Saturday, December 29, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव १५. यात्रा के अनुभवों पर सिंहावलोकन

१५. यात्रा के अनुभवों पर सिंहावलोकन

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एचआयवी और स्वास्थ्य इस विषय पर की हुई‌ साईकिल यात्रा मेरे लिए बहुत अनुठी रही| मुझे बहुत कुछ देखने का और सीखने का मौका मिला| यह सिर्फ एक साईकिल टूअर नही रहा, बल्की एक स्टडी टूअर भी हुआ| यह समस्या कितनी बड़ी है और इस पर काम भी कितना चल रहा है, यह मै समझ पाया और उसमें थोड़ा सहभाग भी‌ ले सका| कई‌ मायनों में मेरे लिए यह यात्रा अनुठी रही| साईकिलिंग के सम्बन्ध में भी‌ बहुत कुछ सीखने को मिला| आज तक की सबसे बड़ी और लगातार ज्यादा दिनों की साईकिल यात्रा हुई| और यह काफी‌ चुनौतिपूर्ण भी रही| शारीरिक कष्ट तो अभ्यास से हो जाते हैं, लेकीन मानसिक रूप से मै इतनी दूरी तक साईकिल चला पाया, यह मेरे लिए सन्तोष की‌ बात है| कई बार ऐसा लगा कि मेरी साईकिल यात्रा से लोग अपनी प्रसिद्धी भी चाह रहे हैं| लेकीन फिर सोचा कि चलने दो, क्या हर्ज है| मुझे इस यात्रा में इतना आनन्द आ रहा है, उन्हे उसमें आता होगा| कई बार ऐसे परीक्षा के क्षण आए जहाँ मन में लगा कि क्या वाकई मै साईकिल से प्रेम करता हूँ? साईकिल के प्रेम की कसोटी पर तो मै खरा उतरा! इस लिहाज़ से तो मै इस यात्रा में साईकिल की एक कक्षा से पास हो कर अगली कक्षा में पहुँचा! कई ऐसे क्षण आए जहाँ साईकिल चलाना कठिन हुआ| कई बार लगा भी कि यात्रा पूरी नही हो पाएगी| शुरू के दिन ऐसी कठिन स्थिति थी| पंक्चर ने भी तकलीफ दी, लेकीन इस यात्रा के बाद अब पंक्चर का डर कभी नही‌ लगेगा| कई दिनों तक लगातार चलनेवाली साईकिल यात्रा के लिए किस तरह शारीरिक एवम् मानसिक तैयारी करनी चाहिए, इसका बहुत अच्छा उदाहरण मुझे मिला|





अब बात करता हूँ इस पूरे विषय की| किसी भी समस्या या समाधान के लिए समाज की मानसिकता में गहराई तक जाना होता है| यह पूरा विषय कई मायनों में अन्य कुछ विषयों से जुड़ा है| जैसे स्त्री- पुरुष सम्बन्ध, स्त्री- पुरुष समानता और हमारे समाज की परिपक्वता| इसलिए इन पर भी थोड़ा विचार करना चाहिए| कुछ दशक पहले तक भारतीय सिनेमा में चुम्बन के दृश्यों पर सेंसॉर की पाबन्दी थी| लेकीन हत्या या गोली से मार डालने के दृश्यों पर कभी भी पाबन्दी नही थी| यह गलत तो है ही, लेकीन ऐसा क्यों है, यह भी समझना चाहिए| समाज में जिस चीज़ की बहुत छुपी आकांक्षाएँ होती हैं, दमन होता हैं, उसी को हम औपचारिक या सामाजिक मंच में गाली देते हैं; निन्दा करते हैं| स्वाभाविक प्रेम के अनुभव के प्रति समाज में बहुत ज्यादा दमन का भाव है| और शायद इतने ज्यादा दमन के कारण ही कुछ समय तक इस तरह के प्रेम- दृश्यों पर पाबन्दी होती थी या आज भी समाज की आँखों में ऐसे दृश्यों पर अलिखित पाबन्दी होती ही है| आज भी 'प्रेम' को एक सामाजिक मूल्य के रूप में देखा नही जाता है| प्रकृति की तरफ से देखा जाए तो पुरुष और स्त्री एक ही अखण्ड के दो खण्ड हैं और उनमें एक दूसरे के प्रति आकर्षण होता ही है| प्रकृति भी उन्हे पास लाना चाहती है| लेकीन हमारे आधुनिक समाज में कई बार बचपन से बच्चे- बच्ची एक दूसरे के साथ नही रहते हैं| साथ रहना मतलब सिर्फ घर में साथ होना नही है, बल्की साथ खेलना, साथ सोना, साथ रहना भी है| ऐसा न होने पर दोनों में एक दूरी और एक खाई बनती है| बाद में इसी के कारण तरह तरह के अफेअर्स होते हैं, महिलाओं पर अन्याय होता है; अत्याचार होता है| लेकीन एक उल्लेखनीय यह बात है कि आज भी जिन समुदायों में बचपन से बच्चे- बच्ची साथ रहते हैं और बाद में भी युवा लड़कें- लड़कियाँ पास ही रहते हैं; एक दूसरे के निकट होते हैं; वहाँ महिला अत्याचार का अनुपात बहुत ही कम है| आज भी ऐसे कई ग्रामीण और आदिवासी समाज हैं| जहाँ प्रकृति को जिस तरह स्त्री- पुरुष निकटता चाहिए वैसी रखी गई है, तोड़ी नही गई है, वहाँ हमें महिला पर अत्याचार या महिला पुरुषों से पीछड़ी होना आदि चीजें सुनने में भी नही मिलेगी| क्यों कि दोनों बिल्कुल साथ ही है| अगर लड़की लड़के के पास ही होती है, तो उसे उसके साथ छेडखानी की जरूरत ही नही पड़ेगी| जहाँ स्वाभाविक रूप से हाथ हाथ में लिया जा सकता हो, वहाँ छेडना असम्भव हो जाता है| लेकीन हम इतने प्राकृतिक ढंग से जीने से भटक चुके हैं| कई चीजें प्यार से; सॉफ्ट तरीके से की जा सकती हैं- जैसे दो बर्तन आपस में फंस जाते हैं| हम क्या करते हैं? थोड़ी देर उन्हे निकालने की कोशिश करते हैं और फिर ठोक- पीट करने लगते हैं| लेकीन अगर हम प्यार से उन्हे अलग करें, तो ठोक पीट की जरूरत भी नही होती है|

Thursday, December 27, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: १४. रिसोड से परभणी

१४. रिसोड से परभणी
 

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२५ नवम्बर की सुबह! इस यात्रा का आखरी दिन है| आज परभणी में समापन कार्यक्रम होनेवाला है| इस साईकिल यात्रा में अन्तिम दिन कब आता है, यह डेस्परेशन तो बिल्कुल नही था, लेकीन एक रोमांच जरूर है| और यह रोमांच आज भी जारी रहेगा| क्यों कि आज कुछ दूरी मुझे अज्ञात सड़क से पार करनी है| अज्ञात या जिसकी स्थिति अज्ञात है, ऐसी सड़क| और आगे भी बीच बीच में कम दर्जे की सड़क मिलेगी, जिससे आज का यह चरण थोड़ा अधिक समय लेगा| रिसोड ग्रामीण रुग्णालय में श्री निखाडे सर के घर चाय पी कर निकला| कल निखाडे सर ने बताया था कि एक जमाने में जब रिसोड अकोला जिले में था, तब यहाँ की पोस्टींग पनिशमेंट समझी जाती थी! क्यों कि रिसोड एक तरह से काफी दूर दराज का इलाका है| उजाला होते होते निकला| रिसोड से साखरा और हत्ता गाँव की सड़क से येलदरी जाऊँगा| शुरू में लोणार की ओर जानेवाली सड़क है| लेकीन क्या माहौल है! बिल्कुल सुनसान सड़क, बहुत देर में कोई वाहन मिल रहा है| और सब तरफ खेत- कुदरत का राज! कुछ किलोमीटर तक तो सड़क अच्छी है, यह पता था| असली मज़ा उसके बाद शुरू होगा!





Tuesday, December 25, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: १३. अकोला से रिसोड

१३. अकोला से रिसोड
 

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२४ नवम्बर की सुबह| आज अकोला से निकलना है| अन्तिम दो दिन बचे हैं और दोनो दिन मै शतक करूँगा| आज रिसोड तक १०५ किलोमीटर हो जाएंगे| लेकीन इसमें मुझे काफी हद तक चढाई होगी| कल शाम की चर्चा अब भी याद आ रही है| शिवराज पाटील जी ने कहा था कि महाराष्ट्र में ऐसे एचआयवी बच्चों के १९ बाल गृह है| उनमें से कुछ तो बन्द भी हो चुके हैं| ये सब निजी हैं, एक भी‌ सरकारी नही है| हालांकी सरकार से इन्हे कुछ सहायता जरूर मिलती है| कल श्रीकान्त जी से मिलना हुआ था, वे आज भी सुबह मुझे सड़क दिखाने के लिए आए| यह अकोला के एक तरफ पड़ता है, यहाँ से वाशिम हायवे तक का शॉर्ट कट वे बताएंगे| उनके साथ साईकिल चलानी शुरू की| कुछ दूरी तक मुंबई- नागपूर हायवे पर साईकिल चलाई| कोहरा है और सभी वाहनों के लाईटस जल रहे हैं| थोड़ी देर में वाशिम हायवे के मोड़ पर पहुँचा| मुझे सड़क दिखा कर श्रीकान्तजी ने विदा किया| कुछ कच्ची सड़क से साईकिल चलाई और फिर हायवे पर आ पहुँचा| यहाँ से मालेगांव जहांगीर तक कल वाली ही सड़क है| आज शनिवार है, इसलिए थोड़ी‌ राहत महसूस कर रहा हूँ| चढाई से अधिक समय लग भी गया तो कोई दिक्कत नही है| आज सड़क पर मुझे कुछ लोग भी मिलेंगे, छोटी मुलाकात होगी|




 


Sunday, December 23, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: १२. वाशिम से अकोला

१२. वाशिम से अकोला
 

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२३ नवम्बर की सुबह| आज वाशिम से अकोला जाना है और चौथे बाल गृह को विजिट करना है| यह इस यात्रा का एक वाकई चरम बिन्दू होगा| सुबह की ठण्डक में वाशिम में‌ विहान प्रोजेक्ट ऑफीस से निकला| वहाँ देवानन्द जी ने मुझे विदा किया| उसके पहले सवेरे जल्द उठ कर कॉफी‌ भी पिलाई थी| यह ऑफीस अकोला कॉर्नर पर ही है, इसलिए मुझे तुरन्त हायवे मिल गया| आज काफी उतराई भी मिलनेवाली है और कल कुछ दूरी तक इसी सड़क पर वापस आऊँग, तो वह चढाई बन कर मिलेगी| मन ही मन सोच रहा हूँ क्या सफर रहा है यह अब तक| साईकिल ने क्या खूब साथ निभाया है! यकीन नही‌ होता| शुरू के चार पाँच दिन तो जैसे मै बहाव के विपरित तैर रहा था| लेकीन उसके बाद एक बहुत प्रबल बहाव पैदा हुआ है| शरीर और मन की एक पूरी धारा बन गई है| अब सब कुछ जैसे अपने आप हो रहा है| सुबह साढ़ेचार बजे आराम से नीन्द खुलती है, शरीर अपने आप साईकिल चलाता है और मन भी‌ बिल्कुल तैयार रहता है| पानी की जैसे लकीर बनती है और पानी‌ उसी लकीर में से गुजरता है, वैसे ही शरीर और मन इस क्रम में बिल्कुल स्थिर हो गए हैं| या युं कहूँ तो ठीक रहेगा- मै ठहरा रहा, जमीं चलने लगे| इतना सब आसान हुआ है| आज का दिन तो बढिया रहेगा, आज वैसे ८४ किलोमीटर साईकिल चलानी है, लेकीन कुछ ढलान भी होगी| इसलिए मज़ा तो पूरा आएगा| साथ ही आज कई दिनों बाद बाल गृह में‌ बच्चों से मिलना भी होगा|






Friday, December 21, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: ११. कळमनुरी से वाशिम

११. कळमनुरी से वाशिम
 

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२१ नवम्बर को कळमनुरी में अच्छा कार्यक्रम तो हुआ ही, साथ में कई लोगों से मिलना हुआ| शाम को भी कार्यक्रम में आए डॉ. धाण्डे जी मिलने के लिए आए| आज २२ नवम्बर को हिंगोली में भी कुछ लोग मिलेंगे| कळमनुरी से सुबह निकलने में थोड़ी देर हुई| कल अधिक ऊर्जा देनेवाले लड्डू थोड़े ज्यादा खाए थे, जिससे पेट को तकलीफ हुई थी| और कळमनुरी में जहाँ रूका था, वह गेस्ट हाऊस ठीक हायवे पर ही है, इसलिए पूरे उजाले का इन्तजार किया और आगे बढ़ा| यहाँ का परिसर बहुत अच्छा लग रहा है| यह एक हिली एरिया ही है| कुछ लोगों को शायद लगता होगा कि हर रोज साईकिल चलाने में क्या विशेष अनुभव आता होगा, क्या अलग होता होगा| मेरा तो यही अनुभव है कि हर दिन और हर राईड अलग होती है| हर दिन के दृश्य अलग होते हैं, हर दिन हमारा मन और हमारे मन में दिखनेवाले दृश्य भी अलग ही होते हैं| और इस यात्रा में तो हर दिन नए लोगों से मिलना हो रहा है| और रोज के साईकिलिंग या रनिंग के बारे में तो मेरा यही अनुभव है कि हर कोई राईड या रन बिल्कुल अलग ही होता है| चाहे रूट एक ही हो, समय एक ही हो, वातावरण एक जैसा हो, हर दिन का अनुभव अलग होता है| बस उसे देखना आना चाहिए| उपर से बोअरिंग जैसा दिखाई देनेवाला यह क्रम बिल्कुल भी बोअरिंग नही होता है| बस उसके भीतर छिपी चीज़ें हमें दिखाई पड़नी चाहिए|






Wednesday, December 19, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: १०. नान्देड से कळमनुरी

१०. नान्देड से कळमनुरी

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२१ नवम्बर, इस यात्रा का दसवा दिन| नान्देड में सुबह निकलते निकलते एक योग शिक्षिका से थोड़ी देर मिलना हुआ| इस पूरी यात्रा में कई जगहों पर लोगों से मिलना हो रहा है| यह क्रम इतना लगातार जारी रहा कि २५ नवम्बर को यात्रा पूरी होने के बाद भी कई दिनों तक इसी यात्रा के सपने आते रहे और सपने में यात्रा में कुछ कुछ स्थानों पर लोगों को मिल रहा हूँ, ऐसा लगता रहा! नान्देड के भाग्यनगर से निकला, एअरपोर्ट के रास्ते अर्धापूर की तरफ जानेवाले हायवे पर आया| कुछ दूरी तक उतराई मिली| सुबह की ताज़गी और ठण्डक भी! उसके साथ शानदार मख्खन जैसा हायवे! घी में शक्कर! अभी‌ साईकिल चलाना मानो महसूस ही नही हो रहा है| पहले योजना बनाई थी कि नान्देड से हिंगोली जाऊँगा और अगले दिन हिंगोली‌ से वाशिम जाऊँगा| लेकीन इसमें नान्देड- हिंगोली ९२ किलोमीटर होते और अगले दिन हिंगोली- वाशिम सिर्फ ५१ किलोमीटर ही होते| इसलिए इस असमान चरण को थोड़ा सुधारा और हिंगोली के १८ किलोमीटर पहले कळमनुरी रूकने की योजना बनाई| हिंगोली जिले का केन्द्र था, लेकीन वहाँ का कार्यक्रम कळमनुरी में करने के लिए सभी लोग राज़ी हुए| इससे आज मै सिर्फ ६८ किलोमीटर चलाऊँगा और कल भी लगभग इतने याने ६६ किलोमीटर ही चलाऊँगा| और बाद में ऐसा कुछ हुआ जिससे यह निर्णय बहुत सही साबित हुआ!





Monday, December 17, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: ९. अहमदपूर से नान्देड

९. अहमदपूर से नान्देड
 

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२० नवम्बर, इस यात्रा का नौवा दिन| अहमदपूर में सुबह निकलते समय आसमां बिल्कुल साफ है| संयोग से मै यहाँ जिनके पास ठहरा था, वे आज परभणी मेरे पिताजी के पास जा रहे हैं| इसलिए कुछ वजन उनके पास भेज दिया| साईकिल पर लगभग बारह किलो का सामान होगा, उसमें से एक- डेढ किलो कम हुआ| सामान अगर ठीक से रखा जाए, तो महसूस भी नही होता है| और अब इतने दिनों के बाद मुझे बिल्कुल भी महसूस नही होता है| आज का चरण भी छोटा ही है| यहाँ से नान्देड तक ७४ किलोमीटर साईकिल चलाऊँगा| आज के दिन की खास बात यह रहेगी कि नान्देड मेरा ननिहाल है और आज मै मामा के घर पर ठहरूँगा| इस स्वप्नवत् यात्रा का और एक सुनहरा दिन! 






Friday, December 14, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: ८. हसेगांव (लातूर) से अहमदपूर

८. हसेगांव (लातूर) से अहमदपूर
 

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कल रात भर अच्छी बारीश हुई| कल मै जहाँ ठहरा था, वहाँ गर्मी और मच्छरों ने नीन्द नही लेने दिया| लगभग पूरी रात जगा रहा| सुबह चार बजते ही संस्था के एक कार्यकर्ता मिलने आए| फिर कुछ देर उनसे बात हुई, अन्धेरे में ही थोड़ा टहलना भी हुआ| संस्था के कार्य के बारे में बात होती रही| बाद में उन्होने मेरे लिए बड़े प्यार से पोहे भी बनाए| अब भी बारीश का मौसम बना है, इसलिए सुबह उजाला होते देर लगी| इसलिए १९ नवम्बर हर रोज के बजाय कुछ देरी से निकला| निकलते समय भी रवी जी ने और बच्चों ने बड़े जोश से मुझे विदा किया| सेवालय में यह विजिट इस यात्रा का शायद सबसे बड़ा अनुभव रहा! बहुत कुछ देखने को और समझने को मिल रहा है! और सेवालय में आने के बाद यहाँ से जाना कठिन होता है, यह सुना था, अब उसका अनुभव ले रहा हूँ| एक तो मौसम आज कुछ अलग है और रात में विश्राम न होने से भी थकान हो रही‌ है| आज वैसे तो मुझे छोटा ही चरण है| ७६ किलोमीटर ही चलाने है| अब अगले शनिवार तक ज्यादा बड़े चरण नही है| अब धीरे धीरे यात्रा अपनी समाप्ति की तरफ बढ़ रही‌ है|






Wednesday, December 12, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: ७. अंबेजोगाई से हसेगांव (लातूर)

७. अंबेजोगाई से हसेगांव (लातूर)
 

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१८ नवम्बर की भोर, यात्रा का सांतवा दिन| आज रविवार है और आज का चरण वैसे छोटा भी है| आज ७५ किलोमीटर साईकिल चलानी है और लगातार कई दिनों तक साईकिल चलाने से ये ७५ किलोमीटर अब सिर्फ लग रहे हैं| जैसे एक पेडल मारने से साईकिल अपने आप कुछ आगे जाती है, एक पेडल का मूमेंटम दूसरे पेडल में मिलता है, उसी प्रकार कई दिनों का मूमेंटम अब मेरे पास है| बस डर एक ही है कि आज के रूट पर भी कुछ हद तक निम्न दर्जे की सड़क है| ठीक सवा छह बजे अंबेजोगाई से निकला| यशवंतराव चव्हाण चौक में कल मेरा स्वागत हुआ था, वहीं से लातूर रोड़ की तरफ बढ़ा| शहर से बाहर निकलने तक सड़क ठीक है, लेकीन जब पहला मोड़ आया, तो सड़क बिल्कुल टूटी फूटी मिली| लेकीन यहाँ के लोगों ने बताया कि जल्द ही‌ अच्छी सड़क मिलेगी, इस सड़क का लगभग काम पूरा हो चुका है| और मै अब तक ऐसी ऐसी सड़कों से गुजर चुका हूँ कि मुझे सड़क कम दर्जे की हो तो कुछ फर्क ही नही लग रहा है| उसका भी अभ्यास हो गया है| इसलिए पथरिली सड़क पर भी आराम से आगे बढ़ा| दूर से गिरवली सबस्टेशन का परिसर और अंबेजोगाई- परली रोड़ पर स्थित टीवी टॉवर दिखा| बचपन में अक्सर यहाँ आया करता था! उस परिसर का दूर दर्शन कर यादों को ताज़ा कर लिया| थोड़ी ही दूरी पर अच्छा दो लेन का हायवे मिला| अब लातूर तक अच्छा हायवे होगा|





Monday, December 10, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: ६. बीड से अंबेजोगाई

६. बीड से अंबेजोगाई
 

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१७ नवम्बर की भोर| इन्फँट इंडिया बाल गृह से निकला| निकलते समय दत्ताजी और सब बच्चों ने मुझे विदा कहा| बड़े प्यार से मेरे लिए बहुत जल्द उठ कर भोजन भी बनाया| इस हिल से उतरते समय नीचे के सरोवर का परिसर बहुत सुन्दर लगा! कल की मुलाकातें याद करते हुए आगे बढा| आज भी मेरे लिए कुछ बहुत निम्न स्तर की सड़क लगनेवाली है|‌ आज ऐसा तीसरा दिन होगा जब शुरू के तीस- पैतीस किलोमीटर तक ऐसी सड़क होगी‌ और उसके बाद बेहतर सड़क मिलेगी| सोच रहा हूँ या उम्मीद कर रहा हूँ कि सिर्फ पैतीस किलोमीटर तक ही ऐसी सड़क मिले| आज सबसे पहले मुझे तो मांजरसुंबा घाट पार करना है| हायवे पर आते ही घाट की चढाई शुरू हुई| घाट तो मामुली ही है| लेकीन घाट में टैफिक जाम है! एक पल के लिए डर लगा कि कहीं फंस तो नही जाऊँगा? लेकीन हाथ में साईकिल है, इसलिए कुछ देर तक ट्रकों की कतार के दाए तरफ से आगे बढा और जब सड़क सँकरी हुई, तब बाए तरफ से आगे बढ़ा| सड़क के किनारे से आगे निकला| छोटा ही हो, घाट तो है ही| लेकीन उससे ज्यादा डरावनी बात काँच के छोटे टूकडे हैं जो जगह जगह फैले हुए हैं| उन पर से साईकिल चलाते समय वाकई डर लग रहा है| अगर घाट में साईकिल पंक्चर हुई तो??... लेकीन ऐसा हुआ नही| आसानी से छोटी सी जगह से आगे निकला और फिर स्लो हुए ट्रक्स को ओवरटेक भी करता गया| कुछ ही मिनटों में घाट पार हुआ और मांजरसुंबा चौराहे पर पहला ब्रेक लिया|







Saturday, December 8, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: ५. बार्शी से बीड

५. बार्शी से बीड
 

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१६ नवम्बर, आज इस यात्रा का पाँचवा दिन है| कल का दिन साईकिलिंग के लिहाज़ से बहुत बढिया रहा| अब साईकिल चलाना वाकई आसान हो गया है| अब किलोमीटर की‌ दूरियाँ महसूस ही नही हो रही है| कल की चर्चाएँ भी अच्छी हुई थी|‌ अब आज बार्शी से बीड के पास पाली में होनेवाले बाल गृह में जाना है| आज की दूरी लगभग ९५ किलोमीटर होगी| हर रोज की तरह सुबह उजाला होते होते बार्शी से निकला| बार्शी काफी बड़ा शहर है| कैंसर हॉस्पिटल से आगे आगळगाँव की‌ सड़क पूछते पूछते आगे बढ़ा| यहाँ से कुछ दूरी तक बहुत साधारण सड़क है| और अन्दरूनी सड़क होने के कारण बीच में टूटी भी होगी! कुछ दूरी पार करने के बाद ठीक कल जैसी सड़क! लेकीन आसपास नजारे बेहद अनुठे हैं| अब धीरे धीरे सोलापूर जिला समाप्त हो रहा है| दूर कुछ पहाड़ दिखाई‌ दे रहे हैं| उसके आगे पहले उस्मानाबाद और बाद में बीड जिला शुरू होगा| टूटी सड़क जल्द ही खत्म हुई| हालांकी सड़क का निम्न स्तर आगे भी‌ बना रहा|









Thursday, December 6, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: ४. पंढरपूर से बार्शी

४. पंढरपूर से बार्शी

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१५ नवम्बर| कल लगातार दूसरे दिन पंक्चर होने से एक तरह से अब भी अस्वस्थ हूँ| पंक्चर तो मैने ठीक कर दिया है, लेकीन फिर होने का डर है| कल सोने में बहुत देर होने पर भी सुबह फ्रेश लग रहा है| सुबह बच्चों से विदा लिया, पालवी संस्था की दिदी से विदा लिया| अच्छी खासी ठण्ड लग रही है| पंढरपूर गाँव में से शेटफळ की सड़क पूछ कर आगे निकला|‌ जब इस यात्रा का रूट प्लैन बनाया और योजना बनाई, तो हर दिन लगभग ८०- ८५ किलोमीटर साईकिल चलाने का लक्ष्य रखा| ऐसे रूट बनाते समय कई बार बहुत इंटेरिअर की सड़के लेनी पड़ी| आज भी मुझे ऐसी ही सड़क से जाना है| पंढरपूर गाँव के बाद चंद्रभागा नदी का पूल पार करते ही ऐसी ही सड़क लगी! पंढरपूर इतना बड़ा तीर्थ क्षेत्र और उसके बाद दिया तले अंधेरा! देखा तो पूरी तरह उखाड़ दी है! नई सड़क बनाने के पहले पुरानी को तोड़ दिया है! मन ही मन उम्मीद कर रहा हूँ कि आगे जा कर कुछ ठीक होगी|





चन्द्रभागा और पण्ढरपूर!

Tuesday, December 4, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: ३. इन्दापूर से पण्ढरपूर

३. इन्दापूर से पण्ढरपूर
 

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१४ नवम्बर की भोर| आज बाल दिन है और आज मुझे पहले बाल गृह में पहुँचना है| आज इस साईकिल यात्रा का तिसरा दिन है| इसलिए शरीर कुछ लय में आ गया है| सुबह की ठण्डक में‌ इन्दापूर महाविद्यालय से निकला| सुबह घुमनेवाले लोगों को सड़क पूछ कर आगे बढ़ा| कल के हायवे के मुकाबले इन्दापूर- अकलूज सड़क काफी शान्त लगी| अब वाकई लग रहा है कि मै ग्रामीण क्षेत्र में पहुँच गया हूँ| जल्द ही‌ पुणे जिला समाप्त हुआ| अकलूज में पहला ब्रेक लिया| पहले दो दिनों के अनुभव के बाद मै नाश्ते के लिए सिर्फ केला, चाय- बिस्कीट, चिक्की (गूड़पापडी) और चिप्स इनको ही ले रहा हूँ| पेट के लिए हल्का होता है| डबल चाय- बिस्कीट के दो ब्रेक मेरे लिए पर्याप्त होते हैं| साथ ही चिक्की/ बिस्कीट पास रखता हूँ, उन्हे बीच बीच में खाता हूँ| पानी में इलेक्ट्रॉल डाला ही हुआ है| लगातार चलाने के कारण धीरे धीरे मेरे लिए साईकिल चलाना और आसान होता जा रहा है|






Sunday, December 2, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: २. केडगांव से इन्दापूर (८५ किमी)

२. केडगांव से इन्दापूर (८५ किमी)

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१३ नवम्बर की भोर| आज इस यात्रा के दूसरे दिन केडगाँव से निकलना है| अच्छा विश्राम होने पर सुबह ताज़गी महसूस हो रही है| उजाला होते होते तैयार हो कर निकला| आज इन्दापूर तक मुझे यही हायवे होगा| कल के मुकाबले मुझे आज कम समय लगेगा| लेकीन साईकिल यात्रा में अक्सर अपेक्षा के विपरित होता रहता है| आज भी इसका अनुभव आनेवाला है| जब निकला तब काफी ठण्ड है| इस यात्रा में हर रोज मुझे सुबह एक- डेढ घण्टे तक ठण्ड मिलनेवाली है| और दोपहर में काफी गर्मी भी मिलेगी| सुबह की ठण्डक में हायवे पर साईकिल चलाने का आनन्द लेता रहा| सूर्योदय का अच्छा दृश्य दिखाई दिया|









Thursday, November 29, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: १. चाकण से केडगांव (८४ किमी)

१. चाकण से केडगांव (८४ किमी)
 

नमस्ते! हाल ही में महाराष्ट्र में १४ दिनों में ११६५ किलोमीटर की साईकिल यात्रा पुरी की| अब उसके अनुभव आपके साथ शेअर करता हूँ| संक्षेप में इस यात्रा की योजना कैसे बनी, यह बताता हूँ| मई २०१८ में योग प्रसार हेतु मैने साधारण सी एटलस साईकिल पर ५९५ किलोमीटर की यात्रा की थी| उस दौरान एक सामाजिक माध्यम के तौर पर साईकिल क्षमता का एहसास हुआ था| इस तरह की और यात्रा करने की इच्छा हुई| और साईकिल चलानी है तो किसी सामाजिक उद्देश्य और सामाजिक सन्देश के साथ ऐसी यात्रा करूँ, यह लगा था| परभणी के मेरे साईकिल मित्र डॉ. पवन चाण्डक कई सालों से एचआयवी इस विषय को लेकर साईकिल यात्रा करते हैं, कई एचआयवी बाल गृहों को सहायता भी करते हैं| इसके साथ मेरी पत्नि आशा पीछले दस सालों से एचआयवी क्षेत्र में कार्य कर रही है| इन दोनों बातों को मिला के इस साईकिल यात्रा की योजना बनी| १ दिसम्बर को विश्व एचआयवी निर्मूलन दिन है, तो उसके उपलक्ष्य में इस यात्रा की तैयारी की गई| यात्रा के उद्देश्य एवम् उसका स्वरूप पहले ही आपको बताया है|





Saturday, November 10, 2018

एचआयवी एडस इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा

नमस्ते! पीछली बार मैने जब योग- प्रसार हेतु साईकिल यात्रा की थी, तब एक माध्यम के तौर पर साईकिल की क्षमता का अहसास हुआ था| साईकिलिंग तो अक्सर करता रहता हूँ, लेकीन सोचा कि अगर एक माध्यम के तौर पर साईकिल इतनी उपयुक्त है, तो क्यों ना किसी सामाजिक विषय को ले कर साईकिल चलाई जाए| जब ऐसा सोच रहा था, तो मेरे सामने दो बातें थी- मेरी पत्नि आशा एचआयवी- एडस इस विषय पर रिलीफ फाउंडेशन संस्था के साथ कई सालों से काम कर रही हैं| रिलीफ फाउंडेशन महाराष्ट्र राज्य एडस नियंत्रण सोसायटी के अन्तर्गत एचआयवी के बारे में जागरुकता और मायग्रंट वर्कर्स इन विषयों पर काम करती है| उसके अलावा परभणी के मेरे साईकिलिस्ट मित्र डॉ. पवन चाण्डक जी भी कई सालों से एचआयवी होनेवाले बच्चों के बाल गृहों को सहायता करते हैं| इन दोनों बातों को मिला कर महाराष्ट्र में एक सोलो साईकिल एक्स्पीडीशन की योजना बनाई| रिलीफ फाउंडेशन इस साईकिल यात्रा का को- ऑर्डीनेशन करेगा|‌ यह योजना इस प्रकार है|

हर सुबह लगभग ८०+ किलोमीटर साईकिल चलाऊँगा| एचआयवी होनेवाले बच्चों के बाल गृह चलानीवाली चार संस्थाओं में भेंट करूँगा| वहाँ चल रहा कार्य, वहाँ के कार्यकर्ताओं के अनुभव इस पर चर्चा होगी|‌ उसके अलावा बच्चों से गपशप और संवाद होगा| इसके अलावा दुसरी भेंट कार्यकर्ताओं से होगी| उनके अनुभव, उनकी सक्सेस स्टोरीज आदि पर चर्चा होगी| ये चार संस्थाएँ ऐसी है- पंढरपूर- पालवी प्रोजेक्ट, बीड- इन्फँट इंडिया संस्था, हसेगांव (लातूर)- सेवालय संस्था और अकोला- सर्वोदय एडस बालगृह|

इन संस्थाओं के बीच दूरी बड़ी है, इसलिए यात्रा के कई चरण होंगे| इस यात्रा में वहाँ के स्थानीय कार्यकर्ताओं से मिलूँगा, एचआयवी एडस के बारे में जागरुकता से जुड़े ब्रॉशर्स लोगों को दूँगा| जहाँ अवसर मिलेगा, वहाँ मै छोटे ग्रूप के साथ चर्चा करूँगा- एचआयवी होनेवाले लोगों को ट्रीटमेंट का बेहतर लाभ मिले, इसलिए स्वास्थ्य का ख्याल कैसा रखना चाहिए, उसके लिए जीवन शैलि किस प्रकार की होनी चाहिए, योग और फिटनेस का इस सन्दर्भ में महत्त्व आदि पर बोलूँगा| मेरी साईकिल डायरी में ये अनुभव समाज के सामने रखूँगा| कितनी विपरित परिस्थिति में ये लोग कार्य करते हैं, यह समाज के सामने आना भी तो चाहिए|

उद्देश्य
१. अच्छा कार्य करनेवाले लोगों के अनुभव सुनना, उनसे मिलना और उनसे बातचीत करना, यह उनके लिए बहुत बड़ा 'पॉझिटीव्ह स्ट्रोक' होता है|
२. एचआयवी होनेवाले बच्चों के साथ उन्हे रिफ्रेश करनेवाला अनौपचारिक संवाद|
३. इस विषय के विविध पहलू, उसकी जटिलताएँ, दिक्कतें सामने रखना और समाज की जागरूकता बढाने की आवश्यकता पर बल देना|
४. विविध तरह की सक्सेस स्टोरीज और दिक्कतों से चल रहा संघर्ष समाज के सामने रखना|


यात्रा का रूट 

१४ नवम्बर को बाल दिन है| उस दिन पहले बाल गृह में पहुँचने की योजना है| इसलिए १२ नवम्बर को निकलूँगा| इस यात्रा में महाराष्ट्र के दस जिलों में साईकिल चलाऊँगा|

दिन १ १२ नवम्बर, सोमवार: चाकण से केडगांव: ८४ किमी
दिन २ १३ नवम्बर, मंगळवार: केडगांव से इंदापूर: ८५ किमी
दिन ३ १४ नवम्बर, बुधवार: इंदापूर से पंढरपूर: ७२ किमी
दिन ४ १५ नवम्बर, गुरुवार: पंढरपूर से बार्शी: ८२ किमी
दिन ५ १६ नवम्बर: शुक्रवार: बार्शी से पाली, बीड: १०४ किमी
दिन ६ १७ नवम्बर: शनिवार: बीड से अंबेजोगाई: ९० किमी
दिन ७ १८ नवम्बर: रविवार: अंबेजोगाई- लातूर- हसेगांव: ८४ किमी
दिन ८ १९ नवम्बर: सोमवार: हसेगांव से अहमदपूर: ७५ किमी
दिन ९ २० नवम्बर: मंगळवार: अहमदपूर से नांदेड: ६७ किमी
दिन १० २१ नवम्बर: बुधवार: नांदेड से हिंगोली: ९२ किमी
दिन ११ २२ नवम्बर: गुरुवार: हिंगोली से वाशिम: ५१ किमी
दिन १२ २३ नवम्बर: शुक्रवार: वाशिम से अकोला: ७६ किमी
दिन १३ २४ नवम्बर: शनिवार: अकोला से रिसोड: ९७ किमी
दिन १४ २५ नवम्बर: रविवार: रिसोड से परभणी: १०० किमी

कुल दिन १४ और कूल दूरी लगभग ११६५ किलोमीटर|

२५ नवम्बर को यह यात्रा समाप्त होगी| विश्व एचआयवी दिन अर्थात् १ दिसम्बर को मेरे अनुभव शेअर करूँगा| यह काम किस तरह चल रहा है, क्या दिक्कते हैं, इस पर लिखूँगा (जैसे संस्था के कार्यकर्ताओं को लोगों द्वारा मारना- पीटना, संस्था की इमारत गिरायी जाना और अन्य भी)| एचआयवी का मतलब सिर्फ लोगों को पता होनेवाली चार चीज़ें ही नही, बल्की उसमें कई जटिलताएँ होती हैं, एचआयवी होनेवाले व्यक्तियों की कई समस्याएँ होती हैं और उन पर सोल्युशन्स भी होते हैं (जैसे एआरटी थेरपी के साथ 'पॉजिटिव' जीवन शैलि) ये सब मै समाज के सामने रख सकूँगा| और किसी भी सामाजिक समस्या के पीछे गहराई में अज्ञान, गलत तरह की सोच, जागरुकता और दायित्व का अभाव होते हैं| उन पर भी चर्चा होने में सहायता होगी|
 

अगर आपकी जानकारी में इस यात्रा के रूट पर एचआयवी विषय पर काम करनेवाली कोई संस्था है, तो उसके बारे में आप बता सकते हैं| यात्रा शुरू होने पर हर दिन का अपडेट भी आपको देता रहूँगा| बहुत बहुत धन्यवाद|

मेरी पीछली साईकिल यात्राओं के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं: www.niranjan-vichar.blogspot.com (मेरा मोबाईल नंबर:  094221088376)

इस साईकिल यात्रा का समन्वयन रिलीफ फाउंडेशन, भोसरी, पुणे द्वारा किया जा रहा है| सम्पर्क: 07350016571


Sunday, November 4, 2018

साईकिल पर कोंकण यात्रा भाग ८ (अन्तिम): देवगड़ से वापसी...

८ (अन्तिम): देवगड़ से वापसी...
 

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कोस्टल रोड़ से कुणकेश्वर जाने के बाद अगले दिन सबके साथ और कुछ जगह पर घूमना हुआ| साईकिल के बिना देवबाग बीच और तारकर्ली बीच देखना हुआ| समय की कमी के कारण साईकिल पर और कहीं जाना नही हुआ| कम से कम देवगड़- आचरा बीच जाने की इच्छा थी| बीच के साथ कोंकण के अन्दरूनी गाँवों का दर्शन होता| पर वह सम्भव नही हो सका| पत्नि और बेटी साथ में‌ होने की वजह से वापसी के रूट पर कम से कम गगनबावडा तक जाने की इच्छा भी‌ अधूरी रह गई| उनके साथ ही जाना पड़ा| वैसे तो कुणकेश्वर- जामसंडे की सड़क पर जो तिखी चढाई आती है, वह मैने साईकिल पर पार की‌ थी| पीछली बार गाडी पर जाते समय यही चढाई गगनबावडा घाट से भी अधिक खतरनाक मालुम पड़ी थी| इसलिए गगनबावडा घाट साईकिल पर न जाने का मलाल नही हुआ| वैसे भी इन दिनों में इतनी चढाईयाँ पार की है कि एक घाट इतना मायने नही रखता है|‌ खैर|










Friday, November 2, 2018

साईकिल पर कोंकण यात्रा भाग ७: कोस्टल रोड़ से कुणकेश्वर भ्रमण

भाग ७: कोस्टल रोड़ से कुणकेश्वर भ्रमण
 

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१२ सितम्बर का दिन साईकिल चलाए बिना समाप्त हो गया| मेरी पत्नि और बेटी को लाने के लिए मुझे जाना पड़ा| इससे साईकिल यात्रा का और एक दिन कम हुआ| अब शायद सिर्फ एक ही दिन साईकिल चला पाऊँगा| मेरे रिश्तेदार, भाई और अब पत्नि- बेटी आने के बाद इस सुनसान घर में चहल पहल हुई है| अब यहाँ कुछ ठीक महसूस कर रहा हूँ| पुरानी यादें तो हैं ही, अब बेटी साथ होने से नई यादें भी जुड़ रही हैं| यह फार्म हाऊस समुद्र तट से लगभग नौ किलोमीटर दूर आता है| लेकीन सुना है कि जब बरसाती दिनों में भीषण बारीश होती है, समंदर में तुफान जैसी स्थिति बनती है, तब यहाँ तक उसकी गूँज सुनाई देती है| अगर इस बार तेज़ बरसात होती, तो यह मौका मिलता! इसके लिए बरसात के चरम समय में यहाँ आना होगा|










Wednesday, October 31, 2018

साईकिल पर कोंकण यात्रा भाग ६: देवगड़ बीच और किला

६: देवगड़ बीच और किला

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देवगड़ में‌ पहुँचने की‌ उत्तेजना काफी देर रही| फार्म हाउस के विरान इलाके में वह दिन बिता| पाँच दिनों में ४१३ किलोमीटर से अधिक दूरी पार हो गई! इस साईकिल को कैसे धन्यवाद दूं? यह फार्म हाऊस मुख्य सड़क से लगभग आधा किलोमीटर अन्दर है और यहाँ की सड़क बिल्कुल कच्ची और पथरिली है| आते समय पहले तो लगा कि साईकिल पैदल ही लानी ठीक होगी| लेकीन इतने दिन साईकिल चलाने से हौसला बढ़ गया था| इसलिए धीरे धीरे उस कच्ची सड़क या ट्रेल पर भी साईकिल चला के घर पहुँचा था| मेरे रिश्तेदार कल आएंगे, इसलिए घर में‌ भी खामोशी है| यहाँ ठहरना एक तरह से बाहरी दुनिया से सम्पर्क क्षीण करने जैसा है| टिवी नही, इंटरनेट भी‌ धिमा और कभी भी रूक जाएगा ऐसा| लेकीन रिलैक्स करने के लिए बहुत बेहतर माहौल| अब एक तरह से इस यात्रा का मुख्य हिस्सा पूरा हुआ है| इसलिए मन से भी रिलैक्स महसूस कर रहा हूँ| अच्छे विश्राम के बाद ११ सितम्बर  को अब देवगड़ किला और बीच देखना है|








Monday, October 29, 2018

साईकिल पर कोंकण यात्रा भाग ५: राजापूर- देवगड़ (५२ किमी)

भाग ५: राजापूर- देवगड़ (५२ किमी)
 

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१० सितम्बर की सुबह| आज बहुत छोटा सा चरण है- सिर्फ ५१ किलोमीटर है| लेकीन एक तरह से आज मेरा सपना पूरा होने जा रहा है, इसलिए मन में बहुत उत्तेजना है| लगातार चार दिनों में ३५० किलोमीटर से अधिक दूरी पार करने से आज की दूरी बहुत मामुली हो गई है| हालांकी समय तो लगेगा, लेकीन चिन्ता बिल्कुल नही होगी| जैसे औपचारिकता बची है| लेकीन सुबह जब निकला तो मन में भाव सिर्फ एंजॉय करने का है| रोशनी होते होते जब निकला, तो दूर आसमान में अन्धेरा दिख रहा है| एक बार बरसात का डर भी लगा| लेकीन थोड़ी ही‌ देर में पता चला कि यह तो धुन्ध है| और इसका मतलब यह भी है कि अब बारीश आने की सम्भावना एकदम कम हो गई है| राजापूर से निकल कर जैसे ही‌ मुंबई- गोवा हायवे छोड दिया, तो बहुत ही सुन्दर और उपर चढ़नेवाली सड़क मिली| और थोड़ा आगे जाने के बाद जैसे कोहरे का समुद्र लगा! आज समुद्र तो मिलेगा ही, लेकीन उसके पहले कोहरे का समुद्र! वाह, अद्भुत नजारा! और कितनी रोमँटीक और लगभग निर्जन सड़क!







Friday, October 26, 2018

साईकिल पर कोंकण यात्रा भाग ४: मलकापूर- आंबा घाट- लांजा- राजापूर (९४ किमी)

भाग ४: मलकापूर- आंबा घाट- लांजा- राजापूर (९४ किमी)
 

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९ सितम्बर की सुबह| कल रात अच्छा विश्राम होने से बहुत ताज़ा महसूस कर रहा हूँ| आज रविवार है, इसलिए थोड़ी देरी से निकलना है| लेकीन सुबह नीन्द जल्द खुल गई, इसलिए लॉज के बाहर आकर थोड़ा मॉर्निंग वॉक लिया| बाहर सब शान्ति शान्ति है, चाय का होटल तक खुला नही है| फिर आराम से सात बजे बाहर निकला| अब होटल खुला मिला| नाश्ता करते समय मेरी साईकिल देख कर कई बस ड्रायवर और कंडक्टर मुझसे मिलने लगे! यहाँ पास ही तो बस स्टैंड है| कुछ देर तक उनसे बात की और लगभग पौने आठ बजे मलकापूर से निकला| विगत चार दिनों से क्या यात्रा रही है! और आज का पड़ाव बहुत अहम होगा| आज लगभग ९२ किलोमीटर ही जाना है, लेकीन यह भी सफर चढने- उतरनेवाले रास्तों के बीच होगा| इसी रोड़ पर लगभग आठ साल पहले एक बार आया हूं, इसलिए कुछ तो याद है| इतिहास में प्रसिद्ध विशालगढ़ के पास से यह सड़क गुजरती हैं| मलकापूर से आगे आते ही नजारों की झड़ी जैसे शुरू हुई!







Sunday, October 21, 2018

साईकिल पर कोंकण यात्रा भाग ३: सातारा- कराड- मलकापूर (११४ किमी)

३: सातारा- कराड- मलकापूर (११४ किमी)

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८ सितम्बर की सुबह| जब नीन्द खुली तो बाहर झाँक के देखा| पूरे आसमान में बादल छाए हैं और जल्द ही बून्दाबून्दी शुरू हुई! आज बारीश के आसार है| लेकीन जब तैयार हो कर साईकिल ले कर निकला, तो आसमान बिल्कुल साफ हुआ है! इसे ही तो सावन की रिमझिम बारीश कहते हैं! सातारा! शहर में सामने अजिंक्यतारा किला जैसे निगरानी करने के लिए खड़ा है! बड़ा विराट नजर आता है! पीछली बार की सातारा यात्रा की याद ताज़ा करते हुए अजिंक्यतारा के पास से निकला| और सातारा शहर का सौंदर्य फिर एक बार देखने को मिला| अजिंक्यतारा के पीछे के रास्ते से हायवे की तरफ बढ़ने लगा| क्या नजारे हैं! वाकई, सातारा जिले के साथ सातारा शहर भी एक घूमक्कडों का और फिटनेस प्रेमियों का डेस्टीनेशन है! अच्छी संख्या में लोग मॉर्निंग वॉक कर रहे हैं, कोई कोई साईकिल पर भी हैं और दौड़ भी रहे हैं! बहुत हरियाली और उसमें से गुजरती विरान सड़क! इस बार भी सातारा का अच्छा भ्रमण हो रहा है! लगभग दस साल पहले इसी परिसर में जकातवाडी गाँव में एक मीटिंग के लिए आया था, वह याद भी ताज़ा हो गई! शहर के इतना करीब होने के बावजूद इतना कुदरती सौंदर्य! अजिंक्यतारा दूसरी तरफ से देखते हुए आगे बढ़ा और जल्द ही हायवे पर पहुँच गया| अब यहाँ से कराड़ तक सीधा हायवे है|