब तक मोबाईल्स चालू थे, तब तक डॉक्टर सर ने उनकी पहचान के एक व्यक्ति द्वारा फंसे होने की खबर मिलिटरी तक पहुँचाई| फिर एक दिन बाद मिलिटरी उन्हे लेने आयी| और मिलिटरी ने उन्हे हेलिकॉप्टर द्वारा चंडीगढ़ छोडा जहाँ से वे गोवा गए|‌ डॉक्टर सर बता रहे हैं कि लौटने पर उन्हे खुशी तो हुई ही; लेकिन थोड़ा अपराध भाव भी महसूस हुआ| एक तरह से वे डॉक्टर होते हुए भी आपदा से बच कर भाग गए थे| इसीलिए फिर उन्होने यहाँ सेवा के लिए आने का निर्णय किया! और अब अकेले होते हुए भी वे ही सब शिविर ले रहे हैं|

उनके अवंतीपुरा के वास्तव्य में उन्होने और कुछ चीजें‌ देखी|‌ जम्मू की टिचर्स के अवंतीपुरा के अनुभव कटु थे| एक तरह से मुश्किल से वे वहाँ रह रही थी| और दूसरी बात यह कि जब इन लोगों को निकालने के लिए हेलिकॉप्टर आया, तब मिलिटरी के लोगों से मिलना हुआ| तब लोग हेलिकॉप्टर में बैठने के लिए कतार में खडे थे और अपनी बारी के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे| तब वहाँ बैठा एक मिलिटरी अफसर बड़े तनाव में था| रोते आँखों से वह इस काम में होनेवाले तनाव के बारे में कह रहा था| यह भी कह रहा था कि कश्मिरियों को इतनी मदद करने पर भी वे हमें गालियाँ ही देते हैं| फिर उसने कश्मिरियों को कुछ उल्टा सीधा भी कहा| यह सुन कर पास ही बैठा हुआ एक कश्मिरी युवक उसके पास आ कर बहस करने लगा और कहने लगा कि कश्मिरियों को बदनाम मत करो| वह भी मिलिटरीवालों के बारे में उल्टा सीधा कहने लगा| वह कहने लगा कि मिलिटरी कई क्राईम करती हैं और सिर्फ भारत से आए टुरिस्टों की ही मदद कर रही है| बात से बात बढ़ती गई| अन्य लोग और अफसर बीच में‌ आए और जैसे तैसे मामला शांत हो गया| इस तरह की प्रतिक्रियाएँ आईसबर्ग का एक टुकड़ा जैसी होने पर भी अस्वस्थ करनेवाली हैं|

. . . बातचीत के साथ दवाईयाँ लगाने का काम भी पूरा हुआ| आज खाना बनाने में मुझे भी सहभाग लेना है और सब्जी और रोटियाँ बनानी है| साथ ही कार्यकर्ताओं से बातचीत भी हो रही है| ऐसी ही प्रतिक्रिया यहाँ के कुछ कार्यकर्ताओं में भी हैं| एक कार्यकर्ता ने यह भी कहा, जब हम लोग इसी दफ्तर में फंसे थे, तब हम खिड़की से मिलिटरी के हेलिकॉप्टर्स को हाथ दिखा कर उनका अभिवादन करते थे| तथा उन्हे खिड़की से तिरंगा भी दिखाते थे| उसी समय यहाँ आसपास रहनेवाले लोग उन्हे हाथ से दूर रहने का इशारा करते थे और कहते थे कि हमें‌ मिलिटरी की मदद की कोई ज़रूरत नही है| लेकिन जब मिलिटरी की नावें आती थी, यही लोग पहले थे जो उनके सामने जा कर मदद के लिए हाथ फैलाते थे| इन लोगों को मिलिटरी की मदद तो चाहिए; जो मिल रहा हो, वह सब चाहिए; पर बाद में उन्हे मिलिटरी को गालियाँ ही देनी है. . . .

दादाजी की कही‌ बात ऐसे में याद आती है| पहले ही दिन उन्होने कहा था कि हर परिवार में एक बन्दा बिगड़ा हुआ होता है| एक इन्सानी भूल या कमीं मानते हुए उसे माफ करना है| दादाजी ने जैसे एक सूत्र दिया था- 'हम यहाँ किसी को कुछ समझाने नही आए है, वरन् समझने आए है'; उसी प्रकार उन्होने और भी एक सूत्र बताया था- 'कुछ चीजें देखने पर भी अनदेखी करनी हैं|' ये चरमपन्थी प्रतिक्रियाएँ उसी श्रेणि में आती हैं| लेकिन इसका मतलब ऐसी प्रतिक्रियाओं के अस्तित्व को ही नकारना नही हैं| ऐसी प्रतिक्रियाएँ हैं; और उसके अनगिनत कारण भी हैं| किसी भी सिक्के के दो पहलूं होते हैं|‌ वैसे भी यहाँ पर है| और सच्चाई हमेशा हाथी जैसी बड़ी होती है और हमारे दृष्टिकोण एक एक हिस्से को देखनेवाले अन्धे के तरह होते हैं| इसलिए खुली आँखों से इन चीजों को वे जैसे हैं; वैसे देखना और समझना आवश्यक है| इतनी तो बात पक्की है कि जम्मू- कश्मीर कुछ सदियों से एक तरह की आपदा से गुजर रहा है- पीछड़ेपन की आपदा, शिक्षा की कमी की आपदा; अच्छे वातावरण की कमी की आपदा आदि आपदाओं का यह बड़ा लम्बा दौर हैं| जाहिर है ऐसी आपदा के पीडित लोगों में तनाव तो होगा ही| उसका एक मात्र उत्तर इस बड़ी आपदा को उतने ही बड़े पैमाने के कार्य द्वारा रोकना है| जैसे कितनी सख़्त चट्टान हो; धीरे धीरे पानी उसे भी बदलता है| और यह तनाव मात्र कश्मीर की बात नही है| देश में हर जगह हिंसाचार, भ्रष्टाचार, अत्याचार, माफिया राज, अपराध आदि अलग अलग तरह से यह हो ही रहा है|

. . रात को सबने मिल कर भोजन बनाया| इतने अधिक लोगों का खाना बनाने का अभ्यास नही होने के कारण कुछ कमीं भी रही; लेकिन मजा आ गया| भोजन बनाने का हुनर भी थोड़ा निखर गया| और भोजन तिखा होने से थोडी देर ठण्ड से राहत भी मिली| मै और डॉक्टर सर सोच रहे हैं कि कल शंकराचार्य मंदिर जाएँगे जो यहाँ से करीब आठ किलोमीटर पर एक चोटी पर हैं| सुबह जल्दी उठ कर जाएँगे तो तीन- चार घंटों में लौट सकते हैं जिससे शिविर को समय पर शुरू कर सकेंगे| लेकिन उसके लिए इतनी घनी ठण्ड में सुबह पाँच बजे निकलना होगा. . .





































क्रमश:
जन्नत बचाने के लिए अब भी सहायता की आवश्यकता है. . .   
SEWA BHARTI J&K
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